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Magazine - Year 1994 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
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परम पूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी

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वसंत पर्व 1976 पर दिया गया विशिष्ट उद्बोधन

( भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भागो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् । देवियों, भाइयों! वसंत पर्व पर हमें हमेशा नये संदेश मिलते रहें। जिस सत्ता के साथ हमारा बड़ा घनिष्ठ संबंध है और जिसको आज्ञा से हमारा सारा जीवन व्यतीत हुआ है, जिसको हमने अपने आपे का समर्पण किया है, उस समर्पण किया है उस समर्पण वाली शक्ति ने हमसे यह वायदा किया था कि वसंत पंचमी के समय पर हर साल का एक कार्यक्रम बना कर भेजा करेंगे। वह सुबह हमको मिल गया है। आप में से कई आदमी वसंत पंचमी पर यहाँ आये होगे, पर वह भावावेश की ही बाते हमने कही और आपको क्या करना है और हमें क्या करना है, इसके संबंध में एक छपा हुआ इश्तहार बांट दिया। मालूम नहीं आपने ध्यान दिया अथवा नहीं। गुरुजी के साक्षात्कार हो गये दर्शन कर लिये बहुत हो गया। पिछले दिनों किसी ने यह अफवाह फैला दी थी कि - गुरु जी बीमार पड़े है । उन लोगों को यह बताने के लिए कि हमारे शरीर में कोई खराबी नहीं है और शरीर में अगर कभी हमारी मृत्यु हुई तो आप यह समझना कि गुरुजी का ट्रांस्फर हुआ है। किसी महत्वपूर्ण काम के लिए उनको भेज दिया गया है और जो काम अभी हम स्थूल शरीर से करते हैं उसकी अपेक्षा सौगुना अधिक काम कर रहे होंगे। क्योंकि शरीर का संबंध ही ऐसा है कि हमको बहुत दूर तक चलने नहीं देता। इसलिए जो काम अभी हम इस शरीर से नहीं कर सकते, उसकी अगर आवश्यकता पड़ी-गुरुदेव को आवश्यकता पड़ी तो स्थूल शरीर से सूक्ष्म ऐसा करें लेकिन फिलहाल अभी ऐसी कुछ योजना नहीं है न हम बीमार है और न हमें कोई कष्ट है और न कोई बात है हम ठीक तरीके से अपनी यह साधना-उपासना कर रहे है। हमें सूक्ष्मीकरण के लिए कहा गया था उस साधना में हम मुस्तैदी से लगे हुए हैं इस बारे में इतना की कहना काफी है कि हमारे बारे में आपको कोई चिंता करने की बात नहीं है। चिंता तो आपकी हमको करनी है आप क्यों करेंगे? बच्चे माँ बाप की चिंता क्यों नहीं करेंगे कि पिता जी का यह काम कैसे होगा? वह काम कैसे होगा? पिताजी का कर्ज कैसे चुकेगा? बच्चों को क्या पता? पिता को ही यह ध्यान रखना पड़ता है कि अगर हम नहीं रहे या आगे चलकर बच्चे बड़े होगे तो उनको खिलाने-पिलाने का क्या इंतजाम करना पड़ेगा इनके रहने के लिए मकान , इनके ब्याह-शादी का क्या इंतजाम करना पड़ेगा ? इनके काम धंधे का क्या इंतजाम करना पड़ेगा यह चिंता