
शब्द शक्ति के भले बुरे प्रभाव
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स्थूल ध्वनियाँ प्राप्त होती है। श्रव्य ध्वनियों का अपना एक प्रभाव क्षेत्र होता है। हम उन्हीं ध्वनियों को सुन सकते हैं। जो इस सीमा क्षेत्र के अंतर्गत आती हो, प्रायः यह प्रसार क्षेत्र 20-20,000 कम्पन प्रति सेकेंड होता है अर्थात् हमारी कर्णेंद्रिय उन्हीं तरंगों को ग्रहण कर सकती है, जो उक्त दायरे में हों। इससे कम अथवा अधिक आवृत्ति वाली ध्वनियों को सुनने की सामर्थ्य हमारे कानों में नहीं होती। ऐसी ध्वनियाँ जिनकी बारम्बारता 20 हर्ट्ज से कम है इन्फ्रासोनिक तथा 20,000 हर्ट्ज से अधिक खाली ध्वनियाँ अल्ट्रासोनिक कहलाती है।
ध्वनियाँ प्रायः व्यक्ति और वस्तु को असाधारण रूप से प्रभावित करती है स्थूल का श्रव्य प्रभाव तो प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर होता है पर अश्रव्य और सामान्य समझी जाने वाली ध्वनि तरंगें भी कोई कम प्रभावित नहीं करती।
वियेना के.प्रो. गावराँड “भारमिल्स” नामक इंस्टीट्यूट में इंजीनियर थे; वे जब भी अपने कक्ष में जा कर बैठते तो उन्हें बड़ी बेचैनी अनुभव होती। प्रायः उस कक्षा में उन्हें मिचली भी आती रहती है यद्यपि कमरा पूर्णतः साफ था और वायु आवागमन की अच्छी व्यवस्था थी। फिर ऐसा क्यों होता है? उनकी समझ में नहीं आ रहा था। उनमें विभिन्न यंत्र उपकरणों से कारण का पता लगाने की कोशिश की, पर निष्फल रहे। एक दिन वह दीवार के सहारे बैठे हुए थे कि उन्हें अत्यन्त सूक्ष्म कम्पन का आभास हुआ। खोजबीन से पता चला कि यह कम्पन नजदीक के ही एक एयरकडिशनिंग संयंत्र का है इसी से पूरा कमरा इन्फ्रासोनिक ध्वनि तरंग से कम्पायमान था। कम्पन को जब रिकार्ड किया गया, तो यह 7 हर्ट्ज पाया गया। ज्ञातव्य है कि जब वह अपने कक्ष से बाहर होते तो उन्हें किसी प्रकार की तकलीफ महसूस नहीं होती किन्तु कमरे में तरंग का असर द्विगुणित हो जाता।
इस घटना के बाद पो0 गावराँड ने अपने पद से त्याग पत्र दे दिया और फिर सूक्ष्म ध्वनि तरंगों पर अनुसंधान कार्य में जुट पड़े। कुछ आरम्भिक सफलताओं के बाद वे यह जानने को उत्सुक हुए कि अश्रव्य तरंगों का मानवी शरीर-मन पर कैसा असर पड़ता है। इसके लिए उनने एक विशालकाय इन्फ्रासोनिक मशीन बनायी। उसका प्रथम परीक्षण एक प्रायोगिक पशु पर किया। मशीन चालू होते ही वह गिरा ओर तड़प कर मर गया। जब उसका पोस्टमार्टम किया गया तो पता चला कि उसके सारे आँतरिक अवयव तरंग की मार से अर्धतरल में परिवर्तित हो गये हैं।
इस हादसे के बाद प्रो0 गावराँड़ परीक्षण में अधिक सावधानी बरतने लगे। इस बार उनने खुले मैदान में प्रयोग करने को सोचा, अतः कुछ पर्यवेक्षकों को कंक्रीट बंकर में रख कर मशीन धीरे-धीरे चालू करना शुरू किया। कुछ ही देर में परीक्षण स्थल से आधे मील की परिधि में जो भी इमारतें थीं, उनकी सारी खिड़कियाँ चकनाचूर हो गई और मकानों की नींव हिल गई। पर्यवेक्षकों से जब इस दौरान का अनुभव पूछा गया, तो उनने बेचैनी, उद्विग्नता और सिर दर्द की शिकायत की।
अब तो लो-फ्रीक्वेंसी के ऐसे यंत्र भी विकसित हो गये हैं, जिनके सहारे विशालकाय गगनचुंबी इमारतों को भी क्षण में ही ध्वस्त किया जा सकता है। ये सारे उदाहरण सूक्ष्म ध्वनियों की शक्ति दर्शाते हैं।
भूकम्प से पूर्व भी पृथ्वी के गर्भ में चल रही हल-चल की जानकारी ऐसी ध्वनियाँ दे जाती हैं। सर्वविदित हैं कि ऐसी आपदाओं से कुछ घण्टे पूर्व मानवेत्तर प्राणियों, यथा- कुत्ते, बिल्ली, खरगोश, तिलचट्टे आदि में विचित्र भाग-दौड़ दिखाई पड़ती हैं। वस्तुतः उनमें सूक्ष्म तरंगें ग्रहण करने की अद्भुत सामर्थ्य होती हैं। इसके माध्यम से उन्हें आगत घटनाओं का पूर्वाभास मिल जाता है और समय रहते वे सुरक्षित स्थानों में चले जाते हैं। जापानी लोग इस विपदा से बचने के लिए गोल्डफिश का सहारा लेते हैं। जब भूकम्प आने की होता है, तो इस मछली में एक अजीब बेचैनी दिखाई पड़ती हैं। इसे देखकर लोग बाग अपने-अपने घरों से बाहर निकल आते हैं और प्राण रक्षा करते हैं। कुछ हद तक ऐसी सूक्ष्म तरंगों के प्रति महिलाएँ और बच्चे भी संवेदनशील होते हैं। पुरुषों की तुलना में वे ऐसी ध्वनियाँ अधिक सक्षमता से पकड़ते हैं।
कुछ वर्ष पूर्व रूस ने ऐसी ही सूक्ष्म तरंगों के माध्यम से अमरीकी सुरक्षा योजना बनाने वाले वैज्ञानिकों को परेशानी में डाला था। बाद में जब उन्हें रूसियों के इस कारनामे की जानकारी मिली, तो उनने इसके दुष्प्रभावकारी असर को मिटाने के लिए प्रति तरंग को रूस की ओर प्रेषित करना शुरू किया।
अभी थोड़े दिन पूर्व बम्बई के एक ऐसे व्यक्ति की खबर अखबारों में छपी थी, जिसने दावा किया था, कि कुछ अज्ञात व्यक्ति उसे परेशान करने के उद्देश्य से सूक्ष्म रेडियो सिगनल्स भेजते हैं। उसका कहना था कि जब उसे सिगनल्स प्रेषित किये जाते हैं, तो वह अशाँत व बेचैन हो उठता है और बार-बार आत्महत्या करने का विचार आता है।
कहा जाता है कि दक्षिणी इजियन के सैण्टोरिनी द्वीप में कोई भी पर्यटक एक दिन से अधिक नहीं रुक पाता। वहाँ पहुँचते ही उन्हें एक अज्ञात भय, नैराश्य, उदासीनता, व विचित्र निष्क्रियता घेर लेती हैं। कुछ लोगों का विश्वास हैं कि वर्तमान सैण्टोरिनी वहीं स्थल हैं, जहाँ कभी एटलाण्टिस था। इ0यू0 1450 में उसका अधिकाँश भाग जलप्लावित हो गया। तभी से वहाँ पर भूगर्भीय उथल-पुथल के कारण बराबर एक सूक्ष्म ध्वनि क्रियाशील रहती हैं, जिसकी उपस्थिति का पता भूकम्पमापी यंत्र बताते हैं।
कुछ भी हों, इन्फ्रा-साउंड स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती हैं, यह अब एक सत्यापित तथ्य हैं, किन्तु हर प्रकार की पराध्वनियाँ दुष्प्रभावजन्य होती हैं, ऐसी बात नहीं हैं। अनेक पशु पक्षियों में ऐसी अश्रव्य ध्वनियाँ पायी गयी हैं। इसी के माध्यम से वे अपनी दूरवर्ती साथी को आवश्यक संदेश सम्प्रेषित करते हैं। चमगादड़ अपने मार्ग के अवरोधों का पता अल्ट्रासोनिक तरंग द्वारा ही लगाता है। फिन ह्वेल मीलों दूर ऐसी तरंगों द्वारा सूचना भेज सकती हैं। अब हाथियों में भी ऐसी ही सूक्ष्म तरंगों का पता चला हैं। इस खोज से ही वह रहस्योद्घाटन हो सका, कि क्यों अचानक उनका झुंड किसी निर्दिष्ट दिशा की ओर चला पड़ता है। गायत्री मंत्र के मानसिक जप में भी एक प्रकार का सूक्ष्म कम्पन उत्पन्न होता है, जो चक्रों, उपत्यिकाओं और ग्रन्थियों को प्रभावित करता है।
वस्तुतः हम पराध्वनियों के विशाल सागर में रह रहे हैं, जो जाने-अनजाने हमारे शरीर-मन को प्रभावित करती रहती हैं। सृष्टि का आरम्भ शब्द-शक्ति से ही हुआ माना जाता है। कहा जाता है कि सुदूर हिमालय में अब भी वैदिक ऋचायें सूक्ष्म कर्णेन्द्रियों के माध्यम से उसी प्रकार सुनी जा सकती हैं, जैसे हजारों वर्ष पूर्व ऋषियों ने सुनी थीं। रहस्यवादियों के अनुसार किसी भी घटनाक्रम का ब्लूप्रिन्ट, घटित होने से काफी समय पूर्व तावरेण में सूक्ष्म कम्पन के रूप में आ जाता है। विज्ञान कहता है कि हम जो कुछ भी बोलते हैं, उसका विनाश नहीं होता, वह सूक्ष्म ध्वनि तरंगों के रूप में विद्यमान रहता है। उसका दावा हैं कि महाभारत के दौरान कृष्ण ने अर्जुन को जो गीता सुनायी थी, तथा भीष्म-पितामह ने शरशैय्या पर पड़े द्रौपदी को जो उपदेश दिये थे, उन्हें आज भी सुना जा सकता है, यदि उन सूक्ष्म तरंगों को खोज कर हम पकड़ सकें।
सृष्टि का आविर्भाव शब्द से हुआ बताया जाता है। शब्द शक्ति के द्वारा ही विश्व-ब्रह्मांड का काय सत्ता का सारा क्रिया व्यापार चलता है। विज्ञान ने मैगनेटिक रेजोनेन्स इमेजिंग (एम0आर0आई0) एन॰ एम॰ आर॰ तथा सोनोग्राफी आदि के द्वारा निदान-चिकित्सा आदि में महत्वपूर्ण उपलब्ध कराई हैं। यदि इसी प्रकार शब्द शक्ति रूपी ईंधन का प्रयोग सूक्ष्म काय संयंत्र के विभिन्न घटकों को विकसित करने हेतु किया जा सकें तो इस नगण्य-सी दृश्यमान काया से असम्भव दीख पड़ने वाले कार्य भी सम्भव हो सकते हैं। पुरातन काल में इसी शक्ति का प्रयोग कर ऋषि, मुनि उच्चस्तरीय योग की सिद्धियाँ हस्तगत करते थे। आज तो विज्ञान रूपी माध्यम भी उसके पास हैं। यदि सही दिशा में इस शक्ति का सुनियोजन किया जा सके तो महत्त्वपूर्ण उपलब्धियों से मानव समाज को लाभान्वित किया जा सकता है।