• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • अतीन्द्रिय क्षमताएं पृष्ठभूमि एवं आधार
    • चमत्कार बनाव परामनोविज्ञान
    • पूर्वाभास एवं भविष्य कथन—कितना सही, कितना तर्क सम्मत?
    • दूरश्रवण की दिव्य सिद्धि
    • विचार शक्ति की भौतिक अभिव्यक्ति
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • अतीन्द्रिय क्षमताएं पृष्ठभूमि एवं आधार
    • चमत्कार बनाव परामनोविज्ञान
    • पूर्वाभास एवं भविष्य कथन—कितना सही, कितना तर्क सम्मत?
    • दूरश्रवण की दिव्य सिद्धि
    • विचार शक्ति की भौतिक अभिव्यक्ति
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Books - अतीन्द्रिय सामर्थ्य संयोग नहीं तथ्य

Media: TEXT
Language: HINDI
SCAN TEXT


विचार शक्ति की भौतिक अभिव्यक्ति

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 4 6 Last
दुनिया को जैसी कुछ हम देखते हैं वस्तुतः वह वैसी ही है उसमें सन्देह की पूरी-पूरी गुंजायश है। यदि हमारी आंखों की वर्तमान क्षमता में थोड़ा-सा अन्तर होता और वे इन्फ्रारेड किरणों को देख पातीं तो दुनिया इससे बिलकुल भिन्न प्रकार की दीखती जैसा कि अब हमें दीख पड़ती है। प्राणि-जगत के विभिन्न प्राणी अपनी इन्द्रिय शक्ति के सहारे अपने सम्पर्क में आने वाले पदार्थों और प्राणियों के बारे में मत निर्धारित करते हैं। यह अनुभूतियां एक से दूसरे को इस प्रकार होती हैं जिसमें परस्पर तनिक भी समानता नहीं रहती। दीमक के लिए तीतर साक्षात यमराज है पर बाज के लिए वह चलते फिरते स्वादिष्ट भोजन के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। ऊंट नीम की पत्तियों को स्वाद पूर्वक खाता है किन्तु हमें वे कड़ुई लगती हैं। रासायनिक विश्लेषण से नीम का सार तत्व एक ऐसा रसायन है जिसे विभिन्न प्राणियों की जिह्वा विभिन्न प्रकार के स्वादों में अनुभव करेगी। इसी प्रकार अन्य इन्द्रियों की संरचना के आधार पर वस्तुओं की तथा प्राणियों की उपस्थिति की चित्र विचित्र प्रतिक्रियाएं होती हैं। इसमें मस्तिष्क की बनावट और प्राणी की वंश परम्परा गत संचित अनुभूतियां भी बहुत बड़ा कारण हैं। विज्ञानी रेनाल्ड के अनुसार यह दृश्य संसार परमाणुओं की धुलि का उड़ता हुआ अन्धड़ मात्र है। कणों के इकट्ठे होने और बिखरने से विभिन्न पदार्थ बनते बिगड़ते रहते हैं। प्राणी किस वस्तु को किस रूप में समझे और उनसे क्या अनुभूति उपलब्ध करें यह पदार्थ के ऊपर नहीं, जीव धारियों की अपनी संरचना पर निर्भर है। संसार का असली रूप और प्रभाव क्या है यह जानना असंभव है क्योंकि हमारी जानकारी जिन इन्द्रियों पर निर्भर है वे स्वयं ही एक विशिष्ट प्रकार की हैं और जैसी कुछ वे हैं उनका ज्ञान भी उसी आधार पर बनता है।