करना बड़ों का काम हैं हम बड़े है, भावनाओं में भी बड़े है हम बड़े है तो यह हमारा काम है कि आप सब लोगों का ध्यान रखें । विगत वर्ष जब वसंत पंचमी का उत्सव हुआ था तब हमने बहुत सी बातें कही थी, पर उनमें से विशेष रूप से ध्यान देने लायक दो बाते खास हैं बात यह है कि यह युग संधि का समय है जिसमें अभी पंद्रह वर्ष बाकी हैं सन् 2000 आने में यह खराब समय अभी खतम नहीं हुआ हैं पहले अभी समझते थे कि यह खत्म हुए है न हारी बीमारी । हारी-बीमारी के ऐसे-ऐसे चक्कर है कि एक दिन में एक-एक गाँव में 22-23 बच्चों की मृत्यु हो जाती हैं कभी-कभी चौपाइयों में ऐसी बीमारी फैलती है कि वे सारे के सारे ढेर हो जाते हैं कभी-कभी भूकंप आ जाते हैं अभी -अभी हिन्दुस्तान में इस तरीके से तूफान आये कि लाखों आदमियों को तबाह करके रख दिया। इस तरीके से चीजें पैदा हो जाती है और न जाने कहा से आ जाती हैं नेचर-प्रकृति हमसे नाराज हो गयी है इंसानों का चाल चलन देखकर प्रकृति ने नाराजगी से अपना बदला चुकाने का निश्चय किया है और वह बराबर चुका रही है और हैरानी पैदा कर रही हैं एक बात हमने यह कही और आप सबको सावधान किया था कि आप लोग सावधान रहना। तो क्यों साहब। हमारे सावधान रहने से क्या हो जायगा । मान लीजिए कोई ऐसी बीमारी आ जाय, कोई ऐसा उपद्रव खड़ा हो जाय तो हम क्या करेंगे? इसलिए हमने कहा था कि अभी हम आपसे अलग नहीं हुए है हमारी शक्ति के दो हिस्से जरूर हो गये है अभी तक जो शक्ति सीमित भी और क्या करना है परिवार की शाखाओं में ही भरती जाती थी, संगठन करने या आयोजन करने या सम्मेलन बुलाने में शिविर लगाने में खर्च हो जाती थी, अब दो साल की सूक्ष्मीकृत साधना में अपने शक्ति को इस हिसाब से विकसित किया है कि पचास परसेंट शक्ति से हमारे पास जो अभी थोड़े से 24 लाख व्यक्ति है, उनकी हम सुरक्षा कर लेंगे। पचास फीसदी शक्ति हम सुरक्षा में लगायेंगे। आपकी हारी-बीमारी में घाटे में दुख में, मुसीबत में , हैरानी में हमारी आधी शक्ति बराबर काम करती रहेगी। इसमें भी आप कमी नहीं पायेंगे,चाहे आप कैसी ही मुसीबत में क्यों न फँसे हो और लोगों से अप हर हालत में नफे में रहेंगे- यह हमारा वायदा है और यह हमारा आप से कहना है। एक और बात हमने यह कही थी कि अब आपको बार-बार हरिद्वार आने और बार-बार हमसे मिलने की आवश्यकता नहीं है। इसका बहुत सीधा सा सरल रास्ता हमने निकाल लिया है। वह यह है कि यदि हमसे मिलने की आवश्यकता हो तो आप दस बार लंबे-लंबे प्राणायाम करना और प्राणायाम करने के बाद में सिर के ऊपर दाहिना हाथ फिराना । हाथ फिराने के बाद में देखना कि जो कुछ भी आपे मन में विचारो वह सबके सब बाहर निकल गये और हमारे विचारो का भीतर आना शुरू हो गया। उस वक्त जो विचार उठें उसको यह मान लेना कि यह गुरुजी की बात है-विचार है। यह रविवार के दिन करना चाहिए। हो सके तो नित्य करना चाहिए। एक बात हमने यह कही थी कि आपके देखभाल की आपके सुख -शाँति की, आपको आगे बढ़ाने की -ऊंचा उठाने की आपके दुःख दर्दों को कम करने की जिम्मेदारी है आपको कोई मुसीबत हो हैरानी की की बात हो तो माता जी से कह देना अथवा जो काई भी हो यहाँ। हमने सात सदस्यों की एक कमेटी बनायी है ट्रस्टी बनाये है ये ऐसे है जो अपने घर से ही अपना खर्च चलाते हैं ऊंची योग्यता के है यहां के कामों को बड़ी ईमानदारी और जिम्मेदारी से संभालते हैं और हमको यकीन हो गया हे कि ये आदमी हमेशा अपनी जिम्मेदारियों को सँभालते रहेंगे उनके सुपुर्द हमने यह कर दिया हे कि जो कोई भी यहां आया करें इनके हाथों लिख कर दे दिया करे वह हम तक पहुँच जायेगा और हम आपका काम कर देखें । यह हम आप से वायदा करते हैं और आपको वचन देते हैं हमने आपके लिए आपे व्यक्ति-अपने नुमाइंदे नियुक्त किये है जो आपसे संबंधित बातों को ठीक से समझा सके। जो बाते आपसे , आपके शरीर से, आपके सुख और दुख से संबंधित हैं उसके बारे में हमारा जाक वायदा है जो दायित्व है उसके बारे में ये आदमी आपको ठीक से समझा देंगे। अपने इन नुमाइंदो को हम आपकी सेवा में भेज रहे है। उ बहुत बड़ा काम हमने किया है। यज्ञीय परंपरा का पुनर्जीवन । वैसे तो सारी जिंदगी भर हमने बड़े ही काम किये हैं हमारा जीवन बड़ा है। हमारे ऊपर बहुत बड़ी जिम्मेदारियां डाली गयी हैं दिमाग तो हमारा बड़ा है ही, पर हमारा कलेजा बहुत बड़ा हैं इतना कलेजा है कि हाथी का य तो होगा या व्हेल का। उससे कम भारी कलेजा हमारा नहीं है हमें वजनदार काम सौंपे गये हैं हाथी के ऊपर जब वजन रखा जाता है तब भारी वजन रखा जाता है। शेर को छलाँग मारनी पड़ती है तो बड़ी छलांग मारता है इसीलिए हमारे कंधों पर बड़े काम डाले गये हैं यह जो युग संधि के दिन है इसमें अनेकों काम पूरे करने के लिए हमें सौंपें गये है और उन सौंपे गये कामों को क्या हम अकेले पूरा कर लेंगे? - यह कहना जरा मुश्किल हैं क्योंकि जब रामचन्द्र जी ने रावण को मारा था तब अकेले उन्होंने मार हो सो बात कहाँ थी। उनके साथ में नल-नील जामवंत थे, हनुमान थे, अंगद थे और कितने ही रीछ-वानर थे सबने मिलकर मारा था । इसी तरीके से सबको मिलाकर हमको एक ऐसा अनुष्ठान करना है जैसा कि पहले जिस दिन से ब्रह्म जी ने धरती बनायी थी, उस वक्त से न कभी हुआ था और न कभी होगा। संकल्प हमारा यह है कि एक लाख यज्ञ करें एक लाख गायत्री यज्ञ कहाँ होगे? हमारी इच्छा है कि एक लाख अलग-अलग स्थानों पर करें ताकि हर गाँव का वातावरण, हर गाँव की सुरक्षा , हर गाँव में हमारा और हमारे गुरुदेव का प्राण इस यज्ञ के माध्यम से जा पहुँचे यज्ञ एक माध्यम है । किस तरीके से लाउडस्पीकर हमारी आवाज को पकड़ कर उसे बाहर फैलाने का एक माध्यम है जो कि हमारी आवाज को पकड़ रहा है गायत्री माता की आवाज को पकड़ रहा हैं तो गुरुजी आज कल तो पैसे की तंगी है, सूखा पड़ गया है- अकाल पड़ गया है -तूफान आ गया है - कैसे हो यज्ञ? बेटे हमने उस हिसाब से इन यज्ञो को रखा ही नहीं है । जो यज्ञ रखे है वे ऐसे है कि ज्यादा से ज्यादा स्थानों में हो और जिनमें गरीब से गरीब लोग भाग ले। यह यज्ञ भीलों में भी हो , अछूतों से भी हो - सब जगह हो जाय॥ इस यज्ञ में यह बात रखी है कि गुड़ जो सब घरों में होता है उस गुड़ में जरा सा घी मिला दीजिए और उनकी बेर जैसी छोटी-छोटी गोलियाँ बना लीजिए यहां से हम अभिमंत्रित की हुई जो हवन सावित्री भेजेंगे उसे उन सबके ऊपर - जितनी भी गुड़ की गोलियाँ बनी हुई है-उनके ऊपर रख दीजिए और उनसे हवन कर लीजिए । गुरु जी। वेदियां कौन बनायेगा? हमको तो बनाना नहीं आता। जमीन पर चौरस वेदियाँ बनती और उन्हीं पर हवन होगा। यज्ञशाला का सारा सामान हम अपनी जीप गाड़ियां में रखकर भेजेंगे, आपको कुछ नहीं करना पड़ेगा। गुड़ और घी मिलाकर के मुश्किल से एक रुपये लागत आयेगी और उसी से यज्ञ पूरा हो जायेगा। इसमें गरीब आदमी भी एक रुपया खर्च कर सकता है। इसके लिए आप यह भी कर सकते हैं कि पाँच कुण्डीय, नौ कुण्डीय, 51 कुण्डीय यज्ञ के स्थान पर एक कुण्डीय यज्ञ से काम चला सकते हैं । इसमें यह भी हो सकता है कि आप पाँच कन्याओं को पीले कपड़े - पहना कर भेज दीजिए । वे पाँच देवियों के रूप में, गायत्री के पाँच में बैठ जायेगी और वही हवन कर लेगी। यह छोटा सा हवन है। इस में आपको कोई सामान इकट्ठा नहीं करना है केवल गुड़ की एक डली और थोड़ा सा घी लाये जिससे बेर के बराबर गोलियां बन जायेगी और उसी से हवन हो जायगा। इसमें एक रुपये की लागत आयेगी। इस तरीके से हम एक लाख स्थानों पर यज्ञ करेंगे और वह यज्ञ आपको कराने है। इसके लिए आपको पाँच नयी जगह बनानी है । आपको हम पाँच- पाँच गांवों का सरपंच बना रहे है पाँच- पाँच गाँव सुपुर्द कर रहे है आप एक ही जगह पर नहीं रहेंगे, वरन् पाँच जगहों पर काम करेंगे। इस मिशन को इस स्थान पर पाँच जगहों पर फैलाने की कोशिश करेंगे। आपके समीपवर्ती जो गाँव है, नगर है उनमें एक-एक मिशन की शाखा स्थापित कीजिए । शाखा स्थापित करने में हमारे दो काम तो पहले से ही चल रहे थे- एक यह कि एक माला गायत्री का जप सबको करना चाहिए। गायत्री चालीसा का पाठ और एक माला का गायत्री जप यह दोनों काम तो पहले से ही हमने आपके सुपुर्द कर दिये थे। अब इस नये वसंत पंचमी से दा काम ओर सुपुर्द करते हैं। पहला यह कि आपको नये स्थानों पर पाँच यज्ञ करने हैं हमको नये स्थानों की जरूरत है। इस बार हमने 51 कुण्डीय या सौ कुण्डीय यज्ञों को कराने की स्पष्ट मनाही कर दी है और कहा कि अभी मात्र एक कुण्ड का यज्ञ होगा। उसी से हमारा संतोष होगा। सौ कुण्डीय यज्ञों से नहीं बड़े यज्ञों की आवश्यकता अभी नहीं बाद में होगी। तब हम बता देंगे। इससे न उद्देश्य की पूर्ति होगी, न लक्ष्य पूरा होगा और न एक लाख की संख्या पूरी होगी। इसलिए जो भी आप लोग लोग हमारी आवाज को सुन रहे हैं, उन सबका काम व उद्देश्य है कि वे सभी अपने-अपने समीपवर्ती गाँवों में जाकर के यह देखें कि एक-एक कुण्ड का हवन कहाँ कहाँ होना संभव है। यह बात नंबर एक हो गयी।

बात नंबर दो यह है कि आपके पास एक प्रचार मंडली होनी चाहिएं प्रचार मंडली का अर्थ यह है कि अब हमने इसके लिए संगीत को माध्यम बनाया है। नाद जी के पास भी संगीत था, शंकर जी के पास भी संगीत को माध्यम बनाया है। नारद जी के पास भी संगीत था, शंकर जी के पास भी संगीत था। सरस्वती के पास संगीत था, विष्णु के पास संगीत था। सबने संगीत था, विष्णु के पास संगीत था। सबने संगीत के माध्यम से प्रचार किया था। हमको अब जो भी व्याख्यान करना है-संगीत के माध्यम से करेंगे-व्याख्यानों से नहीं। व्याख्यानों में वक्ता का प्राण काम नहीं करता, लेकिन जो संगीत हमारे बनाये हुए हैं-हमारे मिशन से बनाये हुए है और देव कन्याओं ने गाये हैं, उन्हीं संगीतों रख देंगे और उनके हृदय के भीतरी हिस्सों को छुयेंगे। यह संगीत यहीं से जायेगा। और व्याख्यान भी हमारा यहीं से जायेगा। एक एक यज्ञ में हम अपना वीडियो बनाकर भेजेंगे। वीडियो उसे कहते हैं। जो आदमी की तरीके से आवाज भी सुनाता है और शकल भी दिखाता है। वह हमारी और माता जी की शकल भी दिखायेगा और आवाज भी सुनाएगा और देवकन्याओं का गीत भी सुनाएगा। कुँवारी कन्याओं की वाणी में ओजस्विता भी ज्यादा होती है और उसमें प्रभाव ज्यादा होता है। उनका भी टेप भेजेंगे’- जहाँ-जहाँ कहीं भी आप एक कुण्ड का हवन करेंगे। सामान्यता हमने यह आशा की है कि आप पाँच कुण्ड का हवन करेंगे पाँच नये स्थानों पर । हर एक जिम्मेदार आदमी को जिसको हमने शक्ति पीठें कहा है- समर्थ शाखा कहा है, उप शाखा और स्वाध्याय मंडल कहा है उनमें से हर एक आदमी जो हमारा प्रज्ञा पुरुष है जो हमसे घनिष्ठ है, हम चाहते हैं कि वह सौ नये गाँवों में हमको बिठा दे। हजारों गाँवों में हमको बिठा दे। हजारों गाँव ऐसे हैं हिन्दुस्तान के जो अभी हमने देखे नहीं। शहरों में हम गये है, कस्बों में गये है, पर गाँवों में तो गये नहीं। इस बार गाँवों में जाने का हमारा मन है। यह प्रबंध आप कीजिए। अभी हम जो अपने आदमी आपके पास भेज रहे हैं, सिर्फ इस काम करें। एक लाख कुण्ड का एक-लाख वेदियों का हवन हमें करना है जिसमें हमारा भी व्याख्यान होगा, माता जी का भी व्याख्यान होगा और हमारे गुरु का संरक्षण भी होगा और लागत क्या है-एक रुपया। इस तरह का व्यापक स्तर पर आयोजन करने का हमारा मन है। इसके लिए आप जी जान से कोशिश करे।

यह वर्ष समयदान का वर्ष हैं। हमने आप लोगों से समयदान का वर्ष है। हमने आप लोगों से समयदान माँगा है। लोगों ने कहा था कि हम गुरु जी की हीरक जयंती मनायेंगे। तो आप क्या करेंगे हीरक जयंती में? हवन करेंगे, जुलूस निकलेंगे? जुलूस निकालेंगे? नहीं जो हम कहें सो कीजिए और हमारा कहना यह है कि एक गाँव पीछे एक यज्ञ हो एक हवनकुंड का या पांच कुण्ड हो और उसमें पाँच कन्यायें बैठे और उसी में हमारा वीडियो दिखाया जाय। इस तरह एक काम तो हमारा यही है-एक लाख यज्ञों को पूरा करना। हमारा यह संकल्प अधूरा रहे नहीं है। चारों वेदों के भाष्य का संकल्प अधूरा नहीं रहा, हजार कुण्डीय यज्ञ का अधूरा नहीं रहा-तब नहीं रहा जब हम वहाँ थे, पर इस समय हम नहीं हैं। इस समय हमारी जगह पर हैं आप, तब पाँच यज्ञों को अपने सीमावर्ती गाँवों में कीजिये। वहाँ में कीजिए। वहाँ शाखा स्थापित कीजिए ताकि हमारी शाखायें जितनी भी हो-पाँच गुनी अधिक बढ़ जायँ। अभी 2400 शाखाएं। है। उसमें पाँच का गुणा कर दीजिए तो एक लाख से अधिक हो जायेंगी। कम से कम एक लाख स्थानों पर इस तरह गायत्री परिवार का प्रचार करने के लिए-शाखायें स्थापित करने के लिए हमारी इच्छा है और इसलिए आप हमारे इस काम में मदद कीजिए। नंबर दो-इसके लिए प्रचारक मंडलियों की आवश्यकता पड़ेगा ताकि आप प्रत्येक घरों में जा करके हमारा संदेश सुना सकें। इसके लिए आपको अपना तथा प्रत्येक प्रज्ञा पुत्र का परिवार के हर सदस्यों का जन्म दिन मनाना पड़ेगा। जन्म दिन मनाने में केवल नहीं चलेगा। इसके लिए संगीत प्रचारकों की जरूरत पड़ेगी। संगीत प्रचारकों के लिए आपको यह करना है कि यहाँ शांतिकुंज में जो युग शिल्पी सत्र चलते हैं। उसमें एक आदमी आप भेज दीजिए जो यहाँ से प्रशिक्षण लेकर जाने के बाद में वहाँ के लोगों को प्रवचन करना, हवन करना सिखा देगा, संगीत सिखा देगा। पहले भी युगशिल्पी सत्र में आ चुके है। लोग, पर तब संगीत पर इतना जोर नहीं दिया गया था। अब नये शिक्षण में हमारा ध्यान संगीत पर है। अब नये शिक्षण में हमारा ध्यान संगीत पर है। मध्यकालीन जितने भी संत हुए है, उनने संगीत के मध्यकालीन जितने भी संत हुए है, उनने संगीत के माध्यम से अपना प्रचार किया है। कबीर ने अपना प्रचार से अपनी काम किया था। मध्यकालीन सभी संतों ने वाणी के व्याख्यान द्वारा नहीं, बल्कि संगीत के द्वारा प्रचार किया था। तो आपके यहाँ से भी एक मंडली ऐसी होनी चाहिए। जो यहाँ से भी एक मंडली ऐसी होनी चाहिए जो यहाँ से संगीत सीखकर के जाए। इसका नाम हमने वक्त विश्वविद्यालय रखा है। इसके लिए आप लोग अपने-अपने यहाँ से एक-एक आदमी ऐसा भेजिए जो अपने यहाँ से एक-एक आदमी ऐसा भेजिए जो जीवंत हो जिसमें जान हो जिसको हम आपके क्षेत्र का अध्यापक बनाकर के भेज सकें। मंडली आपको तैयार करनी है। प्रचार आपको करना है।, मिशन के विचार आपको फैलाने हैं। इसके लिए गाँव जन्मदिन के समय, तथा त्यौहारों के अवसर पर मीटिंग बुला लीजिए-काम के लोगों को बुला लीजिए। अबकी बार जो भी यज्ञ होंगे, उसमें हमने यह इन्तजाम किया है कि ढाई सो से ज्यादा आदमी न आये। क्योंकि हम जो वीडियो भेजेंगे उसमें दो सौ से ढाई आदमी ही आ सकेंगे।

एक बात और जो करनी है वह यह कि अब हमारा विश्व विद्यालय चलने वाला है। इसमें एक एक लाख व्यक्तियों को पढ़ाने वाले है। लेकिन हमारे इस मिशन के लिए हर एक आदमी को शांतिकुंज आना तो मुश्किल है। अतः वह एक नया प्रशिक्षित अध्यापक जो यहाँ से जायेगा वही अपने स्थानीय लोगों को बुलाकर के वही शिक्षण देगा जो हम यहाँ युगशिल्पी सत्र में बुलाकर देते हैं। इस तरीके से देशभर में जितनी भी शाखायें हैं यदि उनमें से दस-दस आदमी हो जाते हैं। इस तरह के अब तक जितने भी विश्वविद्यालय चले हैं उनमें से किसी में भी एक लाख विद्यार्थी नहीं थे। न किसी आँदोलन में एक लाख विद्यार्थी नहीं थे, इसलिए उनके नाम और संख्याएं बढ़ जाती थीं, लेकिन लाख व्यक्ति शामिल हुए। घुमा−फिरा कर वही चले जाते थे, इसलिए उनके नाम और संख्याएं बढ़ जाती थी, लेकिन लाख व्यक्तियों को हम पढ़ाकर जायँ जिससे वे यों कहें कि गुरुजी ने हमको पढ़ाया था। गुरुजी के हाथ का सर्टीफिकेट हमारे पास है। जो भी आदमी यहाँ युगशिल्पी सत्र में आयेगा उनको हम सर्टीफिकेट देंगे कि तुमको अध्यापक नियुक्त किया है। इस तरह से एक लाख अध्यापक नियुक्त करने का हमारा मदद करेंगे। अब शाँतिकुँज से हम अपने आदमी इसलिए भेज रहे हैं। कि जो भी जीवंत आदमी है, प्राणवान आदमी हैं वे इस बात का संकल्प लें कि हीरक जयंती वर्ष में कि इस कार्य के म करेंगे ही। जो भी काम आप करें, उसका पानी लेकर संकल्प कर दीजिए, वह संकल्प हमारे पास आ जायेगा। और तब समाधान होगा।

दो-तीन काम और है जो आपको करने है। हरीतिमा संवर्धन के लिए पेड़ भी लगाये जाने चाहिए। जुड़ी-बूटी औषधालय हमारे यहाँ है, हम चाहते हैं कि वह भी आपके यहाँ हो जाय। अभी जो हवन सामग्री बाहर से माँगते हैं, उसके पेड़-पौधे आप अपने खेतों में खुद पैदा कर लें और उसी को कूट-पीस कर प्रयुक्त कर लिया करें। इस तरह के कई काम है जो आप कर सकते हैं। आपके पास कमरे हों तो छोटे बच्चों के स्कूल चला सकते हैं। जगह न हो तो आप किराये पर ले लीजिए। किसी से एक कमरा माँग लीजिए और कह दीजिए कि जितने समय तक हमारे काम आयेगा उतने समय तक मिशन का है, शेष सारे समय आपका है चाहे जैसा उपयोग कीजिए। या फिर कोई धर्मशाला में एक कमरा ले लीजिए। कोई मंदिर टूटा-फूटा हो उसकी मरम्मत करा लीजिए तो उकसा जीर्णोद्धार भी हो जाएगा। अब तक 2400 शक्तिपीठें बनाई जिनमें से किसी-किसी में लाखों रुपये लगे हैं । वे हैं तो सही, पर उन्हें अपने स्थान पर रहने दीजिए। अब कुछ ऐसी नयी शक्तिपीठें भी हो सकती है। जो छप्पर की छायी हुई हों, जिन्हें हर साल नये सिरे से बदल दिया जाय। कुछ ऐसी भी शक्तिपीठें हो सकती हैं जो खपरैल से छायी गयी हों जिन्हें बरसात में ठीक कर लें और उसी से काम चला लिया करें। जब जरूरत हो तो उसी में बच्चों के संस्कार कर लें जन्म दिन मान लें उसी में अपनी पाठशाला चला लें। या कहीं किसी का एक कमरा माँग लें, इसके लिए हम आपको यकीन दिलाते हैं कि अच्छे उद्देश्य के लिए वह आपको मिल जायगा।

इन सब कार्यों के लिए हम अपने कार्यकर्ता भेज रहे हैं कि आप सब वहाँ इकठ्ठा होकर यह विचार करें कि गुरुजी ने नये वर्ष के लिए जो संकल्प लिए हैं, उस संकल्प के कई उद्देश्य हैं। उसमें से एक तो यह है कि इन दिनों का जो वातावरण है उनमें प्रलय होने जैसी दुर्घटनायें होना संभव है। दूसरा यह है कि इन बीस सालों में आप लोग किसी मुसीबत में फँस सकते हैं। आपको तो दिखाई नहीं पड़ता परंतु मुझे दिखाई पड़ता है कि आप किसी मुकदमें में पड़ सकते हैं या कोई और बात हो सकती है। कोई अकाल की चपेट में आ सकते हैं या कोई और कठिनाई उठा सकते हैं जिन्हें देखना हमारा काम है और इसीलिए हम यह आयोजन कर रहे है। यह आयोजन हम इसलिए भी कर रहें है कि सारे संसार में जो दुर्घटनायें घट रही हैं- चाहे वह ईरान संसार में जो दुर्घटनायें घट रही है। चाहे वह ईरान-ईराक का युद्ध हो, फिलिस्तीन और इसराइल का युद्ध हो, या अमेरिका की नक्षत्र युद्ध योजना हो या परमाणु युद्ध की विभीषिका। हमने पचास फीसदी अपनी शक्ति ऐसे कामों के लिए सुरक्षित रखी हैं कि जिससे इस वातावरण की शुद्ध करने में और जो आदमी इस तरह की बाते करने के लिए तुले हुए बैठे है- आमादा बैठे है और जो आदमी इस तरह की बातें करने के लिए, संसार में शाँति स्थापित करने के लिए और अप लोगों की व्यक्तिगत समस्याओं के लिए-इन तीनों उद्देश्य के लिए यह कार्यक्रम हमने बनाये हैं। संकल्प लेंगे कि यह काम गुरुजी का तो हम कर ही डालेंगे।

मित्रों। हम चाहते हैं कि जो वजनदार काम हमारे गुरुजी ने हमारे जिम्मे सौंपा है,उस वजनदार काम को पूरा करने में हम समर्थ हो सकें। समर्थ बनने के लिए “बैकिंग शक्ति” भी होनी चाहिए और वह “बैकिंग शक्ति” आप होंगे हमारी पीठ पीछे वाली शक्ति आप होगे। इसलिए इस वर्ष के सौंपे हुए जो काम हैं, उनको आप किस सीमा तक पुरा कर सकेंगे और किस सीमा तक पूरा नहीं कर सकेंगे और किस सीमा तक पूरा नहीं कर सकेंगे, यह ध्यान रखना है। हमने हर वर्ष बार हम आपसे संकल्प कराने के लिए लेते हैं कि आप क्या करेंगे और अगले वर्ष आपका कार्यक्रम क्या होगा। बस, यही हमारा उद्देश्य था इसी के लिए हमने आपको बुलाया था। अब जो यज्ञ होंगे उनमें आप लोगों की एकत्रित होकर के सामूहिक रूप से संकल्प लेने की उम्मीद और अपेक्षा कर रहे हैं। बस यही कहना था आप लोगों से।

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