
स्वप्न न तो स्वच्छन्द होते हैं, न ही अकारण आते हैं
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सपनों के सम्बन्ध में शरीर शास्त्री इतना ही कह सकते हैं कि वे अधूरी नींद की परिणति हैं। गहरी नींद आये तो सम्भवतः कोई सपना न दीखे। उनका मत है कि अपच रहने, दर्द, सूजन, बुखार आदि होने, मच्छर खटमल, दुर्गन्ध आदि के कारण जब नींद टूटती रहती है तो उसी उनींदी स्थिति में मस्तिष्क अव्यवस्थित रूप से कुछ सोचने लगता है। उन्हीं टुकड़ों की शृंखला स्वप्न बन जाती है।
स्वप्नों को मोटे तौर पर तीन वर्गों में रख सकते हैं—(1) शारीरिक दशाओं से प्रभावित स्वप्न (2) मानसिक स्थिति की प्रतिक्रिया स्वरूप स्वप्न (3) आध्यात्मिक स्वप्न।
अपच, उदर विकार, शीतोष्णता का आधिक्य, भूख-प्यास, शरीर में किसी वस्तु विशेष के स्पर्श, सोते समय वातावरण के विशेष परिवर्तन आदि के कारण देखे गये स्वप्न दृश्य प्रथम वर्ग के स्वप्नों की कोटि में आते हैं। इनमें अतिरंजना और विकृति का प्राधान्य होता है।
प्रायः स्वप्न किसी अन्य लोक के भेजे गये उपहार नहीं, वरन् अपनी ही वर्तमान एवं भूतकालीन स्थिति के परिचायक होते हैं। कई बार तो तात्कालिक शारीरिक अनुभूतियों एवं निकटवर्ती परिस्थितियों का ही भला-बुरा प्रभाव स्वप्नों की सृष्टि कर लेता है।
रूस की ‘सोवियत स्काया रशिया’ पत्रिका में डा. कुत्सफिन का यह लेख छपा है जिसमें उन्होंने लिखा है कि मस्तिष्क में ऐसी अद्भुत शक्ति है कि वह शरीर में भीतर ही भीतर चल रही रुग्ण गतिविधियों को पहले से ही जान लेता है और स्वप्नों के आधार पर यह संकेत देता है कि स्वास्थ्य की स्थिति इन दिनों कैसी चल रही है और उसका मोड़ किधर जा रहा है। वे कहते हैं—‘‘स्वप्न न आना अस्वस्थता की निशानी है। जब शरीर की नाड़ियां अपनी अन्तःप्रक्रिया की सूक्ष्मतम रिपोर्ट मस्तिष्क को देना बन्द कर देती हैं तभी सपने दीखना बन्द हो जाते हैं।
डी.एन.ए. के अन्वेषक डॉ. फ्रांसिस कीक का कहना है कि मनुष्य को निद्रा और निद्रा में स्वप्न के रूप में एक ईश्वरीय भेंट मिली है। मन पर पाप या रागों के इकट्ठे होते ढेर, स्वप्न द्वारा कम होते और भुलाये जाते हैं। स्वप्न एक विस्मृति की प्रक्रिया है। शरीर के स्वास्थ्य के लिए स्वप्न उपयोगी है। यदि स्वप्न न होते तो मस्तिष्क का गोदाम खचाखच भर जाता और उसमें नये विचार तथा कल्पना के लिए उसमें जगह भी न बचती।
मनोविज्ञानी स्वप्नों को अचेतन मन का क्रीड़ा कल्लोल कहते हैं। जागृत मन, सचेतन मस्तिष्क दैनिक कार्य व्यवहार में कल्पना करता और कांट-छांट करते हुए बुद्धि संगत निर्णय लेता है। उस अवधि में कोई प्रिय व अप्रिय परिस्थिति मन पर गहरा प्रभाव छोड़े तो सोते समय उसी प्रसंग को उल्टा सीधा व्यक्त करने वाले सपने आने लगते हैं। अपनी इच्छायें, आकांक्षायें भी सपनों में व्यक्त होती हैं। इसके अतिरिक्त एक गहरी परत अचेतन मन की है जिसमें संचित स्मृतियां, आदतें, इच्छायें, मान्यतायें कबाड़ियों के गोदाम की तरह जमा रहती हैं। वे अनुकूल अवसर ताकती रहती हैं और जब भी दांव लगता है चिन्तन को दृश्य में बदल लेती हैं। यह सपने लाक्षणिक होते हैं। उनमें मनःसंस्थान की स्थिति का पहेली बुझौअल जैसा संकेत रहता है। विज्ञजन उसका अर्थ लगाते हैं, चिकित्सा शास्त्री सपनों के आधार पर शारीरिक एवं मानसिक रोगों का कारण स्वरूप खोजते हैं। कुछ के लिए यह बिना पैसे का सिनेमा है।
यह मोटी मान्यताओं की—सामान्य समाधानों की घिसी-पिटी जानकारी है। इसमें आगे की रहस्यपूर्ण गुत्थियां तब उत्पन्न होती हैं जब कई सपने पिछले दिनों घटित हुई किसी अविज्ञात घटना का यथावत् परिचय देते हैं। उसी समय जो किसी दूर देश में घटित हो रहा है उससे सही रूप में परिचित कराते हैं। जहां तार, बेतार के संचार साधन मौजूद नहीं हैं वहां कुछ स्वप्न सन्देश वाहक का काम करते देखे गये हैं। इतना ही नहीं कुछ स्वप्नों में भावी सम्भावनाओं का पूर्वाभास भी होता है। उस समय तो सही गलत होने का कोई प्रमाण नहीं होता किन्तु समय आने पर जब वे स्वप्न सूचनायें भविष्यवाणी की तरह घटित होती हैं तो प्रतीत होता है कि इस क्षेत्र से किसी ऐसी शक्ति का भी सम्बन्ध सूत्र जुड़ा है जो अदृश्य और भविष्य का निर्धारण संचालन करती है।
आत्मवेत्ता इसका समाधान इस प्रकार करते हैं कि सूक्ष्म शरीर में अतीन्द्रिय क्षमताएं भरी पड़ी हैं। वे अभ्यास से दिव्य दृष्टि के रूप में अविज्ञात को जानती, अदृश्य को देखती हैं, पर सपने में उस क्षेत्र को बिना किसी प्रयास के ही ऐसा अवसर कभी-कभी मिल जाता है जिसमें दिव्यतायें उन अनुभूतियों का सहज लाभ ले सकें जो योगियों और सिद्ध पुरुषों में देखी, पाई जाती हैं। चेतना की एक और भी गहरी परत है जो कारण से सम्बन्धित है इसमें मनुष्य की अपनी चेतना से बहुत ऊंचे उठकर दैवी जगत के साथ सम्बन्ध जोड़ने की क्षमता है। उसे जब जितना सुअवसर मिलता है वह उच्चस्तरीय शक्तियों के साथ सम्बन्ध साध लेती है और उनके अहैतुकी अनुग्रह से लाभान्वित एवं कृत-कृत्य होती है।
ऐसे सार्थक सारगर्भित सपने कभी-कभी—किसी-किसी को ही आते हैं। अधिकांश मनःक्षेत्र निरर्थक सपनों का ही जाल-जंजाल बुनता रहता है। सार्थक स्वप्न कभी ही क्यों न दीखते हों, पर उनसे यह सिद्ध अवश्य होता है कि दिव्य दर्शन का भी स्वप्न लोक के साथ सघन सम्बन्ध जुड़ा है।
‘‘दि न्यू फ्रान्टियर्स आफ माइण्ड’’ में उसके लेखक श्री जे.बी. राइन ने दूर-दर्शन के तथ्यों का वैज्ञानिक एवं मनोवैज्ञानिक अध्ययन करके संकलन किया है—एक घटना के सम्बन्ध में लिखा है कि उनके पड़ौस के एक सज्जन की धर्म पत्नी ने एक रात को एक स्वप्न देखा कि वहां से बहुत दूरी पर रहने वाला उसका भाई घोड़ा गाड़ी से खलिहान जाकर मचान पर चढ़कर अपनी पिस्तौल की गोली से आत्म-हत्या कर लेता है और भूसे के ढेर पर लुढ़क पड़ता है। स्त्री घबड़ा गई और अपने पति के साथ भाई के गांव गई तो खलियान में जाकर पाया कि उसके भाई की मृत्यु ठीक वैसे ही हुई जैसा कि स्वप्न में देखा था।
सन् 1774 में न डाक तार का कोई प्रबन्ध था न यातायात का साधन। इटली के पादरी अलोफोन्सा लिगाडरी ने अर्धतन्द्रित अवस्था में दिवा स्वप्न देखा कि रोम के बड़े पोप नहीं रहे। उन्होंने यह बात अपने शिष्यों और साथियों को बताई वे इसे निराधार समझते रहे। कुछ ही दिन बाद समाचार मिला कि अलोफोन्सा ने जिस दिन यह घटना सुनाई उसी दिन बड़े पोप चल बसे।
‘‘वाशिंगटन हैराल्ड’’ की संचालिका स्वर्गीय इलेग्नर मेरिट एक मध्यान्ह विश्राम करने के लिए झपकी ले रही थीं। कि उन्हें दिखाई पड़ा कि उनके पति कैंसी पास में खड़े हैं अचानक उन्होंने देखा कि वे गायब हो गए। वे विस्मय में पड़ गईं क्या करें। दफ्तर गयीं जहां लोगों को स्वप्न सुनाया। सबने साधारण माना। किन्तु दूसरे दिन तार आया कि उनके प्रति की अचानक मृत्यु ठीक उसी समय हुई जब वे स्वप्न देख रही थीं।
फ्रांसिस्को रूसो व्यापार के सिलसिले में कुछ दिनों से बाहर गया था और पत्नी अमेलिया रूसो घर में अकेली थी। एक दिन उसने स्वप्न में देखा कि उसके बड़े खाली कमरे में शव पड़ा हुआ है और उस शव पर एक युवती बैठी हुई है। यह देखकर अमेलिया की चीख निकल गई और उसे लगने लगा कि उसके पति को कुछ हो गया है। तीन दिन बाद जब उससे न रहा गया तो वह पुलिस अधिकारियों के पास पहुंची। आरम्भ में पुलिस अधिकारियों ने उसकी बात पर कोई ध्यान नहीं दिया परन्तु कुछ ही दिन बाद रोम से 50 किलोमीटर दूर एक दुर्घटना ग्रस्त कार में फ्रांसिस्को का शव मिला।
शव की पोस्टमार्टम रिपोर्ट से यह सिद्ध हो गया कि फ्रांसिस्को की मृत्यु दुर्घटना के कारण नहीं विष देने के कारण हुई है। इसके बाद तो अमेलिया द्वारा देखे गये स्वप्न तथा उसके बारे में और अधिक पूछताछ करने के बाद उस स्त्री को गिरफ्तार किया जा सका जिसने फ्रांसिस्को की हत्या की थी। उस स्त्री को देखते ही अमेलिया ने पहिचान लिया कि स्वप्न में यही स्त्री शव पर बैठी थी।
अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने अपनी मृत्यु से तीन चार दिन पहले जो स्वप्न देखा था, वह वार्ड लेमन जो उनकी जीवनी लिख रहे थे को सुनाया किन्तु वार्ड लेमन ने उसे साधारण स्वप्न कह कर टाल दिया। लिंकन ने बताया कि ‘‘गत रात में ह्वाइट हाउस (अमेरिकी राष्ट्रपति के निवास) में चारों ओर घूमा किन्तु सभी कमरे खाली पड़े देखे। तभी पूर्वी भाग से कुछ लोगों के रोने की आवाज सुनाई दी जहां जाकर देखा तो पाया कि वहां मेरे परिवार के सदस्य दूसरे राजनयिक भी हैं। कौतूहलवश मैंने पूछा यह शव किसका है? उनमें से एक आकृति ने मेरी ओर देखकर कहा—राष्ट्रपति की हत्या कर दी गई है और यह शव उन्हीं का है। इतना सुनते ही मेरी नींद टूट गयी। अतः इस स्वप्न का मेरे जीव से कोई घनिष्ठ संबंध है।’’ वार्ड लेमन ने उक्त घटना को उनके कहने पर शीघ्र लिपि में लिपिबद्ध कर लिया किन्तु अन्ध विश्वास समझकर कोई विशेष ध्यान अथवा चौकसी का प्रबन्ध या सुझाव भी नहीं दिया। ठीक तीसरे दिन उन्हीं परिस्थितियों में जो स्वप्न में लिंकन ने बताई थीं, उनकी हत्या कर दी गई तब से आज तक यह प्रसंग राष्ट्रपति लिंकन की जीवनी के साथ जुड़ा है और आज तक इसकी कोई वैज्ञानिक व्याख्या भी नहीं की जा सकी।
अमेरिका के एक नागरिक एलन बेधन ने एक रात स्वप्न देखा कि तत्कालीन राष्ट्रपति राबर्ट कैनेडी एक भीड़ के साथ किसी पार्टी में जा रहे हैं। रास्ते में विरोधी दल का एक सदस्य उन्हें गोली मार देता है और राष्ट्रपति की मृत्यु हो जाती है।
एलन ने अपना सपना स्वप्न अनुसंधान संस्था के रजिस्टर में नोट कर दिया और अनुरोध किया कि वे इस सपने की बात राष्ट्रपति तक पहुंचा दें। इसके एक सप्ताह बाद सचमुच वह सपना सत्य हो गया और राष्ट्रपति गोली से मारे गये।
सन् 1765 की बात है। वाय जैन्ट्रियम (ग्रीस) के जेलखाने में एक कैदी ने सपना देखा कि वह उस देश की महारानी का प्रेम पात्र बन गया है। कैदी ने सपना पहरेदार को बता दिया। पहरेदार ने रिपोर्ट राजा से करा दी। राजा ने उसे मृत्यु दण्ड दिया पर रानी ने सपने के कारण फांसी देने की बात को अनुचित बताकर राजा से क्षमादान करा दिया।
संयोग की बात दो वर्ष बाद राजा कान्स्टेटाइन दशम की मृत्यु हो गई। कुछ सिलसिला ऐसा चला कि जेल से छूटे कैदी सैनिक रोमे के साथ रानी का प्रेम-बन्धन ही नहीं बना वरन् उसने उससे विवाह भी कर लिया। फलतः वह सम्राट बना और रोमेनस चतुर्थ डायोजानेस के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
फ्रांसीसी क्रान्ति के नेताओं में से एक था—जीन पीशना। उसे बचपन से ही एक डरावना सपना आता था कि उसकी मित्र-मण्डली पर हिंसक जानवरों का झुण्ड टूट पड़ता है एवं वह मित्रों के सहित उस दुर्घटना में समाप्त हो जाता है। यह सपना अनेक बार उसने देखा और हर बार मित्र संबंधियों को सुनाया।
संयोग कुछ ऐसा बना कि जून सन् 1794 में एक यात्रा पर जाते हुए भूखे-भेड़ियों का झुण्ड मण्डली पर टूट पड़ा और वे सभी उसी प्रकार मारे गये जैसा कि सपने में दीख पड़ता था।
इंग्लैण्ड के बोस्टन नगर के समाचार पत्र ‘‘बोसटन टाइम्स’’ में 28 अगस्त 1883 के अंक में एक भयंकर समाचार छपा कि एक समुद्री द्वीप ‘प्रालेप’ में महा भयंकर ज्वालामुखी फटा और उसने उस क्षेत्र के समुद्र में असाधारण कुहराम मचा दिया।
छपने के बाद यह जांच-पड़ताल हुई कि वह समाचार इतनी जल्दी कैसे प्राप्त हुआ? जबकि उन दिनों तार-बेतार जैसी कोई व्यवस्था नहीं थी। फिर उस विस्फोट का पूरा विवरण क्या है, यह प्रश्न उठा।
बात यह थी की समाचार-पत्र ‘बोस्टन-ग्लोब’ के संवाददाता एड सैम्सन ने उस दिन काफी देर तक काम किया था। उसे कई दिन की थकावट थी सो रात पूरी तरह विश्राम करना चाहता था। प्रेस के चपरासी को उसने हिदायत दी—‘‘मुझे तीन बजे से पहले न जगाया जाये’’ और यह कहकर वह अपने बिस्तर पर सो गया।
उस रात उसने एक स्वप्न देखा एक महाभयंकर हृदय को कंपा देने वाली मानवीय इतिहास की एक जबर्दस्त दुर्घटना जिसने लोगों को यह सोचने के लिए विवश किया कि संसार में स्थूल हलचलें ही सब कुछ नहीं जो दिखाई नहीं देता, उस सूक्ष्म आकाश में भी ऐसी अनेक सूक्ष्म शक्तियां क्रियाशील हैं, जो मनुष्य की अपेक्षा अधिक संवेदनशील, शक्ति और सामर्थ्य से परिपूर्ण हैं। इस घटना ने ही एक छोटे से सम्वाददाता की प्रतिष्ठा सारे विश्व में फैला दी।
एड सैमसन ने देखा—‘‘एक भयंकर पहाड़—उससे लाल रंग का लावा फूट पड़ा, जिससे उस द्वीप में महाभयंकर विनाशलीला प्रारम्भ हो गई। टापू अग्नि ज्वालाओं में बदल गया है। पृथ्वी कांप रही है और सब कुछ जलता हुआ स्वाहा होता जा रहा है।’’ स्वप्नावस्था में ही उसने किसी से पूछा—‘इस द्वीप का क्या नाम है’—‘प्रालेप’ किसी ने स्वप्न में ही सन्देश दिया और सैमसन की नींद टूट गई।
स्वप्न इतना वीभत्स था कि वह दृश्य सैमसन के मस्तिष्क में ज्यों के त्यों उभरे तब तक आन्दोलन मचाते रहे, जब तक उसने पूरे स्वप्न को एक लेख के रूप में तैयार नहीं कर लिया। उसने सोचा यह था कि यह लेख किसी दिन समाचार में छापेंगे—इसलिए उस पर ‘‘अत्यन्त महत्वपूर्ण’’ की लाल चिट लगाई और घर चला गया।
प्रातःकाल सम्पादक आया, उसने महत्वपूर्ण की चिट लगे इस समाचार को पढ़ा, उसे लगा, यह किसी सम्वाददाता का समाचार है। सो ‘‘वोस्टन-ग्लोब’’ में मुख पृष्ठ पर प्रमुख समाचार के रूप में दोहरा शीर्षक देकर छाप दिया। 29 अगस्त को यह समाचार सारे संसार में फैल गया। जबकि संसार के और किसी भी अखबार में ऐसा कोई समाचार नहीं छपा था। दिन भर ‘वोस्ट ग्लोब’ कार्यालय से पूछताछ चलती रही। सम्पादक स्वयं भी हैरान था कि वास्तविकता क्या है व क्यों उससे पूछताछ की जा रही है?
मैक्सिको, आस्ट्रेलिया, अमेरिका के आकाश में गड़गड़ाहट, समुद्री तूफान, भूकम्पनों के संक्षिप्त समाचार तो मिले पर उतने से सम्पादक और पाठकों में से किसी की जिज्ञासाओं का समाधान न हुआ। आखिर सम्पादक को सारी घटना का सखेद ‘भूल सुधार छापना पड़ा’।
सचमुच जिस समय युवक सम्वाददाता एड सैमसन यह स्वप्न देख रहा था, पृथ्वी के दूसरे छोर पर ‘क्राकातोआ’ द्वीप पर भयंकर भूकम्प और तूफान आया था। इस भयंकर ज्वालामुखी के कारण सम्पूर्ण द्वीप समुद्र के गर्त में ऐसे समा गया था, जैसे विशाल घड़ियाल की दाड़ में मानव अस्थि-पिंजर। घटना की पुष्टि कई दिन बाद उधर से लौटने वाले जहाजों ने की। तब फिर ‘भूल सुधार का—भूल सुधार छापा गया। सैमसन के बड़े-बड़े फोटो समाचार-पत्रों में छपे। सबने सपने की महत्ता को समझा।
इस स्वप्न की गहरी छानबीन की गई तो कई ऐसे सूक्ष्म रहस्यों का पता चला जो मनुष्य के लिए अकारण कभी सम्भव ही नहीं हो सकते थे। लोगों ने अनुभव किया, वस्तुतः कोई शाश्वत और साक्षी सत्ता है, जिससे सम्बन्ध जोड़ने या अनायास जुड़ जाने से ऐसी विलक्षण अनुभूतियां हो सकती हैं। पहले लोगों को इस द्वीप के प्रालेप नाम पर टिप्पणी करने का अवसर मिला अवश्य, पर पीछे कई दस्तावेजों से यह रहस्य प्रकट हुआ कि डेढ़ सौ वर्ष पूर्व ‘क्राकातोआ’ द्वीप का नाम ‘प्रालेप’ ही था। स्थानीय आदिवासी उसे प्रालेप नाम से ही जानते थे।
स्वप्न में होने वाली ये अनुभूतियां अकेली नहीं हैं। समष्टिगत विभीषिकाओं के अतिरिक्त कईयों को स्वयं पर घटने वाली घटनाओं का विचित्र पूर्वाभास हुआ है। अपनी मृत्यु की पूर्व घोषणा करने वालों की अनुभूतियां भी बड़ी विचित्र प्रकार की होती हैं। वे अनुभव करते हैं कि उनके अंग विलक्षण प्रकार से निर्जीव हो रहे हैं। उनकी स्वाभाविक और सम्मिलित शक्ति का विचित्र रीति से क्षरण हो रहा है। अन्तःचेतना इस मृत्यु सन्देश को यदि ठीक तरह अनुभव कर सके तो क्रमिक मृत्यु की स्थिति में आवेश रहित व्यक्ति सहज ही मृत्यु का पूर्वाभास पा सकता है और कई बार तो मृत्यु-समय की अवधि तक घोषित कर सकता है। ऐसी भविष्यवाणियां कईयों ने की भी हैं और वे सत्य भी निकली हैं।
कहते हैं कि गांधीजी को अपनी मृत्यु की बात स्वप्न में ही कई दिन पूर्व ही मालूम हो गई थी। ऐतिहासिक महापुरुषों के जीवन में इन प्रसंगों को देखकर ही ‘‘विजडम आफ ओवर सेल्फ’’ पुस्तक में पाल ब्रन्टन ने लिखा है कि विज्ञान और बुद्धिवादी लोग भले ही इसे रूढ़िवाद या केवल मानसिक कल्पना कहें पर स्वप्नों को जीवन की महत्वपूर्ण चेतन गुत्थियों का समाधानकारक कहा जा सकता है।
‘‘दि अण्डर सटैन्डिंग आफ ड्रीम्स एण्ड देयर एन्फ्लूएन्सेस आन दि हिस्ट्री आफ मैन’’ हार्थन बुक्स न्यूयार्क द्वारा प्रकाशित पुस्तक में एडाल्फ हिटलर के एक स्वप्न का जिक्र है जो उसने फ्रांसीसी मोर्चे के समय प्रथम विश्वयुद्ध में देखा था। हिटलर सन् 1916 में एक मामूली सिपाही था। मोर्चे पर खन्दक में वह लेटा पड़ा था। इसी बीच उसे झपकी आ गई। स्वप्न देखा कि एक भयानक अग्नि पिण्ड सामने से उसकी ओर लपकता आ रहा है। स्थिति मरने जैसी बन गई, पर किसी दिव्य शक्ति ने उसे हाथ पकड़ कर दूसरी ओर उछालकर फेंक दिया और कहा—‘‘यह विशेष व्यक्ति है। अभी उसे विशेष काम करना है। यह समय इसके मरने का नहीं है।’’ स्वप्न का अन्त होने भी न पाया था कि हिटलर आतंकित होकर हड़बड़ाते हुए उठने लगा। अभी पूरी तरह संभल भी न पाया था कि सचमुच ही तोप का गोला सामने से सनसनाता हुआ आया और उसका कन्धा छूते हुए निकल गया। यही वह दृश्य था जिसने हिटलर को अपने बारे में सर्वथा नवीन धारणा बनाने का अवसर दिया। उसी दिन से वह अपनी अदृश्य सहायता का सपना देखने लगा। इसी मानसिक उथल-पुथल ने उसे वह कर गुजरने तथा इतिहास में एक अहम भूमिका निभाने का अवसर दिया, जिसका कि एक सामान्य स्तर के सिपाही से आशा की ही नहीं जा सकती।
कहते हैं कि द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के पूर्व अपनी आत्म हत्या द्वारा मृत्यु का भी पूर्वाभास उसे स्वप्न में ही हुआ था। परिस्थितियां सर्वथा अपने विपरीत देख उसने स्वप्न की चर्चा अपनी प्रेमिका व विश्वस्त अधिकारियों से की, एवं बंकर में दोनों ने एक साथ आत्म हत्या कर ली। एक अधिनायक का यह दुखद अन्त था, पर नियति की विधि-व्यवस्था के अनुरूप ही सबकुछ हुआ।
सन् 1915 में स्वीडन के जनरल जॉन रुग्ण शय्या पर अस्पताल में पड़े थे। एक रात उन्हें सपना हुआ कि स्टॉकहोम में उनके मित्र जनरल बेकमैन की हत्या हो गई। सपने में सारी रात वे यहीं चिल्लाते रहे—‘नर्स, कमाल है! सामने फर्श पर क्या बेकमैन की लाश तुम्हें दिखाई नहीं पड़ती? फर्श और दीवारों पर खून के धब्बे क्या तुम्हें दीख नहीं रहे हैं?’
नर्स उनकी बातों को अनसुनी कर सोती रही। दूसरे दिन समाचार पत्र के मुख पृष्ठ पर ही जब उसने बेकमैन की हत्या की खबर पढ़ी तो वह रात्रि का विवरण यादकर स्तब्ध रह गई।
दो घटनायें अमेरिकन इतिहास से संग्रह की गई हैं। वहां 28 फरवरी 1844 को एक बहुत महत्वपूर्ण कार्यक्रम होने को था। ‘यू.एस.एस. प्रिंन्सटन’ नाम का एक नया और सबसे बढ़िया युद्धपोत बनकर तैयार हुआ था और उसके उद्घाटन के अवसर पर उसके कप्तान राबर्ट स्टाक्टन ने अनेक गणमान्य व्यक्तियों को समारोह में निमंत्रित किया, इनमें कर्नल डेविड गोडनर, उनकी पुत्री जुलिया, जलसेना के सेक्रेटरी थामस गेलमर व उनकी पत्नी एनी भी सम्मिलित थे।
इन दोनों महिलाओं ने 27 दिनांक की रात्रि को ऐसे स्वप्न देखे जिनमें जूलिया के पिता और एनी के पति की मृत्यु का स्पष्ट संकेत था। इससे भयभीत होकर जूलिया ने अपने पिता से इस समारोह में सम्मिलित न होने का अनुरोध किया। इसी प्रकार एनी ने अपने पति को बहुत रोका। पर उन दोनों ने स्वप्न की बातों को अधिक महत्व देना ठीक नहीं समझा और वे जहाज पर चले गये। वहां जब एक तोप को समुद्र की ओर चलाया गया तो वह अकस्मात् फट गई और कर्नल गार्डिनर तथा थामस गेलमर, जो पास खड़े थे तुरन्त मर गये।
एनी भी वहीं थी, पर वह बच गई। शोक से अभिभूत होकर उसने कहा—‘‘मेरी बात किसी ने क्यों नहीं मानी? दुर्घटना के समय जूलिया डेक के नीचे थी और जब उसने अपने पिता की मृत्यु के बारे में सुना तो वह चिल्ला उठी—‘मेरा सपना आखिर सच हो ही गया।’’
बाद में यही जूलिया अमरीका के प्रेसीडेण्ट टेलर की पत्नी बन गई। उसे कुछ ऐसी शक्ति प्राप्त थी कि पति से सौ मील दूर रहने पर वह उसके सम्बन्ध में सब बातों को जानती रहती थी। उनके मन इस प्रकार जुड़े थे कि एक की अनुभूति दूसरे को सहज में हो जाती थी। जनवरी 1862 में जब प्रेसीडेन्ट टेलर रिचममाण्ड में एक सरकारी जलसे में गये थे, एक रात को जूलिया ने सपने में देखा कि उनका चेहरा मुर्दे की तरह पीला पड़ गया है, उनके हाथ में कमीज और टाई है तथा वे कह रहे हैं कि ‘मेरा सर थाम लो’ सुबह होते ही जूलिया स्वयं रिचमाण्ड को रवाना हो गई और वहां प्रेसीडेन्ट को सकुशल देख कर उसे प्रसन्नता हुई। पर दूसरे दिन सुबह नाश्ता करते हुए उनकी हालत एकदम खराब हो गई और वे मौत के समय की-सी आकृति में जूलिया के कमरे में घुसे। उनका कोट और टाई उनके हाथ में थी, जैसा सपने में दिखाई पड़ा था। उन्होंने जूलिया से कुछ कहा भी, पर वह स्पष्ट सुनाई नहीं दिया। कुछ घण्टों में उनकी जीवन-लीला समाप्त हो गई।
जेना विश्व-विद्यालय के एक प्रोफेसर एवं छात्र प्रायः आस्तिकवाद पर विवाद करते रहते पर बिना प्रमाण के प्रोफेसर महोदय मानने को तैयार नहीं होते थे। एक दिन एक छात्र ने कहना प्रारम्भ किया आज रात मैंने एक स्वप्न देखा है किन्तु आपको बताऊंगा नहीं मात्र इतना बताता हूं कि मेरी मृत्यु शीघ्र ही हो जायेगी।’’ प्रसंग यहीं समाप्त हो गया। घटना घटित होने तक के क्षणों तक के लिए और हफ्ते भर बाद ही सोमवार को वह छात्र बीमार पड़ा और तीसरे दिन तक उसका काम ही हो गया। प्रोफेसर महोदय आतुर मन लिये अन्त्येष्टि समाप्त होते ही छात्र के घर पहुंचे और उस दिन छात्र द्वारा मृत्यु के बाद बक्सा खोलकर देखने के लिए दिये संकेतानुसार बक्सा खोल कर उस दिन के स्वप्न का लिखित वृत्तान्त पढ़ा। लिखा था—तारीख 15 दिन बृहस्पतिवार को प्रातःकाल पांच बजे मेरी मृत्यु हो जायगी। मुझे अमुक स्थान पर दफनाया जायेगा। जब मुझे दफनाया जा रहा होगा तब मेरे माता-पिता आयेंगे और मुझे एक बार फिर बाहर रखकर देखेंगे। इसके बाद मुझे दफना दिया जायेगा।’ प्रोफेसर महोदय के आश्चर्य का ठिकाना न रहा लिखित विवरण के अनुसार ही सारा नाटक आंखों से देख कर अन्ततोगत्वा उन्हें स्वीकार करना पड़ा उस सत्ता को, जिसे हठ वश उपेक्षित किया जाता है।
जल-थल में तेज गति के कीर्तिमान स्थापित करने वाले डोनाल्ड कैम्पवेल को अपनी मृत्यु का पूर्वाभास एक सपने द्वारा ही मिला था। 5 जनवरी 1917 में जब वे यह कीर्तिमान स्थापित करने वाले थे, तो पत्रकारों से उनने पहले ही कह दिया था, कि आज का दिन उसके जीवन का अन्तिम दिन है। हुआ भी ऐसा ही। इस कार्य के दौरान ही उनकी मृत्यु हुई और सपना सच साबित हुआ।
उत्तर प्रदेश—मुरादाबाद जिले की बिलारी तहसील में ग्राम सवाई के निवासी एक लोकप्रिय समाज सेवी गजराज सिंह को अपनी मृत्यु का आभास चार दिन पूर्व मिल गया था यों वे कुछ रुग्ण तो थे पर चलने फिरते तथा साधारण काम-काज करते रहने में समर्थ थे। उन्होंने घर वालों को चार दिन पूर्व अपने मृत्यु का समय स्वप्न के आधार पर बता दिया था और मरघट में जाकर अपने हाथ से जमीन साफ करके दाह कर्म के लिये स्थान निर्धारित किया था। लकड़ी, कफन यहां तक कि जमीन लीपने के लिये गोबर तक समय से पूर्व ही मंगा कर रख लिया था। यों वे अन्न खाते थे पर चार दिन पूर्व से उन्होंने दूध और गंगा जल पर रहना प्रारम्भ कर दिया। स्वप्न के आधार पर अपनी संभावित मृत्यु की बात बताकर उन्होंने आस-पास गांवों के लोगों को बुलाकर आवश्यक परामर्श भी दिये। मृत्यु का ठीक समय मध्याह्नोत्तर दो बजे था सो उन्होंने हर किसी को भोजन करके निवृत्त होने के लिये आग्रह पूर्वक प्रेरित किया। आश्चर्य यह कि मृत्यु उनके घोषित समय पर ही हुई और मरने से पंद्रह मिनट पूर्व तक पूर्ण स्वस्थ जैसी स्थिति में बाते करते रहे।
फ्रांस की जनक्रान्ति से पूर्व वहां के डॉ. अल्फ्रेड मउरे को एक अद्भुत स्वप्न दिखायी पड़ा जो बाद में अक्षरशः सही सिद्ध हुआ।
मउरे रुग्ण-शैय्या पर पड़े हुए थे। एक दिन उनने स्वप्न देखा कि चारों ओर नरसंहार हो रहा है। लोग भयाक्रान्त हो इधर-उधर भागते फिर रहे हैं। अन्त में उन्हें भी पकड़ लिया जाता है और प्राणदण्ड की सजा दी जाती है। सपने में उन्हें वह स्थान स्पष्ट दीख रहा था जहां शिराच्छेदक यंत्र से सब के सिर काटे जा रहे थे। अन्त में उसकी बारी आयी। उसे भी यंत्र के समीप ले जाया गया और एक ही बार में सिर धड़ से अलग कर दिया गया। यह घटना उन्होंने अपने मित्रों को सुनाई। बात आई गयी हो गयी। बाद में स्वप्न-दर्शन की भांति उसकी भी हत्या कर दी गयी।
कई बार सपने आसन्न जीवन-संकट की पूर्व सूचना देते देखे गये हैं। ब्रिटेन के भूतपूर्व प्रधानमंत्री विंसेण्ट चर्चिल की जान दो बार ऐसे ही सपनों ने बचायी थी। 11 अप्रैल 1942 को ब्रिटेन के वायु सैनिक युद्धाभ्यास में निरत थे और कम ऊंचाई से गिराये गये बम से बचने की कोई बढ़िया तरकीब खोजने का प्रयास कर रहे थे, पर एक छोटी-सी गलती ने उपस्थित सभी सैनिकों की जान ले ली। इस युद्धाभ्यास को देखने के लिए चर्चिल भी आने वाले थे, किन्तु एक स्वप्न-दर्शन द्वारा प्राप्त चेतावनी के कारण उनने अपना आना स्थगित कर दिया और इस प्रकार जीवन से हाथ धोने से बचे रहे।
दूसरी बार स्वप्न–संकेत उन्हें तब मिला, जब जर्मनी के लड़ाकू विमान बम बरसाने लंदन आ रहे थे। जैसे ही उन्हें आक्रमण की जानकारी मिली, एक बारगी वे घबरा उठे, पर तुरंत ही स्वयं को सयत किया और सिर पर मंडराने वाली मृत्यु का सामना कैसे किया जाय—यह विचारने के लिए थोड़ी देर के लिए उनने आंखें बन्द कर ली। तभी उनकी आंखों के सामने एक दृश्य कौंधा। उनने देखा जिस स्थान पर वह हैं वह बम से पूर्णतः सुरक्षित है। और बमवर्षक विमान निकट के क्षेत्रों में बम वर्षा कर चले गये। इस स्वप्न से उनकी घबराहट जाती रही। वे वहीं बने रहे लड़ाकू विमान आये और बम गिरा कर चले गये, पर उन्हें कोई क्षति नहीं पहुंची। ऐसे घटनाक्रमों ने उनकी आस्था सूक्ष्म सत्ता पर और जमा दी। अंतिम समय तक वे स्वप्न विज्ञान, परोक्ष जगत पर लिखी गयी पुस्तकों में रुचि लेते रहे। अनेकों शोध प्रतिष्ठानों को उनके संरक्षण से मदद मिलती रही।
आस्ट्रिया के साथ युद्ध में, युद्ध भूमि पर जाते समय नेपोलियन को गाड़ी में नींद आ गयी। तभी उसे एक स्वप्न दिखायी पड़ा कि वह जिस स्थान पर है, वह पूरी तरह बारूदी सुरंग से पटा है, और उसके चारों ओर बमबारी हो रही है। दुःस्वप्न से उसकी नींद खुल गयी। निरीक्षण से ज्ञात हुआ कि सचमुच उस स्थान में बारूदी सुरंगें बिछी हुयी थीं। उसने वह स्थान तुरन्त छोड़ दिया। थोड़ी ही देर बाद विस्फोट हुआ व वह सारा क्षेत्र धमाके के साथ उड़ गया। उसके साथियों की जान बच गयी।
ऐसी ही मृत्यु संबंधी पूर्वाभास की घटना भारत के तत्कालीन प्रधान मंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्रीजी से संबंधित है। श्री उदयकुमार वर्मा रूस में पढ़ने वाले भारतीय स्नातक तब ताशकंद में रहते और वहीं पढ़ते थे। जब भारत-पाकिस्तान समझौता वार्ता के लिये वहां श्री लाल बहादुर शास्त्री तत्कालीन भारत के प्रधान मंत्री पाकिस्तान के राष्ट्राध्यक्ष श्री अयूब और रूसी प्रधान मंत्री श्री कोसीगिन एकत्रित हुए थे। एक दिन श्री वर्मा के पड़ौस में रहने वाली एक सोवियत छात्रा उनके पास आई और बोली—आप हमें श्री शास्त्री जी के आज दर्शन करादें अन्यथा फिर उनके दर्शन न हो पायेंगे। उसने यह भी बताया कि मैंने स्वप्न में देखा है कि उनकी मृत्यु हो गई है। श्री वर्मा जी ने उस बात का बुरा माना। तो भी उन्होंने कुछ कहा नहीं था। उस दिन श्री शास्त्रीजी का प्राच्य भाषा संस्थान ताशकंद में भाषण था। श्री वर्माजी उक्त छात्रों के साथ वहां गये और शास्त्री जी के दर्शन किये थे।
उसी रात श्री वर्माजी ने स्वयं भी स्वप्न में देखा कि वे श्री शास्त्रीजी को विदा करने हवाई अड्डे पहुंचे वहां कोई छात्रा कह रही है शास्त्रीजी तो मर गये हैं क्या आप उनके शव को विदा करने आये हैं। उसके बाद नींद टूट गई। श्री वर्माजी ने छात्रा को बुलाकर नाराजगी प्रकट की और कहा—देखो तुम्हारी उन बातों का मेरे अवचेतन मन पर प्रभाव पड़ा और मैंने भी वैसा ही अशुभ स्वप्न रात में देखा। पर श्री वर्माजी को यह नहीं मालूम था कि अवचेतन में भी अवचेतन कोई एक सत्ता जीवन प्रवाह के रूप में बाहर-भीतर सर्वत्र प्रवाहित हो रही है उसमें सारी अतीन्द्रिय क्षमतायें हैं और उसकी अनुभूतियां एकाएक गलत नहीं हो सकतीं।
सारा संसार जानता है कि 10 जनवरी 66 की उसी रात शास्त्रीजी का देहान्त हो गया। 11 को जब श्रीवर्मा उन्हें काबुल प्रस्थान के लिये विदा करने जाने वाले थे तभी उन्हें समाचार मिला—शास्त्रीजी नहीं रहे तो वे स्तब्ध रह गये।
क्लियौपेट्रा के प्रेमी सीजर को भी एक रात सपने में चेतावनी मिली कि उसकी अमुक दिन अमुक समय ढंग से हत्या कर दी जायेगी। उसकी पत्नी कार्नोलिया को भी अपने पति की हत्या का पूर्वाभास स्वप्न में हो गया था। स्वप्न दर्शन पर गहरी आस्था रखने वाले सीजर ने न जाने क्यों ऐसे महत्वपूर्ण संकेत की अवज्ञा कर दी और यही उपेक्षा उसकी मौत का कारण बनी। सुविख्यात है कि उसका अपना ही विश्वस्त साथी ब्रूटस उसकी मृत्यु का कारण बना।
ग्रीस के सम्राट ग्रीसस ने अपने पुत्र एथिस की हत्या का सारा दृश्य पूर्व में ही स्वप्न में देख लिया था। पर वे उसे बचा न पाए।
अमरीकी जनरल गार्डन के प्राण एक सपने ने ही बचाये थे। जब वे चीन यात्रा पर थे, तो बार-बार उन्हें एक ही स्वप्न दिखायी पड़ता था, कि एक नदी पार करते समय उनकी नाव डूबने लगी है। नाव में उनके अतिरिक्त कई चीनी सैनिक भी हैं। सैनिकों में एक वह सैनिक भी दिखायी पड़ता है, जिसे जनरल ने अनुशासनहीनता के कारण कुछ दिन पूर्व सजा दी थी।
कुछ दिन बाद जनरल को सचमुच ही एक नदी पार करने की आवश्यकता पड़ी। तब उनके आश्चर्य की सीमा न रही जब उन्होंने देखा कि नाव, नदी, व उसमें सवार सैनिक सब कुछ स्वप्न से हूबहू मेल खाते थे। सैनिकों में सजायाफ्ता सैनिक भी सम्मिलित था। दल में उसे शामिल देख गार्डन को कुछ शक हुआ। उन्होंने नाव के विरोक्ष निरीक्षण का आदेश दिया। निरीक्षण से नाव के पेंदे में छोटे-छोटे अनेक छेद पाये गये। इससे नाव डूब सकती थी और सभी की मृत्यु हो सकती थी। इस प्रकार सपना सच साबित हुआ।
एक रात एक अमरीकी जलयान के कैबिन में उसका मालिक जान वाल्टेयर सो रहा था। जहाज समुद्र में बढ़ा जा रहा था। तभी उसे सपना आया कि उसका जलयान एक बड़े जहाज से टकराने जा रहा है। नींद खुली तो उसने उठ कर चारों ओर समुद्र में दृष्टि दौड़ायी पर घने कोहरे में कुछ भी दिखायी नहीं पड़ा। वह फिर सो गया। पुनः उसे वही स्वप्न दिखायी पड़ा। इस बार उसने जहाज के मस्तूल पर चढ़कर देखा तो सचमुच ही थोड़ी दूर पर एक जहाज नजर आया। उसने तुरंत भोंपू बजा कर अपनी उपस्थिति की जानकारी उस जहाज को दी। थोड़ा भी विलम्ब होता तो संभवतः उस कोहरे में जहाज टकराकर चूर-चूर हो जाता।
छुट्टी बिताने घर पर आये एक अमरीकी सैनिक को सपना आया कि उसकी प्रेमिका हाल ही में आये भूकम्प के कारण मलबे में कहीं दबी पड़ी है। मलबे में काफी खोजबीन की गयी लेकिन उसकी लाश नहीं मिली। उसी रात को उसने सपने में पुनः वह स्थान देखा, जहां उसकी प्रेमिका दबी पड़ी थी। अगले दिन जब अभीष्ट स्थान से मलबा हटाया गया, तो सचमुच वहां उसकी लाश मिल गयी।
1918 की घटना है। पोलैण्ड के जरनैक नगर की युवती मेरना को एक स्वप्न दिखायी पड़ा कि उसका प्रेमी स्टेनिस्लास एक युद्ध-ध्वस्त किले की अंधेरी सुरंग में फंसा पड़ा है। निकलने के उसके सारे प्रयत्न बेकार हो गये हैं और वह जीवन के अन्तिम दिन गिन रहा है। प्रथम विश्वयुद्ध के असंख्यों सैनिकों की भांति स्टैनिस्लास भी लापता था। मेरना को यह स्वप्न कई बार दिखायी पड़ा। जिससे भी वह इसकी चर्चा करती, वही उसकी हंसी उड़ाता। अन्ततः स्वयं में मेरना इसी स्वप्न संकेत के आधार पर अपने प्रेमी को ढूंढ़ने निकल पड़ी। उसने अनेक किले देखे, पर हर जगह उसे निराशा हाथ लगी। अन्त में वह एक गांव के पहाड़ी किले पर पहुंची। किले को देखते ही वह खुशी-से चीख पड़ी। यह वही किला था जो स्वप्न में बार-बार दिखायी पड़ता था। ग्रामवासियों की मदद से मलबा हटा कर रास्ता साफ किया गया, तो अन्दर से स्टेनिस्लास की सिसकियां उभरती सुनायी पड़ीं वह दो साल तक इस काल कोठरी में जीवन-मृत्यु से संघर्ष करता रहा अन्ततः विजयी हुआ।
‘न्यू टेस्टामेण्ट’ की एक कथानुसार जोसेफ को स्वप्न में एक दिव्य पुरुष ने बताया ‘‘मेरी का भावी पुत्र स्वजनों को उनके पाप कृत्यों से रक्षा करेगा।’’ जब प्राच्य के तीन विद्वान उस शिशु को देखने आये तो स्वप्न में उन्हें भी आदेश मिला कि नराधम हैरोड से उन्हें बचे रहना चाहिए। इस स्वप्न संदेश को पाकर वे तत्काल स्वदेश लौट गये। जोसेफ को इसी प्रकार के एक सपने में कहा गया कि वह नवजात शिशु और मेरी को लेकर मिश्र चला जाय और क्रूर हैरोड़ से उनकी रक्षा करे। स्तुतः बाइबिल के सारे रेविलैशन के दैवी संदेश सपनों में प्रकट हुए बताये जाते हैं।
फ्रिख्ते का प्रतिपादन है कि सपने मानवी मनकी भीतरी परतों को सांकेतिक भाषा में उभार कर लाते हैं। उनके आधार पर यह जाना जा सकता है कि स्वप्नदर्शी को शारीरिक और मानसिक चेतना की किस स्थिति में निर्वाह करना पड़ा रहा है। स्ट्रम्पैल का कथन है कि सपने जागृत जीवन के आगे की प्रसुप्त भूमिका का रहस्योद्घाटन करते हैं। वडेंक कहते हैं कि सपनों को दैनिक जीवन की छाया मात्र कहकर उपहासास्पद नहीं समझ लिया जाना चाहिए। उनमें बहुत-सी उपयोगी सूचनायें सन्निहित रहती हैं।
स्वप्नों में भीतर ही भीतर पक रही खिचड़ी के ऊपर तैरने वाले झाग या छिलके तैरते देखे जा सकते हैं और उनके सहारे यह जाना जा सकता है कि क्या अन्तःचेतना की सीपी में कोई बहुमूल्य मोती विनिर्मित और परिपक्व होने जा रहा है।
स्टेम्फोर्ड विश्व विद्यालय के मनोविज्ञान प्राध्यापक श्री चार्ल्स टी. टार्ट ने स्वप्न प्रक्रिया सम्बन्धी शोध में भी यही निष्कर्ष निकाला है कि स्वप्न सर्वथा स्वच्छन्द नहीं होते और न वे अकारण आते हैं। उनके पीछे कुछ ठोस कारण विद्यमान रहते हैं। हां, वे सीधे साधे तरीके से नहीं वरन् ‘पहेली बुझौअल’ की तरह कुछ विचित्र वेश बनाकर आते हैं और हमारी बुद्धि को चुनौती देते हैं कि उनकी रहस्यमयी गतिविधियों को समझें और सन्निहित कारणों को समझ कर अपनी शारीरिक, मानसिक गतिविधियों के मोड़-तोड़ का परिचय प्राप्त करें।
विज्ञान की भाषा में आत्मा को एक सर्वव्यापी विद्युत और मन जो कि शरीर के स्थूल अंश की व्यक्ति चेतना है, सीमाबद्ध विद्युत कह सकते हैं। रेडियो की विद्युत को यन्त्रों के द्वारा फ्रीक्वेन्सी पर किसी भी रेडियो स्टेशन की तरंगों से मिलाकर वहां की गतिविधियों का ज्ञान कर लेते हैं, उसी प्रकार मन द्वारा भी विश्व-व्यापी चेतना का परिभ्रमण दर्शन और ज्ञान की अनुभूति की जा सकती है। इसी अनुभूति का नाम स्वप्न है। मन की विद्युत को जितना सूक्ष्म और उच्च स्तर का बनाया जा सके उतनी ही सत्य अनुभूतियां उपलब्ध की जा सकती हैं इस सिद्धान्त में कोई सन्देह नहीं।
स्वप्न संबंधी समस्त प्रसंग एक ऐसे अदृश्य लोक का वर्णन करते हैं जो मानवी मन के रूप में हम सबके अन्दर विद्यमान है। स्वप्नों में पूर्वाभास से लेकर महत्वपूर्ण गुत्थियों के समाधान एवं संभावित घटनाओं की चेतावनी रूपी संदेश मिलते रहे हैं। परामनोविज्ञान का यह एक ऐसा क्षेत्र है जहां समष्टि मन एवं व्यक्ति मन के परस्पर आदान-प्रदान का लीला सन्देह चलता रहता है। मस्तिष्क के शान्त प्रसुप्त पड़े क्षेत्रों की निद्रा की स्थिति में जागृति यही सम्भावना बताती है कि प्रयासपूर्वक साधना पराक्रम से उन्हें जगाकर व्यक्तित्व-दैवी क्षमता सम्पन्न भी बनाया जा सकता है। अध्यात्म क्षेत्र की विज्ञान को चुनौती के रूप में स्वप्न विधा का यह क्षेत्र इतनी असीम सम्भावनाओं से भरा है जिसकी कोई परिधि सीमा नहीं।
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स्वप्नों को मोटे तौर पर तीन वर्गों में रख सकते हैं—(1) शारीरिक दशाओं से प्रभावित स्वप्न (2) मानसिक स्थिति की प्रतिक्रिया स्वरूप स्वप्न (3) आध्यात्मिक स्वप्न।
अपच, उदर विकार, शीतोष्णता का आधिक्य, भूख-प्यास, शरीर में किसी वस्तु विशेष के स्पर्श, सोते समय वातावरण के विशेष परिवर्तन आदि के कारण देखे गये स्वप्न दृश्य प्रथम वर्ग के स्वप्नों की कोटि में आते हैं। इनमें अतिरंजना और विकृति का प्राधान्य होता है।
प्रायः स्वप्न किसी अन्य लोक के भेजे गये उपहार नहीं, वरन् अपनी ही वर्तमान एवं भूतकालीन स्थिति के परिचायक होते हैं। कई बार तो तात्कालिक शारीरिक अनुभूतियों एवं निकटवर्ती परिस्थितियों का ही भला-बुरा प्रभाव स्वप्नों की सृष्टि कर लेता है।
रूस की ‘सोवियत स्काया रशिया’ पत्रिका में डा. कुत्सफिन का यह लेख छपा है जिसमें उन्होंने लिखा है कि मस्तिष्क में ऐसी अद्भुत शक्ति है कि वह शरीर में भीतर ही भीतर चल रही रुग्ण गतिविधियों को पहले से ही जान लेता है और स्वप्नों के आधार पर यह संकेत देता है कि स्वास्थ्य की स्थिति इन दिनों कैसी चल रही है और उसका मोड़ किधर जा रहा है। वे कहते हैं—‘‘स्वप्न न आना अस्वस्थता की निशानी है। जब शरीर की नाड़ियां अपनी अन्तःप्रक्रिया की सूक्ष्मतम रिपोर्ट मस्तिष्क को देना बन्द कर देती हैं तभी सपने दीखना बन्द हो जाते हैं।
डी.एन.ए. के अन्वेषक डॉ. फ्रांसिस कीक का कहना है कि मनुष्य को निद्रा और निद्रा में स्वप्न के रूप में एक ईश्वरीय भेंट मिली है। मन पर पाप या रागों के इकट्ठे होते ढेर, स्वप्न द्वारा कम होते और भुलाये जाते हैं। स्वप्न एक विस्मृति की प्रक्रिया है। शरीर के स्वास्थ्य के लिए स्वप्न उपयोगी है। यदि स्वप्न न होते तो मस्तिष्क का गोदाम खचाखच भर जाता और उसमें नये विचार तथा कल्पना के लिए उसमें जगह भी न बचती।
मनोविज्ञानी स्वप्नों को अचेतन मन का क्रीड़ा कल्लोल कहते हैं। जागृत मन, सचेतन मस्तिष्क दैनिक कार्य व्यवहार में कल्पना करता और कांट-छांट करते हुए बुद्धि संगत निर्णय लेता है। उस अवधि में कोई प्रिय व अप्रिय परिस्थिति मन पर गहरा प्रभाव छोड़े तो सोते समय उसी प्रसंग को उल्टा सीधा व्यक्त करने वाले सपने आने लगते हैं। अपनी इच्छायें, आकांक्षायें भी सपनों में व्यक्त होती हैं। इसके अतिरिक्त एक गहरी परत अचेतन मन की है जिसमें संचित स्मृतियां, आदतें, इच्छायें, मान्यतायें कबाड़ियों के गोदाम की तरह जमा रहती हैं। वे अनुकूल अवसर ताकती रहती हैं और जब भी दांव लगता है चिन्तन को दृश्य में बदल लेती हैं। यह सपने लाक्षणिक होते हैं। उनमें मनःसंस्थान की स्थिति का पहेली बुझौअल जैसा संकेत रहता है। विज्ञजन उसका अर्थ लगाते हैं, चिकित्सा शास्त्री सपनों के आधार पर शारीरिक एवं मानसिक रोगों का कारण स्वरूप खोजते हैं। कुछ के लिए यह बिना पैसे का सिनेमा है।
यह मोटी मान्यताओं की—सामान्य समाधानों की घिसी-पिटी जानकारी है। इसमें आगे की रहस्यपूर्ण गुत्थियां तब उत्पन्न होती हैं जब कई सपने पिछले दिनों घटित हुई किसी अविज्ञात घटना का यथावत् परिचय देते हैं। उसी समय जो किसी दूर देश में घटित हो रहा है उससे सही रूप में परिचित कराते हैं। जहां तार, बेतार के संचार साधन मौजूद नहीं हैं वहां कुछ स्वप्न सन्देश वाहक का काम करते देखे गये हैं। इतना ही नहीं कुछ स्वप्नों में भावी सम्भावनाओं का पूर्वाभास भी होता है। उस समय तो सही गलत होने का कोई प्रमाण नहीं होता किन्तु समय आने पर जब वे स्वप्न सूचनायें भविष्यवाणी की तरह घटित होती हैं तो प्रतीत होता है कि इस क्षेत्र से किसी ऐसी शक्ति का भी सम्बन्ध सूत्र जुड़ा है जो अदृश्य और भविष्य का निर्धारण संचालन करती है।
आत्मवेत्ता इसका समाधान इस प्रकार करते हैं कि सूक्ष्म शरीर में अतीन्द्रिय क्षमताएं भरी पड़ी हैं। वे अभ्यास से दिव्य दृष्टि के रूप में अविज्ञात को जानती, अदृश्य को देखती हैं, पर सपने में उस क्षेत्र को बिना किसी प्रयास के ही ऐसा अवसर कभी-कभी मिल जाता है जिसमें दिव्यतायें उन अनुभूतियों का सहज लाभ ले सकें जो योगियों और सिद्ध पुरुषों में देखी, पाई जाती हैं। चेतना की एक और भी गहरी परत है जो कारण से सम्बन्धित है इसमें मनुष्य की अपनी चेतना से बहुत ऊंचे उठकर दैवी जगत के साथ सम्बन्ध जोड़ने की क्षमता है। उसे जब जितना सुअवसर मिलता है वह उच्चस्तरीय शक्तियों के साथ सम्बन्ध साध लेती है और उनके अहैतुकी अनुग्रह से लाभान्वित एवं कृत-कृत्य होती है।
ऐसे सार्थक सारगर्भित सपने कभी-कभी—किसी-किसी को ही आते हैं। अधिकांश मनःक्षेत्र निरर्थक सपनों का ही जाल-जंजाल बुनता रहता है। सार्थक स्वप्न कभी ही क्यों न दीखते हों, पर उनसे यह सिद्ध अवश्य होता है कि दिव्य दर्शन का भी स्वप्न लोक के साथ सघन सम्बन्ध जुड़ा है।
‘‘दि न्यू फ्रान्टियर्स आफ माइण्ड’’ में उसके लेखक श्री जे.बी. राइन ने दूर-दर्शन के तथ्यों का वैज्ञानिक एवं मनोवैज्ञानिक अध्ययन करके संकलन किया है—एक घटना के सम्बन्ध में लिखा है कि उनके पड़ौस के एक सज्जन की धर्म पत्नी ने एक रात को एक स्वप्न देखा कि वहां से बहुत दूरी पर रहने वाला उसका भाई घोड़ा गाड़ी से खलिहान जाकर मचान पर चढ़कर अपनी पिस्तौल की गोली से आत्म-हत्या कर लेता है और भूसे के ढेर पर लुढ़क पड़ता है। स्त्री घबड़ा गई और अपने पति के साथ भाई के गांव गई तो खलियान में जाकर पाया कि उसके भाई की मृत्यु ठीक वैसे ही हुई जैसा कि स्वप्न में देखा था।
सन् 1774 में न डाक तार का कोई प्रबन्ध था न यातायात का साधन। इटली के पादरी अलोफोन्सा लिगाडरी ने अर्धतन्द्रित अवस्था में दिवा स्वप्न देखा कि रोम के बड़े पोप नहीं रहे। उन्होंने यह बात अपने शिष्यों और साथियों को बताई वे इसे निराधार समझते रहे। कुछ ही दिन बाद समाचार मिला कि अलोफोन्सा ने जिस दिन यह घटना सुनाई उसी दिन बड़े पोप चल बसे।
‘‘वाशिंगटन हैराल्ड’’ की संचालिका स्वर्गीय इलेग्नर मेरिट एक मध्यान्ह विश्राम करने के लिए झपकी ले रही थीं। कि उन्हें दिखाई पड़ा कि उनके पति कैंसी पास में खड़े हैं अचानक उन्होंने देखा कि वे गायब हो गए। वे विस्मय में पड़ गईं क्या करें। दफ्तर गयीं जहां लोगों को स्वप्न सुनाया। सबने साधारण माना। किन्तु दूसरे दिन तार आया कि उनके प्रति की अचानक मृत्यु ठीक उसी समय हुई जब वे स्वप्न देख रही थीं।
फ्रांसिस्को रूसो व्यापार के सिलसिले में कुछ दिनों से बाहर गया था और पत्नी अमेलिया रूसो घर में अकेली थी। एक दिन उसने स्वप्न में देखा कि उसके बड़े खाली कमरे में शव पड़ा हुआ है और उस शव पर एक युवती बैठी हुई है। यह देखकर अमेलिया की चीख निकल गई और उसे लगने लगा कि उसके पति को कुछ हो गया है। तीन दिन बाद जब उससे न रहा गया तो वह पुलिस अधिकारियों के पास पहुंची। आरम्भ में पुलिस अधिकारियों ने उसकी बात पर कोई ध्यान नहीं दिया परन्तु कुछ ही दिन बाद रोम से 50 किलोमीटर दूर एक दुर्घटना ग्रस्त कार में फ्रांसिस्को का शव मिला।
शव की पोस्टमार्टम रिपोर्ट से यह सिद्ध हो गया कि फ्रांसिस्को की मृत्यु दुर्घटना के कारण नहीं विष देने के कारण हुई है। इसके बाद तो अमेलिया द्वारा देखे गये स्वप्न तथा उसके बारे में और अधिक पूछताछ करने के बाद उस स्त्री को गिरफ्तार किया जा सका जिसने फ्रांसिस्को की हत्या की थी। उस स्त्री को देखते ही अमेलिया ने पहिचान लिया कि स्वप्न में यही स्त्री शव पर बैठी थी।
अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने अपनी मृत्यु से तीन चार दिन पहले जो स्वप्न देखा था, वह वार्ड लेमन जो उनकी जीवनी लिख रहे थे को सुनाया किन्तु वार्ड लेमन ने उसे साधारण स्वप्न कह कर टाल दिया। लिंकन ने बताया कि ‘‘गत रात में ह्वाइट हाउस (अमेरिकी राष्ट्रपति के निवास) में चारों ओर घूमा किन्तु सभी कमरे खाली पड़े देखे। तभी पूर्वी भाग से कुछ लोगों के रोने की आवाज सुनाई दी जहां जाकर देखा तो पाया कि वहां मेरे परिवार के सदस्य दूसरे राजनयिक भी हैं। कौतूहलवश मैंने पूछा यह शव किसका है? उनमें से एक आकृति ने मेरी ओर देखकर कहा—राष्ट्रपति की हत्या कर दी गई है और यह शव उन्हीं का है। इतना सुनते ही मेरी नींद टूट गयी। अतः इस स्वप्न का मेरे जीव से कोई घनिष्ठ संबंध है।’’ वार्ड लेमन ने उक्त घटना को उनके कहने पर शीघ्र लिपि में लिपिबद्ध कर लिया किन्तु अन्ध विश्वास समझकर कोई विशेष ध्यान अथवा चौकसी का प्रबन्ध या सुझाव भी नहीं दिया। ठीक तीसरे दिन उन्हीं परिस्थितियों में जो स्वप्न में लिंकन ने बताई थीं, उनकी हत्या कर दी गई तब से आज तक यह प्रसंग राष्ट्रपति लिंकन की जीवनी के साथ जुड़ा है और आज तक इसकी कोई वैज्ञानिक व्याख्या भी नहीं की जा सकी।
अमेरिका के एक नागरिक एलन बेधन ने एक रात स्वप्न देखा कि तत्कालीन राष्ट्रपति राबर्ट कैनेडी एक भीड़ के साथ किसी पार्टी में जा रहे हैं। रास्ते में विरोधी दल का एक सदस्य उन्हें गोली मार देता है और राष्ट्रपति की मृत्यु हो जाती है।
एलन ने अपना सपना स्वप्न अनुसंधान संस्था के रजिस्टर में नोट कर दिया और अनुरोध किया कि वे इस सपने की बात राष्ट्रपति तक पहुंचा दें। इसके एक सप्ताह बाद सचमुच वह सपना सत्य हो गया और राष्ट्रपति गोली से मारे गये।
सन् 1765 की बात है। वाय जैन्ट्रियम (ग्रीस) के जेलखाने में एक कैदी ने सपना देखा कि वह उस देश की महारानी का प्रेम पात्र बन गया है। कैदी ने सपना पहरेदार को बता दिया। पहरेदार ने रिपोर्ट राजा से करा दी। राजा ने उसे मृत्यु दण्ड दिया पर रानी ने सपने के कारण फांसी देने की बात को अनुचित बताकर राजा से क्षमादान करा दिया।
संयोग की बात दो वर्ष बाद राजा कान्स्टेटाइन दशम की मृत्यु हो गई। कुछ सिलसिला ऐसा चला कि जेल से छूटे कैदी सैनिक रोमे के साथ रानी का प्रेम-बन्धन ही नहीं बना वरन् उसने उससे विवाह भी कर लिया। फलतः वह सम्राट बना और रोमेनस चतुर्थ डायोजानेस के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
फ्रांसीसी क्रान्ति के नेताओं में से एक था—जीन पीशना। उसे बचपन से ही एक डरावना सपना आता था कि उसकी मित्र-मण्डली पर हिंसक जानवरों का झुण्ड टूट पड़ता है एवं वह मित्रों के सहित उस दुर्घटना में समाप्त हो जाता है। यह सपना अनेक बार उसने देखा और हर बार मित्र संबंधियों को सुनाया।
संयोग कुछ ऐसा बना कि जून सन् 1794 में एक यात्रा पर जाते हुए भूखे-भेड़ियों का झुण्ड मण्डली पर टूट पड़ा और वे सभी उसी प्रकार मारे गये जैसा कि सपने में दीख पड़ता था।
इंग्लैण्ड के बोस्टन नगर के समाचार पत्र ‘‘बोसटन टाइम्स’’ में 28 अगस्त 1883 के अंक में एक भयंकर समाचार छपा कि एक समुद्री द्वीप ‘प्रालेप’ में महा भयंकर ज्वालामुखी फटा और उसने उस क्षेत्र के समुद्र में असाधारण कुहराम मचा दिया।
छपने के बाद यह जांच-पड़ताल हुई कि वह समाचार इतनी जल्दी कैसे प्राप्त हुआ? जबकि उन दिनों तार-बेतार जैसी कोई व्यवस्था नहीं थी। फिर उस विस्फोट का पूरा विवरण क्या है, यह प्रश्न उठा।
बात यह थी की समाचार-पत्र ‘बोस्टन-ग्लोब’ के संवाददाता एड सैम्सन ने उस दिन काफी देर तक काम किया था। उसे कई दिन की थकावट थी सो रात पूरी तरह विश्राम करना चाहता था। प्रेस के चपरासी को उसने हिदायत दी—‘‘मुझे तीन बजे से पहले न जगाया जाये’’ और यह कहकर वह अपने बिस्तर पर सो गया।
उस रात उसने एक स्वप्न देखा एक महाभयंकर हृदय को कंपा देने वाली मानवीय इतिहास की एक जबर्दस्त दुर्घटना जिसने लोगों को यह सोचने के लिए विवश किया कि संसार में स्थूल हलचलें ही सब कुछ नहीं जो दिखाई नहीं देता, उस सूक्ष्म आकाश में भी ऐसी अनेक सूक्ष्म शक्तियां क्रियाशील हैं, जो मनुष्य की अपेक्षा अधिक संवेदनशील, शक्ति और सामर्थ्य से परिपूर्ण हैं। इस घटना ने ही एक छोटे से सम्वाददाता की प्रतिष्ठा सारे विश्व में फैला दी।
एड सैमसन ने देखा—‘‘एक भयंकर पहाड़—उससे लाल रंग का लावा फूट पड़ा, जिससे उस द्वीप में महाभयंकर विनाशलीला प्रारम्भ हो गई। टापू अग्नि ज्वालाओं में बदल गया है। पृथ्वी कांप रही है और सब कुछ जलता हुआ स्वाहा होता जा रहा है।’’ स्वप्नावस्था में ही उसने किसी से पूछा—‘इस द्वीप का क्या नाम है’—‘प्रालेप’ किसी ने स्वप्न में ही सन्देश दिया और सैमसन की नींद टूट गई।
स्वप्न इतना वीभत्स था कि वह दृश्य सैमसन के मस्तिष्क में ज्यों के त्यों उभरे तब तक आन्दोलन मचाते रहे, जब तक उसने पूरे स्वप्न को एक लेख के रूप में तैयार नहीं कर लिया। उसने सोचा यह था कि यह लेख किसी दिन समाचार में छापेंगे—इसलिए उस पर ‘‘अत्यन्त महत्वपूर्ण’’ की लाल चिट लगाई और घर चला गया।
प्रातःकाल सम्पादक आया, उसने महत्वपूर्ण की चिट लगे इस समाचार को पढ़ा, उसे लगा, यह किसी सम्वाददाता का समाचार है। सो ‘‘वोस्टन-ग्लोब’’ में मुख पृष्ठ पर प्रमुख समाचार के रूप में दोहरा शीर्षक देकर छाप दिया। 29 अगस्त को यह समाचार सारे संसार में फैल गया। जबकि संसार के और किसी भी अखबार में ऐसा कोई समाचार नहीं छपा था। दिन भर ‘वोस्ट ग्लोब’ कार्यालय से पूछताछ चलती रही। सम्पादक स्वयं भी हैरान था कि वास्तविकता क्या है व क्यों उससे पूछताछ की जा रही है?
मैक्सिको, आस्ट्रेलिया, अमेरिका के आकाश में गड़गड़ाहट, समुद्री तूफान, भूकम्पनों के संक्षिप्त समाचार तो मिले पर उतने से सम्पादक और पाठकों में से किसी की जिज्ञासाओं का समाधान न हुआ। आखिर सम्पादक को सारी घटना का सखेद ‘भूल सुधार छापना पड़ा’।
सचमुच जिस समय युवक सम्वाददाता एड सैमसन यह स्वप्न देख रहा था, पृथ्वी के दूसरे छोर पर ‘क्राकातोआ’ द्वीप पर भयंकर भूकम्प और तूफान आया था। इस भयंकर ज्वालामुखी के कारण सम्पूर्ण द्वीप समुद्र के गर्त में ऐसे समा गया था, जैसे विशाल घड़ियाल की दाड़ में मानव अस्थि-पिंजर। घटना की पुष्टि कई दिन बाद उधर से लौटने वाले जहाजों ने की। तब फिर ‘भूल सुधार का—भूल सुधार छापा गया। सैमसन के बड़े-बड़े फोटो समाचार-पत्रों में छपे। सबने सपने की महत्ता को समझा।
इस स्वप्न की गहरी छानबीन की गई तो कई ऐसे सूक्ष्म रहस्यों का पता चला जो मनुष्य के लिए अकारण कभी सम्भव ही नहीं हो सकते थे। लोगों ने अनुभव किया, वस्तुतः कोई शाश्वत और साक्षी सत्ता है, जिससे सम्बन्ध जोड़ने या अनायास जुड़ जाने से ऐसी विलक्षण अनुभूतियां हो सकती हैं। पहले लोगों को इस द्वीप के प्रालेप नाम पर टिप्पणी करने का अवसर मिला अवश्य, पर पीछे कई दस्तावेजों से यह रहस्य प्रकट हुआ कि डेढ़ सौ वर्ष पूर्व ‘क्राकातोआ’ द्वीप का नाम ‘प्रालेप’ ही था। स्थानीय आदिवासी उसे प्रालेप नाम से ही जानते थे।
स्वप्न में होने वाली ये अनुभूतियां अकेली नहीं हैं। समष्टिगत विभीषिकाओं के अतिरिक्त कईयों को स्वयं पर घटने वाली घटनाओं का विचित्र पूर्वाभास हुआ है। अपनी मृत्यु की पूर्व घोषणा करने वालों की अनुभूतियां भी बड़ी विचित्र प्रकार की होती हैं। वे अनुभव करते हैं कि उनके अंग विलक्षण प्रकार से निर्जीव हो रहे हैं। उनकी स्वाभाविक और सम्मिलित शक्ति का विचित्र रीति से क्षरण हो रहा है। अन्तःचेतना इस मृत्यु सन्देश को यदि ठीक तरह अनुभव कर सके तो क्रमिक मृत्यु की स्थिति में आवेश रहित व्यक्ति सहज ही मृत्यु का पूर्वाभास पा सकता है और कई बार तो मृत्यु-समय की अवधि तक घोषित कर सकता है। ऐसी भविष्यवाणियां कईयों ने की भी हैं और वे सत्य भी निकली हैं।
कहते हैं कि गांधीजी को अपनी मृत्यु की बात स्वप्न में ही कई दिन पूर्व ही मालूम हो गई थी। ऐतिहासिक महापुरुषों के जीवन में इन प्रसंगों को देखकर ही ‘‘विजडम आफ ओवर सेल्फ’’ पुस्तक में पाल ब्रन्टन ने लिखा है कि विज्ञान और बुद्धिवादी लोग भले ही इसे रूढ़िवाद या केवल मानसिक कल्पना कहें पर स्वप्नों को जीवन की महत्वपूर्ण चेतन गुत्थियों का समाधानकारक कहा जा सकता है।
‘‘दि अण्डर सटैन्डिंग आफ ड्रीम्स एण्ड देयर एन्फ्लूएन्सेस आन दि हिस्ट्री आफ मैन’’ हार्थन बुक्स न्यूयार्क द्वारा प्रकाशित पुस्तक में एडाल्फ हिटलर के एक स्वप्न का जिक्र है जो उसने फ्रांसीसी मोर्चे के समय प्रथम विश्वयुद्ध में देखा था। हिटलर सन् 1916 में एक मामूली सिपाही था। मोर्चे पर खन्दक में वह लेटा पड़ा था। इसी बीच उसे झपकी आ गई। स्वप्न देखा कि एक भयानक अग्नि पिण्ड सामने से उसकी ओर लपकता आ रहा है। स्थिति मरने जैसी बन गई, पर किसी दिव्य शक्ति ने उसे हाथ पकड़ कर दूसरी ओर उछालकर फेंक दिया और कहा—‘‘यह विशेष व्यक्ति है। अभी उसे विशेष काम करना है। यह समय इसके मरने का नहीं है।’’ स्वप्न का अन्त होने भी न पाया था कि हिटलर आतंकित होकर हड़बड़ाते हुए उठने लगा। अभी पूरी तरह संभल भी न पाया था कि सचमुच ही तोप का गोला सामने से सनसनाता हुआ आया और उसका कन्धा छूते हुए निकल गया। यही वह दृश्य था जिसने हिटलर को अपने बारे में सर्वथा नवीन धारणा बनाने का अवसर दिया। उसी दिन से वह अपनी अदृश्य सहायता का सपना देखने लगा। इसी मानसिक उथल-पुथल ने उसे वह कर गुजरने तथा इतिहास में एक अहम भूमिका निभाने का अवसर दिया, जिसका कि एक सामान्य स्तर के सिपाही से आशा की ही नहीं जा सकती।
कहते हैं कि द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के पूर्व अपनी आत्म हत्या द्वारा मृत्यु का भी पूर्वाभास उसे स्वप्न में ही हुआ था। परिस्थितियां सर्वथा अपने विपरीत देख उसने स्वप्न की चर्चा अपनी प्रेमिका व विश्वस्त अधिकारियों से की, एवं बंकर में दोनों ने एक साथ आत्म हत्या कर ली। एक अधिनायक का यह दुखद अन्त था, पर नियति की विधि-व्यवस्था के अनुरूप ही सबकुछ हुआ।
सन् 1915 में स्वीडन के जनरल जॉन रुग्ण शय्या पर अस्पताल में पड़े थे। एक रात उन्हें सपना हुआ कि स्टॉकहोम में उनके मित्र जनरल बेकमैन की हत्या हो गई। सपने में सारी रात वे यहीं चिल्लाते रहे—‘नर्स, कमाल है! सामने फर्श पर क्या बेकमैन की लाश तुम्हें दिखाई नहीं पड़ती? फर्श और दीवारों पर खून के धब्बे क्या तुम्हें दीख नहीं रहे हैं?’
नर्स उनकी बातों को अनसुनी कर सोती रही। दूसरे दिन समाचार पत्र के मुख पृष्ठ पर ही जब उसने बेकमैन की हत्या की खबर पढ़ी तो वह रात्रि का विवरण यादकर स्तब्ध रह गई।
दो घटनायें अमेरिकन इतिहास से संग्रह की गई हैं। वहां 28 फरवरी 1844 को एक बहुत महत्वपूर्ण कार्यक्रम होने को था। ‘यू.एस.एस. प्रिंन्सटन’ नाम का एक नया और सबसे बढ़िया युद्धपोत बनकर तैयार हुआ था और उसके उद्घाटन के अवसर पर उसके कप्तान राबर्ट स्टाक्टन ने अनेक गणमान्य व्यक्तियों को समारोह में निमंत्रित किया, इनमें कर्नल डेविड गोडनर, उनकी पुत्री जुलिया, जलसेना के सेक्रेटरी थामस गेलमर व उनकी पत्नी एनी भी सम्मिलित थे।
इन दोनों महिलाओं ने 27 दिनांक की रात्रि को ऐसे स्वप्न देखे जिनमें जूलिया के पिता और एनी के पति की मृत्यु का स्पष्ट संकेत था। इससे भयभीत होकर जूलिया ने अपने पिता से इस समारोह में सम्मिलित न होने का अनुरोध किया। इसी प्रकार एनी ने अपने पति को बहुत रोका। पर उन दोनों ने स्वप्न की बातों को अधिक महत्व देना ठीक नहीं समझा और वे जहाज पर चले गये। वहां जब एक तोप को समुद्र की ओर चलाया गया तो वह अकस्मात् फट गई और कर्नल गार्डिनर तथा थामस गेलमर, जो पास खड़े थे तुरन्त मर गये।
एनी भी वहीं थी, पर वह बच गई। शोक से अभिभूत होकर उसने कहा—‘‘मेरी बात किसी ने क्यों नहीं मानी? दुर्घटना के समय जूलिया डेक के नीचे थी और जब उसने अपने पिता की मृत्यु के बारे में सुना तो वह चिल्ला उठी—‘मेरा सपना आखिर सच हो ही गया।’’
बाद में यही जूलिया अमरीका के प्रेसीडेण्ट टेलर की पत्नी बन गई। उसे कुछ ऐसी शक्ति प्राप्त थी कि पति से सौ मील दूर रहने पर वह उसके सम्बन्ध में सब बातों को जानती रहती थी। उनके मन इस प्रकार जुड़े थे कि एक की अनुभूति दूसरे को सहज में हो जाती थी। जनवरी 1862 में जब प्रेसीडेन्ट टेलर रिचममाण्ड में एक सरकारी जलसे में गये थे, एक रात को जूलिया ने सपने में देखा कि उनका चेहरा मुर्दे की तरह पीला पड़ गया है, उनके हाथ में कमीज और टाई है तथा वे कह रहे हैं कि ‘मेरा सर थाम लो’ सुबह होते ही जूलिया स्वयं रिचमाण्ड को रवाना हो गई और वहां प्रेसीडेन्ट को सकुशल देख कर उसे प्रसन्नता हुई। पर दूसरे दिन सुबह नाश्ता करते हुए उनकी हालत एकदम खराब हो गई और वे मौत के समय की-सी आकृति में जूलिया के कमरे में घुसे। उनका कोट और टाई उनके हाथ में थी, जैसा सपने में दिखाई पड़ा था। उन्होंने जूलिया से कुछ कहा भी, पर वह स्पष्ट सुनाई नहीं दिया। कुछ घण्टों में उनकी जीवन-लीला समाप्त हो गई।
जेना विश्व-विद्यालय के एक प्रोफेसर एवं छात्र प्रायः आस्तिकवाद पर विवाद करते रहते पर बिना प्रमाण के प्रोफेसर महोदय मानने को तैयार नहीं होते थे। एक दिन एक छात्र ने कहना प्रारम्भ किया आज रात मैंने एक स्वप्न देखा है किन्तु आपको बताऊंगा नहीं मात्र इतना बताता हूं कि मेरी मृत्यु शीघ्र ही हो जायेगी।’’ प्रसंग यहीं समाप्त हो गया। घटना घटित होने तक के क्षणों तक के लिए और हफ्ते भर बाद ही सोमवार को वह छात्र बीमार पड़ा और तीसरे दिन तक उसका काम ही हो गया। प्रोफेसर महोदय आतुर मन लिये अन्त्येष्टि समाप्त होते ही छात्र के घर पहुंचे और उस दिन छात्र द्वारा मृत्यु के बाद बक्सा खोलकर देखने के लिए दिये संकेतानुसार बक्सा खोल कर उस दिन के स्वप्न का लिखित वृत्तान्त पढ़ा। लिखा था—तारीख 15 दिन बृहस्पतिवार को प्रातःकाल पांच बजे मेरी मृत्यु हो जायगी। मुझे अमुक स्थान पर दफनाया जायेगा। जब मुझे दफनाया जा रहा होगा तब मेरे माता-पिता आयेंगे और मुझे एक बार फिर बाहर रखकर देखेंगे। इसके बाद मुझे दफना दिया जायेगा।’ प्रोफेसर महोदय के आश्चर्य का ठिकाना न रहा लिखित विवरण के अनुसार ही सारा नाटक आंखों से देख कर अन्ततोगत्वा उन्हें स्वीकार करना पड़ा उस सत्ता को, जिसे हठ वश उपेक्षित किया जाता है।
जल-थल में तेज गति के कीर्तिमान स्थापित करने वाले डोनाल्ड कैम्पवेल को अपनी मृत्यु का पूर्वाभास एक सपने द्वारा ही मिला था। 5 जनवरी 1917 में जब वे यह कीर्तिमान स्थापित करने वाले थे, तो पत्रकारों से उनने पहले ही कह दिया था, कि आज का दिन उसके जीवन का अन्तिम दिन है। हुआ भी ऐसा ही। इस कार्य के दौरान ही उनकी मृत्यु हुई और सपना सच साबित हुआ।
उत्तर प्रदेश—मुरादाबाद जिले की बिलारी तहसील में ग्राम सवाई के निवासी एक लोकप्रिय समाज सेवी गजराज सिंह को अपनी मृत्यु का आभास चार दिन पूर्व मिल गया था यों वे कुछ रुग्ण तो थे पर चलने फिरते तथा साधारण काम-काज करते रहने में समर्थ थे। उन्होंने घर वालों को चार दिन पूर्व अपने मृत्यु का समय स्वप्न के आधार पर बता दिया था और मरघट में जाकर अपने हाथ से जमीन साफ करके दाह कर्म के लिये स्थान निर्धारित किया था। लकड़ी, कफन यहां तक कि जमीन लीपने के लिये गोबर तक समय से पूर्व ही मंगा कर रख लिया था। यों वे अन्न खाते थे पर चार दिन पूर्व से उन्होंने दूध और गंगा जल पर रहना प्रारम्भ कर दिया। स्वप्न के आधार पर अपनी संभावित मृत्यु की बात बताकर उन्होंने आस-पास गांवों के लोगों को बुलाकर आवश्यक परामर्श भी दिये। मृत्यु का ठीक समय मध्याह्नोत्तर दो बजे था सो उन्होंने हर किसी को भोजन करके निवृत्त होने के लिये आग्रह पूर्वक प्रेरित किया। आश्चर्य यह कि मृत्यु उनके घोषित समय पर ही हुई और मरने से पंद्रह मिनट पूर्व तक पूर्ण स्वस्थ जैसी स्थिति में बाते करते रहे।
फ्रांस की जनक्रान्ति से पूर्व वहां के डॉ. अल्फ्रेड मउरे को एक अद्भुत स्वप्न दिखायी पड़ा जो बाद में अक्षरशः सही सिद्ध हुआ।
मउरे रुग्ण-शैय्या पर पड़े हुए थे। एक दिन उनने स्वप्न देखा कि चारों ओर नरसंहार हो रहा है। लोग भयाक्रान्त हो इधर-उधर भागते फिर रहे हैं। अन्त में उन्हें भी पकड़ लिया जाता है और प्राणदण्ड की सजा दी जाती है। सपने में उन्हें वह स्थान स्पष्ट दीख रहा था जहां शिराच्छेदक यंत्र से सब के सिर काटे जा रहे थे। अन्त में उसकी बारी आयी। उसे भी यंत्र के समीप ले जाया गया और एक ही बार में सिर धड़ से अलग कर दिया गया। यह घटना उन्होंने अपने मित्रों को सुनाई। बात आई गयी हो गयी। बाद में स्वप्न-दर्शन की भांति उसकी भी हत्या कर दी गयी।
कई बार सपने आसन्न जीवन-संकट की पूर्व सूचना देते देखे गये हैं। ब्रिटेन के भूतपूर्व प्रधानमंत्री विंसेण्ट चर्चिल की जान दो बार ऐसे ही सपनों ने बचायी थी। 11 अप्रैल 1942 को ब्रिटेन के वायु सैनिक युद्धाभ्यास में निरत थे और कम ऊंचाई से गिराये गये बम से बचने की कोई बढ़िया तरकीब खोजने का प्रयास कर रहे थे, पर एक छोटी-सी गलती ने उपस्थित सभी सैनिकों की जान ले ली। इस युद्धाभ्यास को देखने के लिए चर्चिल भी आने वाले थे, किन्तु एक स्वप्न-दर्शन द्वारा प्राप्त चेतावनी के कारण उनने अपना आना स्थगित कर दिया और इस प्रकार जीवन से हाथ धोने से बचे रहे।
दूसरी बार स्वप्न–संकेत उन्हें तब मिला, जब जर्मनी के लड़ाकू विमान बम बरसाने लंदन आ रहे थे। जैसे ही उन्हें आक्रमण की जानकारी मिली, एक बारगी वे घबरा उठे, पर तुरंत ही स्वयं को सयत किया और सिर पर मंडराने वाली मृत्यु का सामना कैसे किया जाय—यह विचारने के लिए थोड़ी देर के लिए उनने आंखें बन्द कर ली। तभी उनकी आंखों के सामने एक दृश्य कौंधा। उनने देखा जिस स्थान पर वह हैं वह बम से पूर्णतः सुरक्षित है। और बमवर्षक विमान निकट के क्षेत्रों में बम वर्षा कर चले गये। इस स्वप्न से उनकी घबराहट जाती रही। वे वहीं बने रहे लड़ाकू विमान आये और बम गिरा कर चले गये, पर उन्हें कोई क्षति नहीं पहुंची। ऐसे घटनाक्रमों ने उनकी आस्था सूक्ष्म सत्ता पर और जमा दी। अंतिम समय तक वे स्वप्न विज्ञान, परोक्ष जगत पर लिखी गयी पुस्तकों में रुचि लेते रहे। अनेकों शोध प्रतिष्ठानों को उनके संरक्षण से मदद मिलती रही।
आस्ट्रिया के साथ युद्ध में, युद्ध भूमि पर जाते समय नेपोलियन को गाड़ी में नींद आ गयी। तभी उसे एक स्वप्न दिखायी पड़ा कि वह जिस स्थान पर है, वह पूरी तरह बारूदी सुरंग से पटा है, और उसके चारों ओर बमबारी हो रही है। दुःस्वप्न से उसकी नींद खुल गयी। निरीक्षण से ज्ञात हुआ कि सचमुच उस स्थान में बारूदी सुरंगें बिछी हुयी थीं। उसने वह स्थान तुरन्त छोड़ दिया। थोड़ी ही देर बाद विस्फोट हुआ व वह सारा क्षेत्र धमाके के साथ उड़ गया। उसके साथियों की जान बच गयी।
ऐसी ही मृत्यु संबंधी पूर्वाभास की घटना भारत के तत्कालीन प्रधान मंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्रीजी से संबंधित है। श्री उदयकुमार वर्मा रूस में पढ़ने वाले भारतीय स्नातक तब ताशकंद में रहते और वहीं पढ़ते थे। जब भारत-पाकिस्तान समझौता वार्ता के लिये वहां श्री लाल बहादुर शास्त्री तत्कालीन भारत के प्रधान मंत्री पाकिस्तान के राष्ट्राध्यक्ष श्री अयूब और रूसी प्रधान मंत्री श्री कोसीगिन एकत्रित हुए थे। एक दिन श्री वर्मा के पड़ौस में रहने वाली एक सोवियत छात्रा उनके पास आई और बोली—आप हमें श्री शास्त्री जी के आज दर्शन करादें अन्यथा फिर उनके दर्शन न हो पायेंगे। उसने यह भी बताया कि मैंने स्वप्न में देखा है कि उनकी मृत्यु हो गई है। श्री वर्मा जी ने उस बात का बुरा माना। तो भी उन्होंने कुछ कहा नहीं था। उस दिन श्री शास्त्रीजी का प्राच्य भाषा संस्थान ताशकंद में भाषण था। श्री वर्माजी उक्त छात्रों के साथ वहां गये और शास्त्री जी के दर्शन किये थे।
उसी रात श्री वर्माजी ने स्वयं भी स्वप्न में देखा कि वे श्री शास्त्रीजी को विदा करने हवाई अड्डे पहुंचे वहां कोई छात्रा कह रही है शास्त्रीजी तो मर गये हैं क्या आप उनके शव को विदा करने आये हैं। उसके बाद नींद टूट गई। श्री वर्माजी ने छात्रा को बुलाकर नाराजगी प्रकट की और कहा—देखो तुम्हारी उन बातों का मेरे अवचेतन मन पर प्रभाव पड़ा और मैंने भी वैसा ही अशुभ स्वप्न रात में देखा। पर श्री वर्माजी को यह नहीं मालूम था कि अवचेतन में भी अवचेतन कोई एक सत्ता जीवन प्रवाह के रूप में बाहर-भीतर सर्वत्र प्रवाहित हो रही है उसमें सारी अतीन्द्रिय क्षमतायें हैं और उसकी अनुभूतियां एकाएक गलत नहीं हो सकतीं।
सारा संसार जानता है कि 10 जनवरी 66 की उसी रात शास्त्रीजी का देहान्त हो गया। 11 को जब श्रीवर्मा उन्हें काबुल प्रस्थान के लिये विदा करने जाने वाले थे तभी उन्हें समाचार मिला—शास्त्रीजी नहीं रहे तो वे स्तब्ध रह गये।
क्लियौपेट्रा के प्रेमी सीजर को भी एक रात सपने में चेतावनी मिली कि उसकी अमुक दिन अमुक समय ढंग से हत्या कर दी जायेगी। उसकी पत्नी कार्नोलिया को भी अपने पति की हत्या का पूर्वाभास स्वप्न में हो गया था। स्वप्न दर्शन पर गहरी आस्था रखने वाले सीजर ने न जाने क्यों ऐसे महत्वपूर्ण संकेत की अवज्ञा कर दी और यही उपेक्षा उसकी मौत का कारण बनी। सुविख्यात है कि उसका अपना ही विश्वस्त साथी ब्रूटस उसकी मृत्यु का कारण बना।
ग्रीस के सम्राट ग्रीसस ने अपने पुत्र एथिस की हत्या का सारा दृश्य पूर्व में ही स्वप्न में देख लिया था। पर वे उसे बचा न पाए।
अमरीकी जनरल गार्डन के प्राण एक सपने ने ही बचाये थे। जब वे चीन यात्रा पर थे, तो बार-बार उन्हें एक ही स्वप्न दिखायी पड़ता था, कि एक नदी पार करते समय उनकी नाव डूबने लगी है। नाव में उनके अतिरिक्त कई चीनी सैनिक भी हैं। सैनिकों में एक वह सैनिक भी दिखायी पड़ता है, जिसे जनरल ने अनुशासनहीनता के कारण कुछ दिन पूर्व सजा दी थी।
कुछ दिन बाद जनरल को सचमुच ही एक नदी पार करने की आवश्यकता पड़ी। तब उनके आश्चर्य की सीमा न रही जब उन्होंने देखा कि नाव, नदी, व उसमें सवार सैनिक सब कुछ स्वप्न से हूबहू मेल खाते थे। सैनिकों में सजायाफ्ता सैनिक भी सम्मिलित था। दल में उसे शामिल देख गार्डन को कुछ शक हुआ। उन्होंने नाव के विरोक्ष निरीक्षण का आदेश दिया। निरीक्षण से नाव के पेंदे में छोटे-छोटे अनेक छेद पाये गये। इससे नाव डूब सकती थी और सभी की मृत्यु हो सकती थी। इस प्रकार सपना सच साबित हुआ।
एक रात एक अमरीकी जलयान के कैबिन में उसका मालिक जान वाल्टेयर सो रहा था। जहाज समुद्र में बढ़ा जा रहा था। तभी उसे सपना आया कि उसका जलयान एक बड़े जहाज से टकराने जा रहा है। नींद खुली तो उसने उठ कर चारों ओर समुद्र में दृष्टि दौड़ायी पर घने कोहरे में कुछ भी दिखायी नहीं पड़ा। वह फिर सो गया। पुनः उसे वही स्वप्न दिखायी पड़ा। इस बार उसने जहाज के मस्तूल पर चढ़कर देखा तो सचमुच ही थोड़ी दूर पर एक जहाज नजर आया। उसने तुरंत भोंपू बजा कर अपनी उपस्थिति की जानकारी उस जहाज को दी। थोड़ा भी विलम्ब होता तो संभवतः उस कोहरे में जहाज टकराकर चूर-चूर हो जाता।
छुट्टी बिताने घर पर आये एक अमरीकी सैनिक को सपना आया कि उसकी प्रेमिका हाल ही में आये भूकम्प के कारण मलबे में कहीं दबी पड़ी है। मलबे में काफी खोजबीन की गयी लेकिन उसकी लाश नहीं मिली। उसी रात को उसने सपने में पुनः वह स्थान देखा, जहां उसकी प्रेमिका दबी पड़ी थी। अगले दिन जब अभीष्ट स्थान से मलबा हटाया गया, तो सचमुच वहां उसकी लाश मिल गयी।
1918 की घटना है। पोलैण्ड के जरनैक नगर की युवती मेरना को एक स्वप्न दिखायी पड़ा कि उसका प्रेमी स्टेनिस्लास एक युद्ध-ध्वस्त किले की अंधेरी सुरंग में फंसा पड़ा है। निकलने के उसके सारे प्रयत्न बेकार हो गये हैं और वह जीवन के अन्तिम दिन गिन रहा है। प्रथम विश्वयुद्ध के असंख्यों सैनिकों की भांति स्टैनिस्लास भी लापता था। मेरना को यह स्वप्न कई बार दिखायी पड़ा। जिससे भी वह इसकी चर्चा करती, वही उसकी हंसी उड़ाता। अन्ततः स्वयं में मेरना इसी स्वप्न संकेत के आधार पर अपने प्रेमी को ढूंढ़ने निकल पड़ी। उसने अनेक किले देखे, पर हर जगह उसे निराशा हाथ लगी। अन्त में वह एक गांव के पहाड़ी किले पर पहुंची। किले को देखते ही वह खुशी-से चीख पड़ी। यह वही किला था जो स्वप्न में बार-बार दिखायी पड़ता था। ग्रामवासियों की मदद से मलबा हटा कर रास्ता साफ किया गया, तो अन्दर से स्टेनिस्लास की सिसकियां उभरती सुनायी पड़ीं वह दो साल तक इस काल कोठरी में जीवन-मृत्यु से संघर्ष करता रहा अन्ततः विजयी हुआ।
‘न्यू टेस्टामेण्ट’ की एक कथानुसार जोसेफ को स्वप्न में एक दिव्य पुरुष ने बताया ‘‘मेरी का भावी पुत्र स्वजनों को उनके पाप कृत्यों से रक्षा करेगा।’’ जब प्राच्य के तीन विद्वान उस शिशु को देखने आये तो स्वप्न में उन्हें भी आदेश मिला कि नराधम हैरोड से उन्हें बचे रहना चाहिए। इस स्वप्न संदेश को पाकर वे तत्काल स्वदेश लौट गये। जोसेफ को इसी प्रकार के एक सपने में कहा गया कि वह नवजात शिशु और मेरी को लेकर मिश्र चला जाय और क्रूर हैरोड़ से उनकी रक्षा करे। स्तुतः बाइबिल के सारे रेविलैशन के दैवी संदेश सपनों में प्रकट हुए बताये जाते हैं।
फ्रिख्ते का प्रतिपादन है कि सपने मानवी मनकी भीतरी परतों को सांकेतिक भाषा में उभार कर लाते हैं। उनके आधार पर यह जाना जा सकता है कि स्वप्नदर्शी को शारीरिक और मानसिक चेतना की किस स्थिति में निर्वाह करना पड़ा रहा है। स्ट्रम्पैल का कथन है कि सपने जागृत जीवन के आगे की प्रसुप्त भूमिका का रहस्योद्घाटन करते हैं। वडेंक कहते हैं कि सपनों को दैनिक जीवन की छाया मात्र कहकर उपहासास्पद नहीं समझ लिया जाना चाहिए। उनमें बहुत-सी उपयोगी सूचनायें सन्निहित रहती हैं।
स्वप्नों में भीतर ही भीतर पक रही खिचड़ी के ऊपर तैरने वाले झाग या छिलके तैरते देखे जा सकते हैं और उनके सहारे यह जाना जा सकता है कि क्या अन्तःचेतना की सीपी में कोई बहुमूल्य मोती विनिर्मित और परिपक्व होने जा रहा है।
स्टेम्फोर्ड विश्व विद्यालय के मनोविज्ञान प्राध्यापक श्री चार्ल्स टी. टार्ट ने स्वप्न प्रक्रिया सम्बन्धी शोध में भी यही निष्कर्ष निकाला है कि स्वप्न सर्वथा स्वच्छन्द नहीं होते और न वे अकारण आते हैं। उनके पीछे कुछ ठोस कारण विद्यमान रहते हैं। हां, वे सीधे साधे तरीके से नहीं वरन् ‘पहेली बुझौअल’ की तरह कुछ विचित्र वेश बनाकर आते हैं और हमारी बुद्धि को चुनौती देते हैं कि उनकी रहस्यमयी गतिविधियों को समझें और सन्निहित कारणों को समझ कर अपनी शारीरिक, मानसिक गतिविधियों के मोड़-तोड़ का परिचय प्राप्त करें।
विज्ञान की भाषा में आत्मा को एक सर्वव्यापी विद्युत और मन जो कि शरीर के स्थूल अंश की व्यक्ति चेतना है, सीमाबद्ध विद्युत कह सकते हैं। रेडियो की विद्युत को यन्त्रों के द्वारा फ्रीक्वेन्सी पर किसी भी रेडियो स्टेशन की तरंगों से मिलाकर वहां की गतिविधियों का ज्ञान कर लेते हैं, उसी प्रकार मन द्वारा भी विश्व-व्यापी चेतना का परिभ्रमण दर्शन और ज्ञान की अनुभूति की जा सकती है। इसी अनुभूति का नाम स्वप्न है। मन की विद्युत को जितना सूक्ष्म और उच्च स्तर का बनाया जा सके उतनी ही सत्य अनुभूतियां उपलब्ध की जा सकती हैं इस सिद्धान्त में कोई सन्देह नहीं।
स्वप्न संबंधी समस्त प्रसंग एक ऐसे अदृश्य लोक का वर्णन करते हैं जो मानवी मन के रूप में हम सबके अन्दर विद्यमान है। स्वप्नों में पूर्वाभास से लेकर महत्वपूर्ण गुत्थियों के समाधान एवं संभावित घटनाओं की चेतावनी रूपी संदेश मिलते रहे हैं। परामनोविज्ञान का यह एक ऐसा क्षेत्र है जहां समष्टि मन एवं व्यक्ति मन के परस्पर आदान-प्रदान का लीला सन्देह चलता रहता है। मस्तिष्क के शान्त प्रसुप्त पड़े क्षेत्रों की निद्रा की स्थिति में जागृति यही सम्भावना बताती है कि प्रयासपूर्वक साधना पराक्रम से उन्हें जगाकर व्यक्तित्व-दैवी क्षमता सम्पन्न भी बनाया जा सकता है। अध्यात्म क्षेत्र की विज्ञान को चुनौती के रूप में स्वप्न विधा का यह क्षेत्र इतनी असीम सम्भावनाओं से भरा है जिसकी कोई परिधि सीमा नहीं।
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