• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • सच्चे शिष्य की पहचान
    • सच्चा पुण्य
    • मानवी उत्कर्ष का एकमेव आधारः धर्म
    • हमारी रक्त सम्पदा कितनी विलक्षण, कितनी बहुमूल्य
    • संधिकाल में आया यह धूमकेतु कुछ गुल खिलाएगा
    • देवों और दैत्यों का भी अस्तित्व रहा है मानवीय इतिहास में
    • विचारों एवं वस्तुओं की शक्ति से प्रभावित होता है हमारा वातावरण
    • अहं गले तो गुरु मिले
    • आत्म सत्ता रूपी दर्पण में अपनी छवि स्वयं देखें
    • रिश्ता इनसानियत का
    • हस्तरेखा विज्ञान के विषय में नये सिरे से सोचें
    • स्व संकेतों द्वारा व्यक्तित्व सम्पन्न बनें
    • पितर हमारी मदद भी करते हैं और सावधान भी
    • स्वास्थ्य-रक्षा के कुछ सरल किन्तु अनिवार्य नियम
    • छत्रपति की चरित्र निष्ठा
    • दैवी स्फुरणा ने ही जन्म दिया है विभिन्न आविष्कारों को
    • कर्म की गति न्यारी
    • उज्ज्वल भविष्य की साक्षी देते कुछ दिव्य कथन
    • शब्दनाद में निहित शक्ति सामर्थ्य
    • काल से बँधे हम सब
    • एक सच्चा इनसान
    • इस संधिकाल की विशिष्ट शक्ति संचार साधना
    • विशेष लेखमाला-10 - परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
    • लोकसेवी की आदर्श आचार संहिता
    • VigyapanSuchana
    • विदाई की घड़ियाँ और गुरुदेव की व्यथा वेदना-4
    • अपनों से अपनी बात-1 - नवयुग की आधारशिला रखेगी शांतिकुंज की आदर्श ग्राम योजना
    • अपनों से अपनी बात-2 : अनुयाज-पुनर्गठन - आश्वमेधिक अनुयाज का शुभारंभ
    • अपनों से अपनी बात-3 : अनुयाज-पुनर्गठन - स्वाध्याय-मनन-चिन्तन आज की सर्वोपरि आवश्यकता
    • VigyapanSuchana
    • अपनों से अपनी बात-4 - पूज्यवर के स्वप्नों का पंचायती राज, इस प्रकार आएगा
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • सच्चे शिष्य की पहचान
    • सच्चा पुण्य
    • मानवी उत्कर्ष का एकमेव आधारः धर्म
    • हमारी रक्त सम्पदा कितनी विलक्षण, कितनी बहुमूल्य
    • संधिकाल में आया यह धूमकेतु कुछ गुल खिलाएगा
    • देवों और दैत्यों का भी अस्तित्व रहा है मानवीय इतिहास में
    • विचारों एवं वस्तुओं की शक्ति से प्रभावित होता है हमारा वातावरण
    • अहं गले तो गुरु मिले
    • आत्म सत्ता रूपी दर्पण में अपनी छवि स्वयं देखें
    • रिश्ता इनसानियत का
    • हस्तरेखा विज्ञान के विषय में नये सिरे से सोचें
    • स्व संकेतों द्वारा व्यक्तित्व सम्पन्न बनें
    • पितर हमारी मदद भी करते हैं और सावधान भी
    • स्वास्थ्य-रक्षा के कुछ सरल किन्तु अनिवार्य नियम
    • छत्रपति की चरित्र निष्ठा
    • दैवी स्फुरणा ने ही जन्म दिया है विभिन्न आविष्कारों को
    • कर्म की गति न्यारी
    • उज्ज्वल भविष्य की साक्षी देते कुछ दिव्य कथन
    • शब्दनाद में निहित शक्ति सामर्थ्य
    • काल से बँधे हम सब
    • एक सच्चा इनसान
    • इस संधिकाल की विशिष्ट शक्ति संचार साधना
    • विशेष लेखमाला-10 - परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
    • लोकसेवी की आदर्श आचार संहिता
    • VigyapanSuchana
    • विदाई की घड़ियाँ और गुरुदेव की व्यथा वेदना-4
    • अपनों से अपनी बात-1 - नवयुग की आधारशिला रखेगी शांतिकुंज की आदर्श ग्राम योजना
    • अपनों से अपनी बात-2 : अनुयाज-पुनर्गठन - आश्वमेधिक अनुयाज का शुभारंभ
    • अपनों से अपनी बात-3 : अनुयाज-पुनर्गठन - स्वाध्याय-मनन-चिन्तन आज की सर्वोपरि आवश्यकता
    • VigyapanSuchana
    • अपनों से अपनी बात-4 - पूज्यवर के स्वप्नों का पंचायती राज, इस प्रकार आएगा
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1996 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


दैवी स्फुरणा ने ही जन्म दिया है विभिन्न आविष्कारों को

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 15 17 Last
कई बार हम बनाना कुछ चाहते हैं और बन कुछ जाता हैं। करना कुछ चाहते हैं, पर संयोगवश हो कुछ जाता है। ऐसे संयोग ने जीवविज्ञान को कई महत्वपूर्ण आविष्कार दिये है। ऐसी कई खोजें तो इतनी महत्वपूर्ण साबित हुई हैं कि यदि ये मनुष्य को उपलब्ध नहीं होतीं, तो अनेक ऐसे सुविधा-साधनों और आवश्यकताओं का आनन्द लाभ हम उठा ही नहीं पाते, जो अब उठा रहे हैं।

घटना सन् 1903 की है। मूर्धन्य फ्राँसीसी रसायनवेत्ता ए॰ बैनेडिक्ट्स अपनी प्रयोगशाला में काम कर रहे थे। सामने की शेफ में विभिन्न प्रकार के रसायनों से भरी अनेक शीशिया रखीं। उन्हीं के बीच सेल्युलाइड से भरी बोतल भी रखी थी। उन्होंने कुछ परीक्षण के लिए सेल्युलाइड से भरी बोतल उठानी चाही, पर अचानक वह हाथ से छूट कर जमीन पर गिर पड़ी। बोतल तो टूट गई पर उसके टुकड़े बिखरने की बजाय परस्पर जुड़े रहे। बैनेडिक्ट्स ने जब यह देखा तो उन्हें आश्चर्य हुआ। वे यह जानने के लिए कि आखिर इसका कारण क्या है? बोतल को उठा कर उसका निरीक्षण करने लगे। इससे ज्ञात हुआ कि बोतल की भीतरी सतह पर सेल्युलाइड की एक पतली पर्त चढ़ गई थी। इसी के कारण काँच के टुकड़े बिखरे नहीं।

उस घटना को देखकर उनके मन में एक विचार कौंधा कि काँच के निर्माण के समय बीच में नाइट्रो सेल्यूलोज की एक पर्त चढ़ दी जाय, तो एक विशेष प्रकार के मजबूत काँच का निर्माण हो सकता है। इसी के उपरान्त ऐसे शीशे बनने लगे, जिनका उपयोग आज मोटर गाड़ियों में किया जाता है।

कई संयोगवश कुछ ऐसा हो जाता है, जो अंततः वरदान सिद्ध होता है। ऐसा ही एक बार प्रसिद्ध वैज्ञानिक लुई पाश्चर के साथ हुआ। सन 1880 में वे मुर्गियों में पाये जाने वाले हैजे के रोग पर अनुसंधान कर रहे थे। उन दिनों यह बीमारी मुर्गियों में बड़ी तेजी से पनप रही थी। प्रतिदिन अगणित चूजे मर जाया करते थे। इसलिए इस व्याधि का अध्ययन कर वे कोई उपयुक्त उपचार ढूँढ़ना चाहते थे? अध्ययन से यह तो पता चल गया कि यह बीमारी एक विशेष प्रकार के रोगाणु के कारण होती है, पर इसे समाप्त कैसे किया जाय? यह गुत्थी नहीं सुलझ पा रही थी। प्रतिदिन वे मुर्गियों के चूजों पर नये-नये परीक्षण कर रहे थे, पर फल कुछ नहीं निकल पा रहा था। एक दिन इसी क्रम में उनसे एक चूक हो गई। कई दिनों तक मुर्गियों की हड्डियों का सत्व एक बर्तन में रखा रह गया। जब उन्हें इसका पता चला, तो एक नया परीक्षण करने को सोचा वे बीमार मुर्गियों में सत्व का इंजेक्शन लगा कर उसका परिणाम जानने को उत्सुक हुए। उनका विश्वास था कि इससे मुर्गियाँ तुरन्त ही दम तोड़ देंगी, पर हुआ इसके विपरीत। रोगग्रस्त जीव धीरे-धीरे स्वस्थ होने लगे। यह देख कर उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ और जब उस रस का परीक्षण किया,तो पता चला कि उसमें हैजे के रोगाणुओं को मारने का ओषीधीय गुण है और इस प्रकार मुर्गियों के हैजे रोग के लिए टीके का संयोगवश आविष्कार हो गया।

कागज को दबाने के लिए पेपर क्लिप की हर पढ़ने-लिखने वाले को आवश्यकता पड़ती है, पर इसकी खोज कैसे हुई? इसे कम ही लोग जानते होंगे? हुआ यों कि एक बार युवक वाशिंगटन (अमेरिका) की सड़कों पर निकटवर्ती शहर जाने के लिए किसी वाहन की तलाश में था। बस के आने में देरी होते देख वह युवक वहीं चहलकदमी करने लगा। इसी क्रम में सड़क पर उसे एक तार का टुकड़ा मिल गया। उसे उसने उठा लिया और निरुद्देश्य मोड़ने-मरोड़ने लगा। वह बार-बार उसे टेढ़ा एवं सीधा करता। इसी बीच उसके मस्तिष्क में विचार आया कि इस तरह तार के टुकड़े को मोड़ कर पेपर क्लिप (यू पिन) बनाया जा सकता है। इस प्रकार यू-पिन उस युवक के मस्तिष्क की खोज साबित हुई, जो अकस्मात् ही हो गई।

चिकित्सा विज्ञान जब शैशवावस्था में था, उन्हीं दिनों की घटना है। 1922 से पूर्व रक्ताल्पता रोग की कोई दवा नहीं थी। सामान्य रोगियों को लौह तत्व खिला कर किसी प्रकार ठीक कर लिया जाता था, पर जो घातक रक्ताल्पता (परनीशियस एनीमिया) के शिकार होते थे, उन्हें निश्चित ही मौत के मुँह में जाना पड़ता था। इसकी औषधि की खोज की भी एक विलक्षण कथा है। इस आविष्कार का श्रेय संयुक्त रूप से तीन लोगों को जाता है।

घटना इस प्रकार है। अमेरिका में न्यूयार्क के डॉ0 मेनाट ने एक निजी अस्पताल खोल रखा था, जिसमें कई प्रकार के रोगों की चिकित्सा होती थी। सन्! 1922 में उन्होंने वहीं के डॉ0 मर्फी को अपना सहयोगी बनाया, जो स्वयं भी एक कुशल चिकित्सक थे। डॉ0 मर्फी को अध्ययन का बड़ा शौक था। वे पत्र-पत्रिकाओं के पठन-पाठन में बहुत रस लेते थे। इसी क्रम में एक पत्रिका में उन्हें डॉ0 विपेल का एक चिकित्सा संबंधी लेख पढ़ने को मिला, जिसमें बताया गया था कि पशुओं पर किये जाने वाले प्रयोगों में कुत्तों से बारम्बार खून लिया जाता है। रक्त की अतिशय कमी के कारण वे एनीमिया रोग के शिकार हो जाते हैं, तो वे धीरे-धीरे स्वस्थ हो जाते हैं। इस लेख को पढ़कर डॉ0 मर्फी के मन में विचार उठा कि क्यों ने रक्ताल्पता के मरीजों पर यह प्रयोग किया जाय। उस समय उनके चिकित्सालय में घातक एनीमिया के कई मरी थे। डॉ0 मेनाट ने डॉ0 मर्फी को उन रोगियों पर प्रयोग करने की अनुमति दे दी। यकृत का सत्व (एक्स्ट्रैक्ट) तैयार कर उन्हें दवा के रूप में रोगियों को पिलाया गया। एक सप्ताह बाद उनके रक्त-परीक्षण से व्याधि में सुधार दिखाई पड़ने लगा और फिर बड़ी तेजी से वे स्वास्थ्य लाभ करने लगे। डॉ0 मर्फी को इससे आश्चर्य हुआ और उनने सत्व का विश्लेषण करने का निश्चय किया। जब इसका परीक्षण किया गया, तो उसमें लौह तत्व के अतिरिक्त विटामिन बी-12 भी उपस्थित पाया गया। जाँच के रूप में जब विटामिन बी-12 ऐसे रोगियों को दिया गया, तो परिणाम पहले जैसा प्राप्त हुआ। इस प्रकार जब यह निश्चय हो गया कि उक्त बीमारी में विटामिन बी-12 ही अपना औषधीय चमत्कार दिखाता है,तो बाद में इसे संश्लेषण के द्वारा दवा के रूप में विकसित किया गया। इस महत्वपूर्ण उपलब्धि के लिए सन् 1926 में डॉ0 मेनाट मर्फी और विपेल को संयुक्त रूप से चिकित्सा विज्ञान का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया। इस सम्पूर्ण घटना का वर्णन अमेरिका के डॉ0 लेबिस थामस ने अपनी ‘दि यंगेस्ट साइंस’ में विस्तारपूर्वक किया है।

एल्युमिनियम के पतले पाइपों का प्रयोग विभिन्न प्रयोजनों में किया जाता है। यह घर में विद्युत तारों की वायरिंग में भी प्रयुक्त होता है और दूसरे कार्यों में भी काम आता है, पर इसका निर्माण भी अनायास ही हो गया। हुआ यों कि न्यूयार्क (अमेरिका) का जार्जली नामक एक व्यक्ति कमीज में प्रयुक्त होने वाले बटन बनाने का बड़ा इच्छुक था। इससे पूर्व बटन प्रायः प्लास्टिक के बनते थे, पर वह धात्विक बटन बनाना चाहता था, अस्तु बाजार से बटन बनाने वाली एक मशीन और एल्युमिनियम की चादरें खरीद लाया तथा बटन बनाना शुरू किया। उसने मशीन में चादरें डालनी शुरू की और बटनों के निकलने का इन्तजार करने लगा, पर जार्जली के आश्चर्य की सीमा न रही, जब उसमें बटन की जगह धात्विक नलियाँ बनकर निकलने लगीं। वस्तुतः मशीन की डाई में कुछ त्रुटि रह गई थी॥ इसी कारण चपटे बटनों के स्थान पर नलियाँ बनने लगी थी और इस प्रकार अचानक ही एक नया आविष्कार हो गया। इसी के आविष्कार से धात्विक नलियों का निर्माण व्यापारिक स्तर पर आरम्भ हुआ।

रंगों की दुनिया भी बड़ी विलक्षण है। कई बार सुन्दर आकर्षक रंग ही हमें तरंगित-उत्तेजित करते हैं और कई बार मन इसके कारण गहन वितृष्णा से भर उठता है। पर्व-त्यौहारों एवं खुशी के मौकों पर हम नये रंगीन कपड़े पहन कर मौज-मस्ती और प्रसन्नता जाहिर करते हैं, पर इतना निश्चित है कि रंग न होता, तो रंगीन दुनिया नहीं होती और मन निराश-उदास बना रहता। इन कृत्रिम रंगों की खोज की कहानी भी कोई कम मनोरंजक नहीं है।

एक बार हेनरी पारकिन नाम का एक अंग्रेज बालक क्रिसमस की छुट्टियाँ मनाने घर आया। वह अपने घर से दूर एक अन्य शहर में रहकर पढ़ता था और बड़ी खोजी वृत्ति का था। रसायनशास्त्र के प्रति उसकी विशेष अभिरुचि थी। इसी कारण से अपने घर पर भी एक छोटी प्रयोगशाला उसने बना रखी थी, जिसमें विभिन्न प्रकार के रसायनों की ढेर सारी बोतलें थी। उसकी इच्छा थी कि वह सिन्थेटिक क्वीनाइन अथवा उस जैसी कोई नयी चीज बनाये। इसीलिए एक दिन उसने कुछ रसायनों के परस्पर मिलाकर उनका मिश्रण तैयार किया एवं कुछ समय के लिए उसे यों ही छोड़ दिया। थोड़े समय उपरान्त तरल रसायनों के मिश्रण वाले फ्लास्क की दीवार में एक काली पर्त चढ़ गई। उसने जब उसे अल्कोहल से साफ करना चाहा, तो उसके संपर्क में आते ही काला रंग बदल कर बैंगनी कहो गया। यह मात्र एक संयोग ही था, जिसके कारण बैंगनी रंग बन कर तैयार हुआ। यही रंग विश्व का पहला अप्राकृतिक और कृत्रिम रंग साबित हुआ। इस आविष्कार के बाद हेनरी पारकिन की गणना वैज्ञानिकों में होने लगी और इसके उपरान्त उसने विभिन्न प्रकार के छूटने वाले कृत्रिम रासायनिक रंग तैयार किये। आज इन्हीं रंगों के सहारे टक्सटाइल मिलों में अनेकानेक प्रकार के रंगीन एवं आकर्षक कपड़े तैयार किये जाते हैं। रंगों की चित्र-विचित्र दुनिया का यही शुभारम्भ था।

इस प्रकार संयोगवश अथवा भूलवश घटी घटनाओं की उपेक्षा न कर यदि स मिल रही उस अन्तः प्रेरणा पर ध्यान दिया जाय, उसका अध्ययन कर कारणों का पता लगाया जाय, तो कई बार नये तथ्यों व सत्यों की जानकारी मिलती है, जो आगे चलकर काफी महत्वपूर्ण साबित होती है। ऐसी बात नहीं कि ऐसे संयोग सिर्फ किन्हीं-किन्हीं के साथ घटित होते हैं। होते तो यह प्रायः प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में हैं, पर हर व्यक्ति उस पर ध्यान नहीं दे पाता और उसकी उपेक्षा कर देता है, फलतः जो महत्वपूर्ण उपलब्धि उसे मिल सकती थी, जो यश और गौरव वह प्राप्त कर सकता था, इससे वंचित रह जाता है। ऐसे अवसरों पर जो जिज्ञासा दिखाते एवं खोजबीन की प्रवृत्ति प्रदर्शित करते हैं, वही श्रेय के भागी बनते हैं। विज्ञान की आज की प्रगति का श्रेय मानवी जिज्ञासा एवं अन्तः से उपजी प्रेरणा को, अन्तर्प्रज्ञा को दिया जाय, तो कोई अत्युक्ति न होंगी।

First 15 17 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • सच्चे शिष्य की पहचान
  • सच्चा पुण्य
  • मानवी उत्कर्ष का एकमेव आधारः धर्म
  • हमारी रक्त सम्पदा कितनी विलक्षण, कितनी बहुमूल्य
  • संधिकाल में आया यह धूमकेतु कुछ गुल खिलाएगा
  • देवों और दैत्यों का भी अस्तित्व रहा है मानवीय इतिहास में
  • विचारों एवं वस्तुओं की शक्ति से प्रभावित होता है हमारा वातावरण
  • अहं गले तो गुरु मिले
  • आत्म सत्ता रूपी दर्पण में अपनी छवि स्वयं देखें
  • रिश्ता इनसानियत का
  • हस्तरेखा विज्ञान के विषय में नये सिरे से सोचें
  • स्व संकेतों द्वारा व्यक्तित्व सम्पन्न बनें
  • पितर हमारी मदद भी करते हैं और सावधान भी
  • स्वास्थ्य-रक्षा के कुछ सरल किन्तु अनिवार्य नियम
  • छत्रपति की चरित्र निष्ठा
  • दैवी स्फुरणा ने ही जन्म दिया है विभिन्न आविष्कारों को
  • कर्म की गति न्यारी
  • उज्ज्वल भविष्य की साक्षी देते कुछ दिव्य कथन
  • शब्दनाद में निहित शक्ति सामर्थ्य
  • काल से बँधे हम सब
  • एक सच्चा इनसान
  • इस संधिकाल की विशिष्ट शक्ति संचार साधना
  • विशेष लेखमाला-10 - परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
  • लोकसेवी की आदर्श आचार संहिता
  • VigyapanSuchana
  • विदाई की घड़ियाँ और गुरुदेव की व्यथा वेदना-4
  • अपनों से अपनी बात-1 - नवयुग की आधारशिला रखेगी शांतिकुंज की आदर्श ग्राम योजना
  • अपनों से अपनी बात-2 : अनुयाज-पुनर्गठन - आश्वमेधिक अनुयाज का शुभारंभ
  • अपनों से अपनी बात-3 : अनुयाज-पुनर्गठन - स्वाध्याय-मनन-चिन्तन आज की सर्वोपरि आवश्यकता
  • VigyapanSuchana
  • अपनों से अपनी बात-4 - पूज्यवर के स्वप्नों का पंचायती राज, इस प्रकार आएगा
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj