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Magazine - Year 1995 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
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गहना कर्मणोगति

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वेद में ऋषि कहते हैं- उद्यान ते पुरुष नावयानम्” अर्थात् हे जीव। तुझे उठना है, नीचे नहीं गिरना है। मानव योनियों में आकर तो तू ‘स्व’ की गरिमा व स्वयं को ऊँचा उठा। “कितने है जो इस मर्म को समझ पाते हैं कि मनुष्य जीवन हमें अपने पशुत्व को उभारने के लिए नहीं देवतत्व को विकसित करने के लिए मिला है। कर्मों की श्रेष्ठता द्वारा मनुष्य निश्चित ही उस पुल को पार कर सकता है जो देवत्व एवं पशुत्व, के बीच बना सत् अनन्तकाल से हम सबकी प्रगति की यात्रा का राज मार्ग बना हुआ है। इस पुल तक पहुँचना देवत्व को पहचानना व फिर उस यात्रा पर चल पड़ना जिनसे भी संभव हो पाता है, वे सभी विवेकशील, दूरदर्शी देवमानव कहे जाते है।

गीताकार के अनुसार किसी भी काल में क्षण मात्र भी कोई कर्म किए बिना रह नहीं सकता। भगवान स्वयं कहते हैं कि यदि वे भी एक क्षण कर्म करना बन्द करना बन्द कर दे तो सारा विश्व नष्ट हो जाय। सारा लोक व्यवहार नष्ट हो जाए। कर्म करते रहना, कर्त्तव्य परायण बने रह मनुष्य जीवन को सतत् प्रगति की ओर देवत्व की ओर बढ़ाते चलना ही मनुष्य की सहज नियति है। यह बात अलग है कि कर्म का स्वरूप जाने बिना जब मनुष्य अशुभ कर्मों में अकर्मों विकर्मों में निरत हो जाता है तो वह जीवन यात्रा को चलाते हुए भी पतन की ओर ही जाता देखा जाता है। भगवान कृष्ण गीता में कहते हैं- कर्म क्या है, अकर्म क्या है इसका निर्णय करने में बुद्धिमान पुरुष भी भ्रम में पड़ जाते है, इसीलिए सभी को कर्म का स्वरूप भी जानना चाहिए अकर्म का भी विकर्म का भी क्योंकि कर्म की गति गहन है। (गहना कर्मणोगति)

अकर्म उन्हें कहा जाता है जिन्हें न करने से पुण्य तो नहीं होता किन्तु किये जाने पर पाप लगता है। विकर्म उन्हें कहते है जो परिस्थिति विशेष के अनुसार वास्तविक रूप से कुछ अलग स्वरूप ले चुके हैं तथा निषिद्ध कर्म के लिए गीताकार मार्गदर्शन करता हुआ कहता है कि मनुष्य को यज्ञ के निमित्त किये जाने वाले कर्मों को बिना किसी आसक्ति के लिए। जो भी कर्म इस भाव से किये जायेंगे वे सत्कर्म कहलायेंगे व बंधनों से परे व्यक्ति को जीवन्मुक्तिः की ओर ले जायेंगे। हम इस छोटे से तत्त्वदर्शन को समझ लें कि परमार्थ में ही स्वार्थ है तो दुनिया की माया जंजाल से भवबंधनों से मुक्ति की ओर ले जायेंगे। हम इस छोटे से तत्त्वदर्शन को समझ लें कि परमार्थ में ही स्वार्थ है तो दुनिया की माया जंजाल से भवबंधनों से मुक्ति सहज ही मिल सकती हैं

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