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संगीत एक भावनात्मक घिराव है, जो मनुष्य को चारों ओर से अपने पाश में जकड़ने का प्रयत्न करता है।
-जाँ कोक्त
‘उन मनुष्यों को- जो नम्र हैं- धन्य है, क्योंकि उनका स्थान स्वर्ग में निश्चित है’
-मैथ्यू अध्याय 5।3
‘वे मनुष्य- जिनका हृदय शुद्ध है- धन्य हैं, क्योंकि वे परमेश्वर से मिल सकेंगे।’
-मैथ्यू अध्याय 5।8
उन मनुष्यों को- जिन पर सत्यता के कारण अत्याचार किया जाता है-धन्य हैं क्योंकि उनके लिए स्वर्ग में स्थान सुरक्षित है।
-मैथ्यू अध्याय 5।10
‘प्राचीन समय से कहते आते हैं कि तू किसी को मत मार, क्योंकि न्याय के दिन हिंसक मनुष्य विपत्ति में पड़ जायेगा, परन्तु मैं तुमसे कहता हूँ कि जो मनुष्य अपने किसी भाई से, बिना विशेष कारण के, अप्रसन्न होगा, वह भी न्याय के दिन आपत्ति में पड़ेगा। जो मनुष्य अपने भाई से अप-शब्द कहेगा, उसके साथ भी पंचायत कठोरता का बर्ताव करेगी। जो दूसरे मनुष्य को मूर्ख कहेगा, उसको नरक की यातनाएँ सहनी होंगी।’
-मैथ्यू अध्याय 5।21-22
‘प्राचीन समय से कहते आये हैं कि तू व्यभिचार मत कर, परन्तु मैं तुमसे कहता हूँ कि जो पुरुष किसी स्त्री को काम-दृष्टि से देखता है, वह व्यभिचार का दोषी होता है, क्योंकि उसने अपने हृदय में उस स्त्री से काम सेवन कर लिया ।’
-मैथ्यू अध्याय 5।28-29
‘यह कहा जाता है कि आँख के बदल आँख, पैर के बदले पैर,’ (अर्थात् जैसे को तैसा) परन्तु मैं तुमसे कहता हूँ कि बुराई के बदले बुराई मत कर यदि कोई मनुष्य तुम्हारे दाहिने गाल पर थप्पड़ मारे, तो तुम उसकी ओर बांया गाल भी कर दो।’
-मैथ्यू अध्याय 5।38.39
‘यह कहा जाता है कि तुम अपने पड़ोसी से प्रेम एवं शत्रु से द्वेष करो, परन्तु मैं तुमसे कहता हूँ कि तुम अपने शत्रुओं से प्रेम करो, जो तुमको अपशब्द कहें, उन्हें आशीर्वाद दो, जो तुमसे घृणा करते हों उनके साथ भलाई करो, जिनका बर्ताव तुम्हारे साथ बुरा हो और जो तुम पर अत्याचार करते हों, उनके आत्म कल्याण के लिए प्रार्थना करो।’
-मैथ्यू अध्याय 5।44-45
‘तम जो दान दो, उसकी सूचना बांये हाथ को भी न होने दो। तुम्हारा दान गुप्त होना चाहिए। ईश्वर गुप्त दान को देखता है, वह तुमको गुप्त दान का पुरस्कार देगा।’
-मैथ्यू अध्याय 6।3-4