• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • विश्व-प्रेम ही ईश्वर प्रेम
    • Quotation
    • Quotation
    • अमृत और उसकी प्राप्ति
    • इन्द्रिय संयम की आवश्यकता
    • चिन्ताएँ छोड़िये, काम में जुटिये।
    • विक्षुब्ध जीवन, शान्तिमय कैसे बने?
    • मान्यताओं का निष्पक्ष निर्णय किया जाये।
    • अमर योगी—श्री अरविंद घोष
    • Quotation
    • रामायण की प्रेम-परिभाषा
    • सादगी बरतें और स्वच्छ रहें।
    • आलस्य का पाप धो डालिये।
    • पारिवारिक बजट बनाकर खर्च कीजिए।
    • देशभक्त पुरु-जो सिकन्दर के आगे झुका नहीं
    • परिवार का वातावरण धार्मिक हो
    • उत्सवों के नाम पर उद्दण्डता अवाँछनीय है।
    • निराश्रिताओं को आश्रय देने वाली निराश्रिता-रमाबाई
    • पाचन-क्रिया स्वास्थ्य का मूल है—इसे ठीक रखिए।
    • बच्चे आपके सच्चे मित्र
    • कसौटी पर खोटे नहीं, हम खरे सिद्ध हों।
    • आप शक्ति -पुरुश्चरण में सम्मिलित रहें ही
    • जेष्ठ में मथुरा पधारिए।
    • संस्कार एवं पर्वों का विधान सिखाने के शिविर
    • नव-निर्माण का प्रेणाप्रद साहित्य
    • ज्योति के अंकुर कहाँ हैं?
    • ज्योति के अंकुर कहाँ हैं (Kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • विश्व-प्रेम ही ईश्वर प्रेम
    • Quotation
    • Quotation
    • अमृत और उसकी प्राप्ति
    • इन्द्रिय संयम की आवश्यकता
    • चिन्ताएँ छोड़िये, काम में जुटिये।
    • विक्षुब्ध जीवन, शान्तिमय कैसे बने?
    • मान्यताओं का निष्पक्ष निर्णय किया जाये।
    • अमर योगी—श्री अरविंद घोष
    • Quotation
    • रामायण की प्रेम-परिभाषा
    • सादगी बरतें और स्वच्छ रहें।
    • आलस्य का पाप धो डालिये।
    • पारिवारिक बजट बनाकर खर्च कीजिए।
    • देशभक्त पुरु-जो सिकन्दर के आगे झुका नहीं
    • परिवार का वातावरण धार्मिक हो
    • उत्सवों के नाम पर उद्दण्डता अवाँछनीय है।
    • निराश्रिताओं को आश्रय देने वाली निराश्रिता-रमाबाई
    • पाचन-क्रिया स्वास्थ्य का मूल है—इसे ठीक रखिए।
    • बच्चे आपके सच्चे मित्र
    • कसौटी पर खोटे नहीं, हम खरे सिद्ध हों।
    • आप शक्ति -पुरुश्चरण में सम्मिलित रहें ही
    • जेष्ठ में मथुरा पधारिए।
    • संस्कार एवं पर्वों का विधान सिखाने के शिविर
    • नव-निर्माण का प्रेणाप्रद साहित्य
    • ज्योति के अंकुर कहाँ हैं?
    • ज्योति के अंकुर कहाँ हैं (Kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1966 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
SCAN TEXT


कसौटी पर खोटे नहीं, हम खरे सिद्ध हों।

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 20 22 Last
अखण्ड-ज्योति परिवार के परिजनों को नवनिर्माण का उत्तरदायित्व सौंपते हुए हम निरन्तर यह आशा करते रहते हैं कि इस परम पुनीत आध्यात्मिक एवं सामाजिक कर्तव्य की पूर्ति के के लिए भी वे वैसा ही ध्यान देंगे और प्रयत्न करेंगे जैसी कि आजीविका उपार्जन एवं पारिवारिक सुख-सुविधाओं के लिये करते हैं। जो इस ओर उपेक्षा बरतते हैं उनके बारे में हम यही सोचते हैं कि उन्हें अखण्ड-ज्योति बाँचने का शौक भले ही हो, हमसे व्यक्तिगत परिचय, मोह भले ही हो पर वे उस मिशन के लिए कुछ करना नहीं चाहते जो अखण्ड-ज्योति का, हमारा, जीवन-प्राण है। युग की माँग एवं पुकार को पूरा करने के लिए प्रबुद्ध, जागृत आत्माओं को सक्रिय रूप में कुछ कदम उठाने पड़ते हैं, कुछ त्याग तप का परिचय देना पड़ता है। यह सब जिन्हें अरुचिकर, उपेक्षणीय, निरर्थक, भारस्वरुप लगता है, उन्हें उत्कृष्टता के, आदर्शवादिता के पथ का पथिक कैसे माना जाय? और कैसे यह समझा जाय कि अखण्ड-ज्योति की प्रेरणा को सचाई से सुना समझा है। हमारे आत्मीयों को, हमारे मार्ग पर भी चलना चाहिए। कौन कितना हमारे साथ है, उस कसौटी पर परिजनों की आत्मीयता को परखें तो इसमें कुछ भी अनुचित न होगा।

भौतिकवादी दृष्टिकोण को गौण बनाते हुए हम अध्यात्मवादी दृष्टिकोण को प्रमुखता दें और उसी के अनुरूप अपनी गतिविधियों को ढालें, यही समग्र सच्ची आध्यात्मिकता का, ईश्वर एवं स्वर्ग मुक्ति प्राप्त कर सकने का एक सरल मार्ग है। उपासना एक अच्छा अवलम्बन है पर उसके साथ जीवन की दिशा परिवर्तन अनिवार्य रूप से आवश्यक है। इसके बिना कोई भी साधना—चाहे वह कितनी भी क्यों न हो, कदापि लक्ष्य प्राप्त करा सकने में समर्थ नहीं हो सकती।

देशकाल पात्र के अनुरूप सामाजिक परिस्थितियों के अनुसार आध्यात्मिक साधनाओं के स्वरूप भी बनते बदलते रहते हैं। आज की परिस्थिति में आत्म-कल्याण का मार्ग ईश्वर उपासना के साथ-साथ जन-जागरण के नव-निर्माण के साधना क्रम को जोड़ देना भी आवश्यक हो गया। इसलिए हर अध्यात्म प्रेमी की यही युग-साधना हो सकती है कि वह अपने भौतिक जीवन में जिस तरह आजीविका उपार्जन को अनिवार्य कर्त्तव्य मानता है, उसी प्रकार साधना क्षेत्र में उपासना के साथ-साथ लोक मंगल की प्रक्रिया को भी अविच्छिन्न रूप में जोड़ ले।

सच्चे लोक मंगल के लिए विचार-क्रान्ति अनिवार्य है। पिछले दो हजार वर्ष के गन्दे और कलुषित भूतकाल के अन्धकारमय अतीत को पार करते हुए हम वर्तमान प्रकाश युग में प्रवेश करने चले हैं। जिस प्रकार कीचड़ भरे नाले को पार करने पर शरीर और वस्त्र सभी गन्दे हो जाते हैं और सब से प्रथम उसे धोने, साफ करने की आवश्यकता पड़ती है, उसी तरह हमें पिछले अन्धकार युग की मानसिक विकृतियों, धारणाओं, कुँठाओं एवं रूढ़ियों से ग्रस्त मस्तिष्कों की भी सफाई करनी पड़ेगी। इसी का नाम विचार क्रान्ति है। यही नव निर्माण की पृष्ठभूमि है। विचार परिष्कार से ही तो कार्यों में उत्कृष्टता का समावेश सम्भव हो सकेगा।

अखण्ड-ज्योति के हर सदस्य को अपने इस अविस्मरणीय कर्त्तव्य को सामने रखना चाहिये कि उसे एक पत्रिका का पाठक मात्र नहीं रहना है वरन् उसे एक युग निर्माता की भूमिका प्रस्तुत करनी है। “एक से दस” हमारी युग साधना का बीज मंत्र है। जिन विचारों को युग निर्माण योजना के प्रकाश से ग्रहण किया जा रहा है, उसे कम से कम दस दूसरों तक तो हमें पहुँचाना ही चाहिए। इसमें जो समय लगता हो उसे नवयुग अरुणोदय की पुण्य बेला में नियोजित ज्ञान-यज्ञ में दी जाने वाली आहुतियों की तरह श्रेयस्कर मानना चाहिये। इस संदर्भ में लगने वाले समय की आवश्यकता उपयोगिता एवं महत्ता हमें समझनी चाहिए। साथ ही आलस्य, प्रमाद या संकीर्णता के कारण जो उपेक्षा रहती है उसे साहसपूर्वक हटा देने के लिए तत्पर होना चाहिए।

हम में से जो भी, जहाँ भी है, वहाँ उसे ‘एक से दस’ का सूत्र याद रखना चाहिए और यह प्रयत्न करना चाहिए कि जो प्रकाश उस तक पहुँच रहा है वह उतने तक ही अवरुद्ध न रहकर दूसरे दसों तक और भी पहुँचे। हर परिवार में कई नर-नारी, बाल-वृद्ध होते हैं, उनमें से जो पढ़े हैं, जिसकी रुचि जागृत है—उन्हें साहित्य पढ़ने को देकर और जो पढ़े नहीं हैं या जिन्हें रुचि नहीं है उन्हें सुना कर जन-जागरण का कर्त्तव्य पालन करना चाहिए। अपने घर का कोई भी सदस्य ऐसा न रहे जिसे अखण्ड-ज्योति के, युग-निर्माण के विचारों का परिचय एवं प्रकाश निरन्तर नियमित रूप में न मिलता हो। जिन परिजनों ने यह व्यवस्था अभी तक नहीं बनाई है, उन्हें अब निश्चित रूप से यह बना लेनी चाहिए। किसी न किसी प्रकार घर के हर सदस्य को इन विचारों को पढ़ने, सुनने के लिए सहमत कर ही लेना चाहिए। यदि इतना हो सका तो समझा जायगा कि उनने लोक मंगल की दिशा में सचाई से एक ठोस कदम उठाया।

इसके अतिरिक्त बाहर के भावनाँवित उन व्यक्तियों को भी प्रभावित करना चाहिए जो अपने प्रभाव क्षेत्र में आते हैं। अपनी अखण्ड-ज्योति, अपनी युग निर्माण पत्रिका अपने जन-जागरण ट्रैक्ट उन्हें नियमित रूप से पढ़ने देने और वापिस लेने का क्रम चलाना चाहिए। एक आना नित्य और एक घंटा समय नित्य देते रहने का संकल्प, हमसे सच्चा सम्बन्ध रखने वाले प्रायः सभी परिजन ले चुके हैं। कोई विरले ही ऐसे होंगे जिनने इतना छोटा त्याग करने में भी कृतज्ञता न दिखाई हो। जिनने अभी वह संकल्प न लिया हो उन्हें अब अविलम्ब ले लेना चाहिये और इस समय तथा धन को अपने समीपवर्ती क्षेत्र में नवयुग का प्रकाश फैलाने के जन-जागरण के पुण्य प्रयोजन में लगाना आरम्भ कर देना चाहिये। एक आना नित्य बचाने से—हर परिजन का अपना अत्यन्त प्रभावशाली प्रेरणा से ओत-प्रोत युग-निर्माण पुस्तकालय, ज्ञान मन्दिर सुसंचालित रह सकता है। इतनी सी छोटी धन राशि में दोनों पत्रिकाएं, तथा हर महीने छपने वाले सर्वांग सुन्दर अत्यन्त सस्ते 5 ट्रैक्टों को पढ़ाने का क्रम जारी रखा जाय, तो थोड़े ही दिनों में उसका आशाजनक परिणाम दृष्टिगोचर होगा। प्रतीत होगा कि अपना संपर्क पाकर सम्पूर्ण परिवार तेजी से उत्कृष्टता की ओर विकसित होता चला जा रहा है। उसमें से पशुता नष्ट होती और मनुष्यता विकसित होती चल रही है। देव समाज की स्थापना—नव युग निर्माण की भूमिका इसी प्रकार तो बनेगी। अगले दिनों युग परिवर्तन के लिए जिन महान कार्यों का आयोजन किया जाना है वह इसी प्रकार की सुविकसित मनोभूमि के लोगों द्वारा होना सम्पन्न होगा।

एक से दस! एक से दस!! एक से दस!!! यह युग निर्माण का मंत्र हमें सौ बार दुहराना और हजार बार हृदयंगम करना चाहिए। यह मानकर चलना चाहिए कि इस महान उत्तरदायित्व को हम जागृत आत्माओं को पूरा करना ही चाहिये। यदि अब तक इस दिशा में उपेक्षा बरती जाती रही है तो आज ही वह शुभ दिन है जिससे उसे त्यागकर प्रबुद्ध परिवार के समर्थ सदस्य बनने के लिये उपयुक्त आवश्यक सक्रियता का परिचय देने के लिये कदम उठाया जाय। किन दस को हमने प्रभावित प्रकाशित किया? इसका उत्साहवर्धक उत्तर हमारे पास होना ही चाहिये। हाथी के बच्चे हाथी ही होते हैं। अखण्ड-ज्योति लाखों को प्रेरणा और प्रकाश देती है तो क्या उसके पुत्र दस-दस का प्रकाश देने का उत्तरदायित्व भी वहन न करेंगे। हाथी की सन्तानों को हाथी जैसी क्षमता ही प्रकट करनी चाहिये।

जहाँ जितने अखण्ड-ज्योति सदस्य हैं, उन्हें एक परिवार जैसा संगठन गठित करना चाहिये। इस युग की सबसे बड़ी सामर्थ्य संघ शक्ति है। संगठन के द्वारा ही भावनात्मक नव निर्माण के स्वप्न सार्थक होंगे। अतएव समस्त राष्ट्र और विश्व को संगठित करने के लिये सबसे पहले हमें अपने परिवार को सुसंगठित कर लेना चाहिये।

इसके लिये एक अत्यन्त ही सरल, सफल एवं अद्भुत परिणाम उत्पन्न करने वाली प्रक्रिया “जन्म-दिन मनाने की प्रक्रिया है। यों अगले दिनों हमें समाज को सुसंस्कृत बनाने के लिए एक महान उपचार रूप में—षोड्ष संस्कारों का भी व्यापक रूप में प्रचलन करना है,पर अभी तत्काल तो सदस्यों के जन्म दिन मनाने की प्रथा का अविलम्ब प्रचलन आरम्भ कर देना चाहिये। यह प्रयोग जहाँ कहीं भी आरम्भ हुआ है वहाँ जादू जैसा परिणाम निकला है। मृत प्रायः शाखा संगठन नवजीवन लेकर हुँकारते हुये उठ खड़े हुए हैं।

स्थानीय सदस्यों का जन्म दिन नोट कर लिया जाय। जिस दिन जिनका जन्म दिन हो उस दिन उसके यहाँ उत्सव समारोह रहे। गायत्री यज्ञ किया जाय। हवन का खर्च कम करने के लिये ऐसा हो सकता है कि पति-पत्नी या कोई और एक साथ लेकर दो ही व्यक्ति हवन करें। सामूहिक जप, कीर्तन, संकल्प पाठ आदि के अतिरिक्त जीवन की महत्ता एवं सदुपयोग पर प्रवचन हो। ऐसा एक प्रवचन इसी महीने ट्रैक्ट रूप में छप भी रहा है। सभी आगन्तुक शुभ-कामना के रूप में पुष्प भेंट करें। अतिथि सत्कार सुपाड़ी, इलायची, सौंफ, पंचामृत शरबत जैसी सस्ती चीजों से हो। मिठाई आदि खर्चीली चीजों का प्रतिबन्ध रहे। सम्भव हो तो सत्य नारायण कथा भी रखी जाय। इस प्रकार यह दो घंटे का आयोजन दिन छिपे बाद हर जगह आसानी से हो सकता है और जिसका जन्म दिन था उसके स्वजन सम्बन्धी पड़ौसी आदि के नये व्यक्ति भी एकत्रित होने पर अपनी विचारधारा के प्रचार का नया अवसर मिल सकता है। संसार भर में जन्म दिन किसी व्यक्ति के जीवन का सबसे बड़े, सहज महत्व के व्यक्ति गत त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। हम भी इसे मनाएं, केवल खुशी व्यक्त करने के रूप में ही नहीं, उस व्यक्ति को नया प्रकाश देने के लिये, संगठन मजबूत बनाने के लिये और युग-निर्माण का कार्यक्षेत्र बढ़ाने के लिये। इस प्रकार यह छोटी-सी प्रक्रिया यदि कोई उत्साही व्यक्ति अपने क्षेत्र में चलाने लगे तो वे देखेंगे कि इस साधारण से प्रयोग ने उस क्षेत्र में कैसी मंगलमयी हलचल का सृजन कर दिया।

जहाँ भी अखण्ड-ज्योति पहुँचती है, वहाँ उसका पहुँचना सार्थक हुआ या नहीं यह इस कसौटी पर परखा जायगा जब यह प्रतीत हो कि वहाँ कुछ संगठनोत्पादक एवं प्रचारात्मक हलचल भी चल रही है या नहीं? जहाँ जो भी प्रबुद्ध परिजन हों उन्हें यह कसौटी अपने लिए व्यक्तिगत चुनौती के रूप में ग्रहण करनी चाहिए, और कुछ करने के लिये योजना बनानी चाहिये। हिम्मत दिखानी चाहिए। हर शाखा का एक केन्द्र कार्यालय होना ही चाहिए जहाँ सामूहिक पुस्तकालय हो। सदस्य समय-समय पर वहाँ विचार विनिमय के लिए इकट्ठे होते रहा करें और साथ ही जीवन की उत्कृष्टता विवेकशील एवं दूरदर्शिता को प्रेरणा देने वाले साहित्य का भी लाभ उठाते रहा करें।

नव निर्माण की यह प्रारम्भिक प्रक्रिया अखण्ड-ज्योति के हर सदस्य को आरम्भ कर ही देना चाहिए। अखण्ड-ज्योति अपने श्रम की सार्थकता तभी मानेगी जब उसके परिजन उसका प्रकाश इतना हृदयंगम भी करें कि लोकमंगल की दिशा में कुछ करना उनके लिये अनिवार्य हो जाय। इसके बिना उनसे रहा ही न जाय। आशा है परिजन! आप—इस कसौटी पर खोटे नहीं, खरे उतरेंगे।

First 20 22 Last


Other Version of this book



Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...

Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • विश्व-प्रेम ही ईश्वर प्रेम
  • Quotation
  • Quotation
  • अमृत और उसकी प्राप्ति
  • इन्द्रिय संयम की आवश्यकता
  • चिन्ताएँ छोड़िये, काम में जुटिये।
  • विक्षुब्ध जीवन, शान्तिमय कैसे बने?
  • मान्यताओं का निष्पक्ष निर्णय किया जाये।
  • अमर योगी—श्री अरविंद घोष
  • Quotation
  • रामायण की प्रेम-परिभाषा
  • सादगी बरतें और स्वच्छ रहें।
  • आलस्य का पाप धो डालिये।
  • पारिवारिक बजट बनाकर खर्च कीजिए।
  • देशभक्त पुरु-जो सिकन्दर के आगे झुका नहीं
  • परिवार का वातावरण धार्मिक हो
  • उत्सवों के नाम पर उद्दण्डता अवाँछनीय है।
  • निराश्रिताओं को आश्रय देने वाली निराश्रिता-रमाबाई
  • पाचन-क्रिया स्वास्थ्य का मूल है—इसे ठीक रखिए।
  • बच्चे आपके सच्चे मित्र
  • कसौटी पर खोटे नहीं, हम खरे सिद्ध हों।
  • आप शक्ति -पुरुश्चरण में सम्मिलित रहें ही
  • जेष्ठ में मथुरा पधारिए।
  • संस्कार एवं पर्वों का विधान सिखाने के शिविर
  • नव-निर्माण का प्रेणाप्रद साहित्य
  • ज्योति के अंकुर कहाँ हैं?
  • ज्योति के अंकुर कहाँ हैं (Kavita)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj