• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • अनन्तपारा दुष्पूरा तृष्णादोष-शता-वहा
    • परमात्मा की प्राप्ति सच्चे प्रेम से
    • भगवान के दर्शन कैसे हों?
    • राजकुमार भद्रबाहु (कहानी)
    • मरण: एक उच्च कोटि का दार्शनिक
    • पुण्य के साथ-साथ उसकी परिणति समझना भी आवश्यक है(कहानी)
    • चित्त की वृत्तियों को रोकिए
    • Quotation
    • ग्राह रूपी जीवात्मा की बंधनमुक्ति
    • पति का सहारा (Kahani)
    • धर्म धारणा का पंचम सोपान-शुचिता
    • आँख और कान का महत्व (Kahani)
    • जो सोचते हैं कर क्यों नहीं पाते?
    • श्रद्धा और गरिमा (Kahani)
    • वक्रतुण्डाय नमनोमः
    • विचारणा का उच्चस्तरीय प्रवाह
    • Quotation
    • पूर्वाग्रहों से मुक्त हो चला, आज का विज्ञान
    • मेहतर अंगरक्षक (Kahani)
    • व्यक्तित्व परिष्कार हेतु गहराई तक प्रवेश करना होगा
    • भगवान की माया का प्रत्यक्ष दर्शन (Kahani)
    • विकास संवाद का आधार सहयोग-सहकार
    • लोभी का लालच (Kahani)
    • सौंदर्य की परख
    • सिद्धि पुरुषों की साधना स्थली देवात्मा हिमालय
    • गिरगिट की जीत (Kahani)
    • बड़प्पन या कौतूहल?
    • जो दृश्यमान है वह एक छलावा है।
    • Quotation
    • पुण्यफल का आधार
    • Quotation
    • समस्त साधनाओं की एक धुरी ध्यानयोग
    • महात्मा इब्राहिम (Kahani)
    • विक्षुब्ध मनः स्थिति में भटकती प्रेतात्मा
    • आत्म अनुभव ज्ञान की पूछे कोई बात
    • Quotation
    • मनुष्य हतप्रभ है, इन अबूझ पहेलियों से
    • मनुष्य भी बूँदों के समान मोती बन गया होता (Kahani)
    • सरलता और सभ्यता की प्रतिमूर्ति एस्किमो
    • ब्रेन वाशिंग मनुष्य की स्वतंत्र चेतना का अपहरण
    • हम क्षीण व खोखले क्यों होते जा रहे हैं?
    • जीव जन्तुओं की भाषा-भाव भंगिमा
    • क्या वास्तव में मिस्र के पिरामिड अभिशप्त हैं?
    • अनागत की झाँकी दिखाने वाले सार्थक सोद्देश्य स्वप्न,
    • बृहत्तर भारत के गौरवमय अतीत के सम्बन्ध में नई खोजें
    • Quotation
    • पागल या प्रतिभावान
    • गायत्री साधना की सिद्धि
    • नये परिवर्तन नये निर्धारण
    • अपनों से अपनी बात - अगले वर्ष मिशन तीन गुना विस्तृत हो
    • कर्तव्य परायणों की विद्या ही सार्थक होती है (Kahani)
    • मुक्तात्मा का अमर गान
    • मुक्तात्मा का अमर गान (Kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • अनन्तपारा दुष्पूरा तृष्णादोष-शता-वहा
    • परमात्मा की प्राप्ति सच्चे प्रेम से
    • भगवान के दर्शन कैसे हों?
    • राजकुमार भद्रबाहु (कहानी)
    • मरण: एक उच्च कोटि का दार्शनिक
    • पुण्य के साथ-साथ उसकी परिणति समझना भी आवश्यक है(कहानी)
    • चित्त की वृत्तियों को रोकिए
    • Quotation
    • ग्राह रूपी जीवात्मा की बंधनमुक्ति
    • पति का सहारा (Kahani)
    • धर्म धारणा का पंचम सोपान-शुचिता
    • आँख और कान का महत्व (Kahani)
    • जो सोचते हैं कर क्यों नहीं पाते?
    • श्रद्धा और गरिमा (Kahani)
    • वक्रतुण्डाय नमनोमः
    • विचारणा का उच्चस्तरीय प्रवाह
    • Quotation
    • पूर्वाग्रहों से मुक्त हो चला, आज का विज्ञान
    • मेहतर अंगरक्षक (Kahani)
    • व्यक्तित्व परिष्कार हेतु गहराई तक प्रवेश करना होगा
    • भगवान की माया का प्रत्यक्ष दर्शन (Kahani)
    • विकास संवाद का आधार सहयोग-सहकार
    • लोभी का लालच (Kahani)
    • सौंदर्य की परख
    • सिद्धि पुरुषों की साधना स्थली देवात्मा हिमालय
    • गिरगिट की जीत (Kahani)
    • बड़प्पन या कौतूहल?
    • जो दृश्यमान है वह एक छलावा है।
    • Quotation
    • पुण्यफल का आधार
    • Quotation
    • समस्त साधनाओं की एक धुरी ध्यानयोग
    • महात्मा इब्राहिम (Kahani)
    • विक्षुब्ध मनः स्थिति में भटकती प्रेतात्मा
    • आत्म अनुभव ज्ञान की पूछे कोई बात
    • Quotation
    • मनुष्य हतप्रभ है, इन अबूझ पहेलियों से
    • मनुष्य भी बूँदों के समान मोती बन गया होता (Kahani)
    • सरलता और सभ्यता की प्रतिमूर्ति एस्किमो
    • ब्रेन वाशिंग मनुष्य की स्वतंत्र चेतना का अपहरण
    • हम क्षीण व खोखले क्यों होते जा रहे हैं?
    • जीव जन्तुओं की भाषा-भाव भंगिमा
    • क्या वास्तव में मिस्र के पिरामिड अभिशप्त हैं?
    • अनागत की झाँकी दिखाने वाले सार्थक सोद्देश्य स्वप्न,
    • बृहत्तर भारत के गौरवमय अतीत के सम्बन्ध में नई खोजें
    • Quotation
    • पागल या प्रतिभावान
    • गायत्री साधना की सिद्धि
    • नये परिवर्तन नये निर्धारण
    • अपनों से अपनी बात - अगले वर्ष मिशन तीन गुना विस्तृत हो
    • कर्तव्य परायणों की विद्या ही सार्थक होती है (Kahani)
    • मुक्तात्मा का अमर गान
    • मुक्तात्मा का अमर गान (Kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1987 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


जीव जन्तुओं की भाषा-भाव भंगिमा

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 41 43 Last
भाषा भगवान ने सबको नहीं दी है; पर भाव सब को ही दिये है। सुख, दुःख, भय, आशंका, प्रसन्नता, आशा जैसे भले-बुरे अवसर परिस्थिति वश सभी के सामने आते रहते हैं। इसमें मनुष्य ही नहीं, पशु-पक्षी भी शामिल हैं।

जिन्हें जीभ मिली ही नहीं, उनकी बात दूसरी है। वे अपना मन मसोस कर रह जाते हैं अथवा समूचे शरीर की छटपटाहट से अपनी पीड़ा का परिचय देते हैं।

मछलियाँ प्रसन्न होने पर क्रीड़ा-कल्लोल करने लगती हैं और जब उन्हें पानी से निकाल कर प्राण हरण किया जाता है, तो उनकी छटपटाहट प्रत्येक भावनाशील का हृदय हिला देती हैं।

पशु पक्षियों को जीभ-मिली है। वे उसके माध्यम से अपने भाव प्रकट करते रहते हैं। उनके साथी सहयोगी उस शब्दावली के माध्यम से यह अनुमान लगा लेते हैं किस उस पर क्या बीत रही है, और अपनी अनुभूतियों को साथियों पर कैसे प्रकट करना चाहता है। यद्यपि अभी तक ऐसा कोई शब्दकोश नहीं बना, जिससे जाना सके कि किस प्राणी को अपने मनोभाव दूसरों पर प्रकट करने के लिए किस शब्दावली का प्रयोग करना पड़ता है?

भावना अन्तःकरण की भाषा है। वह प्रकट हुए बिना नहीं रहना चाहती। कोई प्राणी घुटन में आबद्ध नहीं रहना चाहता। अपने व्यक्तित्व का परिचय देने और मनोभावों को प्रकट करने की इच्छा उन सभी प्राणियों में होती है, जिन्हें जिव्हा मिली हुई है, भले ही वह मनुष्य की तरह क्रमबद्ध रूप से वार्तालाप न कर सके; किन्तु अपने भावों को तो किसी-न-किसी रूप में प्रकट कर ही देते हैं।

बाज, बिल्ली, साँप, गोह आदि किसी भी आक्रामक जानवर की निकटता अनुभव करते ही छोटे पक्षी इकट्ठे होकर चहचहाने लगते हैं। इसके कई उद्देश्य होते हैं - एक तो सब साथियों का एकत्रित - संगठित होना, दूसरे साथ-साथ मिल कर शोर मचाना, ताकि शत्रु यह न समझे कि यह एकाकी है, इसलिए हमला किया जा सकता है, तीसरा यह कि समीपवर्ती क्षेत्र में उस समुदाय की कोई और बिरादरी वाला हो तो वह भी साथ हो जाय, बचाव का उपाय करे।

प्रसन्नता के अवसर पर भौंरे, कोकिल, मोर आदि विशेष वाणी बोलते हैं। उन शब्दों को मानवी भाषा में अर्थ तो नहीं किया जा सकता; पर इतना अवश्य जाना जा सकता है, कि यह पक्षी वर्तमान परिस्थितियों में प्रसन्न है।

सिंह अपनी दहाड़ से वन्य पशुओं को भयभीत करके उनके मनोबल को गिराता है, साथ ही सूचना देता है कि इस क्षेत्र में उसका कोई प्रतिद्वन्द्वी हो, तो चला जाय अन्यथा परस्पर भिड़ने का खतरा है। प्राणियों में वाणी की अपेक्षा गंध कारगर है। वे अपने घर, देश, दिशा को गंध के आधार पर पहचान लेते हैं। हिरणों का तो यह स्वभाव ही होता है कि वन के जिस भाग में वे निवास करते हैं, उसके वृक्ष वनस्पतियों में एक विशेष प्रकार की गंध छोड़ देते हैं ताकि दूसरे हिरण उस क्षेत्र में घुसपैठ न कर सकें और यदि अनधिकार प्रवेश जरूरी ही हुआ तो, वे नये सिरे से उस वन्य प्रदेश की वनस्पतियों को काट-छाँट कर उसकी गंध मिटा देते और अपनी नई गंध डाल कर उस क्षेत्र में अपना वर्चस्व कायम कर लेते हैं। प्रणय-निवेदन भी वे गंध के आधार पर ही करते हैं। जिनकी आँखें कमजोर हैं, वे भी गंध के आधार पर अपने शिकार को, प्रेमी को, आक्रान्ता को आसानी से पहचान लेते हैं।

भाव-भंगिमा हर प्राणि की मनुष्य से मिलती-जुलती हैं। शब्द न समझे जा सकें, तो आकृति, भाव भंगिमा देखकर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि कौन प्राणी अपनी क्या भाव-भंगिमा व्यक्त करना चाहता है। क्या मात्र बोल लेने व वाक्चातुर्य मात्र से किसी की मूर्ख बना लेने से ही मनुष्य इन शुद्र जीवों से बड़ा मान लिया जाना चाहिए?

First 41 43 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • अनन्तपारा दुष्पूरा तृष्णादोष-शता-वहा
  • परमात्मा की प्राप्ति सच्चे प्रेम से
  • भगवान के दर्शन कैसे हों?
  • राजकुमार भद्रबाहु (कहानी)
  • मरण: एक उच्च कोटि का दार्शनिक
  • पुण्य के साथ-साथ उसकी परिणति समझना भी आवश्यक है(कहानी)
  • चित्त की वृत्तियों को रोकिए
  • Quotation
  • ग्राह रूपी जीवात्मा की बंधनमुक्ति
  • पति का सहारा (Kahani)
  • धर्म धारणा का पंचम सोपान-शुचिता
  • आँख और कान का महत्व (Kahani)
  • जो सोचते हैं कर क्यों नहीं पाते?
  • श्रद्धा और गरिमा (Kahani)
  • वक्रतुण्डाय नमनोमः
  • विचारणा का उच्चस्तरीय प्रवाह
  • Quotation
  • पूर्वाग्रहों से मुक्त हो चला, आज का विज्ञान
  • मेहतर अंगरक्षक (Kahani)
  • व्यक्तित्व परिष्कार हेतु गहराई तक प्रवेश करना होगा
  • भगवान की माया का प्रत्यक्ष दर्शन (Kahani)
  • विकास संवाद का आधार सहयोग-सहकार
  • लोभी का लालच (Kahani)
  • सौंदर्य की परख
  • सिद्धि पुरुषों की साधना स्थली देवात्मा हिमालय
  • गिरगिट की जीत (Kahani)
  • बड़प्पन या कौतूहल?
  • जो दृश्यमान है वह एक छलावा है।
  • Quotation
  • पुण्यफल का आधार
  • Quotation
  • समस्त साधनाओं की एक धुरी ध्यानयोग
  • महात्मा इब्राहिम (Kahani)
  • विक्षुब्ध मनः स्थिति में भटकती प्रेतात्मा
  • आत्म अनुभव ज्ञान की पूछे कोई बात
  • Quotation
  • मनुष्य हतप्रभ है, इन अबूझ पहेलियों से
  • मनुष्य भी बूँदों के समान मोती बन गया होता (Kahani)
  • सरलता और सभ्यता की प्रतिमूर्ति एस्किमो
  • ब्रेन वाशिंग मनुष्य की स्वतंत्र चेतना का अपहरण
  • हम क्षीण व खोखले क्यों होते जा रहे हैं?
  • जीव जन्तुओं की भाषा-भाव भंगिमा
  • क्या वास्तव में मिस्र के पिरामिड अभिशप्त हैं?
  • अनागत की झाँकी दिखाने वाले सार्थक सोद्देश्य स्वप्न,
  • बृहत्तर भारत के गौरवमय अतीत के सम्बन्ध में नई खोजें
  • Quotation
  • पागल या प्रतिभावान
  • गायत्री साधना की सिद्धि
  • नये परिवर्तन नये निर्धारण
  • अपनों से अपनी बात - अगले वर्ष मिशन तीन गुना विस्तृत हो
  • कर्तव्य परायणों की विद्या ही सार्थक होती है (Kahani)
  • मुक्तात्मा का अमर गान
  • मुक्तात्मा का अमर गान (Kavita)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj