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Magazine - Year 1950 - Version 2

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हमारे तीन बड़े खर्चे।

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हमारे जीवन पर व्यय होने वाले 87 प्रतिशत रुपया विवेक पूर्ण व्यय होता है। भोजन कहीं अत्यन्त महंगा है, कहीं असंतुलित है। प्रायः भोजन के नाम पर ऐसी वस्तुएं ले ली जाती है जो आवश्यक नहीं हैं, और ऐसी पौष्टिक चीजें छोड़ दी जाती हैं, जिनके बिना मनुष्य का शरीर अविकसित रहता है। कुछ वर्ष हुए डॉ॰ कैरेमेकोर्ड ने मजदूरों के भोजन व्यय का विशेष अध्ययन किया था। उनके अनुसार मजदूर लोग अनावश्यक पदार्थ खरीदते हैं, उनका स्वास्थ्य खराब रहता है और वे अल्पायु होते हैं।

संतुलित आहार-

भोजन की सफलता उसकी महंगाई पर नहीं, संतुलन और सही चीजों के प्रयोग पर निर्भर है। यदि आप अपने भोजन का ठीक प्रयोग करें तो आपके पेट की शक्तियाँ यथेष्ट मात्रा में बढ़ सकती हैं। वाल्टर वी. पिटकिन ने अपनी पुस्तक “जीवन 40 वर्ष की आयु के पश्चात् प्रारम्भ होता है?” में लिखा है कि मनुष्य अपनी जीवन शक्ति भोजन के ठीक चुनाव द्वारा अपनी शारीरिक शक्ति से दुगुनी बना सकता है। अच्छा भोजन सस्ता और सरल होता है।

एक संतुलित व्यक्ति का आहार इस प्रकार होना चाहिए-चावल 10 औंस, अनाज 5 औंस, दालें 3 औंस, दूध 8 औंस, बिना पत्ती की तरकारी 6 औंस, पत्तीदार सब्जियाँ 4 औंस, चिकनाई 2 औंस, फल 2 औंस।

गुरुकुल काँगड़ी के विद्यार्थियों का भोजन देखिये-चावल 2 छटाँक आटा 7 छ., घी 1 छ., दूध 12 छ. चीनी 1 छ., शाक तरकारियाँ 3 छटाँक। यह भोजन 18 से 25 वर्ष तक की आयु के लिए अच्छा है।

प्रातःकाल नाश्ते में पाव भर दूध लें या किसी फल के रस का नाश्ता करें, दोपहर को पाव डेढ़ पाव फल, रोटी दाल और हरी तरकारियों के सलाद रखिये। चार बजे यदि क्षुधा प्रतीत हो तो एक प्याला सन्तरे या टमाटर का रस या मट्ठा लें। सायं काल सब्जी और फलका लें। सोने से पूर्व पाव भर दूध पियें। यथाशक्ति सूखे फल तथा मेवों का प्रयोग करें।

भोजन के बजट में एक चौथाई आमदनी व्यय करनी चाहिए अतएव यदि आप केवल रक्षात्मक भोजन (बिना चटोरी आदतों को संतुष्ट किये) चाहते हैं, तो वह बखूबी हो सकता है। यदि आमदनी बहुत कम है, तो अधिकाँश तो भोजन में ही व्यय हो जायेगी।

भोजन तथा बचत-

क्या हमें भोजन के बजट से बचत करनी चाहिए? कदापि नहीं। आप वस्त्र या मकान में से भले ही बचत कर लें, किन्तु संतुलित भोजन में से कमी न कीजिए। यदि इसमें कंजूसी करेंगे, तो बीमार पड़ेंगे और दुगुना रुपया दवाई या डॉक्टर की फीस में व्यय हो जायगा। हम आपको कीमती चीजें-मिठाई, अचार, शराब, चाय, बिस्किट, चाय पकौड़ी, शौकीनी के शरबत, चुसकी, माँस, कार्नफ्लौर, पकवान, मुरब्बे-खाने की सलाह नहीं देते किन्तु स्वास्थ्यवर्द्धक सरल प्राकृतिक रक्षात्मक भोजन की सलाह देते हैं। यह भोजन सस्ता रहेगा।

यदि रामलाल 300) रु. प्रतिमाह कमाते हैं और श्रीकृष्ण केवल 100) रु. मासिक और दोनों खर्चें का हिसाब रखते हैं, तो वह स्वभाविक ही है कि रामलाल श्रीकृष्ण से तिगुनी खाने में व्यय कर सकते हैं। इसका यह अभिप्राय नहीं कि श्रीकृष्ण को एक तिहाई भोजन खरीदने चाहिये। इसका यही अभिप्राय है कि श्रीकृष्ण को रामलाल की बनिस्बत खाने के बजट पर अधिक सावधानी रखनी होगी और मूल वस्तुओं तथा जरूरी चीजों पर ही व्यय करना होगा। रामलाल अधिक स्वाद और ऊँची तरह के भोजन का स्वाद ले सकते हैं। लेकिन जहाँ तक रक्षात्मक भोजन का प्रश्न है, वह दोनों में समान ही रहेगा। अन्य भोजन पेट या स्वास्थ्य के लिए नहीं जिव्हा के स्वाद के लिए ही होते हैं। स्वास्थ्य या दीर्घ जीवन की दृष्टि से उनकी कुछ भी उपयोगिता नहीं है।

महीने भर के लिए आप भोजन इस प्रकार लीजिये-(100) मासिक और 5 व्यक्तियों के कुटुम्ब के लिए) गेहूँ डेढ़ मन, चार प्रकार की दालें दस सेर, दो सेर चावल, फल तरकारियाँ 7 रु., दूध 5 चीनी 4 सेर, मसाले 1 रु., चिकनाई 5 रु. फुटकर 2)

भोजन के आवश्यक पदार्थों को खरीदने में संभव है कुछ अधिक व्यय हो जाय, अतः यह बढ़ती अन्य मदों में कमी करके निकाल लेनी उचित है। सुविधानुसार व्यय करें पर विलासप्रियता ओर चटोरी आदतों में न फंसें। मन पर कठोर नियंत्रण रक्खें और मिठाई वालों की दुकानों के आसपास न टहलें, अन्यथा प्रलोभन में फंसेंगे।

इकठ्ठा वस्तु खरीदना

फसल पर वर्ष भर के लिए वस्तु खरीद कर रखना किफायतशारी है। हम यह नहीं कहते कि आप कर्ज लेकर ये वस्तुएँ खरीदें। थोड़ा-2 बचा कर आप घर की ऐसी वस्तुएँ-दालें, गेहूँ, मिर्च, चावल, तेल, चीनी, लकड़ी, आलू, अरबी, सूखे मेवे-खरीद कर रख सकते हैं। अपनी गृहस्थी का वार्षिक बजट बनाइये और अनुमान लगाइये कि कितनी किस वस्तु की आवश्यकता आपको पड़ेगी। प्रत्येक वस्तु को बड़ी सफाई से रखिये अन्यथा सूखी हुई तरकारियाँ खराब हो जायेंगी, चावल में कीड़ा पड़ जायगा, गेहूँ घुन जायगा।

यदि आप स्वयं अकेले अधिक मात्रा में वस्तुएँ नहीं खरीद सकते, तो अपने मित्रों और सम्बन्धियों को मिला कर एक सहकारी सभा बना लीजिये और परस्पर मिलकर वस्तुओं को खरीदिये। वर्ष के प्रारम्भ में पढ़ने वाले बच्चे कापियाँ, स्टेशनरी, पुस्तकें खरीदते हैं। यदि सब लोग साथ-2 खरीदें तो कुछ कमीशन भी मिल सकता है। यदि आप के कुछ मित्र या रिश्तेदार कुछ नित्य काम में आने वाली वस्तुएँ आप से खरीदने का प्रबन्ध कर लें, तो आपको कुछ आमदनी भी हो सकती है। थोड़े से ही एक दुकान खोली जा सकती है।

सावधानी से मालूम कीजिये कि वे कौन सी वस्तुएं हैं जिन्हें आप एक साथ खरीद सकते हैं। अपने घर की वस्तुएँ खरीद कर प्रारम्भ कीजिये। घी, शक्कर, तेल, गरी, छुहारा, मखाना, बादाम, इलायची, मिर्च, गुड़, अरहर, मसूर, मक्का, ईंधन, फसल पर ही खरीदना उचित है। फुटकर सामान लेने से जो हानियाँ होती हैं, वे पं. लक्ष्मीधर वाजपेयी के शब्दों में इस प्रकार हैं-

“थोड़ा-2 करके बारबार सौदा खरीदने से वह महंगा मिलता है क्योंकि फुटकर और थोक के भाव अलग-2 होते हैं। बार-बार बाजार जाने से समय नष्ट होता है। सौदा जब थोड़ा खरीदना होता है, तो हम चार जगह देख कर नहीं खरीदते। इसलिए सौदा भी अच्छा नहीं मिलता। जैसा कोई दुकानदार दे देता है, वैसा ही ले लेते हैं। समय पर वस्तु न होने से घर की व्यवस्था बिगड़ती है, गृहस्थी में बरकत नहीं रहती।”

हमारे वस्त्रों का व्यय-

भोजन के पश्चात् वस्त्र महत्वपूर्ण हैं। पेट भर जाने के पश्चात् मानव का तन ढकने की सूझती है। हवई कैसन ने लिखा है-“एक भूखा रोटी के टुकड़े के लिए अपना पाजामा प्रसन्नता से दे डालेगा, लेकिन जब उसका पेट भर जायगा, तो वह दूसरा पाजामा खरीदने का प्रयत्न करेगा।” इस मद में 10 प्रतिशत आमदनी कुछ अधिक प्रतीत होती है किन्तु अपनी आवश्यकता के अनुसार इसे कम या अधिक किया जा सकता है। इसमें वस्त्रों की सफाई, मरम्मत, और नये कपड़े सिलाना सम्मिलित है।

अच्छे वस्त्रों का आदर होता है, अपनी अवस्था और हैसियत के अनुसार साफ -सुन्दर कपड़े पहनने उचित और न्याय संगत हैं। इनसे आपका व्यक्तित्व निखर उठता है, गुप्त शक्तियाँ जाग्रत हो उठती हैं, मनुष्य अपने आपको दूसरों से श्रेष्ठ समझने लगता है, पहला प्रभाव अच्छे कपड़ों का ही पड़ता है। अज्ञात स्थान में, जहाँ कोई नहीं जानता कि आप क्या है, आपके वस्त्र ही आपके सहायक होते हैं। सफर में अच्छे कपड़े पहनने की सलाह इसी लिए दी जाती है। वेशभूषा और वस्त्र आपके चरित्र की विषय सूची की भाँति हैं। पश्चिमी सभ्यता के संसर्ग से नाना प्रकार के फैशन और काट छाँट के वस्त्र हमारे देश में प्रचलित हैं। आप ऐसे वस्त्र पहनें जो आपकी हैसियत के अनुसार ठीक रहें। न अधिक ऊँचे, न नीचे। अच्छा पहनिये, सादगी और सरलता से, सफाई से कपड़ों को रखिये। इसी में आपकी इज्जत है।

इस सम्बन्ध में दो बातें महत्वपूर्ण हैं। आप कीमती वस्त्र ले लें, किन्तु उन्हें इतने यत्न और ध्यान पूर्वक रखिये कि उन्हें आप अधिक से अधिक दिन अच्छी से अच्छी हालत में चला सकें। वस्त्र की भी आयु होती है। प्रत्येक कपड़े को पूरी आयु भर जीने का अवसर दीजिये। इतनी अच्छी तरह इस्तेमाल कीजिये कि वह कम मैला हो, और कम धुले। रोज-2 धुलवाना अमितव्ययता है। स्वयं धो लीजिये। धोबी कपड़े स्वयं पहनता है, किराये पर दूसरों को देता है, उबालता है और ठोक पीट कर आधी जान समाप्त कर देता है। जितना कम धुलें उतना ही अच्छा।

दूसरी बात फैशन है। फैशनपरस्ती आधुनिक मनुष्य की बड़ी कमजोरी है। वह फैशन बनाते समय अपनी जेब नहीं देखता, क्षण भर के दंभ में फंस कर वस्त्रों पर फिजूलखर्ची कर बैठता है। हमारी बहिनें इस दिशा में बड़ी असावधान होती हैं। अहंकार के कारण वे अपने आपको बड़े चढ़े रूप में देखने और दिखाने के लिए इच्छुक रहती हैं। अन्दर से खोखले चने चबाने और एक वक्त भोजन करने वाले अनेक युवक धनवान सा लिफाफा बनाते हैं। इस ढोंग बनाने और दूसरों को धोखा देने की प्रवृत्ति के कारण वे अपने सर पर इतना भारी फिजूल खर्ची, कर्ज और लेन देन को सिर पर ले लेते हैं, जिसके बोझ से उनकी कमर और गर्दन वर्षों झुकी रहती है। छल, कपट, दंभ, धूर्तता, मायाचार, धोखेबाजी एवं असत्यता युक्त पोशाक से कुछ लोग क्षणिक सफलता प्राप्त कर लेते हैं, पर आर्थिक स्थिति के खुलते ही उस मायाचार का भंडा फट जाता है।

साधारणतः सादी स्वच्छ पोशाक पहनिये, बदन के आराम तथा अपनी रक्षा के लिए वस्त्र बनवाइये, फैशन के माया जाल में न फंसिये। फैशन तो जनता को धोखा देने के लिए दिखावा है। समझदार व्यक्ति आपकी असली हैसियत खूब जानता है। उसे अभिनय की जरूरत नहीं है।

धुलाई-अनुभव से आपको प्रतीत होगा कि कुछ कपड़ों को घर पर ही धो लेना कितना सुविधा जनक है। कमीजें, बनियान, लंगोट, रुमाल, यदि घर पर ही धो लिए जायं, तो काफी दिन काम में लाये जा सकते हैं धोबी के घर का धुला प्रत्येक वस्त्र कम से कम आठ दिन तक मैला न होने दीजिये। आपकी चतुराई और सतर्कता इसी में है कि वस्त्र मैला न होने पाये। द्वितीय महायुद्ध में योरोप में यह अनुमान लगाया गया था कि 30 प्रतिशत धुलाई केवल सफाई तथा सतर्कता से रह कर मिटाई जा सकती है, 20 प्रतिशत कपड़े की गन्दगी ठीक प्रकार से भोजन न करने और पेय पदार्थों के गिर जाने से प्रारम्भ होती है, 10 प्रतिशत रात्रि और दिन के कपड़े न बदलने, या उतारे हुए कपड़ों को तह कर लोही न करने की असावधानी से प्रारम्भ होती हैं। वस्त्र कहते हैं, “आप हमारी इज्जत कीजिये, हम आपकी इज्जत करायेंगे।” इसका अभिप्राय यही है कि उनकी उचित देखभाल से ही आपकी इज्जत बनेगी, पैसा कम खर्च होगा और मितव्यय की आदत पड़ेगी। सिल्क, रेशम, और दिखावे के कपड़े न खरीदें, मैले तो कम से कम करें क्योंकि इनकी धुलाई बहुत ली जाती है।

स्वयं धोकर स्वस्थ बनिये और रुपया बचाइये। एक लोहा खरीद लीजिये। इससे आप धोबियों से भी अच्छा कपड़ा धो कर काम में ला सकेंगे।

मकान और किराये की समस्या-

आजकल किराया मकान की समस्या भोजन जैसी ही उग्र हो उठी है। अतः हमने बजट में 20 प्रतिशत तक इसमें व्यय करने की सलाह दी है। डॉक्टर एंजिल ने योरोपीय देशों के लिए 12 प्रतिशत की राय दी है। डॉ. एंजिल की राय है कि किराये, रोशनी, और ईंधन में प्रत्येक परिवार में प्रतिशत खर्च बराबर हो सकता है। महंगाई से पूर्व 10 प्रतिशत में काम चल जाता था अब 10 से 20 प्रतिशत इस मद में व्यय करना होता है। यदि घर अपना है तो मरम्मत, पुताई, सफाई और उसे ठीक हालत में खड़ा रखने में काफी व्यय हो जाता है। कच्चे घरों में प्रतिवर्ष छप्पर और कवेलू चढ़ाने में व्यय अधिक आता है। यथा संभव सस्ता मकान लीजिये किन्तु स्वास्थ्य और अच्छा पड़ौस महत्वपूर्ण बातें हैं। घर की सजावट अपनी आमदनी के अनुसार कीजिये।

कुछ अन्य खर्चे जिनके विषय में सावधान रहें-

मादक द्रव्यों के सब खर्च तुरन्त त्याग देने योग्य है। चाय, पान, बीड़ी, सिगरेट, शराब, तम्बाकू, सोड़ा वाटर, शरबत, इत्यादि पर कुछ भी व्यय न करें। हम बहुत देखते हैं कि मजदूरों या भिखारियों के लड़के बाजारों में मुँह में सिगरेट दबाये, बालों में तेल डाले घूमते हैं। जूता गाँठने वाले चमार भी सिनेमा नित्य देखते हैं, दरिद्र बन्धु शराब खानों में पड़े रहते हैं, किसानों के लड़के अंग्रेजी ढंग की कमीज, कोट, तथा बूट जूते से बात करते हैं, बर्फ पीते हैं-ये सब फिजूल खर्ची त्याज्य हैं।

विलासिता पर होने वाला व्यय प्रत्येक मनुष्य को कम कर देना चाहिए। आतिशबाजी, खरीदकर जलाना व्यर्थ है। आभूषण यथासंभव कम बनाइये। कहीं-कहीं दावतों में भोजन इतना परोसा जाता है कि ढेर की ढेर जूठन के रूप में पड़ा रहता है। मृत्युभोज में भी अपव्यय बन्द कीजिए।

पुस्तकों पर कम खर्च करें। केवल उपयोगी और ठोस काम में आने वाली पुस्तकें ही खरीदें। शेष को ऐसे ही चलाने दें। पत्र पत्रिकाएं एक बार पढ़ कर रद्दी की टोकरी में फेंकने योग्य हो जाती है। सद्ज्ञान और मनोविज्ञान की पत्रिकाएं खरीदिये। कहानी की पत्रिकाओं से बचिये। पोस्टेज में कार्ड का प्रयोग ही कीजिये। लिफाफा भी एक प्रकार से विलासिता की वस्तु है। रेल का सफर यथासंभव रूप से ही करें।

हमारे कृषक भाई मुकदमे बाजी में बरबाद हो जाते हैं। दत्तक और गोद के मामलों में बहुत अपव्यय होता है। मुकदमेबाजी में नष्ट होने वाला अपार धन पंचायतों से बचाया जा सकता है। इत्र फलेल, क्रीम, पाउडर, शेविंग, सिनेमा, बनाव शृंगार, वैसलीन, सिर के तेल, साबुन, मिठाई के खर्चे कम से कम कीजिये।

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