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Magazine - Year 1943 - Version 2

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इस्लाम में गौ का महत्व

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(ले.-सैयद मुस्तफा हसन, रजवी, लखनऊ)

इस्लाम में गौ के आदर सत्कार की बड़ी ताकीद की गई है-यह दूसरी बात है कि भारत वर्ष के मुसलमान साम्प्रदायिक मनोवृत्ति के कारण उसकी ओर ध्यान न दें और हिन्दुओं की जिद में गो-वध पर दृढ़ बने रहें।

खुदा ने गाय में इतने अनेकानेक गुण और लाभ इकट्ठे कर दिये हैं-जिसका मुकाबला संसार का कोई भी जीव नहीं कर सकता। उसका दूध अमृत से अधिक लाभदायक है। उसके दूध और घी में गन्धक की पर्याप्त मात्रा पाई जाती है। बच्चों को माँ के दूध के अतिरिक्त यदि कोई दूध हानि नहीं पहुँचाता तो केवल गाय का ही दूध है, उसका सेवन शरीर को पुष्ट और हड्डी को चौड़ा करता है। दूध पीते बच्चों को जिनकी माताएं मर जाती हैं अथवा ऐसी बीमारी हो जाती है कि बच्चे को दूध न पिला सके, तो गाय का दूध सबसे उपकारी होता है। क्षय की बीमारी में गाय का दूध लाखों औषधियों की एक औषधि होता है। दूध, घी और मक्खन मनुष्य को स्वस्थ रखते हैं। दही (मट्ठा और मक्खन लोनी घी) बहुत सी बीमारियों में औषधि के रूप में काम आता है। बस-उसका माँस ही एक ऐसी वस्तु है जिसे सहस्रों रोगों की पोटली कहा जा सकता है।

इस्लाम में भी दूध,घी और मक्खन के गुणों पर बड़ा जोर दिया गया है और उसके माँस को रोगोत्पादक बताया गया है। रसूल इस्लाम हजरत मुहम्मद साहब की कतिपय हदीसों का अर्थ नीचे दिया जाता है। हदीसों के मूल शब्द भिन्न भिन्न हैं, किन्तु सार अर्थ सबका एक ही सा है।

1- ‘फरोग काफी’ नामक पुस्तक में लिखा है कि हजरत इमाम जाफर सादिक, औलिया इस्लाम ने फरमाया है कि गाय का दूध दवा, उसके मक्खन में शिफा (स्वास्थ्यकर) और उसके गोश्त में वबा बीमारी है।

2- अल्लामा जलालुददीन सेवती ने अपनी पुस्तक अलरहमतद के पृष्ठ 24, 25, पर लिखा है, कि गाय का गोश्त रोग और उसका दूध दवा है और मक्खन शिफा है।

3- इबन अदी ने इबन जियादतहान के अनुवाद इबन अब्बास में इस तरह कहा गया है- गाय का दूध दवा, उसका मक्खन शिफा और उसका गोश्त बीमारी है।

4- जनाब अयसा कहती है कि- फरमाया जनाब रसूल अल्ला मोहम्मद ने कि गाय के दूध में शिफा, उसके मक्खन में दवा और उसके गोश्त में बीमारी है।

5- अल्लामा अबू दाऊद ने लिखा है कि- गाय को गोश्त बीमारी, उसका मक्खन दवा और उसका दूध शिफ है।

6- ब असनाद सही इबन मसऊद सहाबी रसूल अल्ला से रिवायत की गई कि- गाय के दूध में शिफ है।

7- अलातबरी ने जहीर से रिवायत की है कि- गाय का गोश्त बीमारी, उसका मक्खन दवा और उसका दूध शिफ है।

8- किताब ‘मसतदरक’ में अबू अब्दुल्ला हाकिम ने इबन सऊद सहाबी रसूल अल्ला से रिवायत की है कि- तुम्हारे लिये गाय का दूध इस्तेमाल करना जरूरी है उसके गोश्त से दूर भागो और परहेज करो, इसलिये कि उसके दूध में शिफा मक्खन में दवा और गोश्त में बीमारी है।

मुसलमानों के पैगम्बर हजरत मुहम्मद ने गाय के दूध, घी और मक्खन के गुणों को जितने गम्भीर शब्दों में बताया है और गौ माँस को स्वास्थ्य के लिए जितना हानिकारक फरमाया है वह इन लिखी हदीसों से भली भाँति विदित हो रहा है।

आश्चर्य है कि रसूल इस्लाम तो गौ का इतना आदर करें और उन लाभों को जो गाय के अन्दर पाये जाते हैं- इस प्रकार खुले शब्दों में गुणगान करें, परन्तु उनको पैगम्बर मानने का दावा करने वाले भारतीय मुसलमान गाय का इतना अपमान करें जितना कि वे कर सकते हैं।

रसूल तो गाय का माँस खाने का निषेध करें इसलिए कि इसमें हानि के सिवाय लाभ नाम मात्र को नहीं है और इसके सेवन करने से भिन्न भिन्न रोग उत्पन्न होते हैं। इसके विरुद्ध गाय के दूध और मक्खन के सेवन की ताकीद फरमावें और यह ताकीद करें कि वह रोग को नष्ट करके मनुष्य के स्वास्थ्य को स्थिर रखता है। बीमारी पास नहीं आने देता और केवल शिफा ही शिफ अर्थात् स्वास्थ्यकर ही स्वास्थ्यकर है। मेरे मुसलमान भाई रसूल की इस इच्छा का जैसा कुछ सत्कार कर रहे हैं, उसका थोड़ा बहुत अनुभव गौओं की उस संख्या से किया जा सकता है जो प्रत्येक दिन देश के कोने कोने में वध की जाती हैं।

कहने को मुसलमान बड़े धर्म परायण हैं, धर्म के नाम पर मरने और मार डालने के सदैव तैयार दिखाई देते हैं- परन्तु धर्म से उनका सारा प्रेम बस इतना ही रह गया है कि रसूल की इच्छा का विरोध करें। रसूल अल्ला गाय के गोश्त को रोगों का घर बतायें और वे हठ पर आकर गो-माँस ही अधिक खायें। रसूल गाय के दूध को दवा बतायें तो वे उसे विष से कम न समझें और यदि मक्खन को शिफा फरमायें तो वे उसको कभी सूँघने तक की कोशिश न करेंगे। यदि मुसलमान भाइयों को रसूल की आज्ञा का ध्यान होता तो गो-वध पर इस तरह अड़े न रहते और हिन्दुओं की मुरव्वत में न सही, केवल इसीलिये गो-वध बन्द कर देते कि रसूल की इच्छा भी ऐसी ही थी। इस वक्त रसूल के नाम पर मर मिटने वाले मुसलमान अपने रसूल की आज्ञा का दो तरह घोर विरोध कर रहे हैं। एक ओर गौ-माँस अधिकता से खाने में और दूसरी ओर गायों की संख्या कम हो जाने के कारण दूध और मक्खन के न खाने के रूप में -जिसे रसूल इस्लाम ने दवा और शिफा बताया है।

बड़ा आश्चर्य है कि मुसलमान भाई क्यों हठ में पड़े हैं और क्यों गो-वध करके रसूल की आज्ञा भंग कर रहे हैं? एवं वे क्यों हिन्दुओं का विरोध करके इस हठ के पीछे रसूल की इच्छा मय आज्ञा ठुकराने को तैयार हो रहे हैं?

क्या ही अच्छा हो यदि मुसलमान अपने रसूल की इच्छा मय आशा का आदर करें। इसमें उनके लिये दुनिया और दीन दोनों की भलाई है। इस प्रकार एक और रसूल की आज्ञा का पालन हो जावेगा और दूसरी तरफ मनुष्य संतोष का भी बड़ा लाभ पहुँचेगा जिसमें मुसलमान भी बराबर के हिस्से दार हैं।

मेरे इस लेख को हर गो रक्षक पत्र छापकर गो-रक्षा के उद्देश्य को सहायता पहुँचा सकता है।

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