आंखों की उपयोगिता से इन्कार नहीं किया जा सकता। उनकी प्रामाणिकता भी माननी पड़ती है। प्रत्यक्ष दर्शन की बात सही मानी जाती है। इतने पर भी यह नहीं कहा जा सकता कि आंखें जो कुछ देखती हैं वह सही होता है। मृग मरीचिका, इन्द्रधनुष, भूत-प्रेत आदि आंखों से दीखने पर भी मिथ्या ही सिद्ध होते हैं। सिनेमा में चलती फिरती तस्वीरों का दीखना आंखों का भ्रम है वस्तुतः वे अचल होती हैं। जिस तेजी से फिल्म घूमती है उतनी तेजी आंखों के ज्ञान-तन्तु मस्तिष्क तक सही सूचना पहुंचा सकने में समर्थ नहीं होते। फलतः फिल्में चलती-फिरती दीखने लगती हैं। जब सामान्य घटना क्रमों के सम्बन्ध में यह बात है तो संसार की—जीवन की वस्तुस्थिति समझने में तो आंखें और भी कम काम करती हैं। भगवान का—आत्मा का—दर्शन दिव्य चक्षुओं से—ज्ञान नेत्रों से ही सम्भव है चर्म चक्षुओं से चेतना तत्व को देख सकना तो दूर भौतिक जगत में प्रत्यक्ष विद्यमान विद्युत प्रवाह, रेडियो विकरण, श्रवणातीत ध्वनियां जैसे तथ्यों को भी नहीं देखा जा सकता सामने प्रस्तुत कितनी ही वस्तुएं खुली आंख से नहीं दीखतीं सूक्ष्मदर्शी यन्त्रों के सहारे ही उनका पता चलता है। टेलिस्कोप सामने के वे दृश्य दिखाता है जो आंखें नहीं देख पातीं।
ज्ञान प्राप्ति के माध्यमों में सुनना और देखना अति महत्वपूर्ण है। मस्तिष्कीय विकास में इन्हीं दो माध्यमों की भूमिका प्रधान है। स्वाध्याय में आंखें और सत्संग में कान ही मस्तिष्क तक ज्ञान का प्रवाह पहुंचाते और उसे सुसम्पन्न बनाते हैं। यों अन्य माध्यमों से भी कई तरह की उपयोगी जानकारियां मिलती हैं, पर प्रधानता इन्हीं दो की है।
भगवान ने दस इन्द्रियां मनुष्य को दी हैं, पर ज्ञान भंडार को भरने में आंख और कान का योगदान जितना काम करता है उतना अन्य सब ज्ञान उपार्जन—साधन मिलकर भी नहीं कर पाते।
यह तो उस अनुभूति की चर्चा हुई जो इन्द्रियगम्य है। लेकिन इससे भी परे बहुत कुछ है जो इन्द्रियातीत है। विचार तरंगों के क्रियाकलापों को इसी श्रेणी में लिया जा सकता है। ये इतने विलक्षण एवं चमत्कारी होते हैं कि सहसा प्रत्यक्षवाद का पक्ष धन विज्ञान उनका विश्वास नहीं कर पाता। किन्तु अतीन्द्रिय बोध पर आधारित ऐसी अनेकों घटनाएं अब इस विधा को विज्ञान की परिधि में प्रतिष्ठा दिला चुकी है।
अप्रत्यक्ष होते हुए भी विचारों की सामर्थ्य एवं प्रभाव प्रत्यक्ष अन्य शक्तियों से कहीं अधिक है। जीवन से उनका घनिष्ठ सम्बन्ध है। विकास अथवा पतन में उनका महत्वपूर्ण योगदान है। परा मनोवैज्ञानिकों के अनुसार भौतिक जगत की चुम्बकीय तरंगों से विचार तरंगों की गति एवं शक्ति असंख्यों गुनी है। जिस विज्ञान के अन्तर्गत विचार तरंगों का स्वरूप एवं प्रभाव ज्ञात होता है उसे योग दर्शन में विचार वैगिकी कहते हैं। तत्व दर्शियों का मत है कि संसार में शुभ एवं अशुभ विचार तरंगों का निरन्तर प्रसारण होता है जिनमें त्रिविधि गुण विकार मिश्रित होते हैं। जिस प्रकार प्रकाश तरंगों में तीव्रता, तरंग दैर्ध्य तथा आवृत्ति होती है उसी प्रकार विविध तरह की विचार तरंगों में विविध प्रकार की तीव्रता, तरंग दैर्ध्य एवं आवृत्ति होती है। वे सूक्ष्म अन्तरिक्ष में घूमती रहतीं तथा चैतन्य संसार को प्रभावित करती हैं।
विचार तरंगों का आदान-प्रदान अथवा प्रसारण जिस प्रक्रिया द्वारा सम्पन्न होता है उसे मनोवेत्ता ‘टेलीपैथी’ कहते हैं। इस प्रक्रिया में बिना इन्द्रियों का सहारा लिए विचार तरंगों को एक मन से दूसरे मन तक प्रेषित किया जाता है। इस क्रिया में देश काल सम्बन्धी भौतिक सीमाएं आड़े नहीं आ पातीं। टेलीपैथी के सफल सम्प्रेषण में मन की एकाग्रता का असाधारण महत्व है। उस एकाग्रता का सम्पादन ध्यान के विविध आध्यात्मिक प्रयोगों में अधिक सफलता से होता है। प्रायः भौतिक उपचार इस उपलब्धि में अधिक सफल नहीं हो पाते। कारण कि जिस गहरे स्तर की एकाग्रता विचार सम्प्रेषण के लिए चाहिए वह भौतिक प्रयत्नों से नहीं बन पाती। शरीर एवं बुद्धि से परे जाकर मन की विचार तरंगों को प्राण-शक्ति के माध्यम से घनीभूत कर पाना ध्यान साधना के माध्यम से ही सम्भव हो पाता है।
आणविक जीव विज्ञानी जैम्बिसमोनाड नामक विद्वान ने एक पुस्तक लिखी है—‘चान्स एण्ड नेसेसिटी’ उन्होंने यह रहस्योद्घाटन किया है कि मैटेरियल वर्ल्ड से जुड़ी बायोस्फीयर की स्ट्रैटोस्फीयर जैसी परतों के अतिरिक्त एक सूक्ष्म परत भी मौजूद है। इस परत का उन्होंने नाम—आइडियोस्फीयर रखा है। उनका मत है कि आइडियोस्फीयर में वैचारिक सम्पदा का वह भण्डार छुपा पड़ा है जो सृष्टि से लेकर अब तक मानव मस्तिष्क द्वारा आविष्कृत हुआ है तथा अपनी समर्थता के कारण समय-समय पर मानव जाति के उत्थान पतन का आधार बना है।’’ वे लिखते हैं कि ‘‘सशक्त विचार कभी भी समाप्त नहीं होते—अचेतन ब्रह्माण्ड में विद्यमान रहते हैं। जीवधारियों की तरह विचार भी अपनी वंश-परम्परा में ही यथावत् न बने रहकर विकास के लिए सतत आतुर रहते हैं। समधर्मी विचार आपस में मिलते अनुकूल का चुनाव करते तथा घनीभूत होते रहते हैं।’’
साथ ही इस तथ्य का भी उन्होंने उल्लेख किया है कि जिन विचारों की आवृत्ति जितनी अधिक होती हैं वे उतने ही सक्षम-समर्थ बनते जाते हैं। उनकी तरंगें आइडियोस्फीयर में मौजूद रहती तथा अपनी प्रेरणाएं सम्प्रेषित करती है। वे तरंगें कई प्रकार की होती हैं। सभी सूक्ष्म वातावरण में प्रवाहित होती रहती है। प्रयोग होने अथवा न होने पर उनकी सामर्थ्य बढ़ती है, पर मूलतः समाप्त कभी नहीं होतीं। उनके अनुसार दूरानुभूति पूर्वाभास, विचार सम्प्रेषण, विचार प्रहार, पदार्थों पर विचारों के प्रभाव आदि अतीन्द्रिय शक्तियों के मूल में ये विचार तरंगें ही होती हैं। अभ्यास द्वारा सघन कर केन्द्रित की हुई तरंगें शक्तिशाली आयडियोस्फियर के माध्यम से अपनी विलक्षणता का परिचय देती रहती हैं। यह प्रक्रिया पूर्णतः विज्ञान सम्मत है। इसमें किसी भी प्रकार का न कोई फ्रॉड है न तुक्का।
अविज्ञान के प्रकटीकरण को ही चमत्कार कहते हैं। वस्तुतः इस संसार में चमत्कार जैसी कोई वस्तु है नहीं प्रकृति के अन्तराल में उसकी सनातन सत्ता इस प्रकार भरी है कि उसमें कमी पड़ने या बढ़ोतरी होने जैसी कोई बात होती नहीं। जो व्यवहार में आता है, जो विदित या प्रकट है, वही सामान्यतया दृष्टिगोचर होता है, पर इस छोटे क्षेत्र से आगे बढ़कर कोई विशेष उपलब्धियां यदि सामने आती हैं तो उन्हें दैवी अनुग्रह या सिद्धि-चमत्कार कहा जाने लगता है। अतीन्द्रिय क्षमताओं के सम्बन्ध में भी यही बात है। उस आधार पर कितने ही कौतुक कौतूहलों के विवरण सामने आते रहते हैं। इन्हें आकस्मिक नहीं समझा जाना चाहिए।
विचार शक्ति की भौतिक अभिव्यक्ति का सर्वप्रथम वैज्ञानिक परीक्षण फ्रांस के काउंट अगेनर डी गेस्परिन ने किया। उन्होंने अपने कुछ वैज्ञानिक मित्रों के साथ कुछ प्रयोग किये। उन्होंने देखा कि कुछ व्यक्ति वस्तुओं को बिना स्पर्श किये एक स्थान पर हटाने की पात्रता रखते हैं। उन्होंने वस्तु को बिना स्पर्श किये हटाने वाली शक्ति को उसी प्रकार नापा जैसे भौतिक विज्ञानी गुरुत्वाकर्षण शक्ति को नापते हैं। अभी तक किसी भी वस्तु अथवा व्यक्ति के हवा में उड़ने की घटना को जो कि गुरुत्वाकर्षण शक्ति के सिद्धान्त के प्रतिकूल है, एक पारलौकिक और दैवी शक्ति के हस्तक्षेप द्वारा ही सम्भव माना जाता था। किन्तु डी गेस्परिन इस कार्य में कोई अन्य बुद्धि संगत मर्म होने की सम्भावना को मानते थे। उनका तर्क यह था कि यह कार्य मानव अपनी आत्म शक्ति के द्वारा भी असम्भव को सम्भव बनाते हुए कर सकता है।
डी गेस्परिन की रिपोर्ट सन् 1894 में प्रकाशित हुई और इसके एक वर्ष बाद ही जिनेवा के प्रोफेसर ड्यूरी ने भी अपने शोध का विवरण प्रकाशित किया। उनके परिणाम भी गेस्परिन से मिलते-जुलते थे। उन्होंने बताया कि कोई अज्ञात शक्ति इसमें कार्य करती है इसे अतीन्द्रिय अथवा आत्मिक शक्ति कहा जा सकता है तदन्तर प्रोफेसर सर विलियम क्रुक्स ने इस पर अनुसन्धान किया। उनकी विद्वता की साख थी और वे रायल सोसायटी के फेलो के गरिमामय पद पर भी थे अतः उन्हें अपने अनुसन्धान से सम्बन्धित प्रयोगों को 1971 की तिमाही पत्रिका ‘‘जनरल ऑफ साइन्स’’ में प्रकाशित करवाना सम्भव हो गया उन्होंने डेनियल हुंगाहोम जो कि इन अज्ञात शक्तियों का माध्यम था के प्रयोगों का कई बार सफल परीक्षण किया और देखा कि वह कितनी सरलता से बिना स्पर्श किए किसी वस्तु को एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरित कर देता है।
एक बार अन्य वैज्ञानिक के सामने क्रुक्स के घर पर एक प्रयोग किया गया इसमें तार के एक पिंजड़े में एक आकार्डियन रखा गया। पिंजरे में केवल आकार्डियन को छुआ भर जा सकता था। और उसकी चाबियों तक हाथ पहुंचा नहीं सकता था। होम के हाथ की गतिविधियों को सब दर्शक देख सकते थे। इन दर्शकों में कई मूर्धन्य भौतिक शास्त्री और वकील भी थे। थोड़ी देर में वह आकार्डियन अपने आप हिलने लगा और थोड़ी देर बाद ध्वनि निकलने लगी। फिर लय और स्वरबद्धता के साथ एक के बाद दूसरे क्रम से कई गीतों की ध्वनियां बजीं। साधारणतः कोई भी धुन बिना उसकी चाबी को चलाये निकालना असम्भव ही होती है किन्तु सबने आश्चर्य ये देखा कि वाद्य बड़ी मधुर ध्वनि निकाल रहा है। इसके बाद सबके आश्चर्य में और भी वृद्धि तब हुई जब सबने देखा कि आकार्डियन को छूने वाले हाथ को भी पिंजरे में से होम ने निकालकर पास में बैठे एक अन्य व्यक्ति के हाथ में दे दिया और आकार्डियन उसी प्रकार ध्वनित होता रहा। इस प्रयोग में किसी अन्य कृत्रिम दूर सम्प्रेषण माध्यम को तो प्रयुक्त नहीं किया गया है, यह पहले ही परख लिया गया था।
एक अन्य महत्वपूर्ण प्रयोग के बारे में क्रूक्स ने लिखा है कि एक भारी भार तौलने की मशीन के बोर्ड के एक सिरे को छू भर देने से होम उसके वजन को अधिक अथवा कम करके दिखा देने की पात्रता रखता था जबकि उस मशीन पर स्वयं क्रुक्स के चढ़ने पर उस पर बहुत थोड़ी प्रतिक्रिया हुई। केवल छूने भर से वह भारी मशीन कैसे कम ज्यादा वजन बना सकी यह एक रहस्य ही था। आत्म शक्ति का जड़ पदार्थ को प्रभावित करने वाला वैज्ञानिकों को स्तम्भित करने वाला यह एक सफल प्रयोग था।
भारतीय योग शास्त्रों में स्थूल नेत्रों के अतिरिक्त एक तीसरे सूक्ष्म नेत्र का उल्लेख भी मिलता है, जिसे आज्ञाचक्र कहते हैं। इसका स्थान दोनों ध्रुवों के बीच में बताया जाता है। ध्यान साधना के समय यहीं दृष्टि केन्द्रित करने का निर्देश भी विभिन्न शास्त्रों में मिलता है। इस केन्द्र में संसार की स्थूल और सूक्ष्म परिस्थितियां जानने समझने की ही नहीं वस्तुओं और व्यक्तियों को प्रभावित करने की भी क्षमता है। इतना ही नहीं वातावरण में व्यापक परिवर्तन भी इस केन्द्र के उपयोग द्वारा संभव बताया गया है। दूरदर्शन, परोक्ष दर्शन, तो उसकी आरंभिक कला है। एक्स-किरण एवं लेसर किरणें जिस प्रकार ठोस पदार्थों में पार हो जाती हैं, वे पदार्थ उसमें कोई बाधा नहीं पहुंचाते और वह आंखों से न दिखाई देने वाली भीतरी स्थिति का भी चित्र खींच कर रख देती है उसी प्रकार आज्ञाचक्र की संकल्प किरणें दूर अदृश्य को तमाम अवरोधों बाधाओं के बाद भी जान लेती हैं। इस माध्यम से न केवल पदार्थों को देखने का प्रयोजन पूरा होता है वरन् जीवित प्राणियों की मनःस्थिति को भी समझ पाना संभव हो जाता है। आज्ञाचक्र द्वारा मात्र देखना समझना ही संभव नहीं होता अपितु उसकी क्षमता दूसरों को भी प्रभावित और परिवर्तित कर सकती है।
***
*समाप्त*
First 4 6 Last


Other Version of this book



अतींद्रिय सामर्थ्य संयोग नहीं तथ्य
Type: SCAN
Language: HINDI
...

अतीन्द्रिय सामर्थ्य संयोग नहीं तथ्य
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books



गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Pragya Puran Stories -2
Type: TEXT
Language: ENGLISH
...

Pragya Puran Stories -2
Type: TEXT
Language: ENGLISH
...

Pragya Puran Stories -2
Type: TEXT
Language: ENGLISH
...

Pragya Puran Stories -2
Type: TEXT
Language: ENGLISH
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Articles of Books

  • अतीन्द्रिय क्षमताएं पृष्ठभूमि एवं आधार
  • चमत्कार बनाव परामनोविज्ञान
  • पूर्वाभास एवं भविष्य कथन—कितना सही, कितना तर्क सम्मत?
  • दूरश्रवण की दिव्य सिद्धि
  • विचार शक्ति की भौतिक अभिव्यक्ति
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj