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Magazine - Year 1979 - July 1979

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


अपने को धन्य बनाया (kahani)

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First 17 19 Last
राजा उदावर्त बहुमूल्य रत्न-राशि लेकर महर्षि कणादि के आश्रम में पहुँचे, और वह भेंट करते हुए ब्रह्मविद्या का उपदेश करने की प्रार्थना की।

महर्षि ने धन को अनावश्यक कर कह लौटा दिया और एक वर्ष ब्रह्मचर्य पालन करने के उपरान्त पुनः आने पर उपदेश की सम्भावना व्यक्त की।

राजा निराश लौट रहे थे। उन्हें बुरा भी लगा और क्षोभ भी आया।

मन्त्री द्युतिकीर्ति ने उनकी खिन्नता दूर करते हुए कहा-राजन्! भूखे को ही अन्न पचता है। जिज्ञासु को ही ज्ञान का लाभ मिलता है। ऋषि ने एक वर्ष ब्रह्मचर्य रहने की शर्त लगाकर आपकी जिज्ञासा को परखा है। यदि आप उनकी कसौटी पर खरे उतरे तो आपको ब्रह्म-विद्या का लाभ अवश्य प्राप्त होगा, अनधिकारी में ज्ञान को पचाने की सामर्थ्य नहीं होती। मनोरंजन के लिये कुछ कहने में समय की बर्बादी समझकर ऋषि ने लौटाया है। उसमें बुरा न मानें।

ऋषि का अभिप्राय उदावर्त की समझ में आ गया, वे एक वर्ष से रह और आध्यात्मिक ज्ञान के अधिकारी बन कर जब पुनः आश्रम में समित्पाणि होकर पहुंचे तो कणाद ने उन्हें छाती से लगा लिया और कहा, निरहंकारी, धैर्यवान और श्रद्धावान जिज्ञासु ही ब्रह्मज्ञान के अधिकारी होते हैं। अब मैं कुछ कहूंगा और आप ब्रह्म-विद्या का सच्चा लाभ उठावेंगे।

उदावर्त ने ब्रह्म-ज्ञान पाया और अपने को धन्य बनाया।

First 17 19 Last


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July 1979
Type: TEXT
Language: HINDI
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Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
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