• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • दुख, सुख एक दूसरे के अभिन्न सहचर
    • भावनाओं का सौंदर्य
    • तर्क से परे है, ईश्वर का अस्तित्व
    • सत्कर्मों के लिए सहायता (Kahani)
    • कैसा था, कभी सतयुग?
    • बात मान लेने में ही औचित्य है (Kahani)
    • मिलन, एक मनीषी व ऋषि का
    • जीवन साधन ही सच्ची ईश्वर-उपासना
    • डॉ. जाकिर हुसैन (Kahani)
    • महाप्रज्ञा का तत्वदर्शन जन-जन तक पहुँचे।
    • गायत्री एवं यज्ञ के तत्वदर्शन (Kahani)
    • जब पहचानी मानव जीवन की गरिमा
    • मात्र यूटोपिया नहीं, वास्तविकता
    • हम विचारों के उपासक बनें।
    • आत्मिकी को उसका गौरव लौटाया जाय।
    • अंदर छिपा वैभव का जखीरा
    • संघशक्ति का जागरण ही एकमेव समाधान
    • मुस्कान, एक मनोवैज्ञानिक आसन
    • होठों पर खिलती मुसकान (Kahani)
    • इक्कीसवीं सदी समृद्धि का स्वर्णिम युग
    • ध्यानयोग की तात्विक पृष्ठभूमि
    • श्रम से जी नहीं चुराते (Kahani)
    • खण्ड प्रलय को निमंत्रण तो न दें।
    • गरीबी ओढ़कर जो लोक शिक्षक बने
    • उन्हीं को तो खोज रहा है (Kahani)
    • नास्तिकता के माया जाल से उबरें
    • वाक्शक्ति का एक सशक्त स्वरूप मौन
    • विशिष्ट क्षमताओं हेतु (Kahani)
    • Quotation
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • दुख, सुख एक दूसरे के अभिन्न सहचर
    • भावनाओं का सौंदर्य
    • तर्क से परे है, ईश्वर का अस्तित्व
    • सत्कर्मों के लिए सहायता (Kahani)
    • कैसा था, कभी सतयुग?
    • बात मान लेने में ही औचित्य है (Kahani)
    • मिलन, एक मनीषी व ऋषि का
    • जीवन साधन ही सच्ची ईश्वर-उपासना
    • डॉ. जाकिर हुसैन (Kahani)
    • महाप्रज्ञा का तत्वदर्शन जन-जन तक पहुँचे।
    • गायत्री एवं यज्ञ के तत्वदर्शन (Kahani)
    • जब पहचानी मानव जीवन की गरिमा
    • मात्र यूटोपिया नहीं, वास्तविकता
    • हम विचारों के उपासक बनें।
    • आत्मिकी को उसका गौरव लौटाया जाय।
    • अंदर छिपा वैभव का जखीरा
    • संघशक्ति का जागरण ही एकमेव समाधान
    • मुस्कान, एक मनोवैज्ञानिक आसन
    • होठों पर खिलती मुसकान (Kahani)
    • इक्कीसवीं सदी समृद्धि का स्वर्णिम युग
    • ध्यानयोग की तात्विक पृष्ठभूमि
    • श्रम से जी नहीं चुराते (Kahani)
    • खण्ड प्रलय को निमंत्रण तो न दें।
    • गरीबी ओढ़कर जो लोक शिक्षक बने
    • उन्हीं को तो खोज रहा है (Kahani)
    • नास्तिकता के माया जाल से उबरें
    • वाक्शक्ति का एक सशक्त स्वरूप मौन
    • विशिष्ट क्षमताओं हेतु (Kahani)
    • Quotation
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1991 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


अंदर छिपा वैभव का जखीरा

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 15 17 Last
मनुष्य के मस्तिष्क को यदि भानुमति का पिटारा कहा जाय, तो कोई अत्युक्ति नहीं होगी, क्योंकि इसमें इतनी और ऐसी-ऐसी अद्भुत और आश्चर्यजनक क्षमताएँ भरी पड़ी हैं, जिन्हें यदि जीवन्त जाग्रत कर लिया जाय, तो यह दावे के साथ कहा जा सकता है कि मनुष्य दीन-हीन स्थिति में पड़ा नहीं रह सकता। यदा-कदा यही क्षमताएँ दुर्घटनावश जग पड़ती है, तो हर कोई यह विश्वास करने लगता है कि यदि प्रयासपूर्वक मनुष्य इन्हें जगा ले, तो मनुज - चोले में ही वह नारायण की क्षमता अर्जित करने में सफल हो सकता है ।

ऐसी ही एक महिला थी मोली फेंचर। बुकलीन के एक सामान्य परिवार में जन्मी, पली, बढ़ी फेंचर जब बड़ी हुई, तो उसे घुड़सवारी का शौक चर्राया। अपने मित्रों की तरह वह भी नित्य घुड़सवारी करने लगी, पर दुर्भाग्यवश 10 मई 1864 को घुड़सवारी के दौरान वह अचानक घोड़े की पीठ से गिर पड़ी मस्तिष्क में कुछ स्थानों पर चोटें आयी, किन्तु सब कुछ सामान्य रहा। 8 जून, 1864 को इसी घटना की पुनरावृत्ति हुई। इसके बाद उसने खाना- पीना बन्द कर दिया। लाभ भी इसी क्रम में धीरे-धीरे मिलने लगा। 3 फरवरी 1866 को 8 माह बाद डॉ. राबर्ट स्पाइयर ने जब मोली का परीक्षण किया, तो मोली की चाची ससन कासबी एवं पड़ोसी अत्यन्त प्रसन्न हुए कि चलो स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर रही है। उसी दिन अचानक न जाने क्यों उसने आँखें बन्द कर लीं और कई महीनों तक नहीं खोलीं। जब आँखें खुलीं, तब अपने जीवन काल के किसी भी व्यक्ति को पहचानने से इन्कार कर दिया। यहाँ तक कि अपने निजी डॉ एवं चाची तक को नहीं पहचान सकी। इसके बाद सदा लेटी ही रहती। उसका बायाँ हाथ सिर के नीचे 9 साल तक पड़ा रहा। इसी अवधि में उन्होंने 6000 अद्भुत पत्र लिखे, जो अपने आप में विलक्षण एवं मित्रों को प्रभावित करने वाले थे।

फरवरी 1875 को नौ वर्ष के बाद अकस्मात वह बिस्तर से उठी और चलने लगी, तो सीढ़ी से गिर पड़ी। आँख खुलते ही अपने निजी डॉक्टर के भाई डॉ एस फ्लीट स्पाइयर से बोल पड़ी “क्यों डॉक्टर! आपके भाई नये घर में क्या कर रहे हैं।” अपनी चाची को देखकर वह कहने लगी “क्यों चाची! तुम्हारे तो बाल काले दीखते थे, इतनी जल्दी बूढ़ी हो गई। “ स्वयं के द्वारा लिखित पत्रों को देखकर कहने लगी “यह तो किसी मृतात्मा द्वारा लिखे गये पत्र हैं।”

यह मोली की असाधारण शक्तियों के जागरण का श्रीगणेश मात्र था। इसी बीच न जाने किन कारणों से उसी आँखों की दृश्य क्षमता लुप्त हो गई और वह चिकित्सकीय दृष्टि से अन्धी हो गई। परन्तु उसने अनुभव किया कि अन्धी आँखों के बावजूद भी वह सब कुछ देख सकती है। इस संबंध में उसका कहना था “मुझे ऐसा लगता है, मानों मैं अपने दोनों भौहों के बीच में विद्यमान तीसरी आँख से देख रही हूँ।”कई बार तो दूर की रखी चीजों को भी देख लेती थी और कहती मुझे ऐसा लगता है कि मस्तिष्क के ऊपरी हिस्से से प्रकाश किरणें निकल रही हैं, जो वस्तुओं से टकराकर मेरे पास आती हैं और मैं उन्हें देख लेती हूँ।”

1875 में कलीन युनिवर्सिटी के भौतिकीविद् प्रोफेसर हेनरी एम, पार्श्बस्ट्र ने मोली को अतीन्द्रिय क्षमताओं के सम्बन्ध में जाँच-पड़ताल की। वे दो चीजों को विशेष रूप से जानना चाहते थे कि क्या मोली के पास वस्तुतः अतीन्द्रिय क्षमता है अथवा कोई हाथ की सफाई जैसा कुछ है। दूसरी, मोली इसका प्रयोग कैसे करती है। इसके लिए उन्होंने कई प्रयोग किये। एक मोटे कागज वाले लिफाफे में कुछ लिखकर मोली को दिया गया तो वह बिना किसी कठिनाई के पढ़ने लगी। जब कोट की पुरानी फाइल से एक कागज लाया गया, उसे भी जब लिफाफे में बन्द कर पढ़ने को दिया गया, तो वह उसे भी आसानी से पढ़ने लगी। इन सब परीक्षणों के बाद डॉ. हेनरी सन्तुष्ट हुए और इसे उन्होंने उसकी मौलिक अतीन्द्रिय क्षमता की संज्ञा दी व कहा कि हर दृष्टि से दृष्टि हीन होने के बावजूद वह छठी इन्द्रियों से सब कुछ देख सकती है। इसका कोई वैज्ञानिक प्रतिपादन उनके पास नहीं था।

संभव है, इसे कोई दुर्घटना से मस्तिष्क के किसी न्यूरान के अस्त−व्यस्त होने व अतीन्द्रिय क्षमता के जाग पड़ने की प्रक्रिया बताए। पर एक तथ्य तो सुनिश्चित है कि यह संभावना मस्तिष्क में विद्यमान है। कभी ऐसा समय भी था जब साधक स्तर के प्राणवान व्यक्ति अपनी इन्हीं संभावनाओं को साकार कर दिव्य क्षमताओं को हस्तगत कर लिया करते थे। ऋद्धि-सिद्धियों का भण्डार हमारे अपने ही अंदर विद्यमान है व हम चमत्कारों को बहिरंग में तलाशते रहते हैं। अंतर्मुखी हो साधना पुरुषार्थ किया जा सके तो उद्देश्यपूर्ण प्रयोजनों के लिए भी अतीन्द्रिय सामर्थ्यों को जगाना संभव है।

First 15 17 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • दुख, सुख एक दूसरे के अभिन्न सहचर
  • भावनाओं का सौंदर्य
  • तर्क से परे है, ईश्वर का अस्तित्व
  • सत्कर्मों के लिए सहायता (Kahani)
  • कैसा था, कभी सतयुग?
  • बात मान लेने में ही औचित्य है (Kahani)
  • मिलन, एक मनीषी व ऋषि का
  • जीवन साधन ही सच्ची ईश्वर-उपासना
  • डॉ. जाकिर हुसैन (Kahani)
  • महाप्रज्ञा का तत्वदर्शन जन-जन तक पहुँचे।
  • गायत्री एवं यज्ञ के तत्वदर्शन (Kahani)
  • जब पहचानी मानव जीवन की गरिमा
  • मात्र यूटोपिया नहीं, वास्तविकता
  • हम विचारों के उपासक बनें।
  • आत्मिकी को उसका गौरव लौटाया जाय।
  • अंदर छिपा वैभव का जखीरा
  • संघशक्ति का जागरण ही एकमेव समाधान
  • मुस्कान, एक मनोवैज्ञानिक आसन
  • होठों पर खिलती मुसकान (Kahani)
  • इक्कीसवीं सदी समृद्धि का स्वर्णिम युग
  • ध्यानयोग की तात्विक पृष्ठभूमि
  • श्रम से जी नहीं चुराते (Kahani)
  • खण्ड प्रलय को निमंत्रण तो न दें।
  • गरीबी ओढ़कर जो लोक शिक्षक बने
  • उन्हीं को तो खोज रहा है (Kahani)
  • नास्तिकता के माया जाल से उबरें
  • वाक्शक्ति का एक सशक्त स्वरूप मौन
  • विशिष्ट क्षमताओं हेतु (Kahani)
  • Quotation
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj