
युग ने आज पुकारा
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युग ने आज पुकारा
युग ने आज पुकारा तुमको, ओ भारत की ललना।
दिखला दो तुमको भी आता, है इतिहास बदलना॥
युग- युग में तुमने ही बहनों, जौहर थे दिखलाये।
देश धर्म संस्कृति के पावन, ध्वज नभ तक पहुँचाये॥
शौर्य स्वरूपा शक्तिदायिनी, तुम्हीं प्रेरणा नर की।
थी तुम ही पर्याय विजय की, और सफलता स्वर की॥
सीखा तुमने तूफानों में, निर्भय होकर बढ़ना॥
क्यों भूली ओ गौरव गरिमा, बिसराई निज क्षमता।
उस गौरव से आज पतन की, हो सकती क्या समता॥
भूल गई अध्याय शौर्य की, शक्ति बनी असहाय है।
तनिक खोलकर आँख देख लो, दुर्गति कैसी हाय है॥
बहुत ठोकरें खाली अब तो, सीखो जरा सम्भलना॥
आज सिसकती मानवता ने, फिर से तुम्हें निहारा।
नये सृजन की नई चुनौती, ने तुझको ललकारा॥
कर्मक्षेत्र के प्रांगण में निज, कौशल अब दिखलाओ।
जन- जन में शुचि भावों की तुम, पावन ज्योति जलाओ॥
चाहे शूलों में भी तुमको, पड़े अनवरत चलना॥
आया है संकल्प पर्व यह, तुम इतना तो व्रत लो।
हरने को युग पीर जरा, क्षमताओं के अक्षत लो॥
नहीं बेटियाँ पीछे होंगी, भारत माँ का यह प्रण है।
परिवर्तन का अरे यही तो, दुर्लभ अद्भूत क्षण है॥
लेकर क्रांति पताका कर में, अग्रदूत तुम बनना॥
युग ने आज पुकारा तुमको, ओ भारत की ललना।
दिखला दो तुमको भी आता, है इतिहास बदलना॥
युग- युग में तुमने ही बहनों, जौहर थे दिखलाये।
देश धर्म संस्कृति के पावन, ध्वज नभ तक पहुँचाये॥
शौर्य स्वरूपा शक्तिदायिनी, तुम्हीं प्रेरणा नर की।
थी तुम ही पर्याय विजय की, और सफलता स्वर की॥
सीखा तुमने तूफानों में, निर्भय होकर बढ़ना॥
क्यों भूली ओ गौरव गरिमा, बिसराई निज क्षमता।
उस गौरव से आज पतन की, हो सकती क्या समता॥
भूल गई अध्याय शौर्य की, शक्ति बनी असहाय है।
तनिक खोलकर आँख देख लो, दुर्गति कैसी हाय है॥
बहुत ठोकरें खाली अब तो, सीखो जरा सम्भलना॥
आज सिसकती मानवता ने, फिर से तुम्हें निहारा।
नये सृजन की नई चुनौती, ने तुझको ललकारा॥
कर्मक्षेत्र के प्रांगण में निज, कौशल अब दिखलाओ।
जन- जन में शुचि भावों की तुम, पावन ज्योति जलाओ॥
चाहे शूलों में भी तुमको, पड़े अनवरत चलना॥
आया है संकल्प पर्व यह, तुम इतना तो व्रत लो।
हरने को युग पीर जरा, क्षमताओं के अक्षत लो॥
नहीं बेटियाँ पीछे होंगी, भारत माँ का यह प्रण है।
परिवर्तन का अरे यही तो, दुर्लभ अद्भूत क्षण है॥
लेकर क्रांति पताका कर में, अग्रदूत तुम बनना॥