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Magazine - Year 1989 - Version 2

Media: TEXT
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संत विरुवल्लुवर के अमृतवचन

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अधर्म द्वारा एकत्र की हुई सम्पत्ति की अपेक्षा तो सदाचारी पुरुष की दरिद्रता कहीं अच्छी हैं।

जिन कामों में असफलता अवश्यम्भावी है, उसे संभव कर दिखना और बाधा विघ्नों से न डर कर अपने कर्तव्य पर अड़ते रहना प्रतिभाशालियों के लिये ये दो मुख्य पथप्रदर्शक सिद्धान्त हैं।

लोगों को रुलाकर जो सम्पत्ति इकट्ठी की जाती है, वह क्रन्दन ध्वनि के साथ ही विदा हो जाती है, मगर जो धर्म द्वारा संचित की जाती है, वह बीच में ही क्षीण हो जाने पर भी अन्त में खूब फलती फलती है।

धोखा देकर दगाबाजी के साथ धन जमा करना बस ऐसा ही है, जैसा कि मिट्टी के बने हुए कच्चे घड़े में पानी भर कर रखना।

अपना मन पवित्र रखो धर्म का समस्त सार बस इसी उपदेश में समाया हुआ है। दूसरी बातें और कुछ नहीं केवल शब्दाडम्बर मात्र हैं।

यह मत सोचो कि मैं धीरे, धीरे धर्म मार्ग का अवलम्बन लूँगा। बल्कि अभी बिना देर लगाये ही नेक काम करना शुरू कर दो।

जिस घर में स्नेह और प्रेम का निवास हे, जिसमें धर्म का साम्राज्य है, वह सम्पूर्णता सन्तुष्ट रहता है, उसके अब उद्देश्य सफल होते हैं।

गृहस्थ जो दूसरे लोगों को कर्तव्यपालन में सहायता देता है और स्वयं भी धार्मिक जीवन व्यतीत करता है, ऋषियों से भी अधिक पवित्र हैं।

सत्पुरुषों की वाणी ही वास्तव में सुस्निग्ध होती है, क्योंकि वह दयार्द्र कोमल और बनावट से रहित होती है।

औदार्य मन दान से भी बढ़कर सुन्दर गुण वाणी की मधुरता, दृष्टि की स्निग्धता तथा हृदय की स्नेहार्द्रता में है।

जो मनुष्य सदा ऐसी वाणी बोलता है कि जो सबक हृदयों को आह्लादित करदे, उसके पास दुःखों की अभिवृद्धि करने वाली दरिद्रता कभी न आयेगी।

भ्रमता और और स्नेहार्द्र वक्तृता केवल यही मनुष्य के आभूषण है और कोई नहीं।

यदि तुम्हारे विचार शुद्ध और पवित्र हैं, और तुम्हारी वाणी में सहृदयता है, तो तुम्हारी पाप वृत्ति का स्वयमेव क्षम हो जायगा।

सेवा भाव को प्रदर्शित करने वाला और शत्रु को भी मित्र बनाने वाला नम्र वचन ही है।

मीठे शब्दों के रहते हुए भी जो मनुष्य कड़ुवे शब्दों का प्रयोग करता है, वह मानों पक्के फल को छोड़कर कच्चा फल खाना पसन्द करता है

उपकार को भूल जाना नीचता है, लेकिन यदि कोई भलाई के बदले बुराई करे तो उसको तत्काल भुला देना शराफत की निशानी है।

आवश्यकता पड़ने पर जो सहायता की जाती है, वह देखने में छोटी अवश्य प्रतीत हो किन्तु वह ज्यादा वजनदार है।

जब तुम्हारा मन नेकी को छोड़कर बदी की ओर चलायमान होने लगे, तो समझ लो तुम्हारा सर्वनाश निकट है।

अगर तुम्हारे एक शब्द से भी किसी को पीड़ा पहुँचती है तो तुम अपनी सब नेकी नष्ट हुई समझो।

वेद भी अगर विस्मृत हो तो फिर याद कर लिये जा सकते हैं, मगर सदाचार से यदि एक बार भी मनुष्य नीचे गिर गया तो सदा के लिए अपने स्थान से भ्रष्ट हो जाता है

लक्ष्मी ईर्ष्या करने वाले के पास नहीं रह सकती। वह उसको बड़ी बहन दरिद्रता के हवाले कर चली जायेगी।

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