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Magazine - Year 1945 - Version 2

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मनः शक्ति का सदुपयोग करो।

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(श्रीमती लिली एलन)

एक पर्वत में से एक छोटी नदी निकल कर मैदान में बह रही थी। उसकी धारा बहुत पतली थी और वेग भी बहुत मन्द था। एक विचारवान मनुष्य ने उसे देखा। वह सोचने लगा कि यदि सदुपयोग किया जा सके तो इस छोटी नदी के पानी से भी बहुत लाभ उठाया जा सकता है। उसने इंजीनियरों की सहायता से जगह-जगह बाँध बंधवाये, नहर निकालीं, बड़े-बड़े तालाब बनवाये, पानी को रोककर इच्छानुसार काम में लाने का प्रबंध किया। कुछ ही दिनों में उस नदी से हजारों लाखों बीघे जमीन सींची जाने लगी, पनचक्कियाँ चलने लगीं, बिजली घर बन गया। जिससे रोशनी तथा कई तरह के कल कारखाने चलने लगे।

मनुष्य की मानसिक शक्ति उसी छोटी नदी के समान है, जिसका जल इधर-उधर निरर्थक नष्ट हो जाता है। किन्तु जब कोई विचारवान मनुष्य इसका सदुपयोग करने की सोचता है और उसे लाभदायक कार्यों में लगाने का प्रयत्न करता है तो परिणाम ऐसा ही आशा जनक और चमत्कारपूर्ण निकलता है जैसा कि उस नदी के सदुपयोग का निकला था।

हमें इस सचाई को भली प्रकार हृदयंगम कर लेना चाहिए कि मनुष्य ऐसा लकड़ी का टुकड़ा नहीं है जिसे संसार सागर की लहरें चाहे जहाँ वहाँ ले जावें। हम अपने भाग्य के स्वामी स्वयं हैं, अपने आप अपने लिए भली बुरी परिस्थितियों का निर्माण करते हैं। मन की जादू भरी शक्ति ऐसी विचित्र है कि उसके तनिक से घुमाव फिराव में जीवन कुछ से कुछ बन जाता है। निशाना लगाते समय बन्दूक की नली यदि आध इंच नीची-ऊंची हो जाय तो निशाना गजों नीचा-ऊंचा हो जाता है। मानसिक वृत्तियों का जरा सा उतार चढ़ाव बाह्य जीवन में असाधारण परिवर्तन उपस्थित कर देता है।

जीवन की प्रसन्नतादायक हर एक चीज परमात्मा ने हमारे लिए पैदा की है। हवा, गर्मी, पानी और भोजन हर एक को प्राप्त होता है, इन जीवनोपयोगी वस्तुओं की संसार में कुछ भी कमी नहीं है फिर भी कुछ लोग ऐसे हो सकते हैं, जो अपनी नासमझी के कारण इन वस्तुओं को प्राप्त करने से वंचित रहें। इसी प्रकार यह भी हो सकता है कि कुछ लोग दुर्भाग्य पूर्ण जीवन जिएं जबकि परमात्मा ने उन्हें सुख शाँति का जीवन बिताने के लिए पर्याप्त सामग्री दी है। मन एक ऐसा तत्व है जिसका यदि सदुपयोग किया जाय तो जीवन की हर एक पंखुड़ी आनन्द और उल्लास के साथ खिल सकती है, इसके विपरीत यदि मन की शक्ति का दुरुपयोग किया जाय तो प्रचुर धन सम्पत्ति होते हुए भी मनुष्य असन्तुष्ट और अशाँत ही रहेगा।

विषय विकारों की कुवासना में मन को दौड़ाने से रोगों का उद्भव होता है। क्रोध करने से शरीर निस्तेज और आत्मा कलुषित बनती है। डर और घबराहट की वजह से दरिद्रता और असफलता का दर्शन होता है। कायर, ईर्ष्यालु और दुष्ट प्रकृति के लोग अपनी आग में आप ही जलते रहते हैं। निन्दा, चुगली, खुदगर्जी अहंकार और अभिमान की भावनाएं माँस पेशियों को ऐसा ढीला कर देती है कि असमय में ही बुढ़ापा आ घेरता है। दुर्भाव में चैन की जिन्दगी नहीं जी सकता।

मन को कुमार्ग से रोककर सत्मार्ग पर लगाना, जीवनोपयोगी आवश्यक कार्यों में प्रवृत्त करना, ऐसा ही है जैसा उस बुद्धिमान आदमी ने नदी को रोक कर उसके पानी से लाभ उठाया था। बुरे मार्ग पर मन को चलने देना, निरर्थक और हानिकर बातों में चित्त को उलझाये रहना, अपनी जीवनी शक्ति का, प्राण शक्ति का सर्वनाश करना है। इसलिए मैं उन लोगों से जो अपने जीवन को महत्वपूर्ण बनाने के इच्छुक हैं कहती हूँ कि मन पर काबू कीजिए, उसे उचित दिशा में ले जाइये, मनःशक्ति का सदुपयोग कीजिए।

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