• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • अभिव्यक्ति
    • अभिव्यक्ति (kavita)
    • आचार्य जी की तप साधना का उद्देश्य
    • स्थूल और सूक्ष्म शक्तियों का स्रोत-गायत्री
    • जीवन का साध्य आत्म ज्ञान
    • Quotation
    • संसार का कल्याण आध्यात्म से ही संभव हैं।
    • आत्म-विश्वास का मर्म
    • धर्म का सच्चा रूप
    • मनःशक्तियों का सदुपयोग
    • पहले स्वयं पर विजय प्राप्त कीजिये
    • चिन्ताओं की उलझन से बाहर निकलिए
    • Quotation
    • साधना में सेवा का महत्व
    • नेहरूजी के जन्म का गुप्त रहस्य
    • Quotation
    • गुरु पूर्णिमा का पुनीत पर्व।
    • सहयोग भावना
    • सहयोग भावना (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • अभिव्यक्ति
    • अभिव्यक्ति (kavita)
    • आचार्य जी की तप साधना का उद्देश्य
    • स्थूल और सूक्ष्म शक्तियों का स्रोत-गायत्री
    • जीवन का साध्य आत्म ज्ञान
    • Quotation
    • संसार का कल्याण आध्यात्म से ही संभव हैं।
    • आत्म-विश्वास का मर्म
    • धर्म का सच्चा रूप
    • मनःशक्तियों का सदुपयोग
    • पहले स्वयं पर विजय प्राप्त कीजिये
    • चिन्ताओं की उलझन से बाहर निकलिए
    • Quotation
    • साधना में सेवा का महत्व
    • नेहरूजी के जन्म का गुप्त रहस्य
    • Quotation
    • गुरु पूर्णिमा का पुनीत पर्व।
    • सहयोग भावना
    • सहयोग भावना (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1960 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


धर्म का सच्चा रूप

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 8 10 Last
(सन्त विनोबा)

श्री रामानुजाचार्य की कथा सभी जानते होंगे। उन्होंने अपने गुरु के मन्त्र को जग विदित करने के लिये स्वयं नरक भोगना भी पसंद किया और देश भर में घूम कर उस मंत्र का खुला उपदेश दिया। उस समय तक ब्रह्मविद्या को गुप्त रखने की हमारे यहाँ परम्परा थी। वह गलत थी, ऐसा मैं नहीं कहता। उसमें भी कुछ सार था। ब्रह्म विद्या को बाजार में बेचने के लिए ले आने पर उसका कुछ मूल्य नहीं रह जाता, इसलिये उसे गुप्त रखने में ही मिठास है। लेकिन उसे प्रकट करने का मिठास भी अलग ही है। महाराष्ट्र में ज्ञानदेव और एकनाथ ने वही किया।

जैसे श्री रामानुज ने हिन्दुस्तान भर में ब्रह्मविद्या के दरवाजे खोल दिये, वैसे ही ज्ञानदेव ने भी महाराष्ट्र में ब्रह्मविद्या की संपन्नता कर दी-”इये मराठिचिये नगरी, ब्रह्मविद्येचा सुकालु करी।” उन्होंने आगे यह भी कहा है-”गुरु शिष्याचिये एकाँती” अर्थात् जो ज्ञान गुरु के मुख से एकान्त में शिष्य को प्राप्त होता है, वही ज्ञान भक्त सारे विश्व को मेघ की तरह गर्जना करके बाँटता है।

उन दिनों ब्रह्म विश्व को दूर रख कर कहीं जा छिपा था, लुप्त हो गया था, वह ध्यान धारणा से ही हाथ लगने की स्थिति में पहुँच गया था। लेकिन ज्ञानदेव ने वह रहस्य सबके सामने प्रकट कर दिया। महाराष्ट्र में ज्ञानदेव ने यह जो महान् पराक्रम किया, रामानुज और चैतन्य ने वही देश भर में किया। वे जहाँ-जहाँ गये, ज्ञान बाँटते गये, स्त्रियाँ, नन्हें-बच्चे और साधारण जनता सबको ज्ञान बाँटते गये। इसी लिए यह भावना है कि चैतन्य भगवान कृष्ण के अवतार ही हुए हैं, क्योंकि उनमें प्रेम साकार हो उठा था।

यह जो प्रेम का धर्म सन्तों ने हमें सिखाया, हमें अब उसे आगे बढ़ाना है। क्योंकि प्रेम का यह धर्म उस काल की जिन मर्यादाओं में बँध गया था, वे मर्यादाएँ आज नहीं हैं। इसलिए आज हम दो पग आगे बढ़ेंगे, संतों के सिखाये ज्ञान को पहचानेंगे, उसे नया रूप देंगे और सारे संसार के सामने रखेंगे। यह इच्छा इस युग के अनुरूप ही है।

अब भक्ति का रूपांतर सर्वोदय में होगा। “सम सर्वेषु भूतेषु”- इस भक्ति को अब ‘पराभक्ति’ नहीं रखना है, ‘सामान्य भक्ति’ बनाना है। किसी एक को ही समाधि में यह अनुभव होता है कि ये प्राणि-मात्र मेरे सखा हैं, सारे भेद मिथ्या हैं, वे मिटने चाहियें। किंतु आज यही अनुभव सबको होना चाहिये। दूसरे शब्दों में, अब सामाजिक समाधि सधनी चाहिए। परमात्मा मेरे मुँह से यह बहुत बड़ी बात कहलवा रहा है। बंगाल की यात्रा में मैं उस जगह पहुँचा था, जहाँ श्री राम कृष्ण परमहंस देव की पहली समाधि लगी थी। तालाब के किनारे उसी जगह बैठ कर मैंने कहा था कि “रामकृष्ण को जो समाधि लगी थी, उसे अब हमें सामाजिक बनाना है।” यह भी ज्ञानदेव ने कह दिया है-”बद्धीचे वैभव अन्य नाहिं दुजे।” अर्थात् एकत्व का अनुभव सबको होना चाहिए।

विज्ञान के इस युग में साम्य योग भी केवल समाधि में अनुभव करने की चीज नहीं रही, अपितु सारे समाज में अनुभव करने की बात बन गयी है। साम्य योग पहले शिखर था, पर अब नींव बन गया है। अब हमें साम्य योग के आधार पर जीवन बनाना चाहिए। यही विज्ञान-युग की माँग है, आवश्यकता है।

हम पीछे कह चुके हैं कि हमें भक्ति का रूपांतर सर्वोदय में करना है। भक्ति का मूलमन्त्र देने वाले थे प्रहलाद। उन प्रहलाद ने नरसिंह भगवान् से यह वर माँगा।

‘प्रायेण देव मुनयः स्वविमुक्तिकामः।

मौनं चरन्ति विजने न परार्थनिष्ठाः॥

नैनान् विहाय कृपणान् विमुमुक्षुरेकः।

-अपनी ही मुक्ति की कामना करने वाले देव और मुनि बहुत हो गये, जो जंगल में जाकर मौन साधना किया करते थे। लेकिन उनमें परार्थ निष्ठा नहीं थी। परन्तु मैं तो इन कृपण जनों को छोड़ कर मुक्त नहीं होना चाहता। यह कितनी कड़ी आलोचना प्रहलाद ने की कि उन मुनियों के पीछे स्वार्थ लगा हुआ था, परार्थ नहीं। ‘मैं अकेला मुक्त नहीं होना चाहता’-यह संस्कृत साहित्य का सर्वश्रेष्ठ उद्गार है। ‘मुझे अकेले को मोक्ष नहीं चाहिए’ इस कथन में प्रहलाद ने कितना कवि-हृदय उड़ेल दिया है।

वास्तव में मोक्ष अकेले पाने की वस्तु नहीं है। जो समझता है कि मोक्ष अकेले हथियाने की वस्तु है, मोक्ष उसके हाथ से निकल जाता है। ‘मैं’ के आते ही मोक्ष उसके हाथ से निकल जाता है। ‘मेरा मोक्ष’ ये शब्द ही परस्पर-विरोधी हैं, गलत हैं। ‘मेरा’ मिटने पर ही मोक्ष मिलता है। इसलिए हमारा कहना है कि हमें सामाजिक समाधि साधनी है।

आज बहुत से साधु इस सामाजिक समाधि या सामूहिक साधना के विचार से काफी दूर हो गये हैं। धर्म की जड़ता ने ही इस असामाजिकता को बढ़ावा दिया है। शास्त्रों की दुहाई देकर भी इसे सिद्ध किया जाता है, पर वह साधुता, वह धर्म और वे शास्त्र निकम्मे हैं, जो सामाजिक साधना की ओर नहीं ले जाते! यदि हमारी साधना और हमारा धर्म समाज के लिए होगा, तो हम स्वतः समाज के लिए उपयोगी साबित होने का प्रयत्न करेंगे।

First 8 10 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • अभिव्यक्ति
  • अभिव्यक्ति (kavita)
  • आचार्य जी की तप साधना का उद्देश्य
  • स्थूल और सूक्ष्म शक्तियों का स्रोत-गायत्री
  • जीवन का साध्य आत्म ज्ञान
  • Quotation
  • संसार का कल्याण आध्यात्म से ही संभव हैं।
  • आत्म-विश्वास का मर्म
  • धर्म का सच्चा रूप
  • मनःशक्तियों का सदुपयोग
  • पहले स्वयं पर विजय प्राप्त कीजिये
  • चिन्ताओं की उलझन से बाहर निकलिए
  • Quotation
  • साधना में सेवा का महत्व
  • नेहरूजी के जन्म का गुप्त रहस्य
  • Quotation
  • गुरु पूर्णिमा का पुनीत पर्व।
  • सहयोग भावना
  • सहयोग भावना (kavita)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj