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Magazine - Year 1955 - Version 2

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जिन्दगी कैसे जिएं?

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(श्री रामकृष्ण स्थापक राकेश लखनादौन)

जिन्दगी को ठीक प्रकार जीना भी एक कला है। यों तो प्रत्येक मनुष्य जन्म लेता, बढ़ता और बढ़कर मृत्यु को प्राप्त होता है। ऐसी जिन्दगी को सच्ची जिन्दगी नहीं कह सकते। सच्चा जीवन वह है जो पुष्प की तरह खिलता है, अपने सौंदर्य, सुवास एवं महत्व से स्वयं धन्य बनता है और दूसरों के चित्त को प्रसन्नता और प्रफुल्लता से भर देता है। लोग कई तरह की कलाओं को सीखने के लिये बहुत समय, धन, परिश्रम एवं बुद्धि खर्च करते हैं, किन्तु खेद है कि लोग जीवन जीने की कला सीखने के लिये न तो प्रयत्न करते हैं और न उसकी कोई आवश्यकता ही समझते हैं। यही कारण है कि आज हमें अधिकाँश लोगों के जीवन कर्कश, कुरूप, नीरस एवं अस्त−व्यस्त दिखाई पड़ते हैं। कई तो अपने जीवन से ऊबकर आत्म−हत्या तक कर बैठते हैं।

प्रभु ने मानव−जीवन को सर्वांग सुन्दर और आनन्द से परिपूर्ण बनाया है। कमी केवल इस बात की है कि मनुष्य जिन्दगी जीने की कला से अनभिज्ञ है, यदि वह इस दिशा में थोड़ा ध्यान दे और अभ्यास करे तो अनेक कठिनाइयों के रहते हुये भी आनन्दमय जीवन व्यतीत कर सकता है।

अनेकों बार जन्म लेने और मरने के पश्चात् हमें यह जीवनरूपी वरदान मिला है। यह जीवन सुख, सफलता, समृद्धि सभी एकत्रित गुणों से ओत−प्रोत हैं। इन गुणों पर हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है। एक विद्वान् ने लिखा है—“सकल पदारथ हैं जग माहीं। कर्महीन नर पावत नाहीं॥” हमारे चारों ओर सुख, समृद्धि, यश, विजय, प्रेम, सहानुभूति का समुद्र लहरा रहा है। ये स्वर्ण मुद्राओं और हीरे मोती की तरह हमारे चारों ओर बिखरे हैं। आवश्यकता यह है कि अपने मानसिक चुम्बक द्वारा हम इन्हें अपनी ओर खींच लें। इनके पीछे-2 भागने वाले को ये चीजें प्राप्त होने वाली नहीं हैं। इन्हें अपनी ओर खींचने वाला चुम्बक अपने अन्दर विकसित करना है, किन्तु खेद है कि अनेक व्यक्ति इस आन्तरिक चुम्बक को नहीं जानते हैं।

इस मानवीय चुम्बक के विकास के पहिले यह जानना आवश्यक है कि यह चुम्बक है क्या? तीव्र इच्छा, बलवती इच्छा। स्पष्ट इच्छा−ऐसी इच्छा दृढ़ होती है और जो न बीमारी, प्रतिकूलता एवं रोग−शोक से टूटती है और न लालच−लोभ से, अपना प्रशस्त राजमार्ग छोड़ती है। इस इच्छा की अग्नि जितनी प्रबल होती है, उतना ही तीव्र आकर्षण−शक्ति युक्त आपका मानसिक चुम्बक होता है। इस प्रबल एवं चेतन इच्छा का दमन सम्भव नहीं है। यह मनुष्य को उसके लक्ष्य की ओर इशारा करती है, उसे बढ़ाती है, प्रोत्साहित करती है। आत्मा में नवीन स्फूर्ति, नवीन ओज का संचार करके हमें निश्चयों पर दृढ़ रहने की शिक्षा देती है। वह व्यक्ति धन्य है जिसके निश्चयों में बल, साहस, धैर्य एवं ओज है और जो अपने निश्चयों के लिये पश्चाताप नहीं करता। ऐसे निश्चयवान के लिये दुःख, क्लेश, विपत्ति एवं विघ्न नश्वर है। रुपया, पैसा, प्रसिद्धि तथा लोकप्रियता सदैव उसे प्राप्त होती है। जो व्यक्ति यह निश्चय नहीं कर पाता कि वह क्या चाहता है, वह कुछ भी नहीं कर सकता। आपको किसकी महत्वाकाँक्षा है, पहले स्वयं अपने से पूछिये और तब कुछ निश्चय कीजिये। बिना इच्छित वस्तु का ज्ञान हुये आपका अपना मानसिक चुम्बक सशक्त नहीं हो सकता। अच्छी−अच्छी वस्तुयें इधर−उधर बिखरी रह जाती हैं और मनुष्य बेखबर सोया करते हैं। आप जो कार्य अपने लिए विशेष रूप से चुनेंगे, उससे आपको प्रेम करना होगा। पूरी निष्ठा, सहयोग, दृढ़ता और मनोयोग से उसमें इच्छा−शक्ति को केन्द्रित करना होगा।

अवसर की बात मत सोचिये। योग्यता होगी तो अवसर स्वयं तुम्हारे पास आकर चरण चूमेंगे।

योग्यता ऐसा धन है, जिसका उपयोग कभी न कभी और कहीं न कहीं अवश्य ही होगा। आपकी सफलता आपके बाह्य पदार्थों, व्यक्तियों, वातावरण, रुपये−पैसे, सिफारिश इत्यादि पर निर्भर नहीं है, वरन् वह आपके अन्तःप्रदेश में विद्यमान है। अन्तर से उसे निकालकर बाह्य जगत् में स्थापित करिये, फिर देखिये कि आपको किस प्रकार सफलता मिलती है। आज का युग उत्कृष्टता का है। जो जिस विषय का विशेषज्ञ होता है उसी की पूजा की जाती है। आज के युग में अधूरे, ऊपरी एवं सामान्य ज्ञान वाले बहुत मिलेंगे। इस युग में असाधारण योग्यता वाला व्यक्ति ही सफलता पा सकता है। उत्कृष्टता रुपये, धन दौलत, इज्जत, मान−बड़ाई सबको अपनी ओर खींच लेने की क्षमता रखती है। जो क्षेत्र आपने चुना है बस उसी में उत्कृष्टता प्राप्त कीजिये। यहाँ वहाँ मत भागिये अन्यथा कुछ हाथ न आवेगा। जो कुछ चुनिये, उसमें हर प्रकार अपने आपको ऐसा पटु और कार्यदक्ष बना लीजिये कि कोई कमजोरी शेष न रह जावे।

क्या आप किसी विषय के विशेषज्ञ हैं? क्या आप दूसरों की अपेक्षा कोई बात अधिक जानते हैं? व्यापार, नौकरी, अध्ययन, खेती, लोक−सेवा या अन्य कौन से कार्य के आप विशेषज्ञ हैं। यदि आप सचमुच में किसी बात के विशेषज्ञ हैं तो आपके पास धन−दौलत, मान−मर्यादा सब कुछ अपने आप चला आवेगा। इससे केवल आपको ही लाभ हो सो नहीं, वरन् दूसरों पर भी आपकी उत्कृष्टता का प्रभाव अवश्य पड़ेगा, जिससे पूरा समाज एवं देश गौरवान्वित हो सकेगा।

यों जिन्दगी जीने की कला के अनेक पहलू हैं, पर उनमें अतीव आवश्यक बातें यह हैं कि हम अव्यवस्थित जीवन को व्यवस्थित, नियमबद्ध, अनुशासित और सुसंगठित बनायें। जीवन के विज्ञान को गहराई तक समझें। कर्तव्य पर भली प्रकार दृढ़ रहें। अपने मानसिक चुम्बकत्व को, इच्छा−शक्ति को बलवान् एवं दृढ़ बनावें। योग्यता में दिन−दिन वृद्धि करते हुए जीवन को उत्कृष्ट से उत्कृष्टतर बनाते जावें। यदि इन तथ्यों के आधार पर जीवन की गतिविधि चलाई जाय तो अभीष्ट सफलता का प्राप्त होना सुनिश्चित ही समझना चाहिए।

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