• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • तपस्वी का वैराग्य!
    • हँसती-मुस्कराती-आकृति-प्रकृति
    • अंतः करण के परिमार्जन से दिव्य शक्तियों का उद्भव!
    • भविष्य इस प्रकार का उभरेगा
    • Quotation
    • सौंदर्य का सच्चा मापदण्ड
    • यह कुचक्र देर तक टिकेगा नहीं
    • प्रत्यक्ष पराक्रमों के मूल में सक्रिय दैवी प्रेरणा
    • न कोई बुरा है न पापी!
    • राजा जनक विदेह क्यों कहलाए?
    • प्रतिभाएँ यह तथ्य समझें-समझायें
    • अनीति का साम्राज्य देर तक नहीं टिकता
    • संत विरुवल्लुवर के अमृतवचन
    • मानवी गरिमा के साथ जुड़ी दिव्य संवेदना,
    • Quotation
    • व्यक्तित्व परिष्कार में मंत्र शक्ति का योगदान
    • आ रहा है अध्यात्म प्रधान युग।
    • ज्योति अवतरण की उच्चस्तरीय साधना
    • अध्यात्म यथार्थवादी है, विज्ञान सम्मत भी
    • आस्तिकता की सही परिभाषा!
    • मधु संचय
    • मधु-संचय (Kavita)
    • अनुपम उपहार (kavita)
    • वस्तु विकृ न हो पात्र (kavita)
    • विचारों में निहित रचनात्मक शक्ति
    • Quotation
    • सूझबूझ ने खोला समृद्धि का द्वार!
    • नींव का पत्थर बनूँ मैं!
    • मनः स्थिति को सुव्यवस्थित बनायें!
    • परोक्ष से उठता क्रूरता का उन्माद
    • निंदा से विचलित क्यों हों?
    • चिंता की चिता में जलते मन व उनका उपचार
    • प्रसन्नता- एक सुलझी हुई मनःस्थिति
    • प्रकृति प्रेरणा का भयावह व्यतिरेक
    • Quotation
    • चिन्तन की अनगढ़ता ही दरिद्रता है!
    • स्वस्थ मनोरंजन मनुष्य की एक नैसर्गिक आवश्यकता!
    • नारी अबला नहीं, शक्तिशाली है
    • Quotation
    • अपनों से अपनी बात
    • परिजनों को एक जुट होने का आह्वान - युगसंधि के उषाकाल में शान्तिकुँज के चार संकल्प
    • Quotation
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • तपस्वी का वैराग्य!
    • हँसती-मुस्कराती-आकृति-प्रकृति
    • अंतः करण के परिमार्जन से दिव्य शक्तियों का उद्भव!
    • भविष्य इस प्रकार का उभरेगा
    • Quotation
    • सौंदर्य का सच्चा मापदण्ड
    • यह कुचक्र देर तक टिकेगा नहीं
    • प्रत्यक्ष पराक्रमों के मूल में सक्रिय दैवी प्रेरणा
    • न कोई बुरा है न पापी!
    • राजा जनक विदेह क्यों कहलाए?
    • प्रतिभाएँ यह तथ्य समझें-समझायें
    • अनीति का साम्राज्य देर तक नहीं टिकता
    • संत विरुवल्लुवर के अमृतवचन
    • मानवी गरिमा के साथ जुड़ी दिव्य संवेदना,
    • Quotation
    • व्यक्तित्व परिष्कार में मंत्र शक्ति का योगदान
    • आ रहा है अध्यात्म प्रधान युग।
    • ज्योति अवतरण की उच्चस्तरीय साधना
    • अध्यात्म यथार्थवादी है, विज्ञान सम्मत भी
    • आस्तिकता की सही परिभाषा!
    • मधु संचय
    • मधु-संचय (Kavita)
    • अनुपम उपहार (kavita)
    • वस्तु विकृ न हो पात्र (kavita)
    • विचारों में निहित रचनात्मक शक्ति
    • Quotation
    • सूझबूझ ने खोला समृद्धि का द्वार!
    • नींव का पत्थर बनूँ मैं!
    • मनः स्थिति को सुव्यवस्थित बनायें!
    • परोक्ष से उठता क्रूरता का उन्माद
    • निंदा से विचलित क्यों हों?
    • चिंता की चिता में जलते मन व उनका उपचार
    • प्रसन्नता- एक सुलझी हुई मनःस्थिति
    • प्रकृति प्रेरणा का भयावह व्यतिरेक
    • Quotation
    • चिन्तन की अनगढ़ता ही दरिद्रता है!
    • स्वस्थ मनोरंजन मनुष्य की एक नैसर्गिक आवश्यकता!
    • नारी अबला नहीं, शक्तिशाली है
    • Quotation
    • अपनों से अपनी बात
    • परिजनों को एक जुट होने का आह्वान - युगसंधि के उषाकाल में शान्तिकुँज के चार संकल्प
    • Quotation
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1989 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
SCAN TEXT


मनः स्थिति को सुव्यवस्थित बनायें!

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 28 30 Last
मानसिक अस्तव्यस्तता की स्थिति तनाव कहलाती है। इसी के चिन्ह सिर में दर्द, चक्कर आना, जी घबराना, अनिद्रा बेचैनी, उत्तेजना आदि के रूप में दिखाई देते हैं। निद्रा, शाँति और विश्राम के लिए मानसिक शिथिलता जरूरी है। पर जब मानसिक स्थिति तनाव ग्रस्त हो तो थकान मिटाने वाली नींद कैसे आए? काम के दबाव से उत्पन्न तनाव तो विश्राम से दूर किया जा सकता है, पर चिन्ताओं से उत्पन्न होने वाला तनाव विश्राम की स्थिति उत्पन्न होने नहीं देता। फलस्वरूप स्थिति लगातार बिगड़ती जाती ह॥

मनोवैज्ञानिकों के अध्ययन के अनुसार बड़े शहरों के निवासी देहात में रहने वालों की अपेक्षा कहीं अधिक इससे ग्रसित पाए जाते हैं।इसके कारण के बारे में उनका मानना हैं, गाँवों का जीवन सीधा और सरल है-जबकि शहरों काजीवन मशनी बन कर रह गया है। जीवन शैली का यह भेद बहुत महत्वपूर्ण है। एक को साधारण कपड़े और साधारण भोजन में सन्तोष है, तो दूसरा अधिक से अधिक घमक-दमक बटोरना चाहता है। कामनाओं की बाढ़ में मन चिन्ताओं और विक्षोभों में डूबा रहे यह स्वाभाविक है। सितार के तारों को अधिक कड़ा करते जायँ तो वे टूट जाँएगें। इसी प्रकार मनःस्थिति यदि अव्यवस्थित व तनाव पूर्ण रहे तो उसकी प्रतिक्रिया समूचे जीवन को तोड़-मरोड़ कर रख देती है।

मनोवैज्ञानिक आर.एस. लाजरस ने अपनी रचना “साइकोलाजिक स्टे्रस एण्ड द कोपिग प्रोसेस” में इसका प्रमुख कारण खुद की मनःस्थिति एवं सामाजिक वातावरण के पारस्परिक सम्बन्धों में होने वाले उतार-चढ़ाव को बताया है। यह उतार-चढ़ाव मुख्य रूप से दो तथ्यों पर टिक है। पहला व्यक्ति की समा से माँग, दूसरा माँग के प्रति उसकी स्वयं की मानसिकता। अधिकाँश लोग समाज से असीमित माँगे रखते हैं, जबकि समाज के देने की क्षमता सीमित है। ऐसी दशा में स्वाभाविक है कि मनःस्थिति अस्तव्यस्त हो चले।

इच्छाओं की बाढ़ को रोक कर परिस्थितियों से ताल मेल बिठाना हमें सीखना होगा। लोगों का साथ निभाने की कला हमें आनी चाहिए। आदमी मिट्टी के खिलौने नहीं हैं जो चाहे जब चाहे जहाँ हटाए बदले जा सकें। कुछ लोग ऐसे होते है। जिनके साथ हमें इच्छा या अनिच्छा से रहना ही पड़ेगा। पड़ोस में जो लोग बसे हैं उनके घर को नहीं उखाड़ फेंका जा सकता? और न ही अपने खेत खलिहान को छोड़कर किसी दूर देश में घोंसला बनाया जा सकता है। पड़ोसी जैसे भी हैं, आखिर रहना तो उन्हीं के साथ पड़ेगा। जरूरी नहीं वे समझाने-बुझाने से हमारी मन मर्जी के अनुसार चलने लगें। यही बात कुटुम्बियों परिवारीजनों के सम्बन्ध में भी है। बूढ़े माँ-बाप, जवान भाई भावज, सयाने, लड़के, धर्म-पत्नी इन सबकी आदतें अपनी मर्जी के अनुरूप हों, यह कोई जरूरी नहीं। जिस तरह हर आदमी की शक्ल में अन्तर होता है, उसी प्रकार उसका व्यक्तित्व भी न जाने कितनी अच्छी खराब विशेषताओं से जुड़ा रहता है। कुछ इनमें से बदलती रहती हैं। अच्छे बुरे बन जाते हैं, और बुरे अच्छे। अरुचि की स्थिति पैदा होते ही उन्हें हटा दिया जाय, खुद हट जाँय या अपनी मर्जी का सुधार कर लिया जाय। ये तीनों बातें कठिन हैं। सरल यही है कि हमें जिन लोगों के साथ रहना पड़े उनके साथ इस तरह गुजर बसर करें, तालमेल बिठाये कि आये दिन का टकराव पैदा हुए बिना समय गुजरता रहें और यथा सम्भव सहयोग की सम्भावनाएँ बढ़ती रहें।

घुटन को हार की तरह छाती से चिपटाए रहना ठीक नहीं। एक बात सामने आयी उस पर विचार किया और सिनेमा की फिल्म की तरह दिमाग के पर्दे से हटा दिया। जब हम फेफड़े में साँस को रोके नहीं रख सकते। तो किसी विक्षोभ को ही मन में जमाकर, दबाकर क्यों बैठें रहें! नई साँस लेने के लिए जरूरी है कि पुरानी साँस बाहर निकले। भविष्य का निर्माण करने वाले विचारों को आमन्त्रित करने के लिए जरूरी है, जो बीत चुका उसकी कष्टदायी यादों को विस्मरण के गड्ढे में धकेल कर छुटकारा, पाएँ। खाली बैठे रहने पर न जाने कितनी इच्छाएँ कामनाएँ, ऊट-पटाँग विचार मन में उमड़ा करते हैं। इनमें पिण्ड छुड़ाने का सरल तरीका यह भी है कि ठाली पन दूर किया जाय। बहुत से काम ऐसे हैं। जो मानसिक गड़बड़ी में भी किए जा सकते हैं। झाडू लगाना, कपड़े धोना, जैसे काम अभ्यस्त हाथ करते रह सकते हैं। तैरना, खेलना, किसी काम से दूसरी जगह चले जाना जैसे छोटे परिवर्तन उत्तेजित मनःस्थिति को हलकी कर सकते हैं।

दूसरों से बहुत ज्यादा अपेक्षा न करना भी एक कारगर, उपाय है। सामान्यतया देखा यह जाता है कि बाप-बेटे से बहुत अधिक आशाएँ रखता है। उसके द्वारा हवाई किले बनाए जाने के सपने देखे जाते हैं। इसी प्रकार तमाम तरह की अपेक्षाएँ पड़ोसियों, कुटुम्बियों, रिश्ते-नातेदारों से की जाती हैं। ये सभी पूरी होने से तो रहीं। न पूरी होने की स्थिति में मन को विक्षुब्ध होना पड़ता है।

इस विक्षुब्धता जन्य तनाव से बचने के लिए जरूरी है कि अपनी अपेक्षाओं, को कम से कम रखा जय। अपनी मांगों को सिकोड़ा जाय। इसके लिए मन को प्रशिक्षित करना होगा। मन तो छोटे बच्चे की तरह है। जिस किसी चीन को पाने के लिए दौड़ पड़ता है। न पाने पर रोता मचलता है। यह रोने मचलने की स्थिति ही तो तनाव है। वह न रोए मचले, इसके लिए तरह-तरह के उदाहरण उसके सामने रखने होंगे। दुनिया के ख्याति प्राप्त रसायनज्ञ डाँ. प्रफुल्ल चन्द्र राय अपने वेतन के छोटे से हिस्से से अपना काम चला लेते थे, शेष धन गरीब विद्यार्थियों, सेवाभावी, संस्थाओं में नियोजित करते थे। माँगें कम रखने का मतलब है-इस स्थिति स्थाई रूप छुटकारा पाना।

यही बात परिवेश-परिस्थितियों के सम्बन्ध में है। बात घर परिवार अड़ोस-पड़ोस की हो या दफ्तर कार्यालय की। जब भी कोई ऐसी समस्या उठे तो शान्त मनःस्थिति रख कर विचार करने का प्रयास करना चाहिए। एक हाथ ताली नहीं बजती। गलती दोनों ओर से होती है। इसमें अपनी गलती कहाँ है-उसे ढूँढ़ कर दूर करने की कोशिश की जाय। प्रायः होता यह है कि छोटी सी बात को बड़ा बना दिया जाता है। तिल का ताड़ बनाने वाली इस आदत की वजह से न जाने कितने लोग मन का विक्षोभ भुगतते रहते हैं। थोड़ी समझदारी बरत लेने-संगति बिठाकर चलने में किसी तरह की तनाव जन्य स्थिति का न आना स्वाभाविक है।

काम की चिन्ताओं का बोझ दफ्तर या कार्य स्थल पर ही रहने देना ठीक है। हर समय इसे बेवजह ढोने से कोई भलाई नहीं। क्योंकि इस तरह काम को तो पूरा किया नहीं जा सकता। सिर्फ उधेड़बुन के कारण तनाव हाथ लगता है। जिस समय काम करें, पूरे मनोयोग से करें। प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाकर करें सके बाद तो उसे उसी जगह छोड़ कर हँसी-खुशी की हलकी -फुलकी जिन्दगी जीना ही अच्छा है। धीरे धीरे किन्तु लगातार इस तथ्य पर अमल करने से ऐसी स्थिति आने नहीं पाती।

मानसिक स्तर व जीवन क्रम को ऐसा सँजोया जाय, इस प्रकार सुसंयत किया जाय कि आयेदिन की तनाव जन्य परेशानियों का सामना ही न करना पड़े। चिन्तन और जीवन शैली में ठीक तरह से सामंजस्य बिठा कर चलने और हँसने हँसाने की आदतों को अपना कर तनाव से एवं तद्जन्य व्यथाओं से सहज ही छुटकारा पाया जा सकता है।

First 28 30 Last


Other Version of this book



Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...

Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • तपस्वी का वैराग्य!
  • हँसती-मुस्कराती-आकृति-प्रकृति
  • अंतः करण के परिमार्जन से दिव्य शक्तियों का उद्भव!
  • भविष्य इस प्रकार का उभरेगा
  • Quotation
  • सौंदर्य का सच्चा मापदण्ड
  • यह कुचक्र देर तक टिकेगा नहीं
  • प्रत्यक्ष पराक्रमों के मूल में सक्रिय दैवी प्रेरणा
  • न कोई बुरा है न पापी!
  • राजा जनक विदेह क्यों कहलाए?
  • प्रतिभाएँ यह तथ्य समझें-समझायें
  • अनीति का साम्राज्य देर तक नहीं टिकता
  • संत विरुवल्लुवर के अमृतवचन
  • मानवी गरिमा के साथ जुड़ी दिव्य संवेदना,
  • Quotation
  • व्यक्तित्व परिष्कार में मंत्र शक्ति का योगदान
  • आ रहा है अध्यात्म प्रधान युग।
  • ज्योति अवतरण की उच्चस्तरीय साधना
  • अध्यात्म यथार्थवादी है, विज्ञान सम्मत भी
  • आस्तिकता की सही परिभाषा!
  • मधु संचय
  • मधु-संचय (Kavita)
  • अनुपम उपहार (kavita)
  • वस्तु विकृ न हो पात्र (kavita)
  • विचारों में निहित रचनात्मक शक्ति
  • Quotation
  • सूझबूझ ने खोला समृद्धि का द्वार!
  • नींव का पत्थर बनूँ मैं!
  • मनः स्थिति को सुव्यवस्थित बनायें!
  • परोक्ष से उठता क्रूरता का उन्माद
  • निंदा से विचलित क्यों हों?
  • चिंता की चिता में जलते मन व उनका उपचार
  • प्रसन्नता- एक सुलझी हुई मनःस्थिति
  • प्रकृति प्रेरणा का भयावह व्यतिरेक
  • Quotation
  • चिन्तन की अनगढ़ता ही दरिद्रता है!
  • स्वस्थ मनोरंजन मनुष्य की एक नैसर्गिक आवश्यकता!
  • नारी अबला नहीं, शक्तिशाली है
  • Quotation
  • अपनों से अपनी बात
  • परिजनों को एक जुट होने का आह्वान - युगसंधि के उषाकाल में शान्तिकुँज के चार संकल्प
  • Quotation
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj