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Books - देखन मे छोटे लगे घाव करे गंभीर भाग-2

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नारी का शील-राष्ट्र की सम्पत्ति

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कैसोविया गणराज्य के एक बड़े नगर गुइनपापर में चार व्यक्तियों को एक स्त्री के साथ बलात्कार करने के मामले में मृत्युदंड की सजा दी गई। इस मुकदमे की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि किसी भी वकील ने इस मुकदमे की पैरवी करना स्वीकार नहीं किया। सुनवाई कुल चार दिन हुई और पांचवे दिन निर्णय देकर छठवें दिन चारों अपराधियों को निर्णयानुसार शूली पर चढ़ा दिया गया।
इस्तगासे के अनुसार 19 वर्षीय युवती मेट्रन बाविना किसी काम से बाजार जा रही थी। विद्यालय और सड़क के बीच थोड़ा फासला पड़ता था, वहीं अभियुक्तों ने उसे पकड़ लिया तथा बंदूक दिखाकर उसे डराया और उसके साथ बलात्कार किया। तुरंत बाद ही चारों अभियुक्तों को हिरासत में ले लिया गया। युवती की शिनाख्त के अतिरिक्त कई अन्य प्रत्यक्ष प्रमाण थे, जिनके कारण सभी चारों बदमाश ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया।
जब मामला अदालत में लाया गया, उस समय सर्वप्रथम आदर्श उपस्थित किया एडवोकेट संघ ने, जिसकी तुरंत बैठक की गई। बैठक के अध्यक्ष की इस अपील पर कि जहां तक अन्य सामाजिक मामले हैं, उनमें थोड़ी-बहुत असमानता हो सकती है, पर स्त्रियों की सुरक्षा और उनके शील की रक्षा सारे समाज के लिए एक-सी है। हम यह कभी सहन नहीं कर सकते कि जिन स्त्रियों के चरित्र के कारण हम पुरुषों का भाग्य और चरित्र निर्मित होता है, उनको लोग बंदूक से डराकर पथभ्रष्ट किया करें। यह प्रत्येक व्यक्ति के साथ विश्वासघात है, इसलिए ऐसे प्रत्येक दुराचरणशील व्यक्ति को कभी भी माफ नहीं किया जाना चाहिए। हमें ऐसे तत्वों को दंड दिलाने में मदद करनी चाहिए। सभी वकीलों की राय एक थी। यह वस्तुतः प्रबुद्ध व्यक्तियों की विवेकशीलता की विजय थी। यदि अन्य अच्छे लोग भी इसी तरह संगठित होकर बुराइयों से प्रतिरोध करें, तो बुराइयों के अंत होने पर पूर्ण विश्वास किया जा सकता है।
अपराधियों को जब पहले दौर पर ही सहयोग न मिला तो अभियुक्त बुरी तरह घबड़ा गये। सामाजिक अपराधों में जिनकी प्रवृत्ति होती है, वे लोग वास्तव में अपने विकास की सामग्री भी समाज से ही पकड़ते हैं। इस दिशा में कड़ाई बरती जाये और अपराध, चाहे वह बलात्कार के मामले का हो अथवा चोरी का, उसको किसी प्रकार का समर्थन और सहयोग न दिया जाये, तो अभी संसार में सब जगह इतनी व्यवस्था है कि बुरे लोगों को दंड मिले बिना न रहे।
वकील न मिले तो जनता में अपराधियों को जो सहयोग करने वाले तत्व थे, उनकी भी हिम्मत टूट गई और एक भी गवाह या सबूत अपराधियों को ढूंढ़े न मिला। लोकमत वकीलों के निर्णय से प्रभावित होकर अपराधियों के विरुद्ध हो चुका था। जजों पर भी इस वातावरण की प्रत्यक्ष प्रतिक्रिया हुई। इस मामले के लिए तीन जजों की जूरी तुरंत फैसले के लिए बैठाई गई। उसने भी अपना कठोर रवैया अपनाया। मौत की सजा का निर्णय सुनाते हुए विद्वान् जजों ने बड़ा उपयुक्त न्याय किया और लिखा—‘‘नारी का शील सारे देश की शील और सम्पत्ति है। जो उसका अपहरण करता है, उसे देशद्रोही की कोटि में रेखा जा सकता है। इसलिए जो सजा राष्ट्र-द्रोह करने वाले को मिलनी चाहिए, उससे कम इन अपराधियों को नहीं। मामले की सुनवाई से अपराध सिद्ध हो गया है, इसलिए चारों अभियुक्तों को फांसी की सजा दी जाती है।’’
इस मामले के तुरंत बाद व्यभिचार के मामलों का औसत कैसोविया में एकदम गिर गया है। हमें भी यह सोचना चाहिए कि क्या भारतवर्ष में भी ऐसा कोई प्रयोग संभव है? क्योंकि इन दिनों यहां बुरे लोगों की संख्या तेजी से बढ़ रही है।
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