
नकद सौदा लीजिये ।
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ऋण ग्रस्त होने से बचने का एक उपाय है-नकद सौदा खरीदना। यदि आप जीवन में यह नियम बना लें कि हम जो कुछ लेंगे नकद लेंगे, उधार नहीं लाएँगे, हाथ में पैसा होगा, तभी खरीदेंगे, तो आप ऋण से मुक्त रहेंगे। अनेक लोग इसीलिए बरबाद हुए हैं कि वे अनाप शनाप उधार लेते रहे।
चूँकि उधार एक दम मिल जाता है, हम प्रायः ऐसी वस्तुएँ भी ले लेते हैं जिनकी हमें आवश्यकता नहीं होती, या जो हमें अनायास ही लुभा लेती है। दुकानदार तो दुकान में से माल निकालने को उत्सुक रहते हैं। आपकी तनिक सी दिलचस्पी देखते ही, तुरन्त दे देंगे। पैसे आपसे वसूल कर ही लेंगे। यदि नहीं देंगे, तो मुकदमा चलेगा, बदनामी होगी, पर उनका रुपया मारा नहीं जा सकता। आपको देना ही होगा। उनकी चीज बिक जायेगी।
प्रो॰ स्टुअर्ट केन्जी अपनी पुस्तक “आपका जीवन” में लिखते हैं-“रुपया बचाने का एक निर्दोष और सरल उपाय यह था कि हमने उधार लेना बिल्कुल बन्द कर दिया। हमारे पास दो स्टोर ऐसी वस्तुओं से भर गये थे, जिन्हें दुकानदारों ने हमारी दिलचस्पी से अनुचित लाभ उठा कर बेच दिया था। हमें उस समय तो यह प्रतीत न हुआ कि रुपया व्यय हो रहा है, अतः हम खुले हाथ से खर्च करते रहे। जब पत्नी ने बिसाती की दुकान पर नकद सौदा कम करना प्रारम्भ किया, तो उसने उपयोगी चीजों को ही खरीदा, शौक और मजेदारी की चीजों को छोड़ दिया। केवल दुकानदार को टेलीफोन कर चीजें उधार मंगाने की आदत छोड़ कर हम रुपया बचाने लगे।”
कुछ लोग व्यापारियों द्वारा दिये गये कमीशन, या “गिरे हुए भाव” के चक्कर में फंस कर वस्तुएँ खरीद लाते हैं। कभी-2 दुकानदार कैलेंडर, चित्र, विज्ञापन या छोटी छोटी वस्तुएँ उपहार में देकर ग्राहकों को पटाते हैं। रुपया एक माह पश्चात् देने का प्रलोभन देते हैं। चीजों का मूल्य अधिक रख कर आधा दाम देने का विज्ञापन करते हैं, माल बेचने वालों को बड़े कमीशन दिये जाते हैं। अतः आगे देने के प्रलोभन में पड़े अनावश्यक खर्चों में पड़ना उचित नहीं।
किश्तों में वस्तु खरीदना-
जो चीज किश्तों में ली जाती है, उसकी मूल्य नकद से अधिक देना होता है। रेडियो, सीने की मशीनें, शिक्षा के कोर्स, पुस्तकें इत्यादि जब किश्तों से लिये जाते हैं, तो उनमें 30 प्रतिशत अधिक रुपया व्यय होता है। आप ऐसी दुकानों का एहसान मानते हैं, पर इस एहसान का मूल्य प्रायः बहुत होता है। एक खास बात भी है, जब तक आप वस्तु का पूरा मूल्य नहीं चुका देते, तब तक बड़ी फर्म या दुकान उस वस्तु की मालिक भी होती है। यदि किश्त न दी जाय तो वह वस्तु पुनः आपसे ले ली जाती है और आपका सब रुपया मार लिया जाता है।
यदि आप कोई महंगी वस्तु खरीदना चाहते है, तो प्रतिमास बजट में कुछ रुपया उसके लिए बचाते जाइये। नकद चीज सस्ती मिलेगी और आपको अधिक मजा आयेगा। किश्त देने वाले अपने रुपये का करारा सूद और चार्ज करते हैं। उन्हें करना पड़ता है क्योंकि उन्हें उसी में से बचा कर अपना खर्चा निकालना है। अमेरिका में यह पद्धति बहुत साधारण है। थोड़ा सा रुपया देकर लोग चीज काम में लाने लगते हैं, प्रतिमास कुछ देते हैं, प्रायः चीज नष्ट हो जाती है पर उसका कर्ज चला करता है। यह अपना आवश्यकताएं न जानने, प्रलोभनों में फंसने और अपनी चादर के अनुसार पाँव न पसारने के कारण होता है।
पर्चा लिख कर वस्तु उधार लेना-
आप होटल या दुकानदार के नाम एक चिट पर चीजें लिख देते हैं, और तुरन्त वह आपके पास आ जाती है। आपके मित्र आपके साथ हंसी खुशी खा लेते हैं। उस समय आपको यह ज्ञात नहीं होता कि कितने का बिल बना। पान, सिगरेट, चाय, मिठाई, इत्यादि में व्यय होते-छोटे होटलों का यह खर्चा 25)-30) रुपये तक पहुँचता है। अनेक कालेज के विद्यार्थी, अध्यापक, क्लर्क लोग कैंटीन से सामान मंगाते रहते हैं अधिक कर्ज होने पर अपना मुँह दिखाते शर्माते हैं।
उधार की पर्ची फिजूलखर्ची का एक सरल उपाय है। आप उधार लेंगे, थोड़ी देर मजा लेंगे, बाद में पछतायेंगे। क्लबों के कर्ज आदमी को बड़ा परेशान करते हैं। बिजलीघर में बिजली के कर्ज, पानी के व्यय, दुकानों के कर्ज निरन्तर वृद्धि पर रहते हैं। न पर्चा लिख कर उधार चीजें मंगाइये, न किसी दूसरे को खुश करने के लिए अपने को कर्ज में डालिये। यदि आप चीज लेते हैं, तो तुरन्त दाम देने की आदत बना लीजिये।
अपनी साख बना लीजिये-
आपके लिए बाजार की साख बड़ी महत्वपूर्ण है। जिस प्रकार व्यापारियों के लिए उसी प्रकार आपके लिए साख ही सब कुछ है। जब साख नहीं रहती, तो कुछ नहीं रहता, न कुछ भी कभी उधार मिलता है। जब जरूरत ही आ पड़े तो संकट के समय भी कोई कुछ नहीं देता। किसी भी व्यापारिक संस्था, दुकान या फर्म या व्यक्ति को अपनी साख का सबसे पहला ध्यान देना चाहिये।
यदि आप चीजें नकद लेने के आदी हैं, तो प्रत्येक जगह, हर दुकानदार आपको चीज देने को प्रस्तुत रहेगा। आपकी अच्छी साख बनी रहेगी। तभी उधार लीजिये, जब कुछ भी न हो सके। साथ ही यह भी सोच लीजिये कि आगे जाकर यह कर्ज आप कैसे चुकाएंगे।
एक स्पेनिश कहावत है-
“यदि आप अपने सब कर्जों को अदा कर सकते हैं तो आपको अपनी वास्तविक आर्थिक अवस्था का ज्ञान हो जायेगा।”
तीन स्थानों पर दाम मालूम कीजिये-
यदि कोई व्यापारिक संस्था कोई माल लेना चाहती है तो वह कई व्यक्तियों से भाव मालुम करती है, सोचती विचारती है, तब माल खरीदती है। इसी प्रकार आप जब वस्तु खरीदने निकलें, तो अवश्य तीन चार दुकानों पर मूल्य पूछ लीजिये। इस गुर से आप वस्तुओं का अधिक दाम देने से बच जायेंगे। वस्तु खरीदते समय मूल्य, किस्म, गारन्टी, मजबूती और बेचने वाले की ईमानदारी का विशेष ध्यान रखिये। वास्तविक दामों से यदि आप अधिक पैसा देते हैं, तो उसकी विशेषता अवश्य मालूम कर लीजिये।