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Magazine - Year 1943 - Version 2

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ईमानदारी का व्यवहार

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(प्रतिष्ठा का उच्च सोपान)

आप जो भी कारोबार करें उसमें ईमानदारी का अधिक से अधिक अंश रखें, इससे अपने सम्मान की वृद्धि होगी और कारोबार खूब चलेगा। उन कमीनी अकल के लोगों को क्या कहा जाय, जो भाट सा मुँह फाड़ कर यह कह दिया करते हैं कि व्यापार में बेईमानी बिना काम नहीं चलता, ईमानदारी से रहने में गुजारा नहीं हो सकता।

जो समझते हैं कि हमने बेईमानी से पैसा कमाया है। वे गलत समझते हैं, असल में उन्होंने ईमानदारी की ओर लेकर ही अनुचित लाभ उठाया होता है। कोई व्यक्ति साफ-साफ यह घोषणा करते कर दें कि ‘मैं बेईमान हूँ और धोखेबाजी का कारोबार करता हूँ’ तब फिर अपने व्यापार में लाभ करके दिखावे तो यह समझा जा सकता है कि- हाँ बेईमानी भी कोई लाभदायक नीति है। यदि ईमानदारी की आड़ लेकर बार-बार सच्चाई की दुहाई देकर अनुचित रूप से धन कमा लिया तो वह ईमानदारी को ही निचोड़ लेना हुआ। यह काम तभी तक चलता रह सकता है तब तक कि पर्दाफाश नहीं होता, जिस दिन यह प्रकट हो जायेगा कि भलमनसाहत की आड़ में बदमाशी हो रही है उस दिन उस कालनेमी माया का अन्त ही समझिये।

आप टुच्चे मत बनिए, ओछे मत बनिये, कमीने मत बनिए। प्रतिष्ठित हूजिए और अपने लिए प्रतिष्ठा की भावनाएं फैलने दीजिए। यह सब होना ईमानदारी पर निर्भर है। आप छोटा काम करते हैं कुछ हर्ज नहीं। कम पूँजी का, कम लाभ, का अधिक परिश्रम का, गरीबी सूचक काम काज करने में कोई बुराई नहीं है। जो भी काम आपके हाथ में है उसी में अपना गौरव प्रकट होने दीजिए। यदि आप दुकानदार हैं तो पूरा तोलिये, नियत कीमत रखिए, जो चीज जैसी है उसे वैसी ही कह कर बचिए। इन तीन नियमों पर अपने काम को अवलम्बित कर दीजिए। मत डरिए कि ऐसा करने से हानि होगी। हम कहते हैं कि कुछ ही दिनों में आपका काम आशातीत उन्नति करने लगेगा। कम तौलकर या कीमत ठहराने में अपना और ग्राहक का बहुत सा समय बर्बाद करके जो लाभ कमाया जाता है असल में वह हानि के बराबर है। कम तोलने में जो जल्दबाजी की जाती है उसे ग्राहक भाँप लेता है, बालक और पागल भले ही उस चालाकी कौन समझ पावें, समझदार आदमी के मन में उस जल्दबाजी के कारण सन्देह अवश्य उत्पन्न होता है। भले ही वह किसी वजह से मुँह से कुछ न कहे पर भीतर ही भीतर गुनगुनाने जरूर लगेगा। उस बार तो माल ले जायेगा पर दूसरी बार फिर आने में बहुत हिच मिच करेगा। ग्राहक मुँह से चुप है तो यह न समझना चाहिए कि उसका मन भी चुप है। दुकानदार के प्रति ग्राहक के मन में सन्देह उत्पन्न हुआ तो समझ लीजिए कि उसके दुबारा आने की तीन चौथाई आशा चली गई। इसी प्रकार मोल भाव करने में यदि बहुत मगज पच्ची की गई है, पहली बार माँगे गये दामों को घटाया गया है तो उस समय भले ही वह ग्राहक पट जाय पर मन में यही धक धक करता रहेगा कि कहीं इसमें भी अधिक दाम तो नहीं चले गये हैं? ठग तो नहीं लिया गया हूँ? क्योंकि बार-बार दामों का घटाया जाना यह साबित करता है कि दुकानदार झूठा और ठग है। ग्राहक सोचता है कि यदि इसकी बात पर विश्वास करके पहली बार माँगे हुए दाम दे दिये होते तो मैं बुरी तरह ठग गया होता। भले ही वह बाजार भाव से कुछ सस्ते दाम पर माल खरीद ले चला हो पर सन्देह यही करता रहेगा कि कहीं इस झूठे आदमी ने इसमें भी तो नहीं ठग लिया, ऐसे संकल्प विकल्प, शंका-संदेह लेकर जो ग्राहक गया है उसके दुबारा आने की आशा कौन कर सकता है? जिस दुकानदार के स्थायी और विश्वासी ग्राहक नहीं भला उसका काम कितने दिन चल सकता है? लूट खसोट करना तो चोर डाकुओं का काम है, दुकानदार उस जाति को अपना कर अपने कारोबार को विस्तृत और दृढ़ नहीं बना सकता। कुछ बताकर कुछ चीज देना एक बड़ा ही लुच्चापन है, जिससे सारी प्रतिष्ठा धूलि में मिल जाती हैं। दूध में पानी, घी में वेजीटेबल, अनाज में कंकड़ आटे में मिट्टी मिलाकर देना आज कल खूब चलता है, असली कहकर नकली और खराब चीजें बेची जाती हैं, खाद्य पदार्थों और औषधियों तक की प्रामाणिकता नष्ट हो गई है। मनमाने दाम वसूल करना और नकली चीजें देना वह बहुत बड़ी धोखा धड़ी है। अच्छी चीज को ऊंचे दाम पर बेचना चाहिए, यह अपडर झूठा है कि अच्छी चीज महंगे दाम पर न बिकेगी। यदि यह प्रमाणित किया जा सके कि वस्तु असली है तो ग्राहक उसको कुछ अधिक पैसे देकर भी खरीद सकता है। विदेशों में जिन व्यापारियों ने व्यापार का असली मर्म समझा है उन्होंने पूरा तोलने एक दाम रखने और जो वस्तु जैसी है उसे वैसी ही बताने की अपनी नीति बनाई है और अपने कारोबार को सुविस्तृत कर पर्याप्त लाभ उठाया है। सदियों की पराधीनता ने हमारे चरित्र बल को नष्ट कर डाला है तदनुसार हमारे कारोबार झूठे, नकल, दगा फरेब से भरे हुए होने लगे हैं। लुच्चेपन से न तो बड़े पैमाने पर लाभ ही उठाया जा सकता है और न प्रतिष्ठा ही प्राप्त की जा सकती है। व्यापार में धोखेबाजी की नीति बहुत ही बुरी नीति है। इस क्षेत्र में कायरों और कमीने स्वभाव के लोगों के घुस पड़ने के कारण भारतीय उद्योग धंधे, व्यापार नष्ट हो गये। इस देश में प्रचुर परिमाण में शहद उत्पन्न होता है, पर जिसे प्रमाणिक शहद की जरूरत है वह यूरोप और अमेरिका से आया हुआ शहद केमिस्ट की दुकान से जाकर खरीदेगा। घी इस देश में पर्याप्त मात्रा में उत्पन्न होता है, पर अविश्वास के कारण लोग रूखा सूखा खाना या वेजीटेबल प्रयोग करना पसंद करते हैं। हमारे व्यापारिक चरित्र का यह कैसा शर्मनाक पतन है।

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