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Magazine - Year 1952 - Version 2

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महात्मा श्री अनासक्तजी

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First 23 25 Last
(श्री सरदार रतन सिंह जी इंजीनियर)

महात्मा अनासक्त जी गंगा जी के पुण्य तट पर उन स्थानों में रहते हैं जहाँ मनुष्यों का आवागमन नहीं होता। उनका कोई स्थान, आश्रम या ठिकाना नहीं है फिर भी कभी कभी भागलपुर के आस-पास गंगातट पर उनके दर्शन हो जाते हैं। एक वर्ष में सवा महीने के लिए वे भोजन त्याग देते हैं और केवल गंगा की बालू खाकर एवं गंगाजल पीकर रहते हैं। पैसा छूते नहीं। एक कमण्डल, एक माला, तथा दो वस्त्रों के अतिरिक्त और कोई सामान इनके पास नहीं रहता।

श्री महात्मा अनासक्त जी की तपस्या असाधारण है। उनकी आत्मा का दिव्य प्रकाश उनके चेहरे पर चमकता रहता है। कभी कभी वे गंगातट के गांवों में आते हैं और अन्नाहार करने की इच्छा होती है तो यह तलाश करते हैं कि इस ग्राम में पूर्ण सदाचारी ब्राह्मणों के घर कितने हैं, वे उन्हीं के यहाँ की भिक्षा ग्रहण करते हैं। जहाँ ठहरते हैं वहाँ गायत्री सम्बन्धी उपदेश अवश्य देते हैं। वे स्वयं गायत्री उपासना में संलग्न हैं और अपने प्रेमियों को वही बताते रहते हैं कि अनासक्त जीवन व्यतीत करना एवं गायत्री की उपासना करना आत्म कल्याण के यह दो ही मार्ग हैं।

एक बार की घटना है कि वे एक गाँव में गये और वहाँ पर ऐसा ब्राह्मण तलाश करने लगे जो त्रिकाल संध्या एवं गायत्री का जप करता हो। जब ऐसा एक भी घर न मिला तो वे बहुत दुखी हुए और वहाँ के ब्राह्मणों की भर्त्सना करते हुए कहा कि “तुम अपने पूर्वजों की धरोहर की इतनी उपेक्षा करते हो तो अन्य वर्णों का अधिकार है कि वे गायत्री विद्या को अपनावें।” उनने कुछ द्विजेतर जाति के व्यक्तियों को गायत्री मन्त्र की शिक्षा दी।

इस पर उस प्रदेश के ब्राह्मणों में बड़ा रोष फैला, वे लाठियाँ लेकर स्वामी जी को मारने जंगल में चल दिये। पर दैव वश वे रास्ते में ही अन्धे हो गये। रात भर वे लोग जंगल में भटकते रहे। दूसरे दिन राहगीरों ने उन्हें घर पहुँचाया। इस विपत्ति परिणाम से वे बहुत दुखी हो रहे थे। अन्त में उन्होंने स्वामी जी का पता लगाया और उनके चरणों पर गिर कर अपनी भूल की क्षमा माँगी और खोई हुई नेत्र ज्योति फिर प्राप्त की।

एक बार की घटना है कि एक नव युवती कन्या की मृत्यु हो गई। लोग गंगा तट पर उसके मृत शरीर को ले गये। चिता में उसे लगा दिया गया। केवल अग्नि प्रवेश की देरी थी। इतने में स्वामी जी उधर से आ निकले। उनने कहा इस लड़की की आयु अभी समाप्त नहीं हुई है। इसे जलाओ मत। स्वामी जी की बात पर किसी को भरोसा न हुआ और उसके अग्नि दाह की तैयारी करने लगे। इस पर स्वामी जी ने चिता के पास जाकर जोर से लड़की को पुकारा वह चिता में से उठ खड़ी हुई। यह दृश्य देखकर पहले तो उसके सम्बन्धी लोग डरकर भागे, पीछे पर स्वामी जी के समझाने बुझाने पर उसे वापिस घर ले गये।

इस प्रकार उनके जीवन की अनेकों चमत्कारी घटनाएं हैं। पर वे उन्हें प्रकट नहीं होने देते और जहाँ उनकी अधिक आवभगत होने लगती है वहाँ जाना आना ही छोड़ देते हैं। साँसारिक पदार्थों और बन्धनों से उन्हें आसक्ति नहीं इसलिए उनका नाम “अनासक्त” है। पर हाँ, एक आसक्ति उनमें देखी जाती है वह है स्वयं गायत्री उपासना में अत्यधिक तल्लीन रहना और दूसरे अधिकारी व्यक्तियों को इस महान् साधना में प्रवृत्त होने के लिए आग्रहपूर्वक प्रेरणा देना। उनकी यह आसक्ति वस्तुतः अनासक्ति साधना की ही एक पद्धति है। ऐसे महात्माओं से भारत भूमि को फिर प्राचीन युग उपस्थित करने की आशा की जा सकती है।

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