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Magazine - Year 1958 - Version 2

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बीजमन्त्र ‘क्लीं’ की साधना

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(डॉ. भानुशंकर ना. व्यास, बम्बई)

बीजमन्त्र ‘क्लीं’ सब प्रकार की मनोकामनाओं की सिद्धि के लिए बड़ा प्रभावशाली माना गया है। इसे एक सफेद कागज के ऊपर लिखना चाहिए। लगभग 1 फुट व्यास का गोल कागज लेकर पेंसिल से लगभग चार अंगुल ऊँचा अक्षर लिखना चाहिए फिर उस कागज का खाली भाग सिंदूर से लाल रंग डालना चाहिए। तेल मिले हुए सिंदूर का रंग ठीक रहता है, पानी अथवा चाक द्वारा बनाया रंग जल्दी उड़ जाता है।

इस प्रकार आकृति तैयार करने के बाद प्रतिदिन प्रातःकाल, मन की शाँत अवस्था में चित्रपट से लगभग दो फीट दूर बैठना चाहिए। आकृति को सामने की दीवार पर टाँग देना चाहिए अथवा चिपका देना चाहिए। इस आकृति को नित्यप्रति 15 मिनट से आरम्भ करके एक घण्टा तक स्थिर दृष्टि से ताकना चाहिए। यह स्थिर दृष्टि त्राटक की तरह नहीं होती, क्योंकि वैसा करने से आँखों की ज्योति घटने का भय रहता है। यह प्रयोग ध्यान का होता है जबकि त्राटक का उद्देश्य दृष्टि को वेधक बनाना होता है। थोड़ी देर तक खूब ध्यानपूर्वक ‘क्लीं’ को देखकर आँखें बन्द कर लेनी चाहिए और तब इस बीजमन्त्र को आँख खोले बिना ही अपने कपाल पर देखने का प्रयत्न करना चाहिए। अगर तुमने पहले इसे खूब ध्यान से देखा होगा तो आँख बन्द करने पर भी एकाध क्षण के लिए यह तुम्हें अपने कपाल पर अवश्य दिखलाई पड़ेगा। अगर आरम्भ में मानसिक अस्थिरता के कारण कपाल पर यह दिखलाई न दे तो इसमें निराश होने की कोई बात नहीं है। तुम्हें खुली आँखों से ही सब तरह के विचारों को त्यागकर एकाग्रचित्त से बीजमन्त्र को देखते रहना चाहिए। मन में से बाहरी विचारों को हटाने का सरल मार्ग यह है कि बीजमन्त्र को देखते समय मन में “ॐ क्लीं नमः” यह मन्त्र जपते रहना। ऐसा करने से अन्य विचार नहीं आयेंगे और बीजमन्त्र पर मन स्थिर होता चला जायगा। इस तरह स्थिरता का अभ्यास बढ़ता जायगा और तुम स्वयं ‘क्लीं’-मय हो, ऐसा अनुभव होने लगेगा। यहाँ इतना अवश्य ध्यान रखना चाहिए कि यह अभ्यास कोई दो-चार दिन में नहीं हो जाता, वरन् इसमें छः से बारह महीना तक का समय लग जाता है।

यह अभ्यास करते समय वातावरण शाँत रहना चाहिए और मनोवृत्ति को भी स्थिर रखना आवश्यक है। अगर दिन के समय यह प्रयोग न हो सके तो रात के समय भी किया जा सकता है। पर यदि मानसिक शाँति न हो तो इस प्रयोग का करना ठीक नहीं, क्योंकि उससे मस्तिष्क पर हानिकारक प्रभाव पड़ना सम्भव रहता है। प्रातःकाल का छः से सात बजे तक का समय इस प्रयोग के लिए उत्तम है। रात के शाँत वातावरण में एक दिया इस प्रकार रखकर कि जिससे आकृति पर प्रकाश पड़े, अभ्यास किया जा सकता है। शहर में रहने वाले छोटा टार्च जला के भी अभ्यास कर सकते हैं।

जब आँखें बन्द कर लेने पर ‘क्लीं’ देर तक देखा जा सके तब समझना कि ध्यान उचित रीति से हो रहा है। जैसे-जैसे ध्यान का अभ्यास बढ़ता जायगा वैसे-वैसे तुमको अपने में परिवर्तन होता जान पड़ेगा। तुम्हारी आकर्षण शक्ति बढ़ती जायगी और हर एक क्षेत्र में वह काम देगी। विशेष रूप से सेल्समैनों, बीमा-दलालों, प्रोफेसरों, शिक्षकों में ऐसी आकर्षण शक्ति होना आवश्यक है। अन्य रोजगारों में भी उससे लाभ होता है। इसके अतिरिक्त ‘क्लीं’ की सिद्धि से मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं। अगर तुम्हारे सामने उपस्थित व्यक्ति पर वशीकरण का असर डालना हो तो उसके हृदय में ‘क्लीं’ का ध्यान करने से तुरन्त उसका प्रभाव पड़ता है। किसी भी मनुष्य के फोटो के ऊपर अथवा उसकी मानसिक आकृति के ऊपर इस बीजमन्त्र का ध्यान करने से, वह चाहे कितनी दूर क्यों न हो, उसे बुलाया जा सकता है।

इसी ‘क्लीं’ बीजमन्त्र का प्रयोग लक्ष्मी प्राप्ति के लिए भी हो सकता है। लक्ष्मी के लिए ‘क्लीं’ की उपासना करनी हो तो आकृति के भीतर लाल के बदले पीला रंग भरना चाहिए और ध्यान के समय “ॐ क्लीं नमः” का जप करते रहना चाहिए। इस अभ्यास के पूरा होने पर लक्ष्मी की प्राप्ति में वृद्धि होती है।

जिस प्रकार लाल रंग के ‘क्लीं’ का ध्यान वशीकरण और आकर्षण के लिए किया जाता है और पीले रंग वाली आकृति धन प्राप्ति कराती है उसी प्रकार बीजमन्त्र में काला रंग भरकर ध्यान करने से उच्चाटन और विद्वेषण का प्रयोग किया जाता है।

जो व्यक्ति लम्बे समय से शारीरिक अथवा मानसिक व्याधि से पीड़ित हों अथवा तरह-तरह की बीमारियों के कारण परेशान हो रहे हों उनको बीजाकृति में हरा रंग भर कर ध्यान करना चाहिए। यह हरा रंग खुलता हुआ अर्थात् तोते का सा होना चाहिए। इस आकृति को प्रातः अथवा रात्रि में सामने रखकर “ॐ क्लीं नमः” का जप करते हुए ध्यान करने से आरोग्यता और शारीरिक सुख प्राप्त होता है। अशक्त व्यक्ति तो लेटे रहकर भी इसका ध्यान कर सकते हैं। जिनकी आँखें कमजोर हों और चश्मा का ऊँचा नम्बर हो गया हो, वे भी इस प्रयोग से अपनी आँखों को सुधार सकते हैं।

इस प्रकार क्लीं की बीजाकृति में भिन्न-भिन्न रंग भरने से भिन्न-भिन्न फल प्राप्त किये जा सकते हैं। इसमें आवश्यकता यही है कि धैर्य और लगन के साथ अभ्यास किया जाय। श्रद्धा रखना भी जरूरी है। जो ये बातें होंगी तो अभ्यास का फल अवश्य प्राप्त होगा। ध्यान का समय हर रोज एक ही रहना चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से उस समय मन की चंचलता को दूर करके स्थिरता सहज में प्राप्त की जा सकती है। समय के बन्धन से परेशान न होकर अभ्यास और जप नियमित रूप रखना चाहिए। इससे जैसे-जैसे मानसिक स्थिरता प्राप्त होती जायगी, वैसे-वैसे ही मन्त्र-जप कम होता जायगा। अन्त में ऐसा समय आयेगा कि जप करने की तुमको जरा भी आवश्यकता न रहेगी और तुम स्वयं ‘क्लीं’ मय बन जाओगे। ऐसा होने से ही सब मनोकामनाओं की सिद्धि हो सकती है।

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