• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • चतुर बनें या बुद्धिमान?
    • हमारी जीवननौका का एकमात्र खिवैया
    • अंतरात्मा की प्यास और तृप्ति
    • कर्मफल का अकाट्य सिद्धांत (कहानी)
    • ईश-विश्वास किसी का, कभी निष्फल नहीं गया
    • सद्वाक्य
    • सर्वव्यापी परमेश्वर की दिव्य सत्ता
    • सेवा-भावना (कहानी)
    • धर्मधारणा में सापेक्ष-क्षमाशीलता
    • सद्वाक्य
    • बुद्धिमत्ता की वर्णमाला नए सिरे से
    • फकीरी धूल में मिल गई (कहानी)
    • धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की वास्तविकता—2
    • ज्ञानेन्द्रियों की देव शक्तियाँ
    • हजरत मुहम्मद के अनेक विरोधी (Kahani)
    • गुबरीलों का कीर्ति स्तम्भ
    • मनोबल की प्रचण्ड सामर्थ्य
    • सेठ की बड़ी दुकान (Kahani)
    • सद्गुरु भीतर से जगायें।
    • अन्धा सड़क के किनारे (Kahani)
    • अन्तर्मुखी ध्यान और उसकी परिणति
    • गाय चुराकर लाये (Kahani)
    • स्वर्णिम सविता की ध्यान-धारण
    • दौड़ में मुझसे आगे निकल सकेगा (Kahani)
    • प्रतिभा पर आयु का सीमा बंधन नहीं!
    • नाम था शेरसिंह (Kahani)
    • अविज्ञात को मिलेगी अब विज्ञान की मान्यता
    • यजमान की पत्नी (Kahani)
    • क्यों धधक उठते हैं अग्नि के ये-शोले
    • कारण शरीर देव शरीर
    • सेठ के घर में आग लगी (Kahani)
    • मानव में अन्तर्निहित-रहस्यमय शक्तियाँ
    • विद्या सीखकर आया (Kahani)
    • कितना जानते हैं, अपने आपके बारे में आप?
    • जीवट एक अद्भुत अजेय विभूति
    • पोरुएः काया और मन के दर्पण
    • ब्रह्माण्ड अभी बच्चा है, बूढ़ा नहीं हुआ!
    • भीख माँगा करता (kahani)
    • प्राणियों की सक्षमता और कुशलता
    • Quotation
    • वनौषधि चिकित्सा एवं उसकी उपयोगिता!
    • मालिक ने एक तरकीब निकाली (Kahani)
    • कृत्रिम वर्षा का एक प्रयोग अग्निहोत्र
    • बोझा भरी गाड़ी (Kahani)
    • युग के अनुरूप साधन प्रक्रिया में हेरफेर
    • उसे पुरस्कार मिलेगा (Kahani)
    • रचनात्मक कार्यक्रमों की ओर बढ़ते कदम - राष्ट्रीय एकता सम्मेलनों के बाद की गति-प्रगति!
    • अपनों से अपनी बात - गरीबी हटाओ, अशिक्षा भगाओ का शंखनाद
    • स्वाति बूँद ममता की डालो।
    • स्वाति बूँद ममता की डालो (Kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • चतुर बनें या बुद्धिमान?
    • हमारी जीवननौका का एकमात्र खिवैया
    • अंतरात्मा की प्यास और तृप्ति
    • कर्मफल का अकाट्य सिद्धांत (कहानी)
    • ईश-विश्वास किसी का, कभी निष्फल नहीं गया
    • सद्वाक्य
    • सर्वव्यापी परमेश्वर की दिव्य सत्ता
    • सेवा-भावना (कहानी)
    • धर्मधारणा में सापेक्ष-क्षमाशीलता
    • सद्वाक्य
    • बुद्धिमत्ता की वर्णमाला नए सिरे से
    • फकीरी धूल में मिल गई (कहानी)
    • धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की वास्तविकता—2
    • ज्ञानेन्द्रियों की देव शक्तियाँ
    • हजरत मुहम्मद के अनेक विरोधी (Kahani)
    • गुबरीलों का कीर्ति स्तम्भ
    • मनोबल की प्रचण्ड सामर्थ्य
    • सेठ की बड़ी दुकान (Kahani)
    • सद्गुरु भीतर से जगायें।
    • अन्धा सड़क के किनारे (Kahani)
    • अन्तर्मुखी ध्यान और उसकी परिणति
    • गाय चुराकर लाये (Kahani)
    • स्वर्णिम सविता की ध्यान-धारण
    • दौड़ में मुझसे आगे निकल सकेगा (Kahani)
    • प्रतिभा पर आयु का सीमा बंधन नहीं!
    • नाम था शेरसिंह (Kahani)
    • अविज्ञात को मिलेगी अब विज्ञान की मान्यता
    • यजमान की पत्नी (Kahani)
    • क्यों धधक उठते हैं अग्नि के ये-शोले
    • कारण शरीर देव शरीर
    • सेठ के घर में आग लगी (Kahani)
    • मानव में अन्तर्निहित-रहस्यमय शक्तियाँ
    • विद्या सीखकर आया (Kahani)
    • कितना जानते हैं, अपने आपके बारे में आप?
    • जीवट एक अद्भुत अजेय विभूति
    • पोरुएः काया और मन के दर्पण
    • ब्रह्माण्ड अभी बच्चा है, बूढ़ा नहीं हुआ!
    • भीख माँगा करता (kahani)
    • प्राणियों की सक्षमता और कुशलता
    • Quotation
    • वनौषधि चिकित्सा एवं उसकी उपयोगिता!
    • मालिक ने एक तरकीब निकाली (Kahani)
    • कृत्रिम वर्षा का एक प्रयोग अग्निहोत्र
    • बोझा भरी गाड़ी (Kahani)
    • युग के अनुरूप साधन प्रक्रिया में हेरफेर
    • उसे पुरस्कार मिलेगा (Kahani)
    • रचनात्मक कार्यक्रमों की ओर बढ़ते कदम - राष्ट्रीय एकता सम्मेलनों के बाद की गति-प्रगति!
    • अपनों से अपनी बात - गरीबी हटाओ, अशिक्षा भगाओ का शंखनाद
    • स्वाति बूँद ममता की डालो।
    • स्वाति बूँद ममता की डालो (Kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1987 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


ईश-विश्वास किसी का, कभी निष्फल नहीं गया

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 4 6 Last
चोट खाया हुआ साँप आक्रमणकारी पर ऐसी फुँसकार मारकर दौड़ता है कि उसके होश छूट जाते हैं, बचाव के लिए भागना ही पड़ता है। सांसारिक व्यथाओं से विक्षुब्ध मनुष्य की भी ऐसी ही स्थिति होती है। जब मनुष्य को पीड़ायें चारों ओर से घेर लेती हैं और कोई सहारा नहीं सूझता तो वह निष्ठापूर्वक अपने परमेश्वर को पुकारता है। हार खाए हुए मनुष्य की कातर-पुकार से परमात्मा का आसन हिल जाता है और उन्हें सारी व्यवस्था छोड़कर भक्त की सेवा के लिए भागना पड़ता है। मनुष्य ने बुलाया हो और उसकी शुभेच्छा न आई हो, मनुष्य ने सहायता माँगी हो और परमात्मा ने मनोरथ पूर्ण न किया हो, मनुष्य की प्रार्थना पर परमात्मा दौड़कर न चला आया होगा। ऐसा कभी नहीं हुआ और न ही आगे कभी होगा। मनुष्य के विश्वास की शक्ति के आगे परमात्मा को सदैव ही झुकना पड़ा है।

उसे बुलाइए, वह आपके अंतःकरण में दिव्य प्रकाश बनकर उतरेगा, मधुर संगीत बनकर हृदय में गुंजन करेगा, आशीर्वाद बनकर आपके दुःख-दर्द दूर करेगा। पर उसे सच्चे हृदय से बुलाइए, निष्कपट और निश्चल होकर पुकारिए।

ऐसा समय आता है, जब मनुष्य संसार को भूलकर कुछ क्षण के लिए ऐसे दिव्य लोक में पहुँचता है, जहाँ उसे असीम सहानुभूति और शाश्वत शांति मिलती है। प्रार्थना की इस आंतरिक स्थिति और उसके आनंद को कोई भुक्तभोगी ही जान सकता है। परमात्मा के सन्निकट पहुँचकर आत्मा, जब भक्ति-भावना से अपनी संवेदनाएँ प्रस्तुत करती है तो अनिर्वचनीय आनंद मिलता है, इंद्रियों की चेष्टाएँ शांत हो जाती हैं, उस आनंद की अभिव्यक्ति करते हुए महाकवि सूर ने लिखा है—

ज्यों गूंगहि मीठे फल को रस उर अंतर ही भावैं।

अमित स्वादु सबही जुनिरंतर अमिततोष उपजावै।

मन वाणी को अगम अगोचर सो जानै जो पावै।

सूर की अनुभूति का आनंद ध्रुव ने पाया था, उसके दुःखी हृदय ने, संसार से संतप्त अंतःकरण ने, परमात्मा को करुण स्वरों में पुकारा था। भगवान उसके पास आए थे, कुमार ध्रुव ने पूर्णता की स्थिति प्राप्त की थी। परमात्मा का अनुग्रह न रहा होता, तो ध्रुव अजर-अमर कैसे होता?

हिरण्यकश्यप की हठधर्मिता से दुःखी बालक प्रहलाद ने उसे बार-बार पुकारा, उसका नारायण बार-बार उसकी मदद के लिए दौड़ा। विष पिया उसके भगवान ने। समुद्र के गर्त्त्त में पाथेय बना प्रहलाद का भगवान। इससे भी काम न चला, तो नृसिंह बनकर प्रहलाद का भगवान खंभा चीरकर दौड़ा आया। जिसने मनुष्य को पैदा किया, उसके हृदय में अपनी संतान के लिये मोह न हो? ममता न हो, यह कैसे हो सकता है? मनुष्य बुलावे और वह न आए ऐसा कभी हुआ नहीं।

द्रौपदी जान गई कि इस सभा में उसे बचाने वाला कोई नहीं है। दुःशासन चीर खींचता है। लाज न चली जाए। इस भय से निर्बल नारी अपने दीनानाथ को पुकारती है। भगवान श्रीकृष्ण आते हैं, उसका चीर बढ़ता है। दुःशासन थक गया, पर चीर समाप्त नहीं हुआ। परमात्मा की अनंत शक्ति को नापने की सामर्थ्य किसमें है? उसे तो उनका परमभक्त ही जान और समझ सकता है।

सामूहिक प्रार्थनाओं का बल सदैव परमात्मा को स्वर्ग से धरती पर उतार लाने में समर्थ रहा। देवासुर संग्राम की कथाओं में ऐसे अनेक वर्णन हैं। महाभारत के युद्ध की घटना है। युद्धभूमि में किसी टिटहरी ने अंडे दे रखे थे। युद्ध जोर का चल रहा था। पक्षियों को और कोई सहारा दिखाई न दिया, तो उन्होंने ईश्वर की शरण ली। परमात्मा ने उनके विश्वास की रक्षा की। एक हाथी का घंटा टूटकर अंडों को छुपाकर बैठ गया। युद्ध समाप्त होने पर उसमें से पक्षियों के बच्चे सकुशल निकाल लिए गए।

गजराज की पुकार पर उन्हें वाहन का भी परित्याग करना पड़ा था। नंगे पैरों वे दौड़े थे और गज को, ग्राह के फंदे से मुक्त किया था। जब भी, जिस अवस्था में भी, जिसने परमात्मा को सच्चे हृदय से पुकारा, वह अपने आवश्यक कार्य छोड़कर दौड़ा। जीवात्मा के प्रति उसकी दया अगाध है, अनंत है। वह भक्त का स्नेहबंधन ठुकराने में असमर्थ है।

बहुत से लोग हैं, जो ईश्वर और उसके अस्तित्व को मानने से इनकार करते हैं, पर यदि भली भाँति देखा जाए तो मूढ़ताग्रस्त व्यक्ति ही ऐसा कर सकते हैं। एक बहुत बड़ा आश्चर्य हमारे सामने बिखरा पड़ा है। उसे देखकर भी जिसका विवेक जागृत न हो, कौतूहल पैदा न हो, उसे और कहा भी क्या जाएगा? पृथ्वी, सूर्य की परिक्रमा कर रही है, यह दृश्य आज किसी अन्य ग्रह में बैठे देख रहे होते तो समझते, मनुष्य का अभिमान कितना छोटा है। ब्रह्मांडों की विशालता की तुलना में वह चींटी से भी हजार गुना छोटा लगेगा। अनंत आकाश और उस पर निरंतर होती रहती ग्रहों-नक्षत्रों की हलचल, सूर्य-चन्द्र, सागर, पर्वत, नदियाँ, वृक्ष, वनस्पति मनुष्य के स्वयं के बदलते हुए क्षण, क्या यह सब मनुष्य का विवेक जागृत करने के लिए काफी नहीं हैं? परमात्मा का अस्तित्व मानने के लिए क्या इतने से संतोष नहीं होता? विचारवान व्यक्ति कभी ऐसा न सोचेगा। इतनी बड़ी विश्वव्यापी गतिविधि का नियंत्रणकर्ता तो कोई होना ही चाहिए। पृथ्वी ठीक 365.25 दिन में ही सूर्य की परिक्रमा लगाए, इतनी सूक्ष्मगति निकालने वाला कोई विधायक सृष्टा तो होना ही चाहिए। कोई नियामक न होता तो संभवतः स्थूल प्रकृति का अस्तित्व भी न होता। सर्वत्र शून्य बिखरा पड़ा होता।

संपूर्ण हिन्दू संस्कृति का आधार ईश्वरनिष्ठा ही है। कोई भी धार्मिककृत्य परमात्मा के ध्यान के बिना प्रारंभ नहीं करते। उसे स्मरण करते ही वह शक्ति मिल जाती है, जिससे मनुष्य कठिनाइयों को पार करता हुआ आगे बढ़ता चला जाए। मनुष्य जीवन में पग-पग पर ऐसी कठिनाइयाँ आती हैं कि उनमें ईश्वरीय सहयोग न मिले और परमात्मा का अनुग्रह न प्राप्त हो तो मनुष्य का जीवन विशृंखलित हो जाए। ईश्वर पर विश्वास कर लेने के बाद अंतःकरण में इतनी दृढ़ता आ जाती है कि फिर बाहरी कठिनाइयाँ विक्षेप नहीं कर पातीं और सफलता का मार्ग खुलता चला जाता है।

ऐसे उदाहरण इस युग में भी चरितार्थ होते रहते हैं। संत-ज्ञानेश्वर, जगद्गुरु शंकराचार्य, संत तुकाराम, सूर और तुलसी का जीवन बीते कुछ अधिक दिन नहीं हुये। भारतीय स्वतंत्रता की उपलब्धि अभी कुछ दिन पूर्व ही हुई है। उसका प्रणेता महात्मा गाँधी अकेला था। शरीर भी कुल 86 पौण्ड का। कोई सेना साथ में न थी। कोई शस्त्र भी न उठाया था उनने। “राम-नाम” का बल था गाँधी के पास। पर उस नाम के स्मरण और चिंतन में ऐसी प्रगाढ़ निष्ठा भरी थी कि गाँधी के नाम से लहर आती थी और उत्तर-दक्षिण में एक विकट तूफान-सा उठ पड़ता था। वह शक्ति गाँधी की नहीं थी, जनता की भी नहीं थी; संपूर्ण क्रांति का बीज वह “राम-नाम” था जो हर वक्त गाँधी की जबान पर रहता था, उसके हृदय में गूँजता रहता था।

आदिकाल से लेकर अब तक जितने भी संत-महापुरुष हुए हैं और जिन्होंने भी आत्मकल्याण या लोक-कल्याण की दिशा में कदम उठाया है, उन्होंने परमात्मा का आश्रय मुख्य रूप से लिया है। मनुष्य के पास शक्ति भी कितनी है। बहुत थोड़ा शरीरबल, उस पर विषयों के प्रलोभन, बहुत थोड़ा साधनबल, उस पर भी, सांसारिक गतिरोध। अपनी ही सामर्थ्य पर वह न तो आत्मकल्याण कर सकता है, न संसार की ही कुछ भलाई कर सकता है। पर जब भी उसने ईश्वर की जयकार की, उसे अपना सहयोगी चुना और सहायता के लिए पुकार की, कि वह दौड़ा और उसकी शक्ति बनकर दिशा प्रदर्शित करने लगा। परमात्मा की कृपा पाकर मनुष्य अपना शंख बजाता हुआ चला जाता है, मोक्ष उसके पीछे-पीछे चलता है। ज्ञान की मशाल लेकर आगे बढ़ता है, लोक-कल्याण पीछे-पीछे भागता हुआ चला आता है। इसमें श्रेय मनुष्य का नहीं, परमात्मा का है। वही शक्ति बनकर पुरुष में अवतीर्ण होता है। जो भी उसे निष्ठापूर्वक बुलाता है, उसकी मदद के लिए परमात्मा आता अवश्य है। आज तक ईश्वर-विश्वास न किसी का निष्फल गया और न आगे इसकी संभावना है।

First 4 6 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • चतुर बनें या बुद्धिमान?
  • हमारी जीवननौका का एकमात्र खिवैया
  • अंतरात्मा की प्यास और तृप्ति
  • कर्मफल का अकाट्य सिद्धांत (कहानी)
  • ईश-विश्वास किसी का, कभी निष्फल नहीं गया
  • सद्वाक्य
  • सर्वव्यापी परमेश्वर की दिव्य सत्ता
  • सेवा-भावना (कहानी)
  • धर्मधारणा में सापेक्ष-क्षमाशीलता
  • सद्वाक्य
  • बुद्धिमत्ता की वर्णमाला नए सिरे से
  • फकीरी धूल में मिल गई (कहानी)
  • धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की वास्तविकता—2
  • ज्ञानेन्द्रियों की देव शक्तियाँ
  • हजरत मुहम्मद के अनेक विरोधी (Kahani)
  • गुबरीलों का कीर्ति स्तम्भ
  • मनोबल की प्रचण्ड सामर्थ्य
  • सेठ की बड़ी दुकान (Kahani)
  • सद्गुरु भीतर से जगायें।
  • अन्धा सड़क के किनारे (Kahani)
  • अन्तर्मुखी ध्यान और उसकी परिणति
  • गाय चुराकर लाये (Kahani)
  • स्वर्णिम सविता की ध्यान-धारण
  • दौड़ में मुझसे आगे निकल सकेगा (Kahani)
  • प्रतिभा पर आयु का सीमा बंधन नहीं!
  • नाम था शेरसिंह (Kahani)
  • अविज्ञात को मिलेगी अब विज्ञान की मान्यता
  • यजमान की पत्नी (Kahani)
  • क्यों धधक उठते हैं अग्नि के ये-शोले
  • कारण शरीर देव शरीर
  • सेठ के घर में आग लगी (Kahani)
  • मानव में अन्तर्निहित-रहस्यमय शक्तियाँ
  • विद्या सीखकर आया (Kahani)
  • कितना जानते हैं, अपने आपके बारे में आप?
  • जीवट एक अद्भुत अजेय विभूति
  • पोरुएः काया और मन के दर्पण
  • ब्रह्माण्ड अभी बच्चा है, बूढ़ा नहीं हुआ!
  • भीख माँगा करता (kahani)
  • प्राणियों की सक्षमता और कुशलता
  • Quotation
  • वनौषधि चिकित्सा एवं उसकी उपयोगिता!
  • मालिक ने एक तरकीब निकाली (Kahani)
  • कृत्रिम वर्षा का एक प्रयोग अग्निहोत्र
  • बोझा भरी गाड़ी (Kahani)
  • युग के अनुरूप साधन प्रक्रिया में हेरफेर
  • उसे पुरस्कार मिलेगा (Kahani)
  • रचनात्मक कार्यक्रमों की ओर बढ़ते कदम - राष्ट्रीय एकता सम्मेलनों के बाद की गति-प्रगति!
  • अपनों से अपनी बात - गरीबी हटाओ, अशिक्षा भगाओ का शंखनाद
  • स्वाति बूँद ममता की डालो।
  • स्वाति बूँद ममता की डालो (Kavita)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj