• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • सत्यकार्य के प्रति समर्पण
    • नववर्ष का उल्लास-अभिव्यक्ति विविध रूपों में।
    • अमृतपर्व कुम्भ और इसकी गौरव-गरिमा
    • अड़सठ तीरथ घट भीतर-(3)
    • सुखफल (Kahani)
    • अयमात्मा ब्रह्म का नाद
    • मुर्दे यदि रोबोट की तरह चलने लगे तो -
    • सात्विक आहार (Kahani)
    • हिमालय से अवतरित एक प्रज्ञापुरुष
    • स्वामी विवेकानन्द के जन्मदिवस पर युगनायक की भविष्य-दृष्टि
    • सौर-रश्मियों के क्रांतिकारी उत्कर्ष से भरा मंगलपर्व मकर संक्रान्ति
    • बर्बर मानसिकता जो व्यक्तिको नर-पिशाच बना देती है
    • एक निस्पृह-जाँबाज दंपत्ति की जीवन-गाथा
    • पृथ्वी से जोड़ें माँ जैसी सघन संवेदना
    • प्रतिभा पुरुषार्थ के बल पर अर्जित की जाती है
    • एक द्वीप में नूतन सृष्टि का सृजन
    • नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के जन्मदिवस एवं जन्मशती के अवसर पर- - सार्वभौम शक्तिशाली भारत के स्वप्नद्रष्टा नेताजी
    • सूक्ष्म में समायी असीम शक्ति-सामर्थ्य
    • महिलाओं के लिए कुछ विशिष्ट गायत्री साधनाएँ
    • साधु के सहचर (Kahani)
    • शुभ मनोभावों के सत्परिणाम
    • मनुष्य को भावसंवेदना का प्रशिक्षण देते हैं ये जीव
    • सत्कर्मों का दीपक (Kahani)
    • परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी- - गायत्री महाविद्या एवं उसकी साधना
    • Quotation
    • अक्का महादेवी (Kahani)
    • अपनों से अपनी बात - अब युग-परिवर्तन की घड़ी अति निकट आ पहुँची
    • Quotation
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • सत्यकार्य के प्रति समर्पण
    • नववर्ष का उल्लास-अभिव्यक्ति विविध रूपों में।
    • अमृतपर्व कुम्भ और इसकी गौरव-गरिमा
    • अड़सठ तीरथ घट भीतर-(3)
    • सुखफल (Kahani)
    • अयमात्मा ब्रह्म का नाद
    • मुर्दे यदि रोबोट की तरह चलने लगे तो -
    • सात्विक आहार (Kahani)
    • हिमालय से अवतरित एक प्रज्ञापुरुष
    • स्वामी विवेकानन्द के जन्मदिवस पर युगनायक की भविष्य-दृष्टि
    • सौर-रश्मियों के क्रांतिकारी उत्कर्ष से भरा मंगलपर्व मकर संक्रान्ति
    • बर्बर मानसिकता जो व्यक्तिको नर-पिशाच बना देती है
    • एक निस्पृह-जाँबाज दंपत्ति की जीवन-गाथा
    • पृथ्वी से जोड़ें माँ जैसी सघन संवेदना
    • प्रतिभा पुरुषार्थ के बल पर अर्जित की जाती है
    • एक द्वीप में नूतन सृष्टि का सृजन
    • नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के जन्मदिवस एवं जन्मशती के अवसर पर- - सार्वभौम शक्तिशाली भारत के स्वप्नद्रष्टा नेताजी
    • सूक्ष्म में समायी असीम शक्ति-सामर्थ्य
    • महिलाओं के लिए कुछ विशिष्ट गायत्री साधनाएँ
    • साधु के सहचर (Kahani)
    • शुभ मनोभावों के सत्परिणाम
    • मनुष्य को भावसंवेदना का प्रशिक्षण देते हैं ये जीव
    • सत्कर्मों का दीपक (Kahani)
    • परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी- - गायत्री महाविद्या एवं उसकी साधना
    • Quotation
    • अक्का महादेवी (Kahani)
    • अपनों से अपनी बात - अब युग-परिवर्तन की घड़ी अति निकट आ पहुँची
    • Quotation
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1998 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


स्वामी विवेकानन्द के जन्मदिवस पर युगनायक की भविष्य-दृष्टि

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 9 11 Last
12 जनवरी 1863 को भारत के उज्ज्वल भविष्य की पहली किरण फूटी थी। स्वामी विवेकानंद के रूप में इसी शुभ दिन भारत के भविष्यत् ने नवजन्म पाया था। स्वामी जी भारतीय पौरुष, मेधा एवं आध्यात्मिक उत्कर्ष के प्रतीक थे। वे शाश्वत के प्रतिनिधि थे। उन्होंने अपनी गहन अंतर्दृष्टि से भारत का उज्ज्वल भविष्य देखा था। नवयुग के इस ऋषि ने भविष्यवाणी की थी कि इक्कीसवीं सदी में भारत जगद्गुरु एवं आध्यात्मिक गुरु बनेगा। और यह आध्यात्मिकता द्वारा समस्त जगत पर विजय प्राप्त करेगा। धर्म एवं विज्ञान एक हो जायेंगे और यही भविष्य का धर्म होगा। प्रखर प्रतापी मानव-जाति ही एकमात्र जाति होगी। धर्मधरा भारत के सतत् प्रवाहित अध्यात्मिक ज्ञानधारा से सारा संसार आप्लावित हो उठेगा।

भारत सनातन धर्म का देश है। यही वह भूमि है, जो पवित्र आर्यावर्त में पवित्रतम् मानी जाती है। यही वह ब्रह्मवर्त है, जिसका उल्लेख हमारे महर्षि मनु ने किया है। यह वही भूमि है जहाँ से आत्मतत्व की उच्चाकाँक्षा का वह प्रबल स्रोत प्रवाहित हुआ है, जो आने वाले युगों में संसार को अपने बाढ़ से आप्लावित करने वाला है। यह निश्चय ही फिर से उठेगा और ऐसा उठेगा कि दुनिया देखकर दंग रह जाएगी। उस आगत भविष्य के सशक्त स्वरों का कोमल पर स्पष्ट मर्मर अभी से सुनायी देने लगा है। भावी भारत का संदेश वर्तमान भारत के लिए यह मर्मर ध्वनि सबलतर और स्पष्ट होती चली जा रही है। पूर्वाकाश में अरुणोदय हो रहा है, सूर्य उदित होने में अब अधिक विलम्ब नहीं है। कितने ही पर्वत-शिखरों से, कितनी ही हिम-नदियाँ, कितने ही झरने, कितनी जल धाराएं निकलकर विशाल सुरतरंगिणी के रूप में महावेग से समुद्र की ओर जा रही हैं। कितने ही विभिन्न प्रकार के भाव देश, देशान्तर के कितने ही साधु हृदयों और ओजस्वी मस्तिष्कों से निकलकर कितने ही शक्ति-प्रवाह धर्मभूमि भारत में छा रहे हैं। भारतीय गगन में अँधेरा कितना ही घना एवं भयावह क्यों न दिख रहा हो, किन्तु अब उसके हटने एवं घटने में विलम्ब नहीं है।

इस देश का दृश्य रूप आज की परिस्थितियों में कितना ही निराशाजनक क्यों न लग रहा हो, किन्तु इसके अदृश्य संस्कार अभी भी प्रभावी हैं। जिस किसी के पैर इस पावन धरती पड़ते हैं, वह चाहे विदेशी हो अथवा धरती का पुत्र यदि उसकी आत्मा जड़, पशुत्व कोटि तक पतित नहीं हो गयी है, तो अपने आप को पृथ्वी के उन सर्वोत्कृष्ट और पावनतम पुत्रों के जीवन्त विचारों से घिरा अनुभव करता है, जो शताब्दियों से पशुत्व को देवत्व तक पहुँचाने के लिए श्रम करते रहे हैं और जिनके प्रादुर्भाव की खोज करने में इतिहास असमर्थ है।

यह धरती दर्शनशास्त्र, नीतिशास्त्र और आध्यात्मिक ज्ञान-विज्ञान की विविध धाराओं की जन्मस्थली है। यहाँ की वायु भी आध्यात्मिक स्पन्दनों से पूर्ण है। यहाँ उन सभी के अनवरत संघर्ष शाश्वत विश्रांति पाते हैं, जो अपने कन्धों से पशुत्व का जुआ उतार फेंकने के लिए प्रयत्नशील हैं। उस समस्त शिक्षा-दीक्षा के लिए यहाँ युग-युग से आह्वान के गान गूँजते हैं, जिसको सुनकर मनुष्य पशुता का जामा उतार सके और जन्म-मरण हीन सदानन्द अमर आत्मा के रूप में आविर्भूत हो सके। यही वह धरती है जिसके सुख का प्याला परिपूर्ण और दुःख का प्याला और भी अधिक भर गया था, अंततः सर्वप्रथम यहीं मनुष्य को यह ज्ञान हुआ कि यह तो सब निस्सार है।

यहीं सर्वप्रथम यौव के मध्याह्न में, वैभव-विलास की गोद में, ऐश्वर्य के शिखर और शक्ति के प्राचुर्य में मनुष्य ने काया की श्रृंखलाओं को तोड़ दिया। यहीं मानवता के इस महासागर में सुख और दुख, शक्ति और दुर्बलता वैभव और दैन्य, हर्ष और विषाद, स्मित और आँसू तथा जीवन और मृत्यु के प्रबल तरंगाघातों के बीच चिरन्त शान्ति और अनुद्विग्नता की घुलनशील लय में त्याग का राजसिंहासन आविर्भूत हुआ। यहीं इसी देश में जीवन और मृत्यु की, जीवन की तृष्णा की और जीवन के संरक्षण के निमित्त किए गये मिथ्या ओर विक्षिप्त संघर्षों की, महान समस्याओं से सर्वप्रथम जूझा गया और उनका समाधान किया गया। ऐसा समाधान, जो ‘ न भूतो न भविष्यति’ है। और यहीं, केवल यहीं पर उस सत्य की उपलब्धि हुई कि जीवन स्वतः भी किसी सत्तत्व की छाया मात्र है।

यही वह देश है, जहाँ और केवल जहाँ पर धर्म व्यावहारिक और यथार्थ था। और केवल यहीं पर पर नर-नारी साथ-साथ कदम से कदम मिलाकर साहसपूर्वक कार्यक्षेत्र में कूदे। यहाँ ओर केवल यहीं पर मानव हृदय इतना विस्तीर्ण हुआ कि उसने केवल मनुष्य जाति को ही नहीं, वरन् पशु-पक्षी और वृक्ष-वनस्पति तक को अपनी आत्मीय भावनाओं में समेट लिया। सर्वोच्च देवताओं से लेकर बालू के कण तक महानतम और लघुतम सभी को मनुष्य के विशाल और अनन्त हृदय में स्थान मिला और केवल यहीं पर मानवात्मा ने इस विश्व का अध्ययन एक अविच्छिन्न एकता के रूप में किया, जिसका हर स्पन्दन उसका अपना स्पन्दन है।

मैं आज अनुभव की अग्रभूमि पर खड़े होकर, अपने को समस्त पूर्वाग्रहों से मुक्त करके अत्यंत विनम्रता के साथ स्वीकार करता हूँ कि आर्यों के ऐ पावन देश! तू महान है। राजदण्ड टूटते रहे और फेंक दिया जाते रहे, शक्ति का कन्दुक एक हाथ से दूसरे हाथ में उछलता रहा, पर भारत में उच्चात्मा से निम्नात्मा तक जनता की विशाल राशि अपनी अनिवार्य जीवनधारा का अनुगमन करने के लिए मुक्त रही है और राष्ट्रीय जीवनधारा प्रबुद्ध गति से प्रवाहित होती रही है। उन बीसियों ज्योतिर्मय शताब्दियों की अटूट श्रृंखला के सम्मुख मैं तो विस्मयाकुल खड़ा हूँ, जिनके बची यहाँ-वहाँ एकाध धूमिल कड़ी है, जो अगली कड़ी को और भी अधिक ज्योतिर्मय बना देती है और उनके बीच इनकी गति में अपने सहज महिमामय पदक्षेप के साथ प्रगतिशील है। मेरी यह जन्मभूमि अपने यशोपूरित लक्ष्यसिद्धि के लिए, जिसे धरती और आकाश की कोई शक्ति रोक नहीं सकती, सतत् गतिमान है।

वर्तमान अवनति के भीतर से भविष्य का भारत आ रहा है, अंकुरित हो चुका है। उसके नए पल्लव निकल चुके हैं और उस शक्ति पर विशालकाय उर्ध्वमूल वृक्ष का निकलना प्रारम्भ हो चुका है। भविष्य के भारत-निर्माण का पहला कार्य आध्यात्मिक भावों का विस्तार ही है, जिसे सर्वधर्म समभाव के रूप में क्रियान्वित करना होगा। भारतीय आध्यात्मिकता ही हमारा जीवन-रक्त है। भारतीय मन पहले धार्मिक है फिर कुछ और। अतः धर्म को सशक्त बनाना होगा। हमारे शास्त्र-ग्रंथों में भरे पड़े आध्यात्मिकता के रत्नों को सार्वजनिक कर देना होगा।

ध्यान रहे, भविष्य का भारत बलशाली तो बनेगा, परन्तु दूसरों का पराजित करके जबरन उन पर अपना आधिपत्य स्थापित करने वाला राष्ट्र कभी नहीं बनेगा, वह राजनीतिक शक्ति तो बनेगा, परन्तु छल-छद्म, कुटिलता उसका स्वभाव कभी भी नहीं बन सकती। राष्ट्रों की संगीत संगति में भारत इस प्रकार का स्वर कभी नहीं दे सकेगा। पर आखिर भारत का स्वर होगा क्या? यह स्वर होगा केवल ईश्वर का। भारत वास्तविक शक्ति-सामर्थ्य का उदाहरण उपस्थित करेगा। आक्रमण, दुस्साहस, संघर्ष ये बातें दुर्बलता की प्रतीक हैं। भारत का प्रारब्ध था, उसका भाग्य था कि वह जीत जाय और अब उसका भविष्य है कि अपने विजेता पर विजय प्राप्त करे और अब यह महादेश अपने विजेताओं पर विजय प्राप्त करेगा। यह विजय आर्थिक और राजनैतिक नहीं-साँस्कृतिक और आध्यात्मिक होगी। एक महान गति आ रही है, जिसे वे लोग ही पहचान सकते हैं, जो समय के संकेतों को समझते हैं। भारत भविष्य का महान विजेता होगा। वह अपने विचारों के प्रचार के लिए देव-संस्कृति दिग्विजय अभियान छेड़ेगा और यह अभियान उस समय तक जारी रहेगा, जब तक कि संसार उसके चरणों में नहीं आ जाता।

भारत की विचारधारा बह चली है और प्रत्येक जाति की नस-नस में समाने लगी है। युगचक्र फिर घूमा है, वैसा ही समय फिर आया है। भारत समस्त संसार की उन्नति तथा सारी सभ्यता को अपने योगदान के लिए फिर से तैयार हो रहा है। भारतीय आध्यात्मिक और दार्शनिक विचारों की फिर से सारे संसार पर विजय प्राप्त करेगी। फिर से भारत को जगत पर विजय प्राप्त करनी होगी। यही मेरे जीवन का स्वप्न है। हमारे सामने यही एक आदर्श है, वह आदर्श है, भारत की विश्व पर विजय। उठो भारत! तुम अपनी आध्यात्मिकता द्वारा जगत पर विजय प्राप्त करो। राष्ट्र के मूल आदर्श के अनुगमन से ही अपूर्व महिमा-मण्डित भावी भारत का निर्माण होगा। मेरा दृढ़ विश्वास है कि भारत वर्ष किसी काल में भी जिस श्रेष्ठता का अधिकारी नहीं था, शीघ्र ही उस श्रेष्ठता का अधिकारी होगा। प्राचीन भारत में सैकड़ों ऋषि थे और अब हमारे बीच लाखों होंगे, निश्चय ही होंगे और पूर्वज अपने वंशधरों की इस अभूतपूर्व उन्नति से बड़े सन्तुष्ट होंगे। इतने ही नहीं मैं निश्चित रूप से कहता हूँ कि वे परलोक में अपने स्थानों से अपने वंशजों को इस प्रकार महिमान्वित और महत्वशाली देखकर अपने को महान गौरवान्वित समझेंगे। अब सोने का समय नहीं है, हमारे कार्य पर ही भारत का भविष्य निर्भर है।

निकट भविष्य में उन महान आत्माओं का अवश्य ही अवतरण होगा, जिनके द्वारा भारत को विश्व की आध्यात्मिक अवस्था को सम्पादित करने का व्रत पूरा करना है। जिस देश में महापुरुषत्व, ऋषित्व, अवतारत्व या लौकिक विचारों में शूरत्व से अनुप्राणित पुरुष-सिंह एक बार आविर्भूत हो चुके हैं, वहाँ पुनः मनीषियों का अभ्युत्थान अधिक सम्भव है। प्राकृतिक जगत की यह घटनाएँ। अवश्यमेव भूतकाल में भी हुई हैं और भविष्य में भी होंगी। इस राष्ट्र में आपत्ति के दिनों में भी आत्मज्ञानी महापुरुषों का अवतार लेना कभी बन्द नहीं हुआ, फिर अब तो कालचक्र ने उज्ज्वल भविष्य के संकेत देने शुरू कर दिए हैं। भारतीय राष्ट्र कभी नष्ट नहीं हो सकता है। यह अमर है और उस समय तक टिका रहेगा, जब तक इसका धर्मभाव अक्षुण्ण बना रहेगा। हम ऐसे नरश्रेष्ठों से अपनी वंश-परम्परा स्थापित करना चाहते हैं और जब तक पवित्रता के ऊपर हमारी इस प्रकार गम्भीर श्रद्धा रहेगी, तब तक भारत का विकास होता रहेगा। मानवता के लिए हजारों वर्षों से अपना यह राष्ट्र प्रचण्ड स्वार्थ-त्याग और आत्मबलिदान करता रहा है। भारत में महान आत्माओं के आविर्भाव का अनुकूल समय शीघ्र आएगा और उनके सतत् प्रयास से यथार्थ धर्म, आत्मा से आत्मा की आराधना अधिक सजीव और शक्तिशाली हो सकेगी। जिस दिन श्री रामकृष्ण देव ने जन्म लिया है, उसी दिन से आधुनिक भारत के निर्माण तथा सतयुग का आरम्भ हुआ है। उनके अगले अवतार में तो ये भाव अपना चरम विस्तार पा जाएँगे।

आज भारत को आवश्यकता है उच्चतम ज्ञान के साथ-उच्चतम प्रेम की। अनन्त ज्ञान के साथ अनन्त प्रेमयोग का उस अनन्त सत्ता के साथ एकीभूत होना ही एकमात्र धर्म है। भारत को अनन्त सत्ता, अनन्त ज्ञान और अनन्त आनन्द का समन्वय करना होगा। यही इसका लक्ष्य है। आज भारत को शंकर रूपी बुद्धि के प्रखर सूर्य के साथ बुद्धदेव का अद्भुत प्रेम और दयाकुल विशाल हृदय रखना सम्भव है। इसी सम्मिलन से उच्चतम दर्शन की उपलब्धि होगी। विज्ञान और धर्म एक-दूसरे का आलिंगन करेंगे। यही भविष्य का धर्म होगा। भारतीय और पाश्चात्य सभ्यताओं के मेल से संसार में नए युग का उदय होगा। मेरा विश्वास है, जब एक जाति, एक वेद तथा शान्ति एवं एकता होगी, तभी सतयुग आएगा। सतयुग का यह विचार ही भारत को पुनर्जीवित करेगा।

संसार में केवल एक ही देश है भारत। इसका भविष्य उज्ज्वल है, क्योंकि इसे मानवता का उपकार करना है। भारतीयों को जगत के एकत्व और एक ही सत्य के अस्तित्व की सम्यक उपलब्धि करने का उपाय अवश्य बतलाना पड़ेगा। हमारी इस पवित्र मातृभूमि का मेरुदण्ड, मूलभित्ति या जीवन केन्द्र एकमात्र धर्म हैं। हमारी इस मातृभूमि में इस समय भी धर्म और अध्यात्म विद्या का जो स्रोत बह रहा है, उसके बाद समस्त जगत को आप्लावित कर राजनीतिक उच्चाभिलाषाओं एवं नवीन सामाजिक संगठनों की चेष्टाओं में, समाप्तप्राय, अर्द्धमृत तथा पतनोन्मुखी जगत की जातियों में नवप्राणों का संचार करेगी। भारत में हजारों वर्षों से धार्मिक आदर्श की धारा प्रवाहित हो रही है। भारत का वायुमण्डल इसी धार्मिक आदर्श से सदियों तक पूर्ण रहकर जगमगाता रहा है। अब यह हमारे रक्त में मिल गया है। हमारे रोम-रोम में वही धार्मिक आदर्श रम रहा है। वह हमारे शरीर का अंश है और हमारे जीवन की शक्ति बन जाएगा। सत्य-सिद्धान्त हमारे खून के साथ मिल जाएगा और जीवन के साथ एक हो जाएगा। भारत सब दिशाओं में अपनी शाखाएँ और जड़े फैलाता हुआ, धर्म के सम्पूर्ण क्षेत्र को आच्छादित कर लेगा।

विचारशील मानव-जाति का भावी धर्म भारतीय ऋषियों द्वारा अन्वेषित अद्वैत ही होगा। यही सब धर्मों का बौद्धिक सार है। वेदान्त के बिना सभी धर्म-अंधविश्वास है। इसके साथ मिलकर प्रत्येक विचार धर्म बन जाता है। जो अपने जीवन में सबसे अधिक चरित्र का उत्कर्ष दिखा सकेंगे, चाहे वे सम्प्रदाय कितने ही दूर भविष्य में जन्म लें, इसी को स्वीकार करेंगे। यही भावी परम्परा तथा भावी प्रणाली जीवित रहेगी एवं वह सबको निगलकर भविष्य में शक्तिमान होगी। न संख्या-शक्ति, न धन, न पाण्डित्य, न वाक्-चातुर्य कुछ भी नहीं, बल्कि पवित्रता, शुद्ध जीवन-एक शब्द में अनुभूति, आत्मसाक्षात्कार को विजय मिलेगी। भारत में सिंह जैसी शक्तिमान दस-बारह आत्माएँ होने दो, जिन्होंने अनन्त का स्पर्श कर लिया है, जिनका चित ब्रह्मानुसन्धान में लीन है। जो न धन की चिन्ता करते हैं, न बल की, न नाम की, ये व्यक्ति ही भविष्यत् भारत के निर्माता होंगे। भविष्य में भारत धर्मप्रवण या अन्तर्मुख होगा। वेदान्त में ही वह महान तत्व है, जिससे संसार के भावजगत में क्रान्ति होगी और भौतिक जगत के साथ धर्म का सामंजस्य स्थापित होगा।

भविष्य में आध्यात्मिक शक्ति से ही मानव-जाति का उत्थान होगा। भारत संसार का आध्यात्मिक गुरु है। आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि और आध्यात्मिक विचार ही भारत का सारे संसार की जातियाँ का सिरमौर बना देंगे। प्राचीनकाल से ही संसार को आध्यात्मिकता की शिक्षा देना भारत का भाग्य रहा है। आध्यात्मिकता ही सदैव से भारत की निधि रही है। आज समस्त संसार आध्यात्मिक ऊर्जा प्रत्येक राष्ट्र को देनी होगी। केवल भारत ही मानव-जाति का उत्थान करेगा। सारे भारत में, मानव-जाति की पूर्णता में अनन्त विश्वास रूप प्रेमसूत्र ओत-प्रोत भाव से विद्यमान है और इस विश्वास एवं भाव का सारे संसार में प्रसार होगा। नवीन आलोक भारत के चारों ओर फैलेगा। यदि ऐसा कोई देश है, जहाँ आध्यात्मिकता तथा अंतर्दृष्टि का सर्वाधिक विकास हुआ हो तो वह भारत है। यहीं से उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम सभी ओर दार्शनिक ज्ञान की प्रबल तरंगें प्रवाहित हुई है और यहीं से वह धारा भी निकलेगी, जो सम्पूर्ण पृथ्वी की भौतिक सभ्यता को आध्यात्मिकता से पूर्ण कर देगी। इसी के साथ भारत महानता के पथ पर आरुढ़ होगा।

विश्व ने बौद्धिक, तकनीकी एवं वैज्ञानिक उन्नति भले ही कितनी कर ली हो, पर उसके सामने अभी यह प्रश्न तो हल करने के लिए शेष ही है कि शान्ति की जय होगी या युद्ध की, सहिष्णुता की जय होगी या असहिष्णुता की, शुभ की विजय होगी या आध्यात्मिकता की। भारत के भविष्य में ही इसका समाधान निहित है। असाँसारिकता एवं त्याग-समाधान के यही स्वर भारतीय जीवन-रचना के प्रतिपाद्य विषय है। इसके अनन्य संगीत की यही रागिनी है, इसके अस्तित्व का यही मेरुदण्ड है, इसके जीवन की यही आधारशिला हैं। इसके अस्तित्व का एक मात्र हेतु ही मानव-जाति का अध्यात्मीकरण है। भारत का-भविष्य एवं नियति आध्यात्मिक है। भारत की आध्यात्मिक शक्ति संसार के समस्त ध्वंसात्मक तत्वों का नाष कर देगी। भारत का प्रभाव धरती पर सर्वदा मृदुल ओस कणों की भाँति बरसता है, नीरव और अव्यक्त, पर सर्वदा धरती के सुन्दरतम सुमनों को विकसित करने वाला। यह तो केवल आरम्भ मात्र है, महान सिद्धियाँ तो बाद में उपलब्ध होंगी। संसार के करोड़ों-अरबों व्यक्ति भारत के संदेश की प्रतीक्षा कर रहें हैं, जो उन्हें भौतिकता के घृणित गर्त में गिरने से बचा लेगा, जिसकी ओर आधुनिक अर्थोपासना ढकेल रही है।

भारत का दान है धर्म-दार्शनिकता, ज्ञान और आध्यात्मिकता। भारत का लक्ष्य रहा है आध्यात्मिक ज्ञान की निरन्तर खोज। भारत के हृदय से भारतीयता विजय प्राप्त करेगी। प्रेम से अलौकिक शक्ति मिलती है, प्रेम से भक्ति उत्पन्न होती है। ले जाता है। वस्तुतः यही उपासना है, मानव-शरीर में स्थित ईश्वर की उपासना। यह भाव पूरे भारत में नहीं, सम्पूर्ण पृथ्वी पर फैल जाएगा।

भारत में एक अपूर्व विचार-क्रान्ति का जन्म होगा। भारतीय विचार-तरंगें पूरे विश्व में फैल जाएँगी। सर्वप्रथम हमारे उपनिषदों, पुराणों ओर अन्य सब शास्त्रों में जो अपूर्व सत्य छिपे हैं, उन्हें उन सब ग्रन्थों के पन्नों से बाहर निकालकर, मठों की चहारदीवारी को भेदकर, वनों की शून्यता से दूर लाकर, कुछ सम्प्रदाय विशेषों के हाथों से छीनकर देश में सर्वत्र बिखेर देना होगा, ताकि वे सभी सत्य दावानल के समान सारे देश को चारों ओर से लपेट लें। हमारे भाव और विचार भारत की सरहदों के पिंजड़ों में ही बन्द नहीं रह सकते, बल्कि वे तो हम चाहें या न चाहें, उन सभी देशों में अपना स्थान प्राप्त कर रहे है।

इसका कारण यही है कि संसार की सम्पूर्ण उन्नति में भारत का दान सबसे श्रेष्ठ रहा है, क्योंकि उसने संसार को ऐसे दर्शन और धर्म का दान दिया है, जो मानव-मन की उन्नति करने वाला सबसे अधिक महान, सबसे अधिक उदात्त और सबसे श्रेष्ठ विषय है। इस दान एवं ज्ञान का विस्तार भारतवर्ष भविष्य में सारे संसार में और भी अधिक तीव्रता से करता रहेगा। भारतवर्ष को एक महान सत्य संसार को सिखाना है, क्योंकि यह अन्यत्र कहीं नहीं है। यही आध्यात्मिकता है, यही आत्मविद्या है, यह त्याग की भावना ही भारत को गौरवान्वित करेगी।

स्वामीजी ने अपने अनुभव को शब्द देते हुए स्पष्ट स्वरों में कहा-मैं भारत में उस ज्वार तरंग की प्रथम मर्मर ध्वनि का अनुभव कर रहा हूँ, जो निकट भविष्य में सारे भारत पर अपनी सम्पूर्ण अमोघ शक्ति के साथ फूट पड़ेगी और अपनी अनन्त शक्तिसम्पन्न बाढ़ द्वारा जो कुछ दुर्बल और सदोष है, उसको दूर बहा ले जाएगी तथा भारतीयता को उठा विधि-नियोजित उच्चासन पर बिठा देगी। जहाँ उसका पहुँचना निश्चित और अनिवार्य है। वहाँ वह भूतकाल की अपेक्षा और भी अधिक शक्तिशाली बनेगा। शताब्दियों वक नीरव कष्ट सहते रहने का उपयुक्त पुरस्कार पाएगा और संसार की समस्त जातियों के मध्य में अपने उद्देश्य के रूप में आध्यात्मिक प्रकृति सम्पन्न मानव जाति के विकास को पूर्ण करेगा। भारत के जातीय जीवन में ज्यों-ज्यों स्फूर्ति आती जाएगी त्यों-त्यों भाषा, शिल्प, संगीत इत्यादि अपने आप ही भावमय एवं प्राणपूर्ण होते जाएँगे। तब देवता की मूर्ति को देखते ही भक्तिभाव का उद्रेक होगा। आभूषणों से सज्जित नारी को देखते ही देवी का बोध होगा एवं घर-द्वारा सम्पत्ति सब कुछ प्राण-स्पन्दन से डगमग करने लगेगी।

भविष्य में भारत ऐसी स्थिति में पहुँचेगा, जहाँ जाति नहीं रह जाएगी। भविष्यत् भारत की योजना है कि मनुष्य को ब्राह्मण बनाया जाए। ब्राह्मण मानवता का आदर्श है, तप और त्याग है। शतियों पुरानी इस जातीय व्यवस्था के भीतर इतनी जीवनीशक्ति है कि उससे लाखों नई व्यवस्थाओं का निर्माण किया जा सकता है। रीति यह है कि पुरातन का विकास हो। नए युग का विधान है कि जनता ही जनता परित्राण करे। भविष्य में समस्त जातियाँ मानव-जाति में समा जाएँगी। प्रत्येक मानव ब्राह्मणत्व की ओर अग्रसर होने में गौरव का अनुभव करेगा। भारत का ध्येय निर्माण है विनाश नहीं। भारत वेदान्त के उदात्त सत्य को प्रकट करेगा। यहाँ का आदर्श है सहायता, झगड़ा नहीं सर्वांगीण विनाश नहीं, समन्वय और शान्ति, संघर्ष नहीं। मेरा दृढ़ विश्वास है कि हमारी मातृभूमि का भविष्य बहुत उज्ज्वल है। भारत के जन-समुदाय को उठाने से ही भारत का पुनर्जागरण होगा। भविष्य में धर्मोपदेशक हमारे जनसमुदाय के दोनों प्रकार के आध्यात्मिक और लोकशिक्षण होंगे। एकं सद विप्राः बहुधा वदन्ति ही हमारी जाता की समग्र जीवन समस्या का समाधान है। इसी अद्भुत भाव को भारत सारी दुनिया को देगा।

इक्कीसवीं सदी में भारतवासी अपने अतीत युग के इतिहास की ही भाँति फिर से अन्यान्य जातियों एवं देशों के बीच अपने समुचित गौरव पद पर आसीन होंगे। वे अपने जीवन में शुद्ध, निष्कपट उत्साह को पुनः प्रबल रूप से जगायेंगे। भारत में अपनी सम्पत्ति, शक्ति अथवा अन्य गुण के बल पर अपने जातीय बन्धुओं को आगे बढ़ाकर ही अपने चच्तर लोगों के साथ भाईचारा स्थापित हो सकेगा। यदि समस्त समुदायों के श्रम का उपयोग करने वाली एक जाति की शक्ति की अभिव्यक्ति कम से कम एक विशेष अवधि में आश्चर्यजनक फल उत्पन्न कर सकती हैं, तो फिर यहाँ इन समस्त जातियों का संचयन और केन्द्रीकरण होने जा रहा है। मैं अपने मानव चक्षुओं से उस भावी राष्ट्र को धीरे-धीरे परिपक्व होता देख रहा हूँ, धरती के समस्त राष्ट्रों में सर्वाधिक महिमामण्डित और ज्येष्ठतम भारत का भविष्य। सर्वाधिक अद्भुत ऐतिहासिक सत्य है कि संसार की सब जातियों के भारतीय साहित्य में निबद्ध सनातन सत्य समूह को सीखने के लिए धैर्य धारण कर भारत के चरणों के समीप बैठना होगा। भविष्य में सबका जीवन आशाप्रद है। सबके लिए मुक्ति का रास्ता खुला हुआ है और जल्दी या देरी से माया के बन्धन से मुक्त होंगे।

भारत को उठना होगा, गरीबों को भोजन देना होगा, शिक्षा का विस्तार करना होगा और पूरे प्रपंच की बुराइयों का निराकरण करना होगा। भारत तभी जागेगा जब विशाल हृदय वाले सैकड़ों स्त्री-पुरुष भोग-विलास और सुख की सभी इच्छाओं को विसर्जित कर मन, वचन और शरीर से राष्ट्रसेवा के लिए कटिबद्ध रहेंगे। भारत को नवविद्युत शक्ति की आवश्यकता है, जो जातीय धमनी में नवस्फूर्ति उत्पन्न कर सके। भारत के समाज का आमूल परिवर्तन करना आवश्यक है। मैं जानता हूँ कि यह और अच्छा होगा। भारत ऋषियों द्वारा प्रदर्शित पथ पर बढ़ेगा और अपनी श्रेष्ठता सिद्ध कर दिखाएगा। भारत की सम्भावनाएँ बढ़ी हैं और वह उनको प्रस्फुटित कर दिखाएगा।

मैं दिव्यदृष्टि से देख रहा हूँ कि भारत की नारियाँ ऋषियों के मुख से निकले धर्म का प्रचार करेंगी और ऐसी बड़ी तरंग उठेगी, जो सारे संसार को डुबो देगी। वे भविष्य में सिंहनी बनकर खड़ी होंगी। भारत में शंकर आदि महामनीषियों ने वेदान्त रूपी जिन भावों को प्रचार किया था, भावी सतयुग में जन-जीवन उसी के अनुसार जीवनयापन करेगा और यह नारियों के द्वारा ही कार्यरूप में परिणत होगा।

भारत के इस भविष्य-निर्माण के लिए बलिदान तो करना ही होगा। बिना बलिदान के कोई भी कार्य सिद्ध नहीं हो सकता। अपने कलेजे को बाहर निकालना होगा और निकालकर उसे पूजा वेदी पर उसे लहूलुहान चढ़ा देना होगा। अतीत के अवशेषों से एक ऐसा नवजाग्रत भारत पैदा हो रहा है, जिसके लिए वीरों को शौर्य एवं रक्त का मूल्य चुकाना होगा। मैं जो चाहता हूँ वह लोहे की नसें और फौलाद के स्नायु हैं, जिनके भीतर ऐसा मन वास करता हो जो वज्र के समान पदार्थ का बना हो, बल-पुरुषार्थ और ब्रह्मतेज। भारत तभी भविष्य का आधार बनेगा, जब उसके प्रत्यक्ष हृदयस्वरूप सैकड़ों शिक्षित, चरित्रवान, आत्मत्यागी नवयुवक इस महासंग्राम को लड़ने के लिए तैयार होंगे। मनुष्य केवल आत्मदानी मनुष्य चाहिए, बाकी सब कुछ अपने आज हो जाएगा। पूर्ण निष्कपटता, पवित्रता, विशाल बुद्धि और सर्वजयी इच्छाशक्ति के धनी व्यक्ति ही भारत के भविष्य को गढ़ेंगे। इसी के साथ सारे संसार में क्रान्तिकारी परिवर्तन हो जाएगा। प्रभु की आज्ञा है, भारत की उन्नति अवश्य होगी। आध्यात्मिकता की बाढ़ आ गयी है। निर्बाध, निस्सीम, सर्वग्राही उस प्लावन को मैं भारत की पृष्ठभूमि पर आवर्तित होते देख रहा हूँ। भारत का पुनरुत्थान होगा, पर वह जड़ की शक्ति से नहीं, वरन् आत्मा की शक्ति के द्वारा वह उत्थान विनाश की ध्वजा लेकर नहीं वरन् शान्ति और प्रेम की ध्वजा से, परिव्राजकों के वेश से सम्पादित होगा। मैं अपने सामने यह एक सजीव दृश्य देख रहा हूँ कि हमारी यह प्राचीन भारतमाता पुनः एक बार जाग्रत होकर अपने सिंहासन पर पूर्व की अपेक्षा अधिक महामहिमान्वित होकर विराजेगी।

युगनायक स्वामी विवेकानन्द की यह भविष्य दृष्टि साकार होने को है। इक्कीसवीं सदी के आगमन के साथ भविष्य का महिमामण्डित भारत अपना स्वरूप विनिर्मित करने लगेगा। इसमें भागीदारी बनने वाले वीर हृदय पुरुष एवं महिलाएँ निश्चित ही भारत के भविष्य निर्माता का महाश्रेयस् प्राप्त किए बिना न रहेंगे।

First 9 11 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • सत्यकार्य के प्रति समर्पण
  • नववर्ष का उल्लास-अभिव्यक्ति विविध रूपों में।
  • अमृतपर्व कुम्भ और इसकी गौरव-गरिमा
  • अड़सठ तीरथ घट भीतर-(3)
  • सुखफल (Kahani)
  • अयमात्मा ब्रह्म का नाद
  • मुर्दे यदि रोबोट की तरह चलने लगे तो -
  • सात्विक आहार (Kahani)
  • हिमालय से अवतरित एक प्रज्ञापुरुष
  • स्वामी विवेकानन्द के जन्मदिवस पर युगनायक की भविष्य-दृष्टि
  • सौर-रश्मियों के क्रांतिकारी उत्कर्ष से भरा मंगलपर्व मकर संक्रान्ति
  • बर्बर मानसिकता जो व्यक्तिको नर-पिशाच बना देती है
  • एक निस्पृह-जाँबाज दंपत्ति की जीवन-गाथा
  • पृथ्वी से जोड़ें माँ जैसी सघन संवेदना
  • प्रतिभा पुरुषार्थ के बल पर अर्जित की जाती है
  • एक द्वीप में नूतन सृष्टि का सृजन
  • नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के जन्मदिवस एवं जन्मशती के अवसर पर- - सार्वभौम शक्तिशाली भारत के स्वप्नद्रष्टा नेताजी
  • सूक्ष्म में समायी असीम शक्ति-सामर्थ्य
  • महिलाओं के लिए कुछ विशिष्ट गायत्री साधनाएँ
  • साधु के सहचर (Kahani)
  • शुभ मनोभावों के सत्परिणाम
  • मनुष्य को भावसंवेदना का प्रशिक्षण देते हैं ये जीव
  • सत्कर्मों का दीपक (Kahani)
  • परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी- - गायत्री महाविद्या एवं उसकी साधना
  • Quotation
  • अक्का महादेवी (Kahani)
  • अपनों से अपनी बात - अब युग-परिवर्तन की घड़ी अति निकट आ पहुँची
  • Quotation
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj