• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • चतुर्मुखी ब्रह्म
    • ब्रह्म
    • ईश्वर
    • विष्णु
    • भगवान
    • परलोक कहां है? भूःलोक
    • भुवः लोक
    • स्वःलोक
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • चतुर्मुखी ब्रह्म
    • ब्रह्म
    • ईश्वर
    • विष्णु
    • भगवान
    • परलोक कहां है? भूःलोक
    • भुवः लोक
    • स्वःलोक
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Books - अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार

Media: TEXT
Language: HINDI
SCAN TEXT


परलोक कहां है? भूःलोक

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 5 7 Last
स्वर्ग और नरक को खोजने के लिए दूर जाने की जरूरत नहीं, वह यहीं इसी धरती पर ही मौजूद है। इसी लोक में अनेक व्यक्ति सुरपुर के आनंद लूट रहे हैं, उन्हें सब प्रकार के ऐश-आराम हैं। स्वर्गलोक के जो वर्णन कथा-पुराणों में सुने जाते हैं, वे सब उनके लिए इसी लोक में मौजूद हैं। दूसरी ओर अनेक व्यक्ति ऐसे भी हैं जिनके समक्ष यमपुरी की समस्त यातनाएं हर घड़ी सामने उपस्थित रहती हैं। अस्पतालों, जेलखानों, पागलखानों, अपाहिज ग्रहों, कोढ़ी खानों में जाकर हम देख सकते हैं कि मनुष्य कितनी पीड़ाएं सहते हैं। अनेक मनुष्यों के लिए अपनी जिंदगी का जीना तक कठिन हो जाता है, वे तत्कालीन वेदना से छुटकारा पाने के लिए विष खोकर, जलाशय में डूबकर, फांसी लगाकर, तेल छिड़ककर, रेल के नीचे लेटकर तथा अन्य किसी प्रकार से आत्महत्या कर लेते हैं। मृत्यु में बड़ा कष्ट होता है, पर आत्महत्या करने वाला मनुष्य अपने जीवन को मृत्यु से भी अधिक कष्टदायक अनुभव करता है, तभी तो वह इस प्रकार के भयंकर कामों के लिए तैयार हो जाता है। ये घटनाएं बताती हैं कि नरक इस लोक में भी मौजूद है।नंदन वन से बगीचे, यक्ष-गंधर्वों से गायक, अप्सराओं सी तरुणियां, वृहस्पति से देव गुरु, कुबेर से भंडारी, पुष्पक विमान से वाहन इस लोक में मौजूद हैं। इंद्र वज्र की समता करने वाला परमाणु बम यहां मौजूद है। वरुण, यम, अग्नि, पवन, पूषा, विश्वेदेवा इस लोक के चौकीदार की तरह हाथ बांधे हर वक्त सेवा के लिए खड़े रहते हैं। विज्ञान ने समस्त देवताओं की शक्तियों को छीनकर मनुष्य की सेवा में उपस्थित कर दिया है। लक्ष्मी, सरस्वती और चंडी के दर्शन करने हों तो किसी अन्य लोक में जाने की आवश्यकता नहीं। उन्हें भी इस लोक में उपलब्ध किया जा सकता है। सुरपुरी की समस्त विशेषताएं इस लोक में मौजूद हैं।नरक को खोजने के लिए कहीं दूर जाने की आवश्यकता नहीं है। रौरव, कुंभपाक, ताम्रपत्र, असिपत्र आदि चौबीस नरकों के स्थान पर यहां चौबीस सौ नरक देखे जा सकते हैं। किसी घृणित, भयंकर कष्टसाध्य और दुःसह वेदनायुक्त बीमारी में जिन्हें स्वयं फंसने का कभी अनुभव हुआ है या ऐसे रोगी की जिनने परिचर्या की है, वे जानते हैं कि किसी नरक में इससे अधिक दुःख न होगा। एक सौ पांच-छह डिग्री के बुखार से जिसका रोम-रोम जल रहा है, हड़फूटन और प्यास की बेचैनी से बेहोशी तक आ जाती है, उन्हें उष्ण ताप नरक से क्या कम कष्ट है? कफ जब गले को रुंध देता है और जब न तो अच्छी तरह सांस ली जाती है, न जिह्वा से शब्द निकलता है, तब यमदूत द्वारा गला घोंटने के कष्ट में और क्या अंतर रह जाता है? गर्भ में बंद बालक किसी कुंभीपाक नरक से अच्छी दशा में नहीं है? आंख, दाढ़ के दर्द जब उग्र रूप से उठते हैं तो मनुष्य छटपटा जाता है। प्रसव के समय माताएं कितनी पीड़ा सहती हैं। बिच्छू आदि जहरीले जानवरों के काट लेने पर, अग्नि से जल जाने पर, भारी आघात लगने पर या भयंकर फोड़ा उठने पर जो पीड़ा होती है, वह नरक की किस पीड़ा से कम होगी?नरक में नियत संख्या में यमदूत होते हैं, उन यमदूतों की खास तरह की शक्ल और खास तरह की पोशाक होती है, जिससे आसानी से उन्हें पहचाना जा सकता है, पर यहां तो अगणित यमदूत हमारे चारों ओर फिरते हैं। उनकी शक्ल और पोशाक भले आदमियों की सी होने के कारण और भी अधिक गहरी चोट लगती है। नरक के यमदूतों को तो जीव पहचान लेता है और उनकी चोटों के लिए तैयार हो जाता है, पर इस लोक के यमदूत उनसे भी भयंकर हैं। वे पहचाने नहीं जाते और अकस्मात् ऐसे घातक आक्रमण करते हैं कि मनुष्य तिलमिला जाता है, उनके चोट करने के निर्लज्ज तरीके को देखकर यमदूत भी सकुचा जाते हैं। मित्र बनकर विश्वासघात करने वाले, रस दिखाकर विष पिलाने वाले, छाती से लगाने का प्यार दिखाकर कलेजा खा जाने वाले यमदूत यहां गली-गली में मिल सकते हैं। ठग, चोर, हत्यारे, व्यभिचारी, लंपट, विश्वासघाती, लबार, झूठे, चुगलखोर, बेईमान, कपटी, धूर्त, अत्याचारी, अन्यायी, परपीड़क, निर्लज्ज, कुकर्मी, नास्तिक, लुटेरे, निर्दय, क्रूर, निष्ठुर स्वभाव के साक्षात् शैतान जगह-जगह मौजूद हैं। बेचारे यमदूत अपने सीधे-साधे दंड अस्त्रों से जीव को एक सीधे-साधे नियत तरीके से मारते-पीटते होंगे, पर इस लोक के सफेदपोश यमदूत दूसरे को शारीरिक, मानसिक यातनाएं पहुंचाने के लिए जो-जो प्रपंच रचते हैं, उन्हें देखकर नरक के यमदूत हैरत में रह जाएंगे। उन बेचारों से सात पुश्त में भी ऐसे मायावी आक्रमण करना शायद न आए।दृष्टि पसारकर हम यदि दूर-दूर तक देखें और सुखी, संपन्न, समृद्ध लोगों के जीवन के आनंद तथा दुखी, दरिद्र, पीड़ित लोगों के कष्टों पर कुछ देर विस्तृत विचार करें, दोनों प्रकार के लोगों के जीवन चित्र अपने कल्पना क्षेत्र में खींचें तो इसी लोक में स्वर्ग और नरक का अस्तित्व हमें मिल जाएगा। सुख भी इतना है कि उससे बढ़कर स्वर्ग में भला और क्या अधिक सुख होगा? दुःख भी इतना है कि उन दुःखों के आगे नरक लोक में और अधिक भला क्या दुःख होगा? मृत्यु तुल्य ही नहीं आत्महत्या के लिए प्रेरित करने वाले मृत्यु से भी अधिक दुख इस लोक में मौजूद हैं, वह कष्टों की अंतिम सीमा है। इन सब बातों पर विचार करते हुए विज्ञ पुरुषों ने ठीक ही कहा है कि—‘‘स्वर्ग और नरक इसी लोक में हैं।’’ सचमुच पूर्ण तृप्तिदायक और अत्यंत उद्विग्न करने वाली स्थिति इस लोक में मौजूद है। स्वर्ग और नरक का पूरा-पूरा अस्तित्व इस लोक में उपलब्ध है।परलोक को भोगलोक कहा जाता है। परलोक में भले या बुरे भोग भोगने पड़ते हैं। इस लोक में जहां कर्म करने की सुविधा है, वहां कर्मफल के भोग में विवशता भी है। कोई व्यक्ति सुकर्म करके उसके सुफल से बचना चाहे तो यह उसके हाथ की बात नहीं, इसी प्रकार बुरे कर्म करके दंड से बचना भी संभव नहीं। रोगी, घायल, अपाहिज तथा अन्य दुःखों में पड़े हुए व्यक्ति यह कब चाहते हैं कि उन्हें दुःख सहना पड़े, तो भी चूंकि इस लोक में परलोक भी मौजूद है, उस परलोक के नियमानुसार उन्हें नरक भोगने के लिए विवश होना पड़ता है। उसी प्रकार चाहने को तो सुख-समृद्धि सभी चाहते हैं, पर चाहना कितनों की पूरी होती है। कितने ही जीव किसी ऐसे परिवार में उत्पन्न होते हैं, जहां अनायास ही अपार सुख-साधन मौजूद रहते हैं। कर्मभोग उन्हें इस स्थिति में दौड़ाता है। चूंकि परलोक इस लोक में मौजूद है, इसलिए स्वर्ग सुख की स्थिति भी अधिकारी लोगों के सामने परलोक के नियमानुसार अपने आप सामने आ जाती है। इस लोक में परलोक का कार्यक्रम यथावत् चल रहा है, उस कार्यक्रम के अनुसार सभी प्राणी स्वर्ग और नरक के सुख-दुख का रसास्वादन करते हैं।भूलोक के परलोक में सुख को स्वर्ग और दुःख को नरक कहते हैं। जिन्हें इस लोक में सुख प्राप्त है, वे स्वर्ग भोग रहे हैं और जिन्हें दुःख प्राप्त हो रहा है, वे बेचारे नरक भोग रहे हैं। यह एक मोटी परिभाषा है। इतना कह देने से ही काम न चलेगा। अब हमें नरक की बारीकी में जाना होगा। कितने ही व्यक्ति ऐसे हैं, जिन्हें रुपया-पैसा, धन-दौलत, सोना-चांदी की किसी प्रकार की कमी नहीं। नौकर-चाकर, महल, मोटर सब कुछ है। ऐश आराम के तरह-तरह के साधन मौजूद हैं। इतना सब होते हुए भी उन्हें चैन नहीं, दिन-रात अशांति की ज्वाला में जलते रहते हैं, रात को नींद नहीं आती, सारी सुख-सामग्री फीकी मालूम होती है। हमें ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं कि अमुक राजकुमार या धनी व्यक्ति ने अपने ऐश आराम के जीवन को लात मार दी और अमुक त्यागपूर्ण रास्ता ग्रहण कर लिया, इससे प्रतीत होता है कि उन्हें उस सुख-सामग्री में वास्तविक सुख नहीं मिला।हमारा व्यक्तिगत रूप से अनेक धनी-मानी और समृद्ध व्यक्तियों से संपर्क रहता है। वे अपने हृदय की व्यथा खोलकर हमारे सामने अपने मन का भार हल्का करते हैं। लंबे समय के अपने व्यक्ति गत अनुभव के आधार पर कह सकते हैं कि सुख-सामग्री होते हुए भी बहुत ही कम लोग ऐसे हैं जो सुखी कहे जा सकते हैं। अधिकांश में तो वे गरीब और अभावग्रस्त लोगों से भी अधिक दुखी पाए जाते हैं।अब दूसरी ओर देखिए। इस दुनिया में ऐसे लोग भी हैं जिनके पास धन-संपत्ति नहीं है। साथ ही कष्ट भी उठाते हैं, फिर भी वे स्वर्गवासी कहे जाते हैं। साधु, संत, महात्माओं के पास धन-संपत्ति नहीं होती, उनके पास जीवन निर्वाह को अन्न–वस्त्र जैसी साधारण वस्तुएं भी पर्याप्त मात्रा में नहीं होतीं, धन के अभाव में प्रायः कुछ-न-कुछ वस्तुओं का अभाव उनके सामने खड़ा ही रहता है। कितने ही परोपकारी मनुष्य संसार के हित के लिए कष्ट सहते हैं। दधीचि ने अपनी हड्डियां दीं, हरिश्चंद्र ने अपने को तथा स्त्री-पुत्रों को बेचा, मोरध्वज ने अपने पुत्र को दे डाला, शिवि ने नाना विधि कष्ट उठाए, मीरा और दयानंद ने विष के प्याले पिए, प्रह्लाद ने पिता के अत्याचार सहे, भारत के स्वाधीनता संग्राम में लाखों व्यक्तियों ने जेल, लाठी-गोली तथा फांसी सही, यह कष्ट सहना या दुःख-नरक भोगना नहीं कहा जा सकता। ऐसे कष्टों में भी स्वर्ग का सुख छिपा होता है। स्वेच्छा से स्वीकार किया हुआ कष्ट तप कहलाता है। वह बाहर से कष्ट जैसा दिखाई पड़ता है, पर वास्तव में वह दुख नहीं है।सुख और दुःख का निर्णय वस्तुओं के होने-न-होने के आधार पर नहीं किया जा सकता। मौज से पड़े रहना या कष्ट में दिन व्यतीत करना भी स्वर्ग-नरक की पहचान नहीं है, क्योंकि न तो धनी लोग सुखी ही देखे जाते हैं और न अभावग्रस्तों या कठिनाइयों में दिन व्यतीत करने वालों को दुःखी ही कहा जा सकता है। शास्त्रकारों ने भूलोक के सुखों में मानसिक, शारीरिक और नैतिक स्वास्थ्य को स्वर्ग बताया है और इन स्वास्थ्यों का अभाव ही नरक है। जो शरीर से स्वस्थ है, उसे बीमारियों के आक्रमण का आए दिन शिकार न होना पड़ेगा। रोगों का उन पर हमला होता है, जिनका शरीर दुर्बल होता है। बलवान शरीर वाला मनुष्य दैहिक पीड़ाओं से प्रायः बचा रहता है। इंद्रियों के बलवान रहने से भोग शक्ति सुस्थिर रहती है और उसे साधारण भोग सामग्री  में भी वह आनंद आता है जो अमीरों को बहूमूल्य ऊंचे दर्जे की वस्तुओं में उपलब्ध नहीं होता। जिसकी पाचन शक्ति ठीक है, जिसे कड़ाके की भूख लगती है, उसे जौ की रोटी, चने का साग से खाते हुए वह आनंद आता है जो कब्ज और जुकाम से पीड़ित रहने वाले व्यक्ति को छप्पन व्यंजनों से भरे थाल में नसीब नहीं हो सकता। काम शक्ति स्वस्थ रहने से मजदूर और उसकी स्त्री मजदूरिनी इंद्र और अप्सरा का आनंद अनुभव करते हुए रात बिताते हैं, पर जिन्हें प्रदर, प्रमेह, शीघ्र पतन, नपुंसकता आदि घेरे हुए हैं, वे पति-पत्नी कितने ही स्वरूपवान हों, कितनी ही विलासिता संपन्न वस्तुओं के धनी हों, दांपत्य जीवन का सुख नहीं उठा पाते। रात्रि आती है, पर उन्हें चिढ़ाने, तिरस्कृत करने और कुढ़ाने आती है। जीविका का प्रश्न भी स्वास्थ्य से संबंधित है। जो मजबूत है, निरोग है, वह धरती में लात मारकर अपने निर्वाह के लिए चाहे जहां जीविका उपार्जित कर लेगा। उसे निर्वाह के लिए जीविका कमाने की कभी चिंता नहीं करनी पड़ती।शारीरिक स्वास्थ्य स्वयं एक सुख है, जिसमें हर वक्त ताजगी, प्रसन्नता, निश्चिंतता तथा खुशी छाई रहती है। आत्मविश्वास, साहस, पुरुषार्थ और उत्साह की तरंगें उठती रहती हैं। नीरोग मनुष्य अपने आप में एक पूर्णता अनुभव करता है। इंद्रियां सशक्त और क्रियाशील रहने पर दीर्घकाल तक अपना काम ठीक प्रकार करती रहती हैं। बुड्ढे हो जाने पर भी नेत्रों की ज्योति ठीक रहती है, दांत मजबूत बने रहते हैं। कानों से ठीक सुनाई देता है। भोजन करते समय वे नित्य एक तृप्तिदायक सुख का आनंद लूटते हैं। उसके दांपत्य जीवन में बड़ा संतोषजनक सुख रहता है, जीविका उपार्जन करने में भी कभी पीछे नहीं रहते। धनी होना दूसरी बात है, पर इतना वे अवश्य कमा लेते हैं कि जीवन-क्रम पूर्ण सुविधा के साथ चलता रहे। यह सब सुख ऐसे ही हैं, जिनके लिए बड़े-बड़े अमीर तरसते हैं।पैसे की अधिकता से सुख-साधन तो अवश्य मिल जाते हैं, पर साथ-ही-साथ उस पैसे की छीन-झपट करने के इच्छुक भी इतने पैदा हो जाते हैं कि उनसे बचाव करने, उनके आक्रमण को रोकने के लिए असाधारण रूप से चिंतित रहना पड़ता है। दूसरे उस पैसे को अधिक बढ़ाने की तृष्णा चैन से नहीं बैठने देती। तीसरे धन की अधिकता के कारण अनेकानेक दुर्गुण पैदा हो जाते हैं, उन दुर्गुणों के दुखद परिणाम नित नए क्लेश उत्पन्न करते रहते हैं। इन तीनों प्रकार की बेचैनियों में मनुष्य का स्वास्थ्य क्षीण हो जाता है। यही कारण है कि धनी लोग सुखी बहुत कम देखे जाते हैं। इस संसार में, भूलोक में सुख उन्हें है, जो शारीरिक दृष्टि से स्वस्थ हैं। एक निरोग व्यक्ति चाहे वह निर्धन ही क्यों न हो, इतना सुखी रहता है जितना सुखी धनवान व्यक्ति अपने सारे धन के बदले में भी नहीं हो सकता।शारीरिक सुख के बाद मानसिक सुख है। सुशिक्षा, विद्या, विचारशीलता, समझदारी, सुविस्तृत जानकारी, अध्ययन, चिंतन, मनन, सत्संग, अनुभव आदि के द्वारा मन और मस्तिष्क को सुसंस्कृत बना लेना, मानसिक स्वस्थता है। शिक्षा के द्वारा डॉक्टर, वकील, इंजीनियर, अफसर, वैज्ञानिक, लेखक, संपादक, बाजीगर, शिल्पी, व्यापारी, कलाकार, मूर्तिकार, चित्रकार, संगीतज्ञ, नट आदि अपनी-अपनी महत्ता प्रकट करते हैं। अपनी योग्यताओं के बल पर संसार को महत्वपूर्ण लाभ पहुंचाते हैं और अपने आप में सफलता का संतोषदायक आनंद अनुभव करते हैं, संपत्ति कमाते हैं, यशस्वी बनते हैं तथा मरने के बाद नई पीढ़ी के लिए एक आदर्श छोड़ जाते हैं।सुशिक्षा ने ही इस संसार में महात्मा, भक्त, ज्ञानी, त्यागी, गुणी, विद्वान, महापुरुष, पथ-प्रदर्शक, नेता, देवदूत, पैगंबर तथा अवतार पैदा किए हैं। यदि दुनिया में सुशिक्षा न रहे तो मनुष्य एक बहुत ही दुर्बल और असहाय पशु मात्र रह जाएगा। ज्ञान ने ही मनुष्य को तुच्छ पशु से ऊंचा उठाकर सृष्टि का सम्राट बना दिया है। जीवन का सुख इस विद्या-बल पर भी बहुत हद तक निर्भर है। अशिक्षित, मूर्ख, बेवकूफ, भोंदू या अज्ञानी पुरुष एक प्रकार का पशु है, उसे पशुवत् भारभूत जीवन व्यतीत करना पड़ता है। अपनी शक्तियों को न तो वह जानता है, न उन्हें विकसित कर पाता है और न उनसे लाभ उठा पाता है, किंतु जो लोग बुद्धिमान हैं, वे अपने बुद्धिबल से इस जीवन में ही स्वर्ग सुख का आनंद लूटते हैं।विवेकवान व्यक्ति अनेक प्रकार के मानसिक क्लेश और कष्टों से बचे रहते हैं। संसार में प्रकृति के क्रम से वस्तुओं का परिवर्तन होता है। स्वजनों की मृत्यु, बिछोह, घाटा, चोरी, भूल, टूट-फूट आदि के कारण अनेकों प्रकार की अनिच्छित घटनाएं सामने आती हैं। अविवेकी पुरुष अनिच्छित घटनाएं घटित होते देखकर मानसिक संतुलन खो बैठते हैं और शोक, क्लेश, चिंता, बेचैनी, पीड़ा एवं अशांति इस गतिशील संसार की इन नित्य घटित होने वाली घटनाओं से विचलित नहीं होते और शोक सागर में डूबने से बच जाते हैं, जिसमें कि अज्ञानी पुरुष डूबकर अपने जीवन को बुरी तरह घुला डालते हैं। स्वास्थ्य की भांति शिक्षा भी अपने आप में स्वयं सुख है। सुस्थिर विचारों और महत्त्वपूर्ण विचारों से उसका मन सदा प्रसन्न, प्रफुल्ल तथा संतुष्ट रहता है।शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के बाद नैतिक स्वास्थ्य का स्थान है। स्वास्थ्य के इन तीन भागों को मिलाकर पूर्ण स्वस्थता बनती है। ईमानदारी, धर्म परायणता, सदाचार, संयम से अपने आपको पवित्र बनाना तथा दूसरों के साथ प्रेम, परोपकार, सेवा, उदारता एवं मधुरता का व्यवहार करना, यह नैतिक स्वास्थ्य की परिभाषा है। अपनी असुविधा से दूसरों की असुविधा का अधिक ध्यान रखना और अपने सुख से दूसरे के सुख को पहला स्थान देना, यह नैतिक स्वास्थ्य की कसौटी है। इस कसौटी पर जिनकी विचारधारा और कार्यप्रणाली खरी उतरती है, वे नैतिक दृष्टि से स्वस्थ हैं।नैतिक स्वास्थ्य ठीक होने से समाज का बड़ा मधुर सहयोग प्राप्त होने लगता है। घर में, घर से बाहर, समाज में, देश में, विदेश में ऐसे स्वस्थ मनुष्य को सभी अपनाते हैं, सहयोग करते हैं, सहायता देते हैं, प्रेम करते हैं, प्रशंसा करते हैं तथा छाती से लगाए रहते हैं। नैतिक स्वास्थ्य एक खिला हुआ सुगंधित पुष्प है, जिसे देखने को, सूंघने को, छूने को, सभी लोग ललचाते हैं। जो ईमानदार है, सच्चा है, विश्वासी है, निष्कपट है, मधुर भाषी है, वफादार है, प्रेम करता है, उदार है, सेवाभावी है, ऐसे व्यक्ति को पाकर हर कोई अपने को धन्य मानता है। पिता पुत्र को, पत्नी पति को, भाई-भाई को, मित्र मित्र को, मालिक नौकर को इन गुणों से युक्त पाकर फूला नहीं समाता। नैतिक स्वास्थ्य के आधार पर मनुष्य सच्चे अर्थों में मनुष्य बनता है। सच्चा मनुष्य देवताओं की तरह महान और वंदनीय है। नैतिकता में हजार हाथियों के बराबर बल बताया जाता है। वस्तुतः ईमानदार, मधुर और उपकारी स्वभाव के मनुष्य में अकूत बल होता है। उसे अपार आनंद का अपने अंतःकरण में निरंतर अनुभव होता रहता है।जिसे सच्चे हृदय से प्यार करने वाले, सच्ची सहानुभूति रखने वाले, आदर करने वाले अनेक मनुष्य प्राप्त हैं। उसके लिए यह लोग ही स्वर्ग हैं। आत्मीयता, प्रेम, विश्वास और आदर भाव रखने वाले लोगों के बीच में रहकर मनुष्य को जो सुख मिलता है, उसका रसास्वादन करने वाले भुक्तभोगी ही जानते हैं। गरीबी होते हुए भी प्रेम और विश्वास के वातावरण में रहते हुए जो आनंद मिलता है, उस पर अविश्वासी वातावरण की अमीरी को निछावर किया जा सकता है। नैतिकता का विकास मनुष्य के अस्तित्व का, व्यक्तित्व का विकास है। इसे आध्यात्मिक उन्नति भी कहते हैं। जिसकी नैतिकता जितनी ही विकसित है, उसे अपने अंतःकरण में सदा आनंद का अनुभव होगा और चूंकि संसार दर्पण के समान है, इसमें वैसी ही शक्लें दीखती हैं, जैसे कि हम स्वयं होते हैं। अपने आपको भला बना लेने पर दुनिया के भले तत्त्व अपने सामने आ जाते हैं और उसे ऐसा प्रतीत होता है कि इस दुनिया में सच्चे, सज्जन, प्रेमी, भले उत्तर स्वभाव के मनुष्य ही भरे पड़े हैं। हर जगह उसे अनुकूलता, मधुरता और शांति का वातावरण दृष्टिगोचर होता है।शारीरिक, बौद्धिक और नैतिक स्वास्थ्य में वह शक्ति है कि भूलोक को स्वर्गीय आनंद से परिपूर्ण बना देती है। जिन साधनों की जीवन को आनंदित बनाने के लिए आवश्यकता है, वे सभी उसे उपलब्ध हो जाते हैं। हो सकता है कि उसके पास लाख-करोड़ की संपत्ति न हो, पर जो कुछ स्वस्थ मनुष्य के पास होता है, वह इतना अधिक एवं इतना वास्तविक होता है कि उसकी तुलना में चांदी का मैदान और सोने का पहाड़ भी तुच्छ है। जिन्हें यह त्रिविध स्वास्थ्य प्राप्त है, उनके लिए यह परमात्मा का परम पुनीत उपवन-संसार सब प्रकार आनंदमय है। सब ओर उसे प्रसन्नता और सुख-शांति का झरना दृष्टिगोचर होता है। प्रभु की पुण्यकृति यह वसुधा, वसुंधरा, माता की गोद के समान सुखद दृष्टिगोचर होती है। शास्त्र कहता है—‘‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादऽपि गरीयसी।’’ स्वस्थ मनुष्य इस शास्त्र वचन की सत्यता को प्रत्यक्ष अनुभव करता है। उसे लगता है जन्मभूमि धरती माता का महत्व भूलोक स्वर्ग से कम तो किसी प्रकार नहीं, वरन् उससे अधिक ही है।शरीर को स्वस्थ रखना, बुद्धि को विकसित करना और नीतिवान बनना तीनों ही बातें मनुष्य के हाथ में हैं। कुमार्ग पर जाने से, नीच, तामसिक, दुर्गुणों को अपनाने से शरीर नष्ट होता है, बुद्धि नष्ट होती है और सामाजिक प्रेमभाव तथा विश्वास नष्ट होता है। यह सर्वनाश ही नरक है। बुरे कामों के लिए जिसकी निंदा होती है, जो अयोग्यता अथवा दीनता के कारण तिरस्कृत होता है, उसे नरकगामी कहना चाहिए। सद्गुणों के द्वारा जो दूसरों का मन अपनी मुट्ठी में रखता है, जिसे समीप देखकर दूसरों के हृदय की कली खिल जाती है, जिसके विचार तथा कार्य सम्माननीय हैं, वह स्वर्गगामी कहा जाएगा।जिन्हें भूलोक के परलोक में, इसी जीवन में स्वर्ग का रसास्वादन करना हो, उन्हें चाहिए कि अपने शारीरिक, बौद्धिक और नैतिक स्वास्थ्य को उन्नत बनाएं। इस उन्नति के साथ-साथ मनुष्य क्रमशः स्वर्ग की सीढ़ी पर चढ़ता जाता है और नरक की यातनाओं से दूर हटता जाता है।
First 5 7 Last


Other Version of this book



अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार
Type: SCAN
Language: HINDI
...

અધ્યાત્મ વિદ્યાના પ્રવેશદ્વાર
Type: SCAN
Language: GUJRATI
...

अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books



गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Articles of Books

  • चतुर्मुखी ब्रह्म
  • ब्रह्म
  • ईश्वर
  • विष्णु
  • भगवान
  • परलोक कहां है? भूःलोक
  • भुवः लोक
  • स्वःलोक
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj