Books - गायत्री यज्ञ का महत्व
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Language: HINDI
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गायत्री-यज्ञ का महात्म्य
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यज्ञ भारतीय संस्कृति का आदि प्रतीक है। हमारे धर्म में जितनी महानता यज्ञ को दी गई है, उतनी और किसी को नहीं दी गई। हमारा कोई भी शुभ-अशुभ धर्म-कृत्य यज्ञ के बिना पूर्ण नहीं होता। जन्म से लेकर अन्त्येष्टि तक 16 संस्कार होते हैं। इनमें अग्निहोत्र आवश्यक है। जब बालक का जन्म होता है, तो उसकी रक्षार्थ सूतक-निवृत्ति घरों में अखंड अग्नि स्थापित रखी जाती है। नामकरण, यज्ञोपवीत, विवाह आदि संस्कारों में भी हवन अवश्य होता है। अन्त में जब शरीर छूटता है तो उसे अग्नि को ही सौंपते हैं। अब लोग मृत्यु के समय चिता जलाकर यों ही लाश को भस्म कर देते हैं, पर शास्त्रों में देखा जाय, तो वह भी एक यज्ञ है। इसमें वेद मन्त्रों से विधिपूर्वक आहुतियां चढ़ाई जाती हैं और शरीर को यज्ञ भगवान के अर्पण किया जाता है।
शास्त्रों में यज्ञ की महत्ता पर बहुत कुछ कहा गया है—
‘‘यज्ञो वै श्रेष्ठ तमं कर्म’’
—शतपथ
(यज्ञ ही संसार का सर्वश्रेष्ठ शुभ कार्य है)
‘‘अयज्ञियो हत वर्चः’’
—अथर्व
(यज्ञ न करने वाले का तेज नष्ट हो जाता है)
‘‘नाग्निहोत्रोत्परो धर्मः’’
—कूर्म पुराण
(अग्निहोत्र से बढ़कर और कोई धर्म नहीं)
‘‘यज्ञं जनयन्तु सूरयः’’
—ऋग्वेद 10।66।2
(हे विद्वानों, संसार में यज्ञ का प्रचार करो)
‘‘यज्ञो विश्वस्य भुवनस्य नाभिः’’
—अथर्व
(यज्ञ ही समस्त विश्व ब्रह्माण्ड का मूल केन्द्र है)
‘‘अनाहूतोऽध्वरं व्रजेत्’’
—याज्ञवल्क्य
(बिना बुलाये भी यज्ञ में सम्मिलित होना चाहिए)
‘‘अयज्ञियो हत बर्चो भवति’’
—अथर्व
(यज्ञ रहित व्यक्ति का तेज नष्ट हो जाता है)
‘‘यज्ञोऽयं सर्व काम धुक्’’
—अंगिरा
(यह यज्ञ सब मनोकामनाएं पूर्ण करने वाला है)
‘‘प्राचं यज्ञं प्रणतया सस्वायः’’
—ऋग्वेद 10।101।2
(प्रत्येक शुभ कार्य को यज्ञ के साथ आरम्भ करो)
‘‘ईजानाः स्वर्गं यान्ति लोकम्’’
—अथर्व 18।4।2
(यज्ञ करने वाले को स्वर्ग सुख प्राप्त होता है)
‘‘सर्वेषा देवानां आत्मा यद् यज्ञः’’
—शतपथ 13।3।2।1
(सब देवताओं की आत्मा यज्ञ ही है)
‘‘अतप्त तनूर्नं तदामो अश्नुते’’
—ऋग्वेद 9।83।1
(जो तप नहीं करता वह सुख नहीं पाता)
‘‘भद्रो नो अग्नि राहुतः’’
—यजु 15।38
(यज्ञ में दी हुई आहुतियां कल्याणकारक होती हैं)
‘‘असंस्तिोय वा एष यज्ञः’’
—तै. व्रा. 2।4।9
(यज्ञ का पुण्य फल कभी नष्ट नहीं होता)
‘‘मा सुनोतेति सोमम्’’
—ऋग्वेद 2।30।7
(यज्ञानुष्ठान की महान् उपासना बन्द न करो)
‘‘सम्यञ्चो अग्निं सपर्यत’’
—अथर्व 3।30।6
(सब को मिलकर यज्ञानुष्ठान करना चाहिये)
‘‘अग्ने होत्रिणे प्रणुदे सपत्नाम्’’
—अथर्व 9।2।6
(यज्ञ करने से शत्रु नष्ट हो जाते हैं)
‘‘सप्रेद्धो अग्निजिह्वाभि रुदेतु हृदयादधि’’
—अथर्व
(जो हवन करते हैं उनके हृदय में परमात्मा का तेज प्रकाशित होता है)
‘‘यज्ञ कल्याण हेतवः’’
—विष्णु.
(यज्ञ से सबका कल्याण होता है)
‘‘कस्मै त्व विमुञ्चति तस्मै त्वं विमुञ्चतिः’’
—यजु.
(जो यज्ञ को त्यागता है उसे परमात्मा त्याग देता है)
‘‘यज्ञादिभिर्देवाः शक्ति सुखदीनाम्’’
(यज्ञ से देवत्व, शक्ति, सुख आदि सम्पत्तियां मिलती हैं)
‘‘यज्ञेषु देवास्तुष्यन्ति’’
—कालिका पुराण
(यज्ञों के द्वारा देवता सन्तुष्ट होता है)
‘‘अग्निहोत्रात्परंनान्यत्पवित्रमिह पठयते’’
—पद्म पुराण
(अग्निहोत्र से बढ़कर पवित्र कर्म संसार में अन्य नहीं है)
‘‘निष्कामः कुरुते यस्तु स परंब्रह्म गच्छति’’
—मत्स्यपुराण
(निष्काम भाव से हवन करने वाले को निश्चय ही परब्रह्म की प्राप्ति होती है)
‘‘सर्व बाधा निवत्यर्थ सर्वान् देवान यजंत बुधः’’
—शिव पुराण
(सभी बाधाओं की निवृत्ति के लिये, बुद्धिमान् पुरुषों को देवताओं की यज्ञ द्वारा पूजा करनी चाहिये।)
‘‘सर्वं सपापंतरतियोऽश्वमेघं यजेतवै’’
—पद्म पुराण
(सब पापों में रत व्यक्ति भी यज्ञ करने से पाप मुक्त हो जाता है)