
सुख व शान्ति दायिनी गायत्री
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ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य
धीमहि धियो योनः प्रचोदयात् ।।
गायत्री उपासना से मनुष्य की बुद्धि शुद्ध होती है। जिसकी बुद्धि शुद्ध हो जायगी उसके जीवन की अनेक कठिनाइयां सरलता पूर्वक हल होने में देर न लगेगी। दरिद्रता, शत्रुता, बेकारी, बीमारी, मुकदमेबाजी आदि में प्रधान कारण मनुष्य की कुबुद्धि ही होती है। जैसे जैसे मनुष्य की मनोभूमि में उदारता, स्नेह, दया, क्षमता, परिश्रमशीलता, सद्भावना, संयम, नियमितता, मधुर भाषण, उत्साह आदि गुण बढ़ते जाते हैं, वैसे वैसे उसका दरिद्र घटता है, जीवन की ठीक व्यवस्था बनती है, और शत्रुता का विनाश होकर लोगों का सद्भाव एवं सहयोग बढ़ता है। जिसका आहार विहार ठीक होगा उसे बीमारी से छुटकारा पाने में कुछ विशेष समय न लगेगा। गायत्री उपासना में मनुष्य के शरीर और मन में निवास करने वाला ‘‘श्री’’ तत्व बढ़ता है। जिससे उसकी क्रिया, चेष्टा, वाणी, विचार धारा, दृष्टि तथा कल्पना शक्ति ऐसी वृद्धि प्रारम्भ हो जाती है कि सांसारिक व्यवहार में कम से कम हानि उठाकर अधिक से अधिक लाभ प्राप्त करे। माता की कृपा जिसे प्राप्त होती है उसे माता के पास की सभी वस्तुएं सरलता पूर्वक मिल जाती हैं।
माता अपने जिस बालक पर स्नेह करती है उससे उसका कोई दुराव नहीं होता। कुछ भी उससे छिपाती नहीं, और पुत्र की सच्ची आवश्यकता होने पर उसे अपने पास की सभी वस्तुएं दे देती है। अब साधारण माताएं अपने बालकों के साथ ऐसा व्यवहार करती हैं तो अपार करुणा रखने वाली, जगज्जननी महा माया गायत्री अपने बच्चों के अभाव एवं कष्ट दूर करने में संकोच क्यों करेगी? उनके हाथ में सब कुछ है, उनके पास किसी वस्तु की कमी नहीं, फिर उसका पुत्र बनने वाला ही किसी वस्तु से वंचित क्यों रहेगा? गायत्री-उपासना द्वारा जहां आध्यात्मिक लाभ होते हैं वहां ब्याज रूप से सांसारिक अभाव एवं कष्ट भी दूर होते हैं। गेहूं की खेती करने पर धान्य राशि तो प्राप्त होती ही है, साथ ही भूसा एवं घास पात भी मिल जाते हैं। इस प्रकार माता की कृपा से मनुष्य का जहां आत्म कल्याण होता है वहां उसे सांसारिक सुख शान्ति की भी कमी नहीं रहती।
आवश्यकता केवल इस बात की है कि हमारी भावना सच्ची और उपासना विधिपूर्वक हो। माता की कृपा प्राप्त होने में यही दो हेतु मुख्य होते हैं। प्राचीन काल में अनेक साधक ऐसे हुए हैं जो प्रभु की शरण में जाकर सांसारिक ऐश्वर्यों से परिपूर्ण बने हैं। ध्रुव का चरित्र ऐसा ही है, तपोबल से उन्होंने चक्रवर्ती राज्य पाया था। राजा नृग को यद्यपि पीछे अहंकार आने से नष्ट हो गया, पर पहले तो वह तपोबल से सांसारिक वैभव का ही नहीं देवताओं के सम्राट इन्द्र के सिंहासन का स्वामी बन गया था। नरसी भगत की प्रार्थना पर स्वर्ण वर्षा होने की कथा प्रसिद्ध है। निर्धन सुदामा को प्रभु के अनुग्रह से विपुल धन ऐश्वर्य मिला था। ऐसी घटनाएं प्राचीन काल में भी अनेक हुई थीं और अब भी होती हैं। जिस पर सर्व शक्तिमान दिव्य शक्ति का अनुग्रह होगा उसे किसी बात की कमी क्यों रहेगी? वृन्दावन के अनन्य गायत्री उपासक काठिया बाबा केवल काठ की कोपीन लगाकर नंगे रहते थे।
वे प्रतिदिन इतना धन दान पुण्य करते थे कि देखने वालों को दांतों तले उंगली दबानी पड़ती थी। चोरों ने कई बार उन्हें वेरा और कोपीन में सोना छिपा होने की आशा से उनकी तलाशी ली पर वहां कुछ भी प्राप्त न हुआ। इसी प्रकार कुष्टिया (बंगाल) में एक बंगाली महात्मा मौन रहते थे, उनके यहां भी प्रतिदिन सैकड़ों रुपया खर्च होता था। लोग समझते थे कि वे रसायन विद्या से सोना बनाना जानते हैं पर वस्तुतः ऐसा न था। यह गायत्री उपासना की ही एक सिद्धि थी। लछमन गढ़ में एक विश्वनाथ नामक गोस्वामी प्रसिद्ध गायत्री उपासक हुए हैं उनके जीवन का अधिकांश भाग गायत्री उपासना में ही व्यतीत हुआ था। वे स्वयं तो तपस्वी थे इसलिए अपने लिए किसी से कुछ मांगते न थे पर उनका आशीर्वाद सीक के एक गरीब बीदायत परिवार को प्राप्त हो गया। जिससे वह परिवार अत्यन्त ही समृद्धिशाली एवं सम्पन्न बना। इस परिवार के लोग अब तक उन गोस्वामी जी की समाधि पर अपने बच्चों का मुंडन कराते हैं।
कोटा राज्य में खातौली नगर से 7 मील दूर धोंकलेश्वर स्थान पर महात्मा मगनानन्द जी नामक गायत्री के सिद्ध पुरुष रहते थे। उनके अनुग्रह से खातौली की जब्त हुई लाखों रुपये की जागीर सरकार द्वारा पुनः वापिस मिली थी। रतनगढ़ में भूधरमल नामक एक परम नैष्ठिक गायत्री उपासक हुए हैं। ये सम्वत् 1916 में काशी आये और जीवन भर वहीं रहे अपनी मृत्यु की उन्हें पूर्ण जानकारी थी, उनने आषाढ़ सुदी 5 सम्वत् 1982 को अपना मरणोत्सव स्वयं बड़े समारोह पूर्वक मनाया और तब साधना करते हुए सबके सामने शरीर छोड़ा। इनका आशीर्वाद पाने वाले कई बहुत ही सामान्य मनुष्य आज भी करोड़पती सेठ बने हुए हैं। इस प्रकार गायत्री के सच्चे उपासकों का आशीर्वाद भी अनेक बार भगवान की कृपा के समान सुख समृद्धि देने वाले बन जाते हैं। साधक स्वयं साधना करके भी माता का अनुग्रह प्राप्त करके दीनता और दरिद्रता से छुटकारा पाता है।
इसके अनेक उदाहरण मौजूद हैं। वृन्दावन के स्वर्गीय श्री. उड़िया बाबा की प्रेरणा से हाथरस निवासी लाला गणेशीलाल ने 24 लक्ष गायत्री का अनुष्ठान कराया था। उस समय से लाला गणेशीलाल की आर्थिक दशा दिन-दिन ऊंची उठती गई और अब उनकी प्रतिष्ठा तथा सम्पन्नता पहले की अपेक्षा अनेकों गुनी अधिक है। प्रयाग के पास जमुनीपुर ग्राम में रामनिधि शास्त्री नामक एक विद्वान ब्राह्मण रहते थे। वे अत्यन्त निर्धन थे। उन्होंने कई गायत्री पुरश्चरण किये। एक दिन अर्ध रात्रि के समय भगवती गायत्री ने उन्हें बड़े ही दिव्य रूप में दर्शन दिया और कहा कि तुम्हारे इस घर में अमुक स्थान पर स्वर्ण मुद्राओं से भरा घड़ा रखा हुआ है उसे निकाल कर अपनी दरिद्रता दूर करो। पण्डित जी ने घड़ा निकाल कर अपनी दरिद्रता दूर करी। पण्डित जी ने घड़ा निकाला और वे निर्धन से धनपति हो गये। गुजरात के मधुसूदन स्वामी का नाम संन्यास लेने से पूर्व मायाशंकर दयाशंकर पण्ड्या था। वे सिद्धपुर रहते थे। आरम्भ में वे 25 रुपये मासिक के नौकर थे। उन्होंने प्रतिदिन एक हजार से गायत्री जप आरम्भ करके चार हजार तक बढ़ाया।
फलस्वरूप उनकी आशाजनक पद वृद्धि हुई। नौकरी छोड़ने से पूर्व उन्हें 450 रुपये मासिक का रेलवे में उच्च पद मिला हुआ था। इलाहबाद के पं. प्रताप नारायण चतुर्वेदी की नौकरी छूट गई थी। बहुत तलाश करने पर भी कोई जगह न मिली तो उन्होंने अपने पिताजी के आदेशानुसार सवालक्ष गायत्री अनुष्ठान किया। जप समाप्त होने पर उन्हें उसी पानियर प्रेस में पहली नौकरी की अपेक्षा ढाई गुने वेतन की जगह मिली जहां कि पहले उन्हें बार-बार प्रार्थना करने पर भी मना कर दिया गया था। जोधपुर राज्य के एक छोटे गांव में मोड़क मल कंजडीपाल नामक सज्जन बहुत समय पूर्व 12 रुपये मासिक के अध्यापक थे। गायत्री उपासना में उनका बहुत मन रहता था। एक दिन जप करते-करते उन्हें स्फुरणा हुई कि मुझे कलकत्ता जाना चाहिए वहां मेरी आर्थिक उन्नति होगी। वे कलकत्ता गये। कुछ समय तो छोटी मोटी नौकरी करते रहे, फिर उन्हें रुई के व्यापार में भारी लाभ हुआ और थोड़े ही दिन में लखपती बन गये। मानिक चन्द चाचोदिया नामक एक मारवाड़ी व्यापार में घाटा होने के कारण बड़े कर्जदार हो गये थे। दिवालिया होकर अपनी प्रतिष्ठा खोने के भय से उन्होंने गायत्री अनुष्ठान कराया। समय कुछ ऐसा फिरा कि दिन-दिन तीव्र गति से लाभ होने लगा। पिछली खाई ही पूरी तरह नहीं पट गई पहले की अपेक्षा अधिक अच्छी स्थिति में पहुंच गये। ठोरी बाजार के पं. पूजा मिश्र का कथन है कि हमारे पिता पं. देवी प्रसाद जी एक गायत्री उपासक महात्मा के शिष्य थे।
पिता जी की आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी। उनको दुखी देखकर महात्मा जी ने उन्हें गायत्री उपासना बताई। फलस्वरूप खेती में भारी लाभ होने लगा। छोटी सी खेती की विशुद्ध आमदनी से अब हमारी हालत बहुत अच्छी हो गई है और बचत का 20 हजार रुपया बैंक में जमा हो गया है। ऐसी घटनाएं एक नहीं अनेकों हैं। जिनसे यह सिद्ध होता है कि गायत्री उपासक जिस प्रकार अध्यात्मिक सुख शान्ति से भरपूर रहते हैं उसी प्रकार सांसारिक सुखों की भी उन्हें कमी नहीं रहती। सद्बुद्धि और सुमति मिलना करोड़ों रुपयों से अधिक शान्तिदायक होता है। फिर जो थोड़ी कमी रहती भी है तो वह माता की कृपा से पूरी हो जाती है। गायत्री उपासकों को अर्थ नष्ट से प्रसित जीवन व्यतीत नहीं करना पड़ता। सत्यनारायण व्रत कथा के महात्म्य में बताया गया है कि सतानन्द ब्राह्मण, काष्ठ विक्रेता भील, साधु वैश्य, लीलावती कलावती, तुंगध्वज राजा आदि को सत्यनारायण भगवान की कृपा से श्री समृद्धि प्राप्त हुई।
गायत्री उपासना का भी ऐसा ही महात्म्य प्रत्यक्ष है। उससे मनुष्य की अनेकों कठिनाइयों का समाधान होता है। कितने ही रोगग्रस्त व्यक्ति गायत्री उपासना से निरोग होते हैं। अभी थोड़े दिनों में ही ऐसी घटनाओं के अनेक अनुभव सामने आये हैं। सीकार के शिव भगवान सोमनी जी आजकल पूर्वी पाकिस्तान में जूट का व्यापार करते हैं कुछ वर्ष पूर्व तपैदिक से सख्त बीमार पड़े थे। उनके साले मालेगांव बम्बई निवासी शिवरतन मारू ने उन्हें गायत्री का मानसिक जप करने की सलाह दी क्योंकि वे स्वयं भी अपने पारिवारिक कलह तथा स्त्री की अस्वस्थता से छुटकारा पा चुके। सोमानी जी की बीमारी इतनी घातक हो चुकी थी कि बम्बई के प्रसिद्ध सर्जन डॉक्टर विलमोरिया को कहना पड़ा कि पसली की तीन हड्डियां कटवा दी जायं तो ही कुछ सुधार की सम्भावना है अन्यथा पन्द्रह दिन में हालत काबू से बाहर हो जायगी।
ऐसी भयंकर स्थिति में रोगी ने माता का अंचल पकड़ा और वे अब पूर्ण स्वास्थ्य लाभ करके अपना कारोबार कर रहे हैं। रोहेड़ा (राजस्थान) निवासी श्री नैनूराम को 20 वर्ष पुरानी वात-व्याधि थी। बड़ी-बड़ी दवाएं करा लेने पर भी वह अच्छी न हुई थी। अन्त में गायत्री उपासना द्वारा उनका रोग पूर्णतया ठीक हुआ। जधरापुर के ठा. रामकरण सिंह की स्त्री वर्षों से संग्रहणी ग्रस्त थी, रोग असाध्य मान लिया गया था। किन्हीं की सलाह से वैद्य जी ने सवालक्ष गायत्री जप का अनुष्ठान कराया। रोगिणी चंगी हो गई और अब उसके एक पुत्र भी पैदा हुआ है। कनकुवा (हमीरपुर) के श्री. लक्ष्मीनारायण जी बी.ए., एल.एल.बी. की धर्मपत्नी प्रसव काल में अत्यन्त कष्ट पीड़ित रहती थी। गायत्री उपासना से उनका कष्ट बन्द हो गया। एक बार वकील साहब का लड़का भयंकर रूप से बीमार हुआ।
चिकित्सकों के हाथ पांव फूल रहे थे। वकील साहब ने गायत्री उपासना की और बच्चा थोड़े ही समय में निरोग हो गया।
गायत्री उपासना से मनुष्य की बुद्धि शुद्ध होती है। जिसकी बुद्धि शुद्ध हो जायगी उसके जीवन की अनेक कठिनाइयां सरलता पूर्वक हल होने में देर न लगेगी। दरिद्रता, शत्रुता, बेकारी, बीमारी, मुकदमेबाजी आदि में प्रधान कारण मनुष्य की कुबुद्धि ही होती है। जैसे जैसे मनुष्य की मनोभूमि में उदारता, स्नेह, दया, क्षमता, परिश्रमशीलता, सद्भावना, संयम, नियमितता, मधुर भाषण, उत्साह आदि गुण बढ़ते जाते हैं, वैसे वैसे उसका दरिद्र घटता है, जीवन की ठीक व्यवस्था बनती है, और शत्रुता का विनाश होकर लोगों का सद्भाव एवं सहयोग बढ़ता है। जिसका आहार विहार ठीक होगा उसे बीमारी से छुटकारा पाने में कुछ विशेष समय न लगेगा। गायत्री उपासना में मनुष्य के शरीर और मन में निवास करने वाला ‘‘श्री’’ तत्व बढ़ता है। जिससे उसकी क्रिया, चेष्टा, वाणी, विचार धारा, दृष्टि तथा कल्पना शक्ति ऐसी वृद्धि प्रारम्भ हो जाती है कि सांसारिक व्यवहार में कम से कम हानि उठाकर अधिक से अधिक लाभ प्राप्त करे। माता की कृपा जिसे प्राप्त होती है उसे माता के पास की सभी वस्तुएं सरलता पूर्वक मिल जाती हैं।
माता अपने जिस बालक पर स्नेह करती है उससे उसका कोई दुराव नहीं होता। कुछ भी उससे छिपाती नहीं, और पुत्र की सच्ची आवश्यकता होने पर उसे अपने पास की सभी वस्तुएं दे देती है। अब साधारण माताएं अपने बालकों के साथ ऐसा व्यवहार करती हैं तो अपार करुणा रखने वाली, जगज्जननी महा माया गायत्री अपने बच्चों के अभाव एवं कष्ट दूर करने में संकोच क्यों करेगी? उनके हाथ में सब कुछ है, उनके पास किसी वस्तु की कमी नहीं, फिर उसका पुत्र बनने वाला ही किसी वस्तु से वंचित क्यों रहेगा? गायत्री-उपासना द्वारा जहां आध्यात्मिक लाभ होते हैं वहां ब्याज रूप से सांसारिक अभाव एवं कष्ट भी दूर होते हैं। गेहूं की खेती करने पर धान्य राशि तो प्राप्त होती ही है, साथ ही भूसा एवं घास पात भी मिल जाते हैं। इस प्रकार माता की कृपा से मनुष्य का जहां आत्म कल्याण होता है वहां उसे सांसारिक सुख शान्ति की भी कमी नहीं रहती।
आवश्यकता केवल इस बात की है कि हमारी भावना सच्ची और उपासना विधिपूर्वक हो। माता की कृपा प्राप्त होने में यही दो हेतु मुख्य होते हैं। प्राचीन काल में अनेक साधक ऐसे हुए हैं जो प्रभु की शरण में जाकर सांसारिक ऐश्वर्यों से परिपूर्ण बने हैं। ध्रुव का चरित्र ऐसा ही है, तपोबल से उन्होंने चक्रवर्ती राज्य पाया था। राजा नृग को यद्यपि पीछे अहंकार आने से नष्ट हो गया, पर पहले तो वह तपोबल से सांसारिक वैभव का ही नहीं देवताओं के सम्राट इन्द्र के सिंहासन का स्वामी बन गया था। नरसी भगत की प्रार्थना पर स्वर्ण वर्षा होने की कथा प्रसिद्ध है। निर्धन सुदामा को प्रभु के अनुग्रह से विपुल धन ऐश्वर्य मिला था। ऐसी घटनाएं प्राचीन काल में भी अनेक हुई थीं और अब भी होती हैं। जिस पर सर्व शक्तिमान दिव्य शक्ति का अनुग्रह होगा उसे किसी बात की कमी क्यों रहेगी? वृन्दावन के अनन्य गायत्री उपासक काठिया बाबा केवल काठ की कोपीन लगाकर नंगे रहते थे।
वे प्रतिदिन इतना धन दान पुण्य करते थे कि देखने वालों को दांतों तले उंगली दबानी पड़ती थी। चोरों ने कई बार उन्हें वेरा और कोपीन में सोना छिपा होने की आशा से उनकी तलाशी ली पर वहां कुछ भी प्राप्त न हुआ। इसी प्रकार कुष्टिया (बंगाल) में एक बंगाली महात्मा मौन रहते थे, उनके यहां भी प्रतिदिन सैकड़ों रुपया खर्च होता था। लोग समझते थे कि वे रसायन विद्या से सोना बनाना जानते हैं पर वस्तुतः ऐसा न था। यह गायत्री उपासना की ही एक सिद्धि थी। लछमन गढ़ में एक विश्वनाथ नामक गोस्वामी प्रसिद्ध गायत्री उपासक हुए हैं उनके जीवन का अधिकांश भाग गायत्री उपासना में ही व्यतीत हुआ था। वे स्वयं तो तपस्वी थे इसलिए अपने लिए किसी से कुछ मांगते न थे पर उनका आशीर्वाद सीक के एक गरीब बीदायत परिवार को प्राप्त हो गया। जिससे वह परिवार अत्यन्त ही समृद्धिशाली एवं सम्पन्न बना। इस परिवार के लोग अब तक उन गोस्वामी जी की समाधि पर अपने बच्चों का मुंडन कराते हैं।
कोटा राज्य में खातौली नगर से 7 मील दूर धोंकलेश्वर स्थान पर महात्मा मगनानन्द जी नामक गायत्री के सिद्ध पुरुष रहते थे। उनके अनुग्रह से खातौली की जब्त हुई लाखों रुपये की जागीर सरकार द्वारा पुनः वापिस मिली थी। रतनगढ़ में भूधरमल नामक एक परम नैष्ठिक गायत्री उपासक हुए हैं। ये सम्वत् 1916 में काशी आये और जीवन भर वहीं रहे अपनी मृत्यु की उन्हें पूर्ण जानकारी थी, उनने आषाढ़ सुदी 5 सम्वत् 1982 को अपना मरणोत्सव स्वयं बड़े समारोह पूर्वक मनाया और तब साधना करते हुए सबके सामने शरीर छोड़ा। इनका आशीर्वाद पाने वाले कई बहुत ही सामान्य मनुष्य आज भी करोड़पती सेठ बने हुए हैं। इस प्रकार गायत्री के सच्चे उपासकों का आशीर्वाद भी अनेक बार भगवान की कृपा के समान सुख समृद्धि देने वाले बन जाते हैं। साधक स्वयं साधना करके भी माता का अनुग्रह प्राप्त करके दीनता और दरिद्रता से छुटकारा पाता है।
इसके अनेक उदाहरण मौजूद हैं। वृन्दावन के स्वर्गीय श्री. उड़िया बाबा की प्रेरणा से हाथरस निवासी लाला गणेशीलाल ने 24 लक्ष गायत्री का अनुष्ठान कराया था। उस समय से लाला गणेशीलाल की आर्थिक दशा दिन-दिन ऊंची उठती गई और अब उनकी प्रतिष्ठा तथा सम्पन्नता पहले की अपेक्षा अनेकों गुनी अधिक है। प्रयाग के पास जमुनीपुर ग्राम में रामनिधि शास्त्री नामक एक विद्वान ब्राह्मण रहते थे। वे अत्यन्त निर्धन थे। उन्होंने कई गायत्री पुरश्चरण किये। एक दिन अर्ध रात्रि के समय भगवती गायत्री ने उन्हें बड़े ही दिव्य रूप में दर्शन दिया और कहा कि तुम्हारे इस घर में अमुक स्थान पर स्वर्ण मुद्राओं से भरा घड़ा रखा हुआ है उसे निकाल कर अपनी दरिद्रता दूर करो। पण्डित जी ने घड़ा निकाल कर अपनी दरिद्रता दूर करी। पण्डित जी ने घड़ा निकाला और वे निर्धन से धनपति हो गये। गुजरात के मधुसूदन स्वामी का नाम संन्यास लेने से पूर्व मायाशंकर दयाशंकर पण्ड्या था। वे सिद्धपुर रहते थे। आरम्भ में वे 25 रुपये मासिक के नौकर थे। उन्होंने प्रतिदिन एक हजार से गायत्री जप आरम्भ करके चार हजार तक बढ़ाया।
फलस्वरूप उनकी आशाजनक पद वृद्धि हुई। नौकरी छोड़ने से पूर्व उन्हें 450 रुपये मासिक का रेलवे में उच्च पद मिला हुआ था। इलाहबाद के पं. प्रताप नारायण चतुर्वेदी की नौकरी छूट गई थी। बहुत तलाश करने पर भी कोई जगह न मिली तो उन्होंने अपने पिताजी के आदेशानुसार सवालक्ष गायत्री अनुष्ठान किया। जप समाप्त होने पर उन्हें उसी पानियर प्रेस में पहली नौकरी की अपेक्षा ढाई गुने वेतन की जगह मिली जहां कि पहले उन्हें बार-बार प्रार्थना करने पर भी मना कर दिया गया था। जोधपुर राज्य के एक छोटे गांव में मोड़क मल कंजडीपाल नामक सज्जन बहुत समय पूर्व 12 रुपये मासिक के अध्यापक थे। गायत्री उपासना में उनका बहुत मन रहता था। एक दिन जप करते-करते उन्हें स्फुरणा हुई कि मुझे कलकत्ता जाना चाहिए वहां मेरी आर्थिक उन्नति होगी। वे कलकत्ता गये। कुछ समय तो छोटी मोटी नौकरी करते रहे, फिर उन्हें रुई के व्यापार में भारी लाभ हुआ और थोड़े ही दिन में लखपती बन गये। मानिक चन्द चाचोदिया नामक एक मारवाड़ी व्यापार में घाटा होने के कारण बड़े कर्जदार हो गये थे। दिवालिया होकर अपनी प्रतिष्ठा खोने के भय से उन्होंने गायत्री अनुष्ठान कराया। समय कुछ ऐसा फिरा कि दिन-दिन तीव्र गति से लाभ होने लगा। पिछली खाई ही पूरी तरह नहीं पट गई पहले की अपेक्षा अधिक अच्छी स्थिति में पहुंच गये। ठोरी बाजार के पं. पूजा मिश्र का कथन है कि हमारे पिता पं. देवी प्रसाद जी एक गायत्री उपासक महात्मा के शिष्य थे।
पिता जी की आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी। उनको दुखी देखकर महात्मा जी ने उन्हें गायत्री उपासना बताई। फलस्वरूप खेती में भारी लाभ होने लगा। छोटी सी खेती की विशुद्ध आमदनी से अब हमारी हालत बहुत अच्छी हो गई है और बचत का 20 हजार रुपया बैंक में जमा हो गया है। ऐसी घटनाएं एक नहीं अनेकों हैं। जिनसे यह सिद्ध होता है कि गायत्री उपासक जिस प्रकार अध्यात्मिक सुख शान्ति से भरपूर रहते हैं उसी प्रकार सांसारिक सुखों की भी उन्हें कमी नहीं रहती। सद्बुद्धि और सुमति मिलना करोड़ों रुपयों से अधिक शान्तिदायक होता है। फिर जो थोड़ी कमी रहती भी है तो वह माता की कृपा से पूरी हो जाती है। गायत्री उपासकों को अर्थ नष्ट से प्रसित जीवन व्यतीत नहीं करना पड़ता। सत्यनारायण व्रत कथा के महात्म्य में बताया गया है कि सतानन्द ब्राह्मण, काष्ठ विक्रेता भील, साधु वैश्य, लीलावती कलावती, तुंगध्वज राजा आदि को सत्यनारायण भगवान की कृपा से श्री समृद्धि प्राप्त हुई।
गायत्री उपासना का भी ऐसा ही महात्म्य प्रत्यक्ष है। उससे मनुष्य की अनेकों कठिनाइयों का समाधान होता है। कितने ही रोगग्रस्त व्यक्ति गायत्री उपासना से निरोग होते हैं। अभी थोड़े दिनों में ही ऐसी घटनाओं के अनेक अनुभव सामने आये हैं। सीकार के शिव भगवान सोमनी जी आजकल पूर्वी पाकिस्तान में जूट का व्यापार करते हैं कुछ वर्ष पूर्व तपैदिक से सख्त बीमार पड़े थे। उनके साले मालेगांव बम्बई निवासी शिवरतन मारू ने उन्हें गायत्री का मानसिक जप करने की सलाह दी क्योंकि वे स्वयं भी अपने पारिवारिक कलह तथा स्त्री की अस्वस्थता से छुटकारा पा चुके। सोमानी जी की बीमारी इतनी घातक हो चुकी थी कि बम्बई के प्रसिद्ध सर्जन डॉक्टर विलमोरिया को कहना पड़ा कि पसली की तीन हड्डियां कटवा दी जायं तो ही कुछ सुधार की सम्भावना है अन्यथा पन्द्रह दिन में हालत काबू से बाहर हो जायगी।
ऐसी भयंकर स्थिति में रोगी ने माता का अंचल पकड़ा और वे अब पूर्ण स्वास्थ्य लाभ करके अपना कारोबार कर रहे हैं। रोहेड़ा (राजस्थान) निवासी श्री नैनूराम को 20 वर्ष पुरानी वात-व्याधि थी। बड़ी-बड़ी दवाएं करा लेने पर भी वह अच्छी न हुई थी। अन्त में गायत्री उपासना द्वारा उनका रोग पूर्णतया ठीक हुआ। जधरापुर के ठा. रामकरण सिंह की स्त्री वर्षों से संग्रहणी ग्रस्त थी, रोग असाध्य मान लिया गया था। किन्हीं की सलाह से वैद्य जी ने सवालक्ष गायत्री जप का अनुष्ठान कराया। रोगिणी चंगी हो गई और अब उसके एक पुत्र भी पैदा हुआ है। कनकुवा (हमीरपुर) के श्री. लक्ष्मीनारायण जी बी.ए., एल.एल.बी. की धर्मपत्नी प्रसव काल में अत्यन्त कष्ट पीड़ित रहती थी। गायत्री उपासना से उनका कष्ट बन्द हो गया। एक बार वकील साहब का लड़का भयंकर रूप से बीमार हुआ।
चिकित्सकों के हाथ पांव फूल रहे थे। वकील साहब ने गायत्री उपासना की और बच्चा थोड़े ही समय में निरोग हो गया।