• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • उच्च-स्वभाव-संस्कार वाली अशरीर आत्माएं—पितर
    • ​​​पितर-सम्पर्क से लाभ ही लाभ
    • आत्मीयों को पितरों के अनुग्रह अनुदान
    • ​​​प्रगति मार्ग के पथ-प्रदर्शक—पितर
    • ​​​लूट-खसोट अनीत-अन्याय की अवरोधक पितर-सत्ताएं
    • ​​​पितर : अदृश्य सहायक
    • ​​​पितरों को श्रद्धा दें, वे शक्ति देंगे
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • उच्च-स्वभाव-संस्कार वाली अशरीर आत्माएं—पितर
    • ​​​पितर-सम्पर्क से लाभ ही लाभ
    • आत्मीयों को पितरों के अनुग्रह अनुदान
    • ​​​प्रगति मार्ग के पथ-प्रदर्शक—पितर
    • ​​​लूट-खसोट अनीत-अन्याय की अवरोधक पितर-सत्ताएं
    • ​​​पितर : अदृश्य सहायक
    • ​​​पितरों को श्रद्धा दें, वे शक्ति देंगे
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Books - पितरों को श्रद्धा दें, वे शक्ति देंगे

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


​​​लूट-खसोट अनीत-अन्याय की अवरोधक पितर-सत्ताएं

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 4 6 Last
भूमिगत विशेषता एवं सम्पदा का निर्माण इस तालमेल के साथ हुआ है कि उस क्षेत्र के निवासी अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करते रह सकें। अन्न, फल और औषधियों के बारे में प्रसिद्ध है कि जहां के जन्मे लोगों को उसी क्षेत्र का उत्पाद अनुकूल पड़ता है द्रुतगामी साधनों से पदार्थों का सुदूर स्थानों तक भेजा जा सकता है, पर प्राणियों की, पदार्थों की संरचना में जो तत्व घुले रहते हैं उनका तालमेल न बैठ पाने से लाभदायक प्रतीत होते हुए भी हानिकारक बैठते हैं। क्षेत्रीयता की बात ऐसे ही कई दृष्टिकोणों के आधार पर बहुत महत्वपूर्ण तथ्य के रूप में सामने आती हैं।

खनिज पदार्थों एवं अन्य प्रकृति सम्पदाओं के सम्बन्ध में भी यही बात है। वे उस क्षेत्र के निवासियों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर वितरित की गई है। उत्तरी ध्रुव के निवासी मनुष्यों और प्राणियों की शारीरिक संरचना तथा उपलब्ध पदार्थ सामग्री को देखते हुए सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि प्रकृति की वितरण व्यवस्था कितनी दूरदर्शितापूर्ण है। खनिज तथा अन्यान्य प्रकृति सम्पदाओं के सम्बन्ध में भी यही बात है।

क्षेत्रीय उपलब्धियों से लाभान्वित होने का प्रथम अधिकार यहां के भूमि पुत्रों का है। इसके बाद अन्यत्र के लोगों को उससे लाभान्वित होने का अवसर मिलना उचित है इसी आधार पर देशों के क्षेत्रीय अधिकारों को मान्यता मिलती रही है। उपनिवेशवाद, साम्राज्यवाद की निन्दा का कारण यही है कि स्थानीय लोगों के लिए दी गई प्रकृति उपलब्धियों का अपहरण अन्यत्र के लोग करते हैं तो उससे अव्यवस्था एवं अनीति का फैलना स्वाभाविक है। ऐसे शोषण अपहरण का जहां विश्व न्याय के आधार पर विरोध होता है वहां ईश्वरीय व्यवस्था भी उसे निरस्त करने में सहायक होती है। प्रकृति प्रतिरोध का परिचय तब अधिक अच्छी तरह देखा जा सकता है जब समर्थों द्वारा असमर्थों के स्वत्वों का अपहरण करने वाली अनीति का आचरण उभरता है।

अमेरिका की भूमि पर मूल अधिकार उस देश के मूल निवासियों का ही माना जा सकता है। वहां की प्रकृति सम्पदा का लाभ भी उन्हीं को मिलना चाहिए। गोरे लोगों ने बलपूर्वक उस भूमि पर अधिकार कर तो लिया है, पर प्रकृति वहां के मूल निवासियों के पक्ष में ही अपना समर्थन देती है और लुटेरों को असफल बनाने वाले आधार खड़े करती रहती है। इस सम्बन्ध में वहां के स्वर्ण क्षेत्रों में गोरों की असफलता विशेष रूप से विचारणीय है।

अमेरिका के ऐरिजेना प्रान्त में कुछ खाई खड्डों से भरे सघन वन प्रदेश ऐसे हैं जो न केवल अगमय और डरावने हैं वरन् उनमें रहस्य भरी विशेषताएं भी पाई जाती हैं। यह रहस्य अलौकिक वादियों और वैधानिक शोधकर्ताओं के लिए एक पहेली बनी हुई है।

कहा जाता है कि उस प्रदेश में या तो आसमान से सोने के धूलिकण बरसते हैं या फिर पहाड़ उसे अदृश्य लावे की तरह उगलते हैं। जो हो उस क्षेत्र की पहाड़ियों को सोने के पर्वत का नाम दिया जाता है और अनेकों उस सम्पदा को सहज ही प्राप्त कर लेने के लालच में उधर जाते भी रहते हैं।

सम्पत्ति का लोभ जितना आकर्षक है उतना ही वहां के प्रहरी प्रेत पिशाचों के आतंक का भय भी बना रहता है। इस उपलब्धि के लिए अब तक सहस्रों दुस्साहसी उधर गये हैं। इनमें से अधिकांश को अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ा है। जो किसी प्रकार जीवित लौट आये हैं उनने सोने के अस्तित्व का तो आंखों देखा विवरण सुनाया है, पर साथ ही यह भी कहा है कि वहां अदृश्य आत्माओं का आतंक असाधारण है। वे सोना बटोरने के लालच से जाने वालों का बेतरह पीछा करती हैं और यदि भाग खड़ा न हुआ जाय तो जान लेकर ही छोड़ती हैं।

भूमिगत विशेषताओं का अन्वेषण करने जो लोग पहुंचे हैं उन्होंने इस क्षेत्र को रूस के साइबेरिया की ही तरह रेडियो किरणों से प्रभावित पाया है। रूसी वैज्ञानिक साइबेरिया के कई क्षेत्रों को किसी अज्ञात विकरण से प्रभावित मानते हैं और कहते हैं कि कभी अन्तरिक्ष या धरती से यहां अणु विस्फोट जैसी घटना घटी है। ऐसा किसी उल्कापात से भी हो सकता है। अमेरिकी लोग भी इस क्षेत्र की तुलना लगभग उसी रूसी प्रदेश से ही करते हैं। यहां एक 600 फुट गहरा और एक मील लम्बा खड्ड है। समझा जाता है कि यह किसी उल्कापात का परिणाम है। उस क्षेत्र में से किसी उद्देश्य से जाने वाले व्यक्तियों पर सम्भवतः विद्यमान रेडियो विकरण ही आतंकित करने जैसा प्रभाव उत्पन्न करता होगा और उस अप्रत्याशित प्रभाव को भूत-पलीतों का आक्रमण मान लिया जाता होगा।

रहस्यवादियों का मत है कि योरोपियनों के इस क्षेत्र पर कब्जा जमाने से पहले आदिवासी लोग रहते थे। इनमें से अपैंची कबीला मुख्य था। उसके साथ गोरों की झड़पें होती रहीं और इन मार्ग के कंटकों को हटाने के लिए अधिकर्त्ताओं द्वारा क्रूरतापूर्ण नर संहार किये जाते रहे। इन मृतकों की आत्मायें ही प्रतिशोध से भरी रहती हैं और जो इधर से गुजरता है उस पर टूट पड़ती हैं।

कारण क्या है, यह तो अभी ठीक तरह नहीं समझा जा सका, किन्तु सोना बरसने और आतंक छाये रहने की बात सच है। गाथा और किम्वदन्तियां तो बहुत दिनों से प्रचलित थीं। वहां जाने और कुछ कमाकर लाने की बात भी बहुतों ने सोची, पर साहस सबसे पहले पाइलीन वीवर ने किया। वह अपने कुछ साथियों के साथ आवश्यक सामान लेकर गया और उस क्षेत्र में डेरा लगाया। दूसरे साथी तो सो गये, पर बीवर को नींद नहीं आई। वह अकेला उठा और कौतूहल में दर तक चला गया। इस जगह सोने के टुकड़े पाये। ध्यान से देखा तो वे शत प्रतिशत सोने के थे। उसने बहुत से कड़े जमा कर लिए और जितना वजन उठ सकता था उतना साथ लेकर वापिस लौटा। लौटते ही उसकी खुशी आतंक में बदल गई। डेरा जला हुआ पड़ा था और वहां सामान्यतया मनुष्यों की राख भर बनी हुई थी। आंख उठाकर पर्वत की चोटी को देखा तो वहां से गिद्धों के झुण्ड की तरह भयानक छायाएं उसकी ओर बढ़ती आ रही दिखाई पड़ी। डर के मारे वह बेहोश हो गया। बहुत समय बाद जब होश आया तो किसी प्रकार भाग चलने का उपाय निकाला और जैसे-तैसे घर वापिस आ गया।

इस घटना की चर्चा तो बहुत हुई, पर दुबारा उधर जाने का साहस किसी में भी नहीं हुआ। इसके 16 वर्ष बाद मैक्सिकी का एक दुस्साहसी पैरलटा एक मजबूत और साधन सम्पन्न जत्था लेकर उधर गया। उस दल के प्रायः सभी व्यक्ति उसी प्रयास में मर गये केवल एक ही उनमें से जीवित लौटा। उसने सोने की उपस्थिति और मंडराने वाली विपत्ति के जो विवरण सुनाये उसने कौतूहल तो बहुत बढ़ाया, पर नये जत्थों के उधर जाने का साहस उत्पन्न नहीं किया।

छुटपुट रूप से अनेकों व्यक्ति एकाकी अथवा टुकड़ियां बनाकर उधर जाते रहे, किन्तु किसी को जान गंवाने के अतिरिक्त और कुछ हाथ नहीं लगा। इसके बाद अमेरिका का ख्याति नामा डॉक्टर लवरेन कोमली का अभियान था। वे बहुत तैयारी और चर्चा के साथ गये थे। साधनों और जानकारी की जितनी आवश्यकता थी वह उसने जुटा ली थी। साथी बीच में से ही लौट आये और मायाविनी छात्राओं के आतंक के भयानक विवरण सुनाते रहे। लबरेन ने खोज की प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था। वे अकेले ही बढ़ते गये। किन्तु सोने के स्थान पर पागलपन साथ लेकर वापिस लौटे। कुछ दिन भयभीत विक्षिप्तता के शिकार रहकर वे भी मौत के मुंह में चले गये।

होनोलूलू के व्यवसाइयों का एक जत्था स्वर्ण सम्पदा को प्राप्त करने के उद्देश्य से उधर गया और आस्ट्रेलिया के युवक फैज ने रहस्यों पर से पर्दा उठाने की ठानी। जर्मनी के इंजीनियरों का एक दल वालेज के नेतृत्व में बड़े दमखम के साथ उधर पहुंचा। वालेज अपने पूर्ववर्ती शोधकर्ताओं की तुलना में अधिक चतुर था उसने उस क्षेत्र की एक आदिवासी युवती को ललचा कर विवाह कर लिया और उसकी सहायता से स्वर्ण भण्डार के स्थान तथा छायाओं के भेद जानने का प्रयत्न करने लगा। छायाओं को यह पता लग गया। उनने युवती का अपहरण कर लिया और वाल्ज की जीभ काट ली। इसी कष्ट में उसकी मृत्यु हो गई।

उसकी डायरी किसी प्रकार साथियों को मिल गई। उसके विवरणों से पता चलता है कि उसने स्वर्ण स्रोतों का पता लगा लिया था। भूमिगत कई रहस्यमय स्थान देखे, ढूंढ़ी और प्रेतात्माओं को चकमा देकर बच निकलने को सुरंगें में सफल होता रहा। इतना सब उसकी आदिवासी पत्नी की सहायता से ही सम्भव हो सका, किन्तु दुर्भाग्य ने उसका पीछा छोड़ा नहीं और अपनी जान गंवा बैठा। यह प्रयत्न सन् 1891 का है। इसके बाद अन्तिम प्रयत्न सन् 1959 में हुए। स्टेनलोफनेल्ड और फरेश नामक दो व्यक्तियों ने संयुक्त प्रयत्न नये सिरे से सोना पाने के लिए किये। उसमें पूर्ववर्ती कठिनाइयों और सफलताओं को पूरी तरह ध्यान में रखा गया। इस बार की तैयारी अधिक थी। प्रयत्न भी बड़ी पैमाने पर और अधिक दिन चले, पर उसका निष्कर्ष इतना ही निकला कि फरेश प्राणों से हाथ धो बैठा और फर्नेल्ड किसी प्रकार जान बचाकर वापिस लौट जाया। पल्ले कुछ नहीं पड़ा।

इस स्वर्ण अभियान में जितने मृतकों की लाशें मिल सकीं इनके देखने से एक ही निष्कर्ष निकला कि वे सभी मौतें शरीर से खून चूस लिये जाने के कारण हुईं। इनमें से किसी को भी देह में कहीं छेद नहीं पाये गये और न कहीं कपड़ों पर या जमीन पर रक्त बिखरा हुआ ही पाया गया फिर यह रक्त चूसने की क्रिया किसके द्वारा किस प्रकार की गई यह अभी भी उतना ही रहस्यमय बना हुआ है जितना पहले कभी था।

लगता है सूक्ष्म जगत में ऐसे किन्हीं अदृश्य प्रहरियों की चौकीदारी भी विद्यमान है जो न्याय का समर्थन और लूट-खसोट का प्रतिरोध करने के लिए अपनी जागरूकता का परिचय देते रहते हैं। सम्भवतः उस क्षेत्र की स्वर्ण सम्पदा की रखवाली वे ही करते हों। यह भी अनुमान लगाने की गुंजाइश है कि जिनके स्वत्वों का अपहरण किया गया, जिन्हें निर्दयतापूर्वक मारा गया उनकी आत्माएं प्रतिशोध की भावनाएं भरे हुए उस इलाके में निवास करती हों और उनकी रोकथाम से मुफ्त का धन पाने वालों को असफल रहना पड़ता हो। आत्माओं द्वारा न्याय के संरक्षण और अनौचित्त का प्रतिरोध एक तथ्य है। साथ ही प्रकृति व्यवस्था में स्थानीय भूमि पुत्रों के लाभान्वित होने की जो नीति मर्यादा है उसका उल्लंघन में ऐसे कारण उत्पन्न कर सकता है जैसे कि अमेरिका में स्वर्ण उपलब्ध करने वालों को भुगतने पड़े हैं।

सूक्ष्म-शक्तियों के उभार के विलक्षण परिणाम

मनःशास्त्री फ्लैमैरियन का कथन है—मानवी विद्युत की एक गहरी परत ओजस् है, इसकी समुचित मात्रा उपलब्ध हो तो मनुष्य सूक्ष्म अतीन्द्रिय शक्तियों से सम्पन्न हो सकता है। मानवी विद्युत पर विशेष खोज करने वाले विक्टर ई. क्रोमर का कथन है—मनःशक्ति को घनीभूत करने की कला में प्रवीणता प्राप्त करके उसे किसी दिशा विशेष में प्रयुक्त किया जा सकता है। यह इतना बड़ा शक्ति स्रोत है कि मानवी व्यक्तित्व का कोई भी पक्ष उस प्रयोग से अधिक प्रखर और उज्ज्वल बनाया जा सके। यह प्रयोग यदि अपनी सूक्ष्म शक्तियां तलाश करने और उभारने पर केन्द्रित किया जा सके तो अतीन्द्रिय चेतना के क्षेत्र में आशाजनक सफलता मिल सकती है।

बहाई धर्म के संस्थापक महात्मा बाव को प्राचीन परम्पराओं से भिन्न स्थापनाएं करने के कारण तत्कालीन शासन ने मृत्यु दण्ड सुनाया, उन्हें 9 जुलाई 1850 को प्रातः 10 बजे सरेआम तबरीज के मैदान में गोली से उड़ाया जाना था। दस हजार दर्शक उपस्थित थे। महात्मा बाव और उनके एक अनुयायी को रस्सों से कसकर अधर में लटकाया गया और ढाई-ढाई सौ सैनिकों की तीन टुकड़ियां भरी हुई बन्दूकें लेकर खड़ी की गईं। एक टुकड़ी एक साथ ढाई सौ गोली दागे, यदि फिर भी अपराधी बच जायें तो दूसरी टुकड़ी अपनी बारी पर गोलियां चलाये और इस पर भी कोई कमी रह जाय तो तीसरी टुकड़ी भी अपने निशाने लगाये। 750 गोलियों में से एक भी न लगे ऐसा नहीं हो सकता था। उन दिनों मृत्यु दण्ड का प्रायः यही रिवाज था।

व्यवस्था के अनुसार गोलियां बराबर दागी गईं पर 750 में एक भी निशाना नहीं लगा और महात्मा बाव अपने अनुयायी सहित साफ बच गये।

यह घटना वैसी किम्बदन्ती नहीं है जैसी कि आमतौर से लोग अपने प्रिय देवता या गुरु का महत्व बढ़ाने के लिए गढ़ लिया करते हैं और उसे फैलाकर अन्य लोगों को आकर्षित करते हैं।

इंग्लैण्ड की सरकार के विदेशी विभाग में सार्वजनिक दफ्तर में इस घटना की साक्षी में एक महत्वपूर्ण दस्तावेज मौजूद है। यह 22 जुलाई 1850 का लिखा हुआ है और इसका रिकार्ड नम्बर F.O. 60।153।88 है। यह महारानी विक्टोरिया के विशेष प्रतिनिधि प्लेनीपोन्टेन्शियरी के प्रधान सर जस्टिनशील का लिखा हुआ है। उसमें इस घटना की प्रत्यक्षदर्शी पुष्टि की गई है।

समर्थ महात्मा अपनी सूक्ष्म-शक्तियों का प्रयोग—कौतूहलवर्धक और चमत्कार-प्रदर्शन के लिए भले ही कभी भी न करें, किन्तु अत्याचार-अन्याय के विरोध में वे निश्चय ही आगे आते हैं। यही बात अदृश्य सूक्ष्म-शक्तियों, पितर-सत्ताओं के बारे में भी है।

परमात्म-सत्ता के संकेतों को समझने वाले, वे शरीरधारी महामानव हों, या अशरीरी सूक्ष्म सत्ताएं अन्याय-अधर्म के उन्मूलन के लिए अपनी शक्तियों का उसी प्रकार प्रयोग करते हैं, जिस प्रकार वह सर्वोच्च सत्ता स्वयं करती है। इस क्रम में जब सूक्ष्म अतीन्द्रिय शक्तियों द्वारा यह कार्य होता है, तो लोग इसे अस्वाभाविक चमत्कार समझ बैठते हैं। परन्तु वह वस्तुतः सहज नियम ही है।

पितर-सत्ताओं में तो यह सामर्थ्य सीमित ही होती है। किन्तु इसका यह अर्थ नहीं कि अनीति-अन्याय का विरोध उस एक सीमा तक ही हो सकता है जो पितरों की सामर्थ्य-सीमा है। अपितु पितर तो छोटे पैमाने पर ही यह भूमिका निभाते हैं। उससे बहुत बड़ी, विस्तृत और विशाल भूमिका देव-सत्ताओं तथा इन सबकी उद्गम सर्वोच्च सत्ता की है। धर्म के संरक्षण और अधर्म-अनीति-अनाचार के निवारण की ईश्वरीय प्रक्रिया ब्रह्माण्ड व्यापी है। वह हर एक देश-काल में चलती रहती है। कभी भी रुकती नहीं। अन्यायी कौरव भरी सभा में द्रौपदी का चीरहरण करने में तुले थे। उस अनीति का प्रतिकार कोई नहीं कर रहा था। भीष्म, द्रोण जैसे विद्वान नीतिवेत्ता सिर झुकाए बैठे थे। वह असहाय अबला लूटी जा रही थी। परम सत्ता से यह अन्याय नहीं देखा गया और उसने सहायता कर उसकी लाज बचायी।

दमयन्ती बीहड़ वन में अकेली थी, व्याध उसका सतीत्व नष्ट करने पर तुला था। सहायक कोई नहीं। उसकी नेत्र ज्योति में से भगवान प्रकट हुए और व्याध जलकर भस्म हो गया। दमयन्ती पर कोई आंच नहीं आई। प्रहलाद के लिये उसका पिता ही जान का ग्राहक बना बैठा था, बच कर कहां जाय? खम्भे में से नृसिंह भगवान प्रकट हुए और प्रहलाद की रक्षा हुई। घर से निकाले हुए पाण्डवों की सहायता करने, उनके घोड़े जोतने भगवान स्वयं आये। नरसी महता की सम्मान रक्षा की तरह ही मानी। ग्राह के मुख से गज के बन्धन छुड़ाने के लिये प्रभु नंगे पैरों दौड़ आये थे।

मीरा को विष का प्याला भेजा गया और सांपों का पिटारा, पर वह मरी नहीं। न जाने कौन उनके हलाहल को चूस गया और मीरा जीवित बची रही। गांधी को अनेक सहयोगी मिले और वे दुर्दान्त शक्ति से निहत्थे लड़ कर जीते। भगीरथ की तपस्या से गंगा द्रवित हुई और धरती पर बहने के लिये तैयार हो गई शिवजी सहयोग देन के लिये आये और गंगा को जटाओं में धारण किया, भगीरथ की साथ पूरी हुई। दुर्वासा के शाप से संत्रस्त राजा अम्बरीष की सहायता करने भगवान का चक्र सुदर्शन स्वयं दौड़ा आया। तो समुद्र से टिटहरी के अण्डे वापिस दिलाने में सहायता करने के लिये भगवान अगस्त्य मुनि बनकर आये थे।

सनातन सत्ता तो काल, गति और ब्रह्माण्ड से सर्वथा अतीत है जिस तरह वह प्राचीन काल में थी, आज भी है और उसकी अदृश्य सहायताएं पूर्व से पश्चिम उत्तर से दक्षिण तक आज भी प्राप्त करते रहते हैं। टंग्स्टन तार पर धन व ऋण विद्युत धाराओं के अभिव्यक्त होने की तरह यह ईश्वरीय अनुदान जिन दो धाराओं के सम्मिश्रण से किसी भी काल में प्रकट होते रहते हैं वह श्रद्धा और विश्वास जहां कहीं जब कभी हार्दिक अभिव्यक्ति पाती हैं परमेश्वर की अदृश्य सहायता वहां उभरे बिना नहीं रह सकती। तात्पर्य यही कि अनीति-अन्याय के प्रतिकार के लिए श्रेष्ठ महामानव और सर्वव्यापी सर्वोच्च सत्ता—दोनों ही समय पर आगे आते हैं। उत्कृष्ट संस्कारों वाली पितर सत्ताएं भी अपनी सूक्ष्म शक्तियों द्वारा अनीति की राह में बाधा बनकर तथा पीड़ित के पक्ष में वातावरण निर्मित कर एवं आवश्यकतानुसार प्रत्यक्ष और चमत्कारिक रूप से उसकी सहायता कर—उस अन्याय-अनाचार का सामर्थ्यानुसार प्रतिकार करती हैं। इस तथ्य प्रत्येक सन्मार्गगामी को सदा साहस पूर्वक अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहना चाहिए, साथ ही अदृश्य सत्ताओं के प्रति सदैव श्रद्धा-भाव दृढ़ रखना चाहिए। इन अदृश्य—सत्ताओं में पितर, देव जैसी सूक्ष्म शक्तियां भी आती हैं और सर्वोच्च ब्रह्म सत्ता तो अदृश्य होते हुए भी सर्वव्यापी है ही।
First 4 6 Last


Other Version of this book



પિતૃઓને શ્રદ્ધા આપો, શક્તિ આપશે
Type: SCAN
Language: GUJRATI
...

पितरों को श्रद्धा दें, वे शक्ति देंगे
Type: TEXT
Language: HINDI
...

पितरों को श्रद्धा दें, वे शक्ति देंगे
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books



गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Articles of Books

  • उच्च-स्वभाव-संस्कार वाली अशरीर आत्माएं—पितर
  • ​​​पितर-सम्पर्क से लाभ ही लाभ
  • आत्मीयों को पितरों के अनुग्रह अनुदान
  • ​​​प्रगति मार्ग के पथ-प्रदर्शक—पितर
  • ​​​लूट-खसोट अनीत-अन्याय की अवरोधक पितर-सत्ताएं
  • ​​​पितर : अदृश्य सहायक
  • ​​​पितरों को श्रद्धा दें, वे शक्ति देंगे
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj