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Magazine - Year 1958 - Version 2

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तप साधना द्वारा दिव्य शक्ति का अवतरण

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आसुरी प्रवृत्तियों की जब प्रबलता हो जाती है। धर्म का पलड़ा हलका पड़ जाता है तो संसार में कष्ट बहुत बढ़ जाते हैं। मनुष्य ही नहीं अन्य प्राणी भी दुख पाने लगते हैं। उस विपन्न अवस्था को दूर करने के लिए दैवी शक्तियों का जो प्रादुर्भाव होता है उसे अवतार कहते हैं। अवतार के कार्य प्रत्यक्ष दीखते हैं पर इससे पूर्व उस अवतरण के लिए कोई महान धर्मानुष्ठान नियोजित होते हैं और उन आध्यात्मिक उपचारों के फलस्वरूप ही अवतारों का प्रत्यक्ष कार्य दृष्टिगोचर होना संभव हो पाता है।

संसार के पाप-ताप हरने के लिए स्वर्ग लोक से उतर कर गंगा जी पृथ्वी पर आई। शिवजी ने उन्हें अपनी जटाओं में धारण किया यह प्रत्यक्ष प्रक्रिया लोक विदित है। पर इस गंगावतरण के पीछे भागीरथ की तपस्या ही प्रधान है। यदि भागीरथ जी तप करने खड़े न होते तो गंगावतरण का होना तथा उसके द्वारा भूतल के समस्त प्राणियों को सुख पहुँचना संभव न हुआ होता।

दुर्गा का अवतार तथा उनके द्वारा असुरों के संहार की कथा पुराणों में विस्तारपूर्वक कही गई है। पर उसका श्रेय देवताओं की थोड़ी-थोड़ी तपस्या का एक स्थान पर एकीकरण ही है। यदि देवताओं ने वह तप और त्याग न किया होता तो दुर्गाजी कहाँ से आती?

भगवान राम के द्वारा असुरों का शमन हुआ यह ठीक है। पर राम जन्म के पीछे स्वयंभू मनु और शतरूपा रानी का तप, दशरथ का पुत्रेष्टि यज्ञ ही प्रधान है। सीता जन्म के संबंध में कथा है कि ऋषियों ने अपना थोड़ा-थोड़ा रक्त एक घड़े में जमा करके भूमि में गाढ़ा और वह रक्त ही कालान्तर में परिपक्व होकर सीता के रूप में जनक को हल जोतते समय प्राप्त हुआ। ऋषियों का रक्त ही सीता बनकर असुरों के विध्वंस का हेतु बना।

इन्द्र ने वज्र जैसा अचूक अस्त्र बनाया और उस वज्र से असुरों का संहार आसानी से कर दिया। पर वह वज्र था क्या? तपस्वी दधीचि की हड्डियाँ ही रूपांतर से वज्र बनी थीं। तप का समावेश हुए बिना संसार की कोई भी धातु या वस्तु इतनी शक्तिवान नहीं थी जिससे इन्द्र ‘वज्र’ बना सका होता। विवशता से ही इन्द्र को ऋषि की हड्डियाँ माँगनी पड़ीं।

भगवान कृष्ण को जन्म देने के लिए वासुदेव देवकी ने कितनी कठोर तपस्या की थी। यह पुराणों में विस्तारपूर्वक बताया गया है।

सिद्धि बुद्धि दाता गणेश मनुष्यों में सद्ज्ञान का, शुभ लाभ का वरदान देते हैं, पर वह गणेश हैं क्या? तपस्विनी पार्वती तथा योगेश्वर शंकर जी की तप साधनाओं का एकीकरण पिण्ड ही गणेश हैं।

धर्म की स्थापना और अधर्म का नाश करने वाली अवतारी आत्माएं यों ही अवतरित नहीं होती। उनके पीछे तपस्वियों की तपस्या एवं साधकों की साधनाएं ही छिपी होती हैं। अनेक बार यह कार्य अमैथुनी प्रक्रिया द्वारा पूर्ण होते हैं जैसे सीता जन्म, गंगावतरण इन्द्र वज्र निर्माण, दुर्गा अवतार आदि। कई बार ऐसी आत्माओं को जन्म देने के लिए माता का पिता का तप साधारण मानवी प्रक्रिया द्वारा नर तन में जन्म धारण करता है। भगवान राम और कृष्ण का जन्म उनके माता पिता की तपस्याओं का ही सत्परिणाम है। इस प्रकार के असंख्य उदाहरण इतिहास पुराणों में उपलब्ध हैं कि साधुता के परित्राण और दुष्कृतों के विनाश के लिए जन्म लेने वाले महापुरुषों या महान् आन्दोलनों के पीछे किन्हीं तपस्वी आत्माओं की तप साधना ही काम करती है। भारत को स्वाधीनता दिलाने वाला स्वाधीनता आन्दोलन महात्मा गाँधी की तपस्या का प्रतीक है। विश्व में अहिंसा की महत्ता की ध्वजा फहराने वाला महान आन्दोलन भगवान बुद्ध के तप को मूर्त रूप कहा जा सकता है।

जिन आन्दोलनों के पीछे तप नहीं होता वह कुछ समय के लिए तूफान भले ही मचा लें पर अन्त में वे असफल हो जाते हैं। जिन आत्माओं के पीछे तपस्या नहीं रहती वे कितनी ही चतुर, चालाक, गुणी,धनी क्यों न हों, महापुरुषों की श्रेणी में नहीं गिनी जा सकतीं। वे मनुष्य, जिन्होंने मानव जाति को ऊँचा उठाया है, संसार की अशान्ति को दूर करके शान्ति की स्थापन की है, अपना नाम अमर किया है, युग प्रवाह को मोड़ा है, वे तप शक्ति से सम्पन्न रहे हैं। यों मनुष्य कई दृष्टियों से पशुओं से भी गया बीता है, पर वह अपने आत्मबल के आधार पर महामानव,ऋषि, देवता, अवतार एवं भगवान भी बन सकता है। मानव प्राणी की छिपी हुई महानता को प्रकट करने और उसके द्वारा अलौकिक कार्य करा लेने की क्षमता तप में ही है।

प्राचीन काल में जब सन्तान की उपयोगिता को लोग समझते थे तब पति-पत्नी दोनों ही तपस्या में लगते थे। जिसे अपने घर में महापुरुष का जन्म अभीष्ट है, उसे तप की प्रतिष्ठापना करनी पड़ेगी। तप शक्ति विहीन नर-नारी बच्चे तो पैदा कर सकते हैं पर उनके द्वारा महापुरुषों का जन्म होना संभव नहीं। राष्ट्र की नई पीढ़ी तेजस्वी हो, महापुरुषों का जन्म घर-घर में हो यदि यह आवश्यक हो तो हमें घर-घर में तप साधना के प्रति अभिरुचि उत्पन्न करनी पड़ेगी। तप शक्ति से परिपूर्ण मनुष्यों की आत्मशक्ति से ही ऐसे महान कार्य सम्पन्न हो सकते हैं जो भारत भूमि में ही नहीं सारे भूमंडल में सुख शान्ति की स्थापना करें।

ब्रह्मास्त्र अनुष्ठान इस युग की महान तप साधना है। इतना बड़ा साधनात्मक आयोजन इस युग में आज तक नहीं हुआ। जिस साधना में लगभग 125000 नैष्ठिक साधक संकल्पपूर्वक संलग्न हों और प्रतिदिन 24000000 गायत्री जप 2400000 आहुतियों का हवन, सवा लाख पाठ, सवा लाख मंत्र लेखन हो, वह अभूतपूर्व ही है। 2400000 व्यक्तियों तक गायत्री माता का संदेश पहुँचाने का ब्रह्मभोज उससे भी अधिक महत्वपूर्ण है। इस साधना के फलस्वरूप विश्व शान्ति के लिए उपयुक्त वातावरण का निर्माण होना निश्चित है।

इतने अधिक तपस्वियों द्वारा सर्वश्रेष्ठ साधना में संलग्न होना एक ऐतिहासिक घटना है। इस सामूहिक तप की शक्ति किरणें आकाश में वह सूक्ष्म तरंगें पैदा करेंगी जिनसे आकर्षित होकर ब्रह्मलोक से दिव्य आत्माएं भूलोक पर आवें और अवतारों की जिम्मेदारी धर्म स्थापना और अधर्म शमन के कार्य को पूरा करें। जब पुष्प खिलते हैं और उनकी सुगंध चारों ओर फैलती है तो मधु मक्खियाँ तथा भौंरे दूर-दूर से खिंच कर चले आते हैं। ब्रह्मास्त्र अनुष्ठान से प्रादुर्भूत तपश्चर्या की दिव्य गंध में अपने मनोवाँछित तत्व देखकर दैवी शक्तियों के अवतरित होने की परिस्थितियाँ बनेंगी। पूर्व काल में भी अवतारों के आह्वान करने के लिये तप आयोजन करने पड़े हैं। किसी समय के मनुष्य इतनी प्रबल आत्म शक्ति से सम्पन्न थे कि उनके व्यक्तिगत प्रयत्न से ही बहुत कुछ कार्य हो जाता था। आज लोगों की आत्मिक दुर्बलता बढ़ गई है तो सामूहिक प्रयत्न काम देंगे। एक पहलवान तीन मन वजन उठा सकता है। पर यदि वहाँ कोई पहलवान न हो तो आठ कमजोर आदमी मिलकर भी उतना वजन उठा सकते हैं। प्राचीन काल में भागीरथ जैसे एक तपस्वी गंगावतरण कर सकते थे। अब वैसे नैष्ठिक नहीं रहे तो सवालक्ष दुर्बल मानस के साधक मिलकर उस समय के एक साधक भागीरथ जैसा पुरुषार्थ तो कर ही सकते हैं। इतने साधकों का सम्मिलित बल उस ही समय के एक तपस्वी जितना तो हो ही सकता है। भारत भूमि पर सद्बुद्धि की ज्ञान गंगा का अवतरण करने के लिए गायत्री-परिवार रूपी भागीरथ बहुत कुछ सफल हो सकता है। हमें आशा करनी चाहिए कि ब्रह्मास्त्र अनुष्ठान की सामूहिक तपस्या के फलस्वरूप इस देश में युगान्तर उपस्थित करने वाली कोई शक्ति उत्पन्न होगी।

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