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Magazine - Year 1950 - Version 2

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(कविराज हरनामदास बी. ए.)

मनुष्य की यह स्वाभाविक ही इच्छा रहती है कि लोग उसे आदर की दृष्टि से देखें और वह जनता में सर्व-प्रिय बने। परन्तु सर्व-प्रिय कोई विरला ही मनुष्य बनता है। बहुत थोड़े मनुष्य जान सकते हैं कि वे सर्वप्रिय हैं भी कि नहीं। बहुत से लोगों को तो भ्रम ही बना रहता है कि वे सर्वप्रिय तथा भद्र पुरुष हैं, परन्तु वास्तव में उन्हें कोई भी पसंद नहीं करता विवशता और लाचारी के बिना कोई उनके पास तक भी नहीं फटकता।

नीचे कुछ प्रश्न दिये जाते हैं, जिनके उत्तर देने से प्रत्येक व्यक्ति जान सकता है कि वह जनता में सर्वप्रिय है या नहीं। आप भी इन प्रश्नों का उत्तर एक कागज पर लिख कर हिसाब लगाएं तो आपको अपनी सर्वप्रियता का अनुमान सहज ही हो जायगा। आप अपने शुद्ध हृदय से और न्याय पूर्वक अपने नम्बर स्वयं ही निश्चित करके उन्हें गिनें, 120 नम्बरों में से कम से कम 80 नम्बर पाने वाला आदमी सर्वप्रियता की कसौटी पर पूरा उतर सकता है।

यदि इससे कम नम्बर प्राप्त करें तो आप अपने स्वभाव को बदलने के लिये यथा शक्ति प्रयत्न करें। इस प्रकार आप भी कुछ समयान्तर में अधिक नम्बर प्राप्त करने में समर्थ हो सकेंगे। यह अपना स्वभाव परखने की एक बढ़िया कसौटी है। इस प्रकार अपने आप को परखते रहने और अपनी भूलों को सुधारते रहने से बहुत ही जल्दी अपने जीवन में एक बड़ा भारी परिवर्तन पायेंगे।

1-क्या आप पर विश्वास किया जा सकता है कि आप जो प्रण करेंगे या वचन देंगे उसे पूरा करके दिखा देंगे ? 2

2-आप हठी तो नहीं हैं ? 2

3-आपको लोग स्वार्थी और अपना काम निकालने वाला तो नहीं समझते ? 3

4-आपको अपने धन अथवा अपनी शक्ति, पदवी, विद्या या अन्य किसी बात का अभिमान तो नहीं ? 3

5-यदि आप पुरुष हैं तो स्त्रियों को देख कर और यदि आप स्त्री हैं तो पुरुषों को देखकर आपके मन में बुरे विचार तो नहीं उठते? 3

6-आप दूसरों से बल प्रयोग करने या उनका हक मार लेने का यत्न तो नहीं करते? 2

7-आप में झूठ बोल कर या चतुराई से अपना स्वार्थ सिद्ध करने का दोष तो नहीं हैं? 3

8-क्या आप क्रोध करने से बचते हैं ? 3

9-क्या आप सादगी को पसंद करते हैं ? आप फैशन के गुलाम तो नहीं? 3

10-आप इधर की बात उधर और उधर की बात इधर तो नहीं किया करते? 2

11-क्या आपके नौकर तथा अन्य सेवक आपको देख कर प्रसन्न होते हैं? या आपको देख कर प्रसन्न होते हैं? या आपको देखकर उनकी दशा ऐसी हो जाती है जैसी बिल्ली को देखकर चूहे की? 2

12-आपकी स्त्री, बच्चे और छोटे भाई-बहन आपके पास बैठ कर प्रसन्न रहते हैं या अप्रसन्न? क्या आप हंसमुख हैं ? 3

13-क्या आप अपना और दूसरों का समय गप्पों में नष्ट करना बुरा समझते हैं? आपको लगातार बातें करते जाने का व्यसन तो नहीं? क्या आप हर समय किसी अच्छे काम में लगे रहते हैं?

14-आपको लोग ‘कोरा बातूनी’ तो नहीं समझते? आपमें बहाना बनाने की आदत तो नहीं? 2

15- क्या आप दूसरों से कुछ माँगने या परिचितों और रिश्तेदारों का एहसान लेने अथवा उनसे रियायतें माँगने को बुरा समझते हैं? 2

16-आप ऋणी (कर्जदार) तो नहीं? 2

17-क्या आप प्रसन्नतापूर्वक दूसरों की सहायता करते हैं? 3

18-क्या आप परिश्रमी और साहसी हैं? सुस्त और सुखप्रिय तो नहीं? 2

19-आपमें अपनी बातों को बढ़ा चढ़ाकर कहने का दोष तो नहीं? 2

20-क्या आप दूसरों के झमेलों में पड़ने से बचे रहते हैं? 2

21-क्या आप नौजवान बहू-बेटियों और बेटों के इस नये युग के परिवर्तित आचार-विचार को सहन करते हैं? 2

22-क्या आप दूसरों को उनके दोष सहानुभूति पूर्व बतलाते हैं?

23-क्या आप दूसरों का सुधार करते समय या अपनी बात मनवाते समय इस बात का विचार रखते हैं कि किसी प्रकार की कटुता उत्पन्न न हो। 2

24-क्या आप लड़ाई-झगड़ों से दूर रहने की कोशिश करते हैं? 2

25-क्या आप इस सिद्धान्त के पक्षपाती हैं कि ‘बराबर से ही कीजिये प्रीति ब्याह ओर बैर’। 2

26-किसी विषय पर वाद-विवाद करने से कई बार आपस में द्वेष उत्पन्न हो जाता है। इसलिए क्या आप वाद-विवाद से बचने का यत्न करते हैं। 2

27-आप ऐसी ठट्ठा करने के दोषी तो नहीं हैं कि जिस से दूसरे दुःखी हों या सुनने वाले आपको उच्छृंखल तथा घटिया विचारों वाला समझें? 2

28-क्या आप सूर्य निकलने से एक दो घंटे पहले उठते हैं? 2

29-क्या आपमें अपने मन की बात कह देने का साहस है? क्या आप में बुराई का सामना करने की शक्ति है? 3

30-आपमें दूसरों की खुशामद या झोली उठाने का अथवा हाँ में हाँ मिलाने का दोष तो नहीं? 2

31-आपमें किसी मनुष्य की पीठ पीछे बुराई करने या सुनने का व्यसन तो नहीं? 3

32-क्या आप अपने दुःख की कथा ऐसे मनुष्यों के सामने कहने में संकोच करते हैं जो वास्तव में आपकी कोई सहायता कर ही नहीं सकते? 2

33-आप किसी सभा में ऐसे स्थान पर तो नहीं बैठते जो स्थान आपकी योग्यता के उपयुक्त न हो या जहाँ पर आपका बैठना दूसरों को खटकता हो? 2

34-क्या आप हमेशा अपने कपड़े साफ-सुथरे रखते हैं? 2

35-आपको लोग कंजूस तो नहीं समझते? 2

36-क्या आप दूसरों को रुपया उधार देते समय इस बात का ध्यान रखते हैं कि कहीं ऐसा न हो कि रुपया भी जाय और सम्बन्ध भी टूट जाय ? या फिर केवल इतना उधार देते हैं कि यदि वापिस न मिले तो आपको रंज न हो। 2

37-आप तम्बाकू तो नहीं पीते? 3

38-आप शराब तो नहीं पीते? 3

39-क्या आप प्रत्येक प्रकार के जूए से दूर भागते हैं? 3

40-आप ताश शतरंज इत्यादि खेलने में अपना समय नष्ट तो नहीं करते ? 2

41-क्या आप प्रति दिन अच्छी पुस्तकों का अध्ययन करते हैं।

42- क्या आप प्रतिदिन भ्रमण कर व्यायाम करते हैं और अपने शरीर को हृष्ट-पुष्ट रखते हैं? 2

43-आपको चटोरेपन का चसका तो नहीं? 2

44-क्या आप इस बात का ध्यान रखते हैं कि आप के जीवन में कोई दिन ऐसा व्यतीत न हो जिस दिन आपने किसी की भलाई न की हो? 2

45-क्या आप अपने माता-पिता को प्रसन्न रखते हैं।

46-क्या आप अपनी सन्तान की शिक्षा सम्बन्धी, धार्मिक और चरित्र की उन्नति का विशेष ध्यान रखते हैं?

47-क्या आप अपने कार्य व्यापार खेती नौकरी आदि में सफल हैं? 2

48-क्या आप प्रतिदिन जगत पिता परमात्मा का अपने धर्म और सिद्धान्त के अनुसार ध्यान और पूजन करते हैं और उसके अनुकूल आचरण करते हैं? 3

49-क्या आप अपने पड़ोसियों के साथ आदर और प्रेम का व्यवहार करते हैं? 3

50-क्या आप सदैव अपने देश और जाति की भलाई के लिए कुछ समय देते हैं? 3

51-क्या आप प्रतिमास अपनी आय में से कम से कम चार प्रतिशत दान करते हैं? 2

52-आप दूसरे धर्म और जाति वालों से घृणा तो नहीं करते? 2

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