• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • क्या असम्भव है धरा पर— (कविता)
    • प्राकृतिक चिकित्सा का अध्यात्म
    • प्राकृतिक चिकित्सा क्या है?
    • कीटाणु नहीं विजातीय द्रव्य
    • विजातीय द्रव्य की उत्पत्ति और वृद्धि
    • पंच तत्व−चिकित्सा का आश्चर्यजनक प्रभाव
    • शारीरिक मल का निष्कासन—उपवास
    • पेट के भीतरी कल पुर्जों की सफाई−एनीमा
    • जल−चिकित्सा के सिद्धान्त और उपचार
    • मिट्टी समस्त रोगों की रामबाण औषधि है
    • सूर्य चिकित्सा या धूप−स्नान
    • वायुस्नान और प्राणायाम
    • मानसोपचार का महत्व कम नहीं है
    • रोगोपचार में मालिश का महत्व
    • प्राकृतिक चिकित्सा में जड़ी− बूटियों का स्थान
    • शरीर शोधन के लिये ‘पंच−कर्म’
    • गायत्री विद्या के अमूल्य ग्रन्थ रत्न
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • क्या असम्भव है धरा पर— (कविता)
    • प्राकृतिक चिकित्सा का अध्यात्म
    • प्राकृतिक चिकित्सा क्या है?
    • कीटाणु नहीं विजातीय द्रव्य
    • विजातीय द्रव्य की उत्पत्ति और वृद्धि
    • पंच तत्व−चिकित्सा का आश्चर्यजनक प्रभाव
    • शारीरिक मल का निष्कासन—उपवास
    • पेट के भीतरी कल पुर्जों की सफाई−एनीमा
    • जल−चिकित्सा के सिद्धान्त और उपचार
    • मिट्टी समस्त रोगों की रामबाण औषधि है
    • सूर्य चिकित्सा या धूप−स्नान
    • वायुस्नान और प्राणायाम
    • मानसोपचार का महत्व कम नहीं है
    • रोगोपचार में मालिश का महत्व
    • प्राकृतिक चिकित्सा में जड़ी− बूटियों का स्थान
    • शरीर शोधन के लिये ‘पंच−कर्म’
    • गायत्री विद्या के अमूल्य ग्रन्थ रत्न
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1962 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


रोगोपचार में मालिश का महत्व

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 14 16 Last
मालिश करने की प्रथा बहुत प्राचीन है। मिश्र, चीन, यूनान, रोम आदि प्राचीन देशों में स्वास्थ्य वृद्धि और पीड़ा निवारण के लिये मालिश के उपयोग का उल्लेख मिलता है। इतिहास बतलाता है कि रोम का प्रसिद्ध सम्राट जुलियस सीजर, जो अब से लगभग दो हजार वर्ष पूर्व हुआ था, शरीर के दर्द को मिटाने के लिये नित्य मालिश कराता था। भारतवर्ष की प्राचीन कथाओं तथा अन्य प्रसिद्ध ग्रन्थों में मालिश का वर्णन पाया जाता है। मुसलमानी शासन काल में बड़े लोग विलासिता के भाव से प्रायः मालिश कराया करते थे और उस समय दिल्ली, लखनऊ, आगरा जैसी राजधानियों में निपुण मालिश करने वालों का एक समुदाय ही बन गया था।

अब आधुनिक युग में अन्य विषयों की भाँति चिकित्सा−विज्ञान के ज्ञाताओं ने मालिश के सम्बन्ध में भी खोजबीन की है और उसके सम्बन्ध में ऐसे अनेक रोग निवारक तथ्यों को खोज निकाला है जिन पर पहले जमाने में कदाचित ही ध्यान दिया जाता था। अब मालिश का उपयोग विशेषतः शरीर के रक्त −संचरण को ठीक करने की दृष्टि से किया जाता है। साथ ही उसके द्वारा शरीर के किसी खास अंग या भाग में एकत्रित विजातीय द्रव्य फैलकर हट जाता है और क्रमशः बाहर निकल जाता है। अच्छी मालिश के जरिये शरीर के महत्वपूर्ण यंत्र सजीव हो जाते हैं, उनमें चैतन्यता की वृद्धि हो जाती है।

मालिश के चार विभाग

मालिश को चार भागों में बाँटा गया है—रचनात्मक, ध्वंसात्मक, शान्तिदायक और उत्तेजनात्मक। रचनात्मक मालिश का उद्देश्य नये कोषों के निर्माण कार्य का प्रोत्साहित करना और निर्बल माँस−पेशियों को पुष्ट करना होता है। इससे रक्त संचार सुधरता है और शरीर निर्माण के कार्य में सहायता मिलती है। ध्वंसात्मक मालिश का प्रयोग शरीर के भीतर अस्वाभाविक गाँठ, सूजन, कड़ापन आदि को मिटाने के लिये किया जाता है। शान्तिदायक मालिश अंगों की पीड़ा या दर्द को मिटाने के लिये की जाती है। जब नसों या पुट्ठों में किसी तरह के तनाव के कारण पीड़ा जान पड़ती हो तो उसे मिटाने के लिये हलके ढंग से मालिश की आवश्यकता होती है। इसके लिये धीरे−धीरे थपकी देना, मलना, कम्पन देना आदि क्रियाएँ की जाती हैं। उत्तेजनात्मक मालिश की आवश्यकता उस समय होती है जब गठिया या कि ऐसी अन्य व्याधि के कारण किसी अंग की नसें या माँस पेशियाँ न्यूनाधिक निष्क्रिय होने लगी हों। इसके लिये पोले हाथ से थपकी मारना, ठोंकना, पीटना, हिलाना आदि क्रियाएँ की जाती हैं। यदि मालिश करने वाला इनको नियमानुसार करना जानता हो तो अंगों में चैतन्यता का संचार होने लगता है।

कुछ अन्य लेखकों ने मालिश के विभाग अन्य दृष्टि से किये हैं और उनके नाम (1) घर्षण (2) दलन (3) कम्पन (4) थपकी (5) संधिचालन निर्धारित किये हैं। यद्यपि इन सभी विधियों का आवश्यकतानुसार प्रयोग किया जाता है, पर ज्यादा प्रयोग घर्षण का ही करना पड़ता है। इसके लिये चर्म को कुछ दबाते हुये और हाथ को घुमाते हुये मालिश करनी चाहिये। यह मालिश सदैव नीचे से ऊपर की ओर की जाती है अर्थात् खून को ठेलकर हृदय की तरफ ले जाया जाता है। घर्षण में ज्यादा जोर लगाना आवश्यक नहीं होता, केवल जब हाथ अन्तिम स्थान तक पहुँचे तो थोड़ा जोर बढ़ा देना चाहिये। बीच में हड्डियों के आने पर हाथ को हलका कर देना चाहिये।

दलन में शरीर की माँस पेशियों को पकड़ कर दबाया जाता है। जोरदार दलन में माँस पेशियों को मुट्ठी में भर कर खींचा और दबाया जाता है। हाथ−पाँव दबाने में दलन− क्रिया से ही काम लिया जाता है। मरोड़ कर दबाना भी दलन क्रिया के अन्तर्गत ही आता है।

कम्पन द्वारा मालिश विशेष अभ्यास द्वारा ही सीखी जाती है। शरीर के विभिन्न स्थानों में उँगलियाँ या पूरी हथेली द्वारा कम्पन उत्पन्न किया जाता है। इससे स्नायुओं के उत्तेजित होने में सहायता मिलती है। शरीर के भीतरी यंत्र भी इसके प्रयोग से उद्दीप्त होते हैं। पेट, आमाशय, यकृत आदि पर इसका प्रभाव बहुत लाभदायक होता है।

थपकी की विधि से मालिश करना विशेष आरामप्रद और प्रभावशाली होता है। हाथ को फैलाकर और कड़ा करके माँसल अंगों पर थपथपाने से उस स्थान में शीघ्र ही गर्मी आ जाती है। दूसरी विधि यह है कि दोनों हथेलियों को खड़ा करके बगल से थपथपाया जाता है। इसका प्रयोग हड्डी के ऊपर करना वर्जित है। तीसरी विधि यह है कि हथेली को कटोरी की तरह पोली बना कर किसी अंग पर थपथपाते हैं। इसमें दोनों हाथ एक साथ चलते हैं। एक गिरता है तो दूसरा उठता है। यह प्रयोग अजीर्ण की अवस्था में पेट के ऊपर अत्यन्त लाभदायक सिद्ध होता है। इसी प्रकार हाथ को पंजे की तरह बना कर केवल उँगलियों के सिरे से किसी स्थान को ठोका जाता है अथवा दोनों हाथों की मुट्ठियाँ बाँधकर किसी अंग पर धीरे−धीरे मुक्की मारी जाती है। इन कई प्रकार की थपकियों के प्रयोग से पीलिया, स्नायु शूल, आमाशय की कमजोरी, कोष्ठबद्धता, स्त्रियों के मासिक की रुकावट, मूत्राशय की निर्बलता आदि शिकायतों में बहुत लाभ होता है।

संधि−संचालन या जोड़ों का घुमाना, एक विशेष प्रकार की मालिश है, जिससे घुटने, कन्धे आदि के जोड़ों में तकलीफ हो जाने से शीघ्र लाभ हो सकता है। इसमें पहले जोड़ों को घुमा फिराकर फिर खींचा जाता है। यदि रोगी ज्यादा निर्बल न हो तो खींचते समय उसे भी अपनी तरफ खींचना चाहिये। इस मालिश से बात रोग, गठिया आदि की दशा में विशेष लाभ होता है।

जब पूरे शरीर की मालिश करनी हो तो पहले हाथों की हथेलियों से ही आरम्भ करना चाहिये। फिर कन्धे तक की बाँह को नीचे से ऊपर कई बार रगड़ना चाहिये। हाथों के बाद पैरों की मालिश की जाय। फिर क्रम से छाती , पेट, चूतड़ और पीठ को मला जाय। इन सब में जो अंग जैसा हो वहाँ वैसी ही घर्षण, दलन और संधि संचालन की विधि से मालिश की जाती है। जिन लोगों ने इस कला का वैज्ञानिक ढंग से अध्ययन और अभ्यास किया है वे अनेक कठिन रोगों को केवल मालिश द्वारा ही दूर कर देते हैं।

First 14 16 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • क्या असम्भव है धरा पर— (कविता)
  • प्राकृतिक चिकित्सा का अध्यात्म
  • प्राकृतिक चिकित्सा क्या है?
  • कीटाणु नहीं विजातीय द्रव्य
  • विजातीय द्रव्य की उत्पत्ति और वृद्धि
  • पंच तत्व−चिकित्सा का आश्चर्यजनक प्रभाव
  • शारीरिक मल का निष्कासन—उपवास
  • पेट के भीतरी कल पुर्जों की सफाई−एनीमा
  • जल−चिकित्सा के सिद्धान्त और उपचार
  • मिट्टी समस्त रोगों की रामबाण औषधि है
  • सूर्य चिकित्सा या धूप−स्नान
  • वायुस्नान और प्राणायाम
  • मानसोपचार का महत्व कम नहीं है
  • रोगोपचार में मालिश का महत्व
  • प्राकृतिक चिकित्सा में जड़ी− बूटियों का स्थान
  • शरीर शोधन के लिये ‘पंच−कर्म’
  • गायत्री विद्या के अमूल्य ग्रन्थ रत्न
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj