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Books - संत विनोबा भावे

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गाँव की लक्ष्मी गाँव में रहे

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यह था भूदान यज्ञ का श्री गणेश, जिसने आज एक विशाल आंदोलन का रुप धारण कर लिया है। अब तक लाखों एकड़ जमीन "दान स्वरुप" प्राप्त करके भूमिरहित लोगों को दी जा चुकी हैं, ग्रामों के लाखों व्यक्तियों से नशा और दुर्व्यसनछुड़ाकार गाँवों में सदाचार और नैतिकता का वातावरण उत्पन्न किया गया है और आपस के लड़ाई- झगड़े तथा मुकदमेबाजी मिटाकर लोगों को एक सूत्र में संगठित होने की प्रेरणा दी गई है। विनोबा गाँव वालों को समझाते है, कि उसका कल्याण तभी हो सकता है,जब गाँव की लक्ष्मी गाँव में ही रहे। आजकल वह बड़ी तेजी से शहरों की तरफ भाग रही है। अगर उसे रोका न जा सका, तो गाँव अवश्य बरबाद हो जायेंगे। इस संबंध में उनके उपदेश का सारांश इन शब्दों में दिया जा सकता है- गाँव की लक्ष्मी पाँच रास्तों से भागती हैं,वे है- शादी,ब्याह,बाजार व्यसन ,साहूकार और सरकार। जब तक इनको रोका न जायेगा तब तक गाँव का भला नही हो सकता ।।

(१)गाँव वाले शादी- ब्याह में अपनी हैसियात से ज्यादा खर्च कर देते हैं। कर्ज भी ले लेते है। लड़कीसुसराल में जाकर गृहस्थी सँभालने लगती है, फिर भी माँ- बाप को कर्ज से छुटकारा नही मिलता।इसलिएब्याह के खर्च में कमी की जाए। भोज- समारोह की क्या जरुरत है ?? मैं समारोह को भी रोकना नही चाहता,परउसमे खर्च करने का तरीका बदल देना चाहिए। लड़के- लड़की की शादी माँ- बाप ठीक करें। उसके बाद उनका काम खत्म। शादी करना, उसका जलसा करना,यह काम गाँव के जिम्मे रहे। खर्च का सारा बोझ थोड़ा- थोड़ा करके सब गाँव वाले बाँट लें। इससे कर्ज नही लेना पड़ेगा और ब्याह का काम आनंद से निपट जायेगा ।।

(२) बाजार का रास्ता बंद किये बिना गाँव वालों का काम नही चल सकता। वे कपास पैदा करते है, पर उसे बाजार में बेचकर वहीं से कपड़ा खरीदते है। गन्ना पैदा करते हैं, उसे बेचकर शहर से चीनी (शक्कर )खरीदते हैं। मूँगफली,तिल और सरसों पैदा करते हैं,पर तेल बाहर से खरीदकर लाते हैं। अब इतना ही बाकी रह गया है कि वे अनाज भेजकर बाहर से रोटियाँ' मँगा लें अगर इस तरह सब चीजें बाजार से ली जायेंगी,तो तुमको निर्धन रहन पड़ेगा।इसलिये नमक, मिट्टी का तेल,मिर्च- मसाला, दियासलाई और औजार गाँव में भले ही बाहर से लाने पड़ें, पर और चीजें गाँव में ही बना लो। शहर की चीजे गाँव में ही बना लो और गाँव की ही चीजें गाँव में चीजें खरीदो। "हर गाँव को हरा- भरा गोकुल बनाना है। वह अपने पैरों पर खड़ा हो, उसमें सब लोग हट्टे- कट्टे तंदुरुस्त हों सब मेहनती हों, सब एक दूसरे से प्रेम करते हों ईख का कोल्हू चल रहा है, चरखा कत रहा है, धुनिया धुन रहाहै,तेल का कोल्हू चूँ- चर बोल रहा है, कुएँ पर मोट चल रही है, ग्वाला गायें चरा रहा है और है बंशी बजा रहा है। ऐसा गाँव बनने दो इसी का नाम है- गोकुल ।।

(३) दुर्व्यसन बिलकुल मिट जाने चाहिए ।। कुछ लोग दिन भर बीडी़ फूँकते रहते है। वे कहते हैं कि- बीड़ियाँ तो घर की बनी हैं, बाहर बनी है, बाहर से थोड़े ही आती है।' अरे भाई, जहर अगर घर का हो, तो क्या खा लोगो ?? तो जहर चाहे घर का हो चाहे बाहर का ,उसे तो छोड़ ही देना है। व्यसन सभी बुरे हैं। बीडी़ हो या शराब- सबको छोड़ना जरुरी है। हिंदू धर्म में भी इसकी मनाही है और मुसलमानी धर्म में भी उसे बुरा कहा गया है। साथ ही बात -बात में तकरार करना भी छोड़ दो। अगर कभी हो जाय तो गाँव के पाँच जने मिलकर उसे सुलझा लो।

(४) अगर गाँव वाले ऊपर की तीन शिक्षाओं पर अमल करने लगेंगे, तो फिर कर्ज लेने की जरुरत हीनही रह जायेगी। धीरे- धिरे साहूकारों के फंदे से छूटने की कोशिश करनी चाहिए ।पर कर्ज के फेर में पड़कर बाल- बच्चों की फिक्र करना बंद कर दो। खुद भी भरपेट खाओ और बच्चों को भी खिलाओ। घर की जरुरत पूरी होने पर जो बचे उससे कर्ज चुकाते जाओ और नया कर्ज कभी न करो।

(५) जब इस तरह तुम चार मार्गो को रोककर लक्ष्मी को गाँव में ठहराये रहोगे तो सरकार स्वयं ही रास्ते पर आ जायेगी। लक्ष्मी तो दराअसल गाँव में ही रहती है। पेड़ों में फल लगते हैं, खेतों में गेहूँ होता है, गन्ना होता है- यही तो सच्ची लक्ष्मी है।

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