• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • वेदव्यास की अंतर्व्यथा
    • देवर्षि का सत्परामर्श
    • अंतर्दृष्टि जागी-चैतन्य हो गए
    • जगी संवेदना ने नारी चेतना को झकझोरा
    • सक्रिय समर्पण कैसा हो ?
    • संकल्प जागा तो निष्ठुर भी बदला
    • संवेदना चैन से नहीं बैठने देती
    • जब अंत: में लौ जली तो
    • संवेदना की दिव्य दृष्टि
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • वेदव्यास की अंतर्व्यथा
    • देवर्षि का सत्परामर्श
    • अंतर्दृष्टि जागी-चैतन्य हो गए
    • जगी संवेदना ने नारी चेतना को झकझोरा
    • सक्रिय समर्पण कैसा हो ?
    • संकल्प जागा तो निष्ठुर भी बदला
    • संवेदना चैन से नहीं बैठने देती
    • जब अंत: में लौ जली तो
    • संवेदना की दिव्य दृष्टि
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Books - भाव संवेदनाओं की गंगोत्री

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT


अंतर्दृष्टि जागी-चैतन्य हो गए

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 8 10 Last
समस्याएँ अनेक हैं। विग्रहों, संकटों, उलझनों का जखीरा इतना बड़ा है, कि उसे बाहर से देखने वाले की सिट्टी- पिट्टी गुम हो जाए, किन्तु जिसे अंतर्दृष्टि प्राप्त हो- वह आसानी से जान सकता है कि इस सबकी जड़ में निष्ठुरता है; इसके हटने पर ही समस्याएँ निपटेंगी। यहीं अंतर्दृष्टि प्राप्त हुई विश्वंभर मिश्र को और वह ‘चैतन्य’ हो गए।

    उन दिनों वह गयाधाम आए हुए थे। निमाई के साथ उनकी कीर्ति भी आई। उन्हें देखते ही लोग कहते- अरे तो यह नवद्वीप के वही निमाई हैं, जिनके पांडित्य का लोहा समूचा बंगाल मानता है। अभी पिछले दिनों इन्होंने कश्मीरी पंडित को ऐसा पछाड़ा कि उसे भागते ही बना। शास्त्रार्थ में इनका कोई सानी नहीं।’’ जितने मुँह- उतनी बातें और निमाई इन सबके बीच में एकरस थे। प्रशंसकों की चापलूसी, निंदकों के कटाक्ष, प्रसिद्धि पर पहुँचे हुए व्यक्ति की संपदा हैं। इससे अधिक कोई और कुछ देगा भी क्या!

    गया धाम में रह रहे संत ईश्वरपुरी ने ये सभी किस्से सुने। सुनी हुई बातें यद्यपि अधिकांशतया अतिरंजित होती हैं, फिर भी उन्होंने अनुमान लगाया, अवश्य उसके पास प्रतिभा होगी। यदि वह प्रतिभा- भाव- श्रद्धा के साथ जुड़ जाएँ तो? इस सोच ने उन्हें चल पड़ने के लिए विवश कर दिया। रास्ते भर सोचते जा रहे थे- तो वह लोगों का जीवन सँवारने के साथ अनेकों को राह सुझा सकेगा। प्रतिभा शरीर और मन की चरम सक्रियता है। भाव- श्रद्धा से न जुड़ पाने के कारण यह अहंकार की चाकरी करती है और जैसे भी अहं का झंडा ऊँचा रहे, विलासिता- वैभव के सरंजाम जुटें’’ वही करती रहती है। उन्नत भावों से जुड़ने पर तो, सारी स्थिति ही उलट जाती है। फिर तो अंदर की तड़पन और बेचैनी उसे ‘‘सर्वजन हिताय- सर्वजन सुखाय’’ हेतु क्रियाशील होने के लिए विवश करती है।’’

        रास्ते भर यही चिंतन चलता रहा, कब उनके डेरे के पास आ पहुँचे- पता ही नहीं चला। एक से पूछा -‘‘बंगाल के निमाई यहीं ठहरे हैं?’’

    जवाब मिला- पास वाले डेरे में हैं।’’

    अंदर जाने पर देखा- एक गौर वर्ण का युवक शास्त्रचर्चा कर रहा है।

    वह भी एक कोने में बैठ गए- चर्चा चलती रही। चर्चा समाप्त होने पर उनको छोड़कर एक- एक करके सभी चले गए।

    चर्चा कर रहे युवक ने उनकी ओर देखकर पूछा-

    ‘‘आपका प्रयोजन?’’

     ‘‘एक जिज्ञासा है!’’

     ‘‘कहिए।’’

    ‘‘क्या सचमुच आप शास्त्र का अर्थ जानते हैं?’’

    सुनने वाले का अंतर हिल उठा। पूछा, ‘‘क्या मतलब?’’

        ‘‘बुरा न मानें- मेरा मतलब यह है कि आपकी ये व्याख्याएँ बुद्धि- कौशल हैं, अथवा इनके साथ आपकी अनुभूतियाँ भी जुड़ी हैं?’’

    सुनने वाला चुप था- आज पहली बार किसी ने उसकी बुद्घि को फटकारा था।

        ‘‘गौरी, गजनी, ऐबक ने भारत- भूमि को न जाने कितना कुचला? बख्तियार के अत्याचारों ने बंगाल को मसल दिया। आज जबकि मनुष्य का आत्म- विश्वास खो गया है। वह भूल गया है कि वह भी कुछ अच्छा कर सकता है। औरों के अनीति- अन्याय को देखकर उसने उन्हें स्वीकार करना शुरू कर दिया है। ऐसे में भी कौशल केवल वाक् को लेकर व्यस्त है। क्या यह विडंबना नहीं है?’’ संत के उद्गार वाणी से फूट पड़े।

    गौर वर्ण के युवक ने महसूस किया कि यह वाक्य- रचना सिर्फ एक साथ गुँथे हुए वजनदार शब्द नहीं हैं- वरन् इसके पीछे संत की पीड़ा है, तड़प है ।। शब्दों ने उसके अंतर को मथ दिया। श्मशान में जलती लाशों को देखकर दूसरों को भी अपनी मौत याद आने लगती है। विवाह के सरंजाम देखकर जिंदगी की रंगीनी सूझती है। इसी तरह जिसके अंतर में मानवता के प्रति तड़प है, जिसका हृदय रह- रहकर मनुष्यता के लिए चीत्कार कर उठता है, वही दूसरों में ऐसी दशा उत्पन्न कर सकता है। युवक की आँखों पर छाया हुआ झूठे पांडित्य का मोतियाबिंद छटने लगा था। उसे कहने के लिए विवश होना पड़ा- आप ठीक कहते हैं; पर उपाय क्या है? ’’

    ‘‘ मनुष्य को उसकी खोई हुई मनुष्यता ढूँढ़कर देनी होगी, उसके मर्म को स्पर्श करना पड़ेगा। भाव चेतना के न रहने पर जीवित मनुष्य भी लाश है, जो स्वयं सड़ती और वातावरण को घिनौना बनाती है। इसके रहने पर ही मनुष्य समर्थ और सुंदर बनता है, पीड़ा और पतन के निवारण के लिए दौड़ पड़ता है। मुर्दे का क्या? उसकी तो पहचान ही है, अकर्मण्यता और निष्ठुरता। उसे पास बैठे लोगों का करुण विलाप भी नहीं सुनाई देता। आज चारों ओर ऐसे ही मुर्दों की भरमार है। इन्हें जीवित कर सकोगे?’’

    ‘‘कैसे?’’

    ‘‘ भाव- श्रद्धा को जगाकर।’’

    ‘‘पर जब समस्याएँ बुद्धि की हैं, तो समाधान भी बुद्धि के होने चाहिए? कहते हैं, लोहे को लोहा काटता है।’’

    ‘‘ठीक कहते हो, पर गरम लोहे को ठंडा लोहा काटता है। दुर्बुद्धि दाहक- तप्त लोहा, तो भाव इन्हें परिमार्जित, सुडौल और काम- लायक बनाने वाला शीतल लोहा। यही एकमात्र निदान है।’’

    निमाई एक- एक शब्द को पी रहे थे, उनके मुख से निकला- आज शास्त्रों का मर्म पता चला। अब तक मैं मुरदा था, आपने मुझे चैतन्य बना दिया।’’ गुरु- चरणों की धूल मस्तक पर लगाई। गुरु- शिष्य दोनों के हृदय भरे थे। अब एक का दर्द दूसरे का दर्द था।

    नदिया वापस लौटे; उनके जीवन का कायाकल्प देखकर, सभी आश्चर्यचकित थे- अरे यह क्या? एक दिन रास्ते में एक कोढ़ी दिखा, उपेक्षित, तिरस्कृत सभी मुँह मोड़कर चले जा रहे थे। चैतन्य को गुरुवाणी याद आई- मुर्दों को औरों का विलाप नहीं सुनाई पड़ता, दूसरों के कष्ट नहीं दिखाई पड़ते।’’ प्रत्यक्ष को प्रमाण क्या? विश्वास हुआ- सचमुच ये मुरदे हैं। उन्होंने कोढ़ी को उठाया, घाव धोए, औषधि लगाई। सेवा कार्य के साथ ही, संकीर्तन- मंडल गठित करने शुरू किए- मुर्दों में प्राण- संचार करने के लिए। एक चैतन्य ने अनेकों में चेतना जगाई। जो दूसरे जगे उन्होंने औरों में चेतना का संचार किया। निमाई के साथ निताई, श्रीवास, गदाधर जैसे अनेकों आ मिले ।। शक संवत् १४५५ तक उनके प्रयास चलते रहे। सबको स्वीकार करना पड़ा ,भाव श्रद्धा के प्रकाश में ही मनुष्य अपनी खोई मनुष्यता ढूँढ़ सकता है।

    खोई मनुष्यता मिल गई, ऐसों की एक ही पहचान है, मनुष्य वही, जो मनुष्य के लिए मरे। यों मरते तो सभी हैं, पर सारा जीवन ईंट- पत्थर कंकड़, कागज बटोरते। इन्हें भूत- पलीत कहा जाए, तो कोई गैर नहीं। ये श्मशान- कब्रिस्तान में जगह घेरकर बैठ जाते हैं और उधर से निकलने वालों को डराते- भगाते रहते हैं। आदमी भला ऐसी हरकतें क्यों कर सकेगा? संवेदनहीनों की दशा प्रेतों जैसी और संवेदनशीलों की स्थिति जीते- जागते आदमियों की- सी है। इनमें से किसका चुनाव करें? यह हमारे ऊपर है।
First 8 10 Last


Other Version of this book



भाव संवेदना की गंगोत्री
Type: SCAN
Language: EN
...

ભાવસંવેદનાઓની ગંગોત્રી
Type: SCAN
Language: EN
...

ಭಾವಸಂವೇದನೆಗಳ ಗಂಗೋತ್ರಿ
Type: SCAN
Language: EN
...

భావసంవేదనల గంగోత్రి
Type: SCAN
Language: EN
...

भाव संवेदनाओं की गंगोत्री
Type: TEXT
Language: HINDI
...

भावसंवेदनेची गंगोत्री
Type: SCAN
Language: MARATHI
...


Releted Books



आध्यात्मिक कायाकल्प का विधि- विधान-२
Type: TEXT
Language: HINDI
...

भक्ति- एक दर्शन, एक विज्ञान
Type: TEXT
Language: HINDI
...

भक्ति- एक दर्शन, एक विज्ञान
Type: TEXT
Language: HINDI
...

भगवान को मत बहकाइए
Type: TEXT
Language: EN
...

भगवान को मत बहकाइए
Type: TEXT
Language: EN
...

भगवान को मत बहकाइए
Type: TEXT
Language: EN
...

भगवान को मत बहकाइए
Type: TEXT
Language: EN
...

प्रेरणाप्रद भरे पावन प्रसंग
Type: TEXT
Language: HINDI
...

प्रेरणाप्रद भरे पावन प्रसंग
Type: TEXT
Language: HINDI
...

चेतना सहज स्वभाव स्नेह-सहयोग
Type: SCAN
Language: HINDI
...

चेतना सहज स्वभाव स्नेह-सहयोग
Type: SCAN
Language: HINDI
...

वाल्मीकि रामायण से प्रगतिशील प्रेरणा
Type: TEXT
Language: HINDI
...

युग कि मांग प्रतिभा परिष्कार भाग-२
Type: SCAN
Language: EN
...

युग कि मांग प्रतिभा परिष्कार भाग-२
Type: SCAN
Language: EN
...

जीवन देवता की साधना आराधना
Type: SCAN
Language: EN
...

जीवन देवता की साधना आराधना
Type: SCAN
Language: EN
...

ચિર યૌવનનું રહસ્યોદ્દઘાટન
Type: SCAN
Language: GUJRATI
...

ચિર યૌવનનું રહસ્યોદ્દઘાટન
Type: SCAN
Language: GUJRATI
...

जीवन साधना के स्वर्णिम सूत्र
Type: SCAN
Language: EN
...

जीवन साधना के स्वर्णिम सूत्र
Type: SCAN
Language: EN
...

जीवन साधना के स्वर्णिम सूत्र
Type: SCAN
Language: EN
...

जीवन साधना के स्वर्णिम सूत्र
Type: SCAN
Language: EN
...

मनस्थिति बदलें तो परिस्थिति बदले
Type: SCAN
Language: EN
...

संत विनोबा भावे
Type: SCAN
Language: HINDI
...

Articles of Books

  • वेदव्यास की अंतर्व्यथा
  • देवर्षि का सत्परामर्श
  • अंतर्दृष्टि जागी-चैतन्य हो गए
  • जगी संवेदना ने नारी चेतना को झकझोरा
  • सक्रिय समर्पण कैसा हो ?
  • संकल्प जागा तो निष्ठुर भी बदला
  • संवेदना चैन से नहीं बैठने देती
  • जब अंत: में लौ जली तो
  • संवेदना की दिव्य दृष्टि
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj