Tuesday 29, April 2025
शुक्ल पक्ष द्वितीया, बैशाख 2025
पंचांग 29/04/2025 • April 29, 2025
बैशाख शुक्ल पक्ष द्वितीया, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), बैशाख | द्वितीया तिथि 05:31 PM तक उपरांत तृतीया | नक्षत्र कृत्तिका 06:47 PM तक उपरांत रोहिणी | सौभाग्य योग 03:53 PM तक, उसके बाद शोभन योग | करण बालव 07:19 AM तक, बाद कौलव 05:31 PM तक, बाद तैतिल 03:48 AM तक, बाद गर |
अप्रैल 29 मंगलवार को राहु 03:31 PM से 05:10 PM तक है | चन्द्रमा वृषभ राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 5:40 AM सूर्यास्त 6:48 PM चन्द्रोदय 6:22 AM चन्द्रास्त 9:01 PM अयन उत्तरायण द्रिक ऋतुग्रीष्म
- विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
- शक सम्वत - 1947, विश्वावसु
- पूर्णिमांत - बैशाख
- अमांत - बैशाख
तिथि
- शुक्ल पक्ष द्वितीया
- Apr 28 09:11 PM – Apr 29 05:31 PM
- शुक्ल पक्ष तृतीया
- Apr 29 05:31 PM – Apr 30 02:12 PM
नक्षत्र
- कृत्तिका - Apr 28 09:37 PM – Apr 29 06:47 PM
- रोहिणी - Apr 29 06:47 PM – Apr 30 04:18 PM
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन







आज का सद्चिंतन (बोर्ड)




आज का सद्वाक्य





नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन

!! शांतिकुंज दर्शन 29 April 2025 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

!! परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी का अमृत सन्देश !! भगवान की भक्ति का सिद्धांत क्या है 1
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को बादशाह तो बनाया पर स्वयं बादशाह न बन सके। समर्थ गुरू रामदास ने शिवाजी को तो बादशाह बनाया पर स्वयं बादशाह न बन सके। संत स्वयं बादशाह नहीं बन सकता। ये क्या करना पड़ेगा। मैं दीपक का उदाहरण दे करके आपको समझा रहा था। दीपक आप जलाएं, दीपक जलाने के साथ साथ में जलाने के बाद में ये ध्यान रखें कि भगवान की भक्ति का एक मूलभूत सिद्धांत ये है कि आदमी को जलना पड़ता है और गलना पड़ता है। बड़ा तो हो जाता है। ये भगवान का भक्त जो है, ये बरगद के पेड़ की तरीके से बड़ा तो हो जाता है, बेईमान लेकिन बरगद के पेड़ के तरीके से बड़ा होने से पहले बीज को गलना पड़ता है। महाराज जी, मैं तो वृक्ष बड़ा हो जाऊंगा। बेटे, जरूर हो जाएगा, लेकिन गलना तो पड़ेगा। जो कुछ है, मैं तो मालदार बनना चाहता हूँ, मोटा बनना चाहता हूँ। बेटे, मोटा तू नहीं बन सकता। तेरी औलाद बन सकती है। औलाद से क्या मतलब? औलाद से मतलब ये है, जब तू गलेगा, तब तेरी औलाद, अर्थात तेरे भीतर से जो कुल्ला उत्पन्न होगा, पेड़ उत्पन्न होगा, उसमें से इतने इतने बड़े फल आयेंगे, उसमें से बहुत सारे बीज पैदा हो जायेंगे। पर तू कहे कि हमीं को सौ गुना बीज बना दीजिए। तू तो गलना ही पड़ेगा। महाराज जी, हमारा क्या फायदा हुआ? यही फायदा है तेरा। अगर तुझे दूसरों को खुशी देख करके, दूसरों को समुन्नत देख करके, जो तुझे राहत मिलेगी और शांति मिलेगी, वो लाभ तेरे हिस्से का है। स्वयं लाभ उठाना चाहेगा नहीं, हमको ही बना दीजिए। जलेंगे हम नहीं तो बेटा, मन नहीं होता। ये मेरे मुंह से ये बात नहीं है, आध्यात्मिकता की मर्यादा में नहीं है। न अध्यात्म में कभी ऐसा हुआ है, न कभी हो सकता है।
अखण्ड-ज्योति से
अपनी वर्तमान स्थिति से विगत स्थिति की तुलना करने से क्या लाभ। अतीत काल की वह स्थिति जो वैभवपूर्ण थी, आज लौट कर नहीं आ सकती। हाँ उसकी तरह की स्थिति वर्तमान में बनाई अवश्य जा सकती है। किन्तु यह सम्भव तभी होगा, जब अतीत का रोना छोड़कर वर्तमान के अनुरूप साधनों का सहारा लेकर परिश्रम और पुरुषार्थ किया जाये। केवल अतीत को याद कर−करके दुःखी होने से कोई काम न बनेगा।
जब मनुष्य अपने वैभवपूर्ण अतीत का चिन्तन करके इस प्रकार सोचता रहता है तो उसके हृदय में एक हूक उठती रहती है—एक समय ऐसा था कि हमारा कारोबार जोरों से चलता था। लाखों रुपयों की आय थी। हजारों आदमी अधीनता में काम करते थे। बड़ी−सी कोठी और कई हवेलियाँ थीं। मोटर कार पर चलते थे। मन−माने ढँग से रहते और व्यय करते थे। लेकिन आज यह हाल है कि कारोबार बन्द हो गया है। आय का मार्ग नहीं रह गया। दूसरों की मातहती की नौबत आ गई है। कोठियाँ और हवेलियाँ बिक गईं। मोटर कार चली गई। हम एक गरीब आदमी बन गए। अब तो यह जीवन ही बेकार है। इस प्रकार का चिन्तन करना अपने जीवन में निराशा और दुःख को पाल लेना है।
यदि अतीत का चिन्तन ही करना है तो इस प्रकार करना चाहिए। हमने इस−इस प्रकार से अमुक−अमुक काम किए थे। जिससे इस−इस तरह की उन्नति हुई थी। उन्नति के इस मार्ग में इस−इस तरह के विघ्न आए थे। जिनको हमने इस नीति द्वारा दूर किया था। इस प्रकार का चिन्तन करने से मनुष्य का सफल स्वरूप ही सामने आता है और वह आगे उन्नति करने के लिए प्रेरणा पाता है। विचारों का प्रभाव मनुष्य के जीवन पर बड़ा गहरा पड़ता है। जो व्यक्ति अपनी अवनति और अनिश्चित भविष्य के विषय में ही सोचता रहता है, उसका जीवन चक्र प्रायः उसी प्रकार से घूमने लगता है। इसके विपरीत जो अपनी उन्नति और विकास का चिन्तन किया करता है, उसका भविष्य उज्ज्वल और भाग्य अनुकूलतापूर्वक निर्मित होता है।
मनुष्य की चिन्तन क्रिया बड़ी महत्वपूर्ण होती है। चिन्तन को यदि उपासना की संज्ञा दे दी जाए, तब भी अनुचित न होगा। जो लोग उपासना करते हैं, उन्हें अनुभव होगा कि जब वे अपना ध्यान परमात्मा में लगाते हैं तो अपने अन्दर एक विशेष प्रकार का प्रकाश और पुलक पाते हैं। उन्हें ऐसा लगता है, मानो परमात्मा की करुणा उनकी ओर आकर्षित हो रही है। यह कल्याणकारी अनुभव उस उपासना, उस चिन्तन अथवा उन विचारों का ही फल होता है, जिनके अन्तर्गत कल्याण का विश्वास प्रवाहित होता रहता है।
.... क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति जनवरी 1970 पृष्ठ 57
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