• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • मरणोत्तर जीवन और उसकी सच्चाई
    • जन्म मृत्यु-मात्र स्थूल जगत की घटनाएं
    • जीवन सत्ता का चैतन्य स्वरूप
    • विदेशों में पुनर्जन्म की घटनाएं एवं मान्यताएं
    • जन्म मृत्यु का अविराम क्रम
    • जन्मान्तर प्रगति या पतन के आधार—आत्म-सत्ता के संकल्प एवं कर्म
    • पुनर्जन्म—पुनरावर्तन नहीं यात्रा का अगला चरण
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • मरणोत्तर जीवन और उसकी सच्चाई
    • जन्म मृत्यु-मात्र स्थूल जगत की घटनाएं
    • जीवन सत्ता का चैतन्य स्वरूप
    • विदेशों में पुनर्जन्म की घटनाएं एवं मान्यताएं
    • जन्म मृत्यु का अविराम क्रम
    • जन्मान्तर प्रगति या पतन के आधार—आत्म-सत्ता के संकल्प एवं कर्म
    • पुनर्जन्म—पुनरावर्तन नहीं यात्रा का अगला चरण
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Books - पुनर्जन्म : एक ध्रुव सत्य

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT


विदेशों में पुनर्जन्म की घटनाएं एवं मान्यताएं

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 3 5 Last
मरणोत्तर जीवन एवं पुनर्जन्म की मान्यता हमें चिन्तन के कितने ही उत्कृष्ट आधार प्रदान करती है। आज हम हिन्दू, भारतीय, एवं पुरुष हैं। कल के जन्म में ईसाई, योरोपियन या स्त्री हो सकते हैं। ऐसी दशा में क्यों ऐसे कलह बीज बोयें, क्यों ऐसी अनैतिक परम्पराएं प्रस्तुत करें जो अगले जन्म में अपने लिए ही विपत्ति खड़ी करदें। आज का सत्ताधीश, कुलीन, मनुष्य सोचता है कल प्रजाजन, अछूत, एवं पशु बनना पड़ सकता है उस स्थिति में उच्च स्थिति वालों का स्वेच्छाचार उनके लिए कितना कष्ट कारक होगा। इस तरह के विचार दूसरों की स्थिति में अपने को रखने और उदात्त दृष्टिकोण अपनाने की प्रेरणा देते हैं।

मृतात्माओं की हलचलों के जो प्रामाणिक विवरण समय-समय पर मिलते रहते हैं और पिछले जन्मों की सही स्मृति के प्रमाण देने वाले घटनाक्रमों के प्रत्यक्ष परिचय अब इतनी अधिक संख्या में सामने आ गये हैं कि उन्हें झुठलाया नहीं जा सकता। ऐसी दशा में पिछली पीढ़ी के वैज्ञानिकों की आत्मा का अस्तित्व न होने की बात सहज ही निरस्त हो जाती है।

मनोवैज्ञानिक विश्लेषण आत्मा के अस्तित्व को ही सिद्ध करते हैं। हमारा अस्तित्व मुक्ति में—मृत्यु के साथ अथवा अन्य किसी स्थिति में किसी समय समाप्त हो जायगा इस कल्पना को कितना ही श्रम करने पर भी स्वीकार नहीं कर सकते। चेतना इस तथ्य को कभी भी स्वीकार न करेगी। यह स्वतः प्रमाण मनःशास्त्र के आधार पर इस स्तर के समझे जा सकते हैं कि जीव चेतना की स्वतन्त्र सत्ता स्वीकार करने के लिए संतोषजनक माना जा सके।

पदार्थ विज्ञानी यह जानते हैं कि तत्वों के मूल-भूत गुण धर्म को नहीं बदला जा सकता है। उनके सम्मिश्रण से पदार्थों की शकल बदल सकती है। रंग को गन्ध से, गन्ध को स्वाद में, स्वाद को रूप में, रूप को स्पर्श में नहीं बदला जा सकता। हां, वे अपने मूल रूप में बने रहकर अन्य प्रकार की शकल या स्थिति तो बना सकते हैं, पर रहेंगे सजातीय ही। दो प्रकार की गन्धें मिल कर तीसरे प्रकार की गन्ध बन सकती है—दो प्रकार के स्वाद मिल कर तीसरे प्रकार का स्वाद बन सकता है, पर वे रहेंगे गन्ध या स्वाद ही, वे रूप या रंग नहीं बन सकते। विभिन्न प्रकार के परमाणुओं में विभिन्न प्रकार की हलचलें तो हैं, पर उनमें चेतना का कहीं अता-पता नहीं मिलता।

मस्तिष्क को संवेदना का आधार तो माना जा सकता है, पर उसके कण स्वयं संवेदनशील नहीं हैं। यदि होते तो मरण के उपरान्त भी अनुभूतियां करते रहते। ध्वनि या प्रकाश के कम्पन जड़ हैं—मस्तिष्कीय अणु भी जड़ है। दोनों के मिलन में जो विभिन्न प्रकार की अनुभूतियां होती हैं उनमें पदार्थ को कारण नहीं माना जा सकता। चेतना की स्वतन्त्र सत्ता स्वीकार किये बिना प्राणी की चेतना सिद्ध करने के लिए जितने तर्क पिछले दिनों प्रस्तुत किये जाते रहे हैं, वे अब सभी क्रमशः अपनी तेजस्विता खोते जा रहे हैं। अमुक रसायनों या परमाणुओं के मिलने से चेतना की उत्पत्ति होती है और उनके बिछुड़ने से समाप्ति। यह तर्क आरम्भ में बहुत आकर्षक प्रतीत हुआ था और नास्तिकवाद में जीव को इसी रूप में बताया था, पर अब उनके अपने ही तर्क-अपने प्रतिपादन को स्वयं काट रहे हैं कि मूल-तत्व अपनी प्रकृति नहीं बदल सकता। विचार हीन परमाणु-संवेदनशील बन सकें ऐसा कोई आधार अभी तक नहीं खोजा जा सका है। जड़ के साथ चेतना घुली हुई हो तो उसके साथ-साथ जड़ में भी परिवर्तन हो सकते हैं। अभी इतना ही सिद्ध हो सका है। किसी परख नली में बिना चेतन जीवाणुओं की सहायता के मात्र रासायनिक पदार्थों की सहायता से जीवन उत्पन्न कर सकना सम्भव नहीं हुआ है। परख नली के सहारे चल सारे प्रयोग अभी इस दिशा में एक भी सफलता की किरण नहीं पा सके हैं कि रासायनिक संयोग से जीवन का निर्माण संभव किया जा सके। लोह खंडों के घर्षण से बिजली पैदा होती है तो भी बिजली लोहा नहीं है। स्नायु संचालन से संवेदना उत्पन्न होती है किन्तु संवेदना स्नायु नहीं हो सकते। अमुक रासायनिक पदार्थों के संयोग से जीवन उत्पन्न होता है तो भी वे पदार्थ जीवित नहीं हैं। चेतना का अवतरण कर सकने के माध्यम मात्र हैं।

हर्ष, शोक, क्रोध, प्रेम, आधा, निराशा सुख-दुःख, पाप, पुण्य आदि विभिन्न संवेदनाएं किन परमाणुओं के मिलने से किस प्रकार उत्पन्न हो सकती हैं, इस संदर्भ में विज्ञान सर्वथा निरुत्तर है।

भौतिक विज्ञानी यह कहते रहे हैं कि प्राणी एक प्रकार का रासायनिक संयोग है। जेब तक पंचतत्वों का सन्तुलन क्रम शरीर को जीवित रखता है, तभी तक जीवधारी की सत्ता है। जब शरीर मरता है तो उसके साथ ही जीव भी मर जाता है। शरीर से भिन्न जीव की कोई स्वतन्त्र सत्ता नहीं है।

यह मान्यता मनुष्य को निराश ही नहीं अनैतिक भी बनाती है। जब शरीर के साथ ही मरना है तो फिर जितना मौज-मजा करना है वह क्यों न कर लिया जाय? यदि राजदण्ड या समाज दण्ड से बचा जा सकता है तो पाप-अपराधों के द्वारा अधिक जल्दी—अधिक मात्रा में—अधिक सुख-साधन क्यों न जुटाए जायं? पुण्य-परमार्थ का जब हाथों हाथ कोई लाभ नहीं मिलता तो उस झंझट में पड़कर धन तथा समय की बर्बादी क्यों की जाय?

आस्तिकता के विचार अगले जन्म में पुण्यफलों की प्राप्ति पर विश्वास करते हैं। इस जन्म में कमाई हुई योग्यता का लाभ अगले जन्म में मिलने की बात सोचते हैं। अस्तु उनके सत्प्रयत्न इसलिए नहीं रुकते कि मरने के बाद इनकी क्या उपयोगिता रहेगी। यह मान्यताएं मनुष्य को नैतिक, परोपकारी एवं पुरुषार्थी बनाये रखने में बहुत सहायता करती हैं। नास्तिक की दृष्टि में यह सब बेकार है। आज का सुख ही उसके लिए जीवन की सफलता का केन्द्र बिंदु है, भले ही वह किसी भी प्रकार अनैतिक उपयोग से ही क्यों न कमाया गया हो। यह मान्यता व्यक्ति की गरिमा और समाज की सुरक्षा दोनों ही दृष्टि से घातक है।

व्यक्ति की आदर्शवादिता और समाज की स्वस्थ परम्परा बनाये रहने के लिए आस्तिकवादी दर्शन के प्रति जनसाधारण की निष्ठा बनाये रहना आवश्यक है। आस्तिकता का एक महत्वपूर्ण अंग है—मरणोत्तर जीवन। जो इस जन्म में नहीं पाया जा सका वह अगले जन्म में मिल जायगा, यह सोचकर मनुष्य बुरे कर्मों से बचा रहता है और सत्कर्म करने के उत्साह को बनाये रहता है। तत्काल भले-बुरे कर्मों का फन न मिलने के कारण जो निराशा उत्पन्न होती है उसका समाधान पुनर्जन्म की मान्यता संजोये रहने के अतिरिक्त और किसी प्रकार नहीं हो सकता। समाज संगठन और शासन-सत्ता में इतने छिद्र हैं कि भले कर्मों का सत्परिणाम मिलना तो दूर, बुरे कर्मों का दण्ड भी उनके द्वारा दे सकना सम्भव नहीं होता। अपराधी खुल कर खेलते रहते हैं और अपनी चतुरता के आधार पर बिना किसी प्रकार का दण्ड पाये मौज करते रहते हैं। इस स्थिति को देखकर सामान्य मनुष्यों का मन अनीति बरतने और अधिक लाभ उठाने के लिए लालायित होता है। इस पाप-लिप्सा पर अंकुश रखने के लिए ईश्वर के न्याय पर आस्था रखना आवश्यक हो जाता है और उस आस्था को अक्षुण्ण रखने के लिए मरणोत्तर जीवन की मान्यता के बिना काम नहीं चल सकता।

भौतिक विज्ञान ने शरीर के साथ जीव को सत्ता का अन्त हो जाने का जो नास्तिकवादी प्रतिपादन किया है, उसका परिणाम नैतिकता की—परोपकार की सत्प्रवृत्तियों का बांध तोड़ देने वाली विभीषिका के रूप में सामने आया है। आवश्यकता इस बात की है कि उस भ्रान्त मान्यता को निरस्त किया जाय।

मरणोत्तर जीवन के दो प्रमाण ऐसे हैं जिन्हें प्रत्यक्ष रूप में देखा, समझा और परखा जा सकता है। (1) पुनर्जन्म की स्मृतियां (2) प्रेत जीवन का अस्तित्व। समय-समय पर इस प्रकार के प्रमाण मिलते रहते हैं, जिनसे इन दोनों ही तथ्यों की सिद्धि भली प्रकार हो जाती है। मिथ्या कल्पना, अन्ध-विश्वास और किम्वदंतियों की सीमाओं को तोड़ कर प्रामाणिक व्यक्तियों द्वारा किये गये अन्वेषणों से ऐसी घटनाएं सामने आती रहती हैं जिनसे उपरोक्त दोनों तथ्य भली प्रकार सिद्ध होते रहते हैं।

‘‘आत्मा की खोज’’ विषय को लेकर विश्व भ्रमण करने वाले अमेरिका के एक विज्ञानवेत्ता डा. स्टीवेंस कुछ समय पूर्व भारत भी आये थे। पुनर्जन्म को आत्मा के चिरस्थायी अस्तित्व का अच्छा प्रमाण मानते थे। अस्तु उन्होंने भारत को इस शोधकार्य के लिए विशेष रूप से उपयुक्त समझा। भारत की धार्मिक मान्यता में पुनर्जन्म को स्वीकार किया गया है, इसलिए पिछले जन्म की स्मृतियां बताने वाले बालकों की बात यहां दिलचस्पी से सुनी जाती है और उससे प्रामाणिक तथ्य उभर कर सामने आते रहते हैं। अन्य देशों में यह स्थिति नहीं है। ईसाई और मुसलमान धर्मों में पुनर्जन्म की मान्यता नहीं है, इसलिए यदि कोई बालक उस तरह की बात करे तो उसे शैतान का प्रकोप समझ कर डरा, धमका दिया जाता है तो उभरते तथ्य समाप्त हो जाते हैं।

डा. स्टीवंसन ने संसार भर से लगभग 600 ऐसी घटनाएं एकत्रित की हैं, जिनमें किन्हीं व्यक्तियों द्वारा बताये गये उनके पूर्वजन्मों के अनुभव प्रामाणिक सिद्ध हुए हैं। इनमें बड़ी आयु के लोग बहुत कम हैं। अधिकांश तीन से लेकर पांच तक के बालक हैं। नवोदित-कोमल मस्तिष्क पर पूर्वजन्म की छाया अधिक स्पष्ट रहती है। आयु बढ़ने के साथ-साथ वर्तमान जन्म की जानकारियां इतनी अधिक लद जाती है कि उस दबाव से पिछले स्मरण विस्मृति के गर्त में गिरते चले जाते हैं।

पूर्वजन्म की स्मरण किस प्रकार के लोगों को रहता है, इस सम्बन्ध में डा. स्टीवेंसन का मत है कि जिनकी मृत्यु किसी उत्तेजनात्मक आवेशग्रस्त मनःस्थिति में हुई हो उन्हें पिछली स्मृति अधिक याद रहती है। दुर्घटना, हत्या, आत्म-हत्या, प्रतिशोध, कातरता, अतृप्ति, मोहग्रस्तता का विक्षुब्ध घटनाक्रम प्राणी की चेतना पर गहरा प्रभाव डालते हैं और वे उद्वेग नये जन्म में भी स्मृतिपटल पर उभरते रहते हैं। अधिक प्यार या अधिक द्वेष जिनसे रहा है, वे लोग विशेष रूप से याद रहते हैं।

भय, आशंका, अभिरुचि, बुद्धिमत्ता, कला-कौशल आदि की भी पिछली छाप बनी रहती है। जिस प्रकार की दुर्घटना हुई हो उस स्तर का वातावरण देखते ही अकारण डर लगता है। जैसे किसी की मृत्यु पानी में डूबने से हुई हो तो उसे जलाशयों को देखकर अकारण ही डर लगने लगेगा। जो बिजली कड़कने और गिरने से मरा है, उसे साधारण पटाखों की आवाज भी डराती रहेगी। आकृति की बनावट और शरीर पर जहां-तहां पाये जाने वाले विशेष चिन्ह भी अगले जन्म में उसी प्रकार के पाये जाते हैं। एक स्मृति में पिछले जन्म में पेट का आपरेशन चिन्ह अगले जन्म में भी उसी स्थान पर एक विशेष लकीर के रूप में पाया गया। पूर्वजन्म की स्मृति संजोये रहने वालों में आधे से अधिक ऐसे थे जिनकी मृत्यु पिछले जन्म में बीस वर्ष से कम थी। जैसे-जैसे आयु बढ़ती आती है, वैसे-वैसे भावुक सम्वेदनाएं समाप्त होती जाती हैं और मनुष्य बहुधंधी, कामकाजी तथा दुनियादार बनता जाता है। भावनात्मक कोमलता जितनी कठोर होती जायगी, उतनी ही उसकी सम्वेदनाएं झीनी पड़ेंगी और स्मृतियां धुंधली पड़ जायगी। डा. स्टीवेन्सन की यह टिप्पणी मुख्यतः पश्चिम की पुनर्जन्म स्मृतियों के विश्लेषण पर आधारित है। निर्मल, सरल, सात्विक, आत्माओं को भी ऐसी स्मृतियां रहा करती हैं।

प्रो. मैक्समूलर ने अपने ग्रन्थ ‘सिक्स स्टिम्स आफ इण्डियन फिलॉसफी’ में ऐसे अनेक आधार एवं उद्धरण प्रस्तुत किये हैं जो बताते हैं कि ईसाई धर्म पुनर्जन्म की आस्था से सर्वथा मुक्त नहीं है। प्लेटो और पैथागोरस के दार्शनिक ग्रन्थों में इस मान्यता को स्वीकारा गया है। जौजेक्स ने अपनी पुस्तक में उन यहूदी सेनापतियों का हवाला दिया है जो अपने सैनिकों को मरने के बाद भी फिर पृथ्वी पर जन्म मिलने का आश्वासन देकर उत्साहपूर्वक लड़ने के लिए उभारते थे। ‘विजडम आफ सोलेमन ग्रन्थ’ में महाप्रभु ईसा के वे कथन उद्धृत हैं, जिसमें उनने पुनर्जन्म का प्रतिपादन किया है। उन्होंने अपने शिष्यों से एक दिन कहा था—पिछले जन्म का एलिजा ही अबजान बैपटिस्ट के रूप में जन्मा था। बाइबिल के चैप्टर 3 पैरा 3-7 में ईसा कहते हैं—‘मेरे इस कथन पर आश्चर्य मत करो कि तुम्हें निश्चित रूप से पुनर्जन्म लेना पड़ेगा।’ ईसाई धर्म के प्राचीन आचार्य फादर ऑरिजिन कहते थे—‘‘प्रत्येक मनुष्य को अपने पूर्वजन्मों के कर्मों के अनुसार अगला जन्म धारण करना पड़ता है।’’

दार्शनिक गेटे, फिश, शोलिंग, लेसिंग आदि ने पुनर्जन्म का प्रतिपादन किया है। अंग्रेज दार्शनिक ह्यूम तो दार्शनिक की तात्विक दृष्टि की गहराई इस बात में परखते थे कि वह पुनर्जन्म को मान्यता देता है या नहीं।

सूफी सन्त, मौलाना रूम ने लिखा है, मैं पेड़-पौधे, कीट-पतंग, पशु-पक्षी योनियों में होकर मनुष्य वर्ग में प्रवेश हुआ हूं और अब देव वर्ग में स्थान प्राप्त करने की तैयारी कर रहा हूं।

इन्साइक्लोपीडिया आफ रिलीजन एण्ड एथिक्स के बारहवें खंड में अफ्रीका, आस्ट्रेलिया और अमेरिका के आदिवासियों के सम्बन्ध में यह अभिलेख है कि वे सभी समान रूप से पुनर्जन्म को मानते हैं। मरने से लेकर जन्मने तक की विधि-व्यवस्था में मतभेद होते हुए भी यह कहा जा सकता है कि इन महाद्वीपों के आदिवासी आत्मा की सत्ता को मानते हैं और पुनर्जन्म पर विश्वास करते हैं। यहां विदेशों से संबंधित कुछ पुनर्जन्म प्रतिपादक घटनाएं दी जा रही हैं।

एम्सटरडम (हालैण्ड) के एक स्कूल में वहां के प्रिंसिपल की लड़की मितगोल के साथ हाला नाम की एक ग्रामीण कन्या की बड़ी मित्रता थी। हाला देखने में बड़ी सुन्दर थी, मितगोल विद्वान्। दोनों में समीपी सम्बन्ध था और परस्पर स्नेह भी। इसलिये वे प्रायः एक दूसरे से मिलती और पिकनिक पार्टियां मनाया करतीं।

एक बार की बात है कि दोनों सहेलियां कार से कहीं जा रही थीं। सामने से आ रहे किसी भार-वाहक से बचाव करते समय कार एक विशालकाय वृक्ष के तने से जा टकराई। भीतर बैठी दोनों सहेलियों में से मितगोल को तो भयंकर चोटें आयीं, उसका सम्पूर्ण शरीर क्षत-विक्षत हो गया और कार से निकालते-निकालते उस का प्राणान्त हो गया। हाला के शरीर में यद्यपि बाहर कोई घाव नहीं थे तथापि अन्दर कहीं ऐसी चोट लगी कि उसका भी प्राणांत वहीं हो गया। दोनों शव बाहर निकाल कर रखे गये। तभी एकाएक एक विलक्षण घटना घटित हुई—जैसे किसी ने शक्ति लगाकर हाला के शरीर में प्राण प्रविष्ट करा दिये हों, वह एकाएक उठ बैठी और प्रिंसिपल को पिताजी कह कर लिपटकर रोने लगी। सब लोगों ने उसे धैर्य दिलाया पर सब आश्चर्यचकित थे कि यह किसान की कन्या प्रिंसिपल साहब को अपना पिता कैसे कहती है। उनकी पुत्री मितगोल का शरीर तो अभी भी क्षत-विक्षत अवस्था में पड़ा हुआ था।

उसका नाम—हाला कहकर जब उसे सम्बोधित किया गया तो उसने बताया—पिताजी! मैं हाला नहीं, मैं तो आपकी कन्या मितगोल हूं। मैं अभी तक (शव की ओर इशारा करते हुए) इस शरीर में थी। अभी-अभी किसी अज्ञात शक्ति ने मुझे हाला के शरीर में डाल दिया है।

अनदेखी, अनहोनी इस घटना का जितना विस्तार होता गया लोगों का कौतूहल उतना ही बढ़ता गया। लोग तरह-तरह के प्रश्न पूछते और कन्या उनका ठीक वही उत्तर देती जिनकी मितगोल के ही जानकारी हो सकती थी। मितगोल की कई सहेलियां, सम्बन्धी आये और उनसे बातचीत की—उन सब वार्ताओं में हाला के शरीर में प्रविष्ट चेतना ने ऐसी-ऐसी एकान्त की और गुप्त बातें तक बताईं जो केवल मितगोल ही जानती थी।

एक अन्तिम रूप से यह निश्चित करने के लिये कि हाला के शरीर में विद्यमान आत्म-चेतना क्या वस्तुतः मितगोल ही है—वहां के वैज्ञानिकों, मनोवैज्ञानिकों, अध्यापकों और प्रिंसिपल सहित सैकड़ों छात्रों के बीच खड़ा कर उस कन्या से ‘स्पिनोजा के दर्शन शास्त्र’ पर व्याख्यान देने को कहा गया। उल्लेखनीय है कि वह मितगोल ही थी जिसे स्पिनोजा के दर्शन जैसे गूढ़ विषय पर अधिकार प्राप्त था। गांव की सरल कन्या बेचारी हाला स्पिनोजा तो क्या अच्छी कविता भी बोलना नहीं जानती थी। किन्तु जब यह बालिका स्टेज पर खड़ी हुई तो उसने ‘स्पिनोजा के तत्वज्ञान’ पर भाषण देकर सबको आश्चर्यचकित कर दिया। प्रिंसिपल साहब ने स्वीकार किया कि उसके शब्द बोलने का ढंग हाव-भाव ज्यों-के-त्यों मितगोल के जैसे ही हैं, इसलिए वह मितगोल ही है, भले ही इस घटना का अद्भुत रहस्य हम लोगों की समझ में न आता हो।

पुनर्जन्म, मृत्यु और उसके कुछ ही समय बाद जीवित होकर कई-कई वर्ष तक जीवित रहने की सैकड़ों घटनायें प्रकाश में आती रहती हैं और उनसे यह सोचने को विवश होना पड़ता है कि आत्म-चेतना पदार्थ से कोई भिन्न अस्तित्व है, फिर भी मनुष्य सांसारिक मोह-वासनाओं और तरह-तरह की महत्वाकांक्षाओं में इतना लिप्त हो चुका है कि उसे इस ओर ध्यान देने और एक अति महत्वपूर्ण तथ्य को समझ कर आत्म-कल्याण का मार्ग प्रशस्त करने की भी प्रेरणा नहीं मिलती। महाराज युधिष्ठिर के शब्दों में इसे संसार का सबसे बड़ा आश्चर्य ही कहना चाहिए।

इन्डोनेशिया के प्रायः सभी समाचार पत्रों में उस देश की एक मुस्लिम महिला तजुत जहाराफोना का विवरण विस्तार पूर्वक छपा था जिसके पेट में 18 महीने का बालक है और वह अंग्रेजी, फ्रेंच, जापानी तथा इंडोनेशियाई भाषाएं बोलता है। उसकी आवाज बाहर सुनी जा सकती है। उसकी डाक्टरी जांच बारीकी से की गई। यहां तक कि इस देश के राष्ट्रपति सुहार्तों स्वयं उस महिला से मिलने और चमत्कारी बालक के सम्बन्ध में बताई जाने वाली बातों की यथार्थता जांचने पहुंचे थे।

लेवनान और तुर्की के मुसलिम परिवारों में तो पुनर्जन्म की स्मृतियां ऐसी सामने आई जिनकी प्रामाणिकता परामनोविज्ञान के शोधकर्त्ताओं ने स्वयं जाकर की और जो बताया गया था उसे सही पाया। लेवनान देश का एक गांव कोरनाइल। वहां के मुसलमान परिवार में जन्मा एक बालक, नाम रखा गया अहमद। बच्चा जब दो वर्ष का था तभी से अपने पूर्व जन्म की घटनाओं और सम्बन्धियों के बारे में बुदबुदाया करता था। तब उसकी बातों पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। कुछ बड़ा हुआ तो अपना निवास खरेबी और नाम बोहमजी बताने लगा। तब भी किसी ने उसकी बात नहीं सुनी। एक दिन सड़क पर उसने खरेबी के किसी आदमी को निकलते देखा उसने उसे पहचानकर पकड़ लिया विचित्र अचम्भे की बात थी। पता लगने पर पुनर्जन्म के शोधकर्त्ता वहां पहुंचे और बड़ी कठिनाई से बालक को उसके बताये गांव तक ले जाने की स्वीकृति प्राप्त कर सके। गांव 40 कि.मी. दूर था। रास्ता बड़ा कठिन और सर्वथा अपरिचित। फिर भी वे लोग वहां पहुंचे। लड़के के बताये बयान उस 25 वर्षीय युवक इब्राहीम मोहमजी के साथ बिलकुल मेल खाते गये जिसकी मृत्यु रीढ़ की हड्डी के क्षय रोग से हुई थी। तब उसके पैर अशक्त हो गये। पर इस जन्म में जब वह ठीक तरह चलने लगा तो बचपन से ही इस बात को बड़े उत्साह और हर्ष के साथ हर किसी से कहा कि वह अब भली प्रकार चल फिर सकता है।

खरेबी में जाकर उसने कुटुम्बी, सम्बन्धी और मित्र, परिचितों को पहचाना, उसके नाम बताये और ऐसी घटनाएं सुनाई जो सम्बन्धित लोगों को ही मालूम थी और सही थीं। उसने अपनी प्रेयसी का नाम बताया। मित्र के ट्रक दुर्घटना में मरने की बात कही। मरे हुए भाई भाउद का चित्र पहचाना और पर्दा खोलकर बाहर आई लड़की के पूछने पर उसने कहा, तुम तो मेरी बहिन ‘हुडा’ हो।

तुर्की के अदाना क्षेत्र में जन्मा इस्माइल नामक बालक जब 1।। वर्ष का था तभी वह अपने पूर्व जन्म की बातें सुनाते हुए कहता—मेरा नाम अवीत सुजुल्मस है। अपने सिर पर बने एक निशान को दिखाकर बताया करता कि इस जगह चोट मार कर मेरी हत्या की गई थी। जब बालक पंच वर्ष का हुआ और अपने पुराने गांव जाने का अधिक आग्रह करने लगा तो घर वाले इस शर्त पर रजामंद हुए कि वह आगे आगे चले और उस गांव का रास्ता बिना किसी से पूछे स्वयं बताये। लड़का खुशी-खुशी चला गया और सबसे पहले अपनी कब्र पर पहुंचा। पीछे उसने अपनी पत्नी हातिश को पहचाना और प्यार किया। इसके बाद उसने एक आइसक्रीम बेचने वाले मुहम्मद को पहचाना और कहा तुम पहले तरबूज बेचते थे और मेरे इतने पैसे तुम पर उधार हैं। मुहम्मद ने वह बात मंजूर की और बदले में उसे बर्फ खिलाई।

पत्र प्रतिनिधि बच्चे को अदना नगर ले गये। वहां वह अपनी पूर्व जन्म की बेटी गुलशरा को देखते हुए पहचान गया और मेरी बेटी-प्यारी बेटी गुलशरा कहकर आंसू बहाने लगा। उसने अपने हत्या के स्थान अस्तबल को दिखाया और बताया कि रमजान ने मुझ पर कुल्हाड़ी से हमला किया और मार डाला। इसके बाद वह अपनी कब्र पर पत्रकारों को ले गया जहां उसे दफनाया गया था। पुलिस ने भी इस कत्ल की ठीक वैसी ही जांच की थी जैसी कि बच्चे ने बताई। हत्यारे को उससे पहले ही फांसी लग चुकी थी। बालक इस्माइल का चचा उससे एक दिन क्रूर व्यवहार करने लगा तो उसने चिल्ला कर कहा—तुम भूल गये, मेरे ही बाग में काम करते थे और मैंने ही तुम्हें मुद्दतों रोटी खिलाई थी। सचमुच आबिद के इस जन्म के चचा पर भारी अहसान थे।

लेबनान के कारनाइल नगर से 67 किलो मीटर दूर खरेबी गांव के एक अहमद नामक लड़के ने कुछ बड़ा होते ही अपने पूर्व जन्म के अनेक विवरण बताये जिसमें ट्रक दुर्घटना, पैरों का खराब होना, प्रेमिका से विफलता, भाई का चित्र, बहिन का नाम आदि के वे सन्दर्भ प्रकाश में आये जिनसे बालक का पूर्व परिचित होना सम्भव न था। बालक ड्रज वश का—इस्लाम धर्मावलम्बी है। आमतौर से उस वातावरण में पुनर्जन्म की मान्यता नहीं है तो भी इस घटना ने उन्हें पुनर्विचार के लिए विवश कर दिया।

इंग्लैंड की एक विचित्र पुनर्जन्म घटना कुछ समय पूर्व प्रकाश में आई थी। नार्थम्बरलेण्ड के एक सज्जन पोलक की लड़कियां सड़क पर किसी मोटर की चपेट में आकर मर गई थीं। बड़ी 11 वर्ष की थी—जोआना। छोटी छह वर्ष की—जैकलीन।

दुर्घटना के कुछ समय बाद श्रीमती पालक गर्भवती हुई तो उन्हें न जाने क्यों यही लगता रहा कि उनके पेट में दो जुड़वा लड़कियां हैं। डाक्टरी जांच कराई तो वैसा कुछ प्रमाण न मिला। पर पीछे समय पर दो जुड़वा लड़कियां ही जन्मी। एक का नाम रखा गिलियन, दूसरी का जेनिफर। इन दोनों के शरीरों पर वे निशान पाये गये जो उनके पूर्वजन्म में थे। इतना ही नहीं, उनकी आदतें भी वैसी ही थीं, जैसी मृत लड़कियों की। इन लड़कियों को मरी हुई बच्चियों के बारे में कुछ बताया नहीं गया था, पर वे बड़े होने पर आपस में पूर्वजन्म की घटनाओं की चर्चा करती हुई पाई गईं। समयानुसार उनने पूर्वजन्म के अनेकों संस्मरण बताकर तथा अपने उपयोग में आने वाली वस्तुओं की जानकारी देकर यह सिद्ध किया कि उन दोनों ने पुनर्जन्म लिया है।

पुनर्जन्म होने और पूर्वजन्म की स्मृति बनी रहने वाली घटनाओं की श्रृंखला में एक कड़ी माइकेल शेल्डेन की इटली-यात्रा की है। इटली में यों प्रत्यक्षतः उसे कुछ आकर्षण नहीं था और न कोई ऐसा कारण था—जिसकी वजह से इस यात्रा के बिना उसे चैन ही न पड़े। कोई अज्ञात प्रेरणा उसे इसके लिए एक प्रकार से विवश ही कर रही थी। माइकेल ने यात्रा के कुछ ही दिन पूर्व एक स्वप्न देखा कि वह इटली के किसी पुराने नगर में पहुंचा है और किसी जानी-पहचानी गली में घुसकर एक पुराने मकान में जा पहुंचा है। जीने में चढ़ते हुए वह चिर-परिचित दुमंजिले कमरे में सहज स्वभाव घुस गया और देखा—एक लड़की घायल पड़ी है, उसके गले पर छुरे के गहरे घाव हैं और रक्त बह रहा है। अनायास ही उसके मुंह से निकला—मारिया! मारिया! घबराना मत, मैं आ गया।’ सपना टूटा। शेल्डन इस विचित्र स्वप्न का कुछ मतलब न समझ सका और आतंकित बना रहा। फिर भी यात्रा तो उसने की ही।

जब वह जिनोआ की सड़कों पर ऐसे ही चक्कर लगा रहा था तो उसे वही स्वप्न वाली गली दिखाई पड़ी। अनायास ही पैर उधर मुड़े और लगा कि वह किसी पूर्व परिचित घर की ओर चला जा रहा था। स्वप्न में देखी कोठरी यथावत थी, वह सहसा चिल्लाया—मारिया! मारिया!! तुम कहां हो?

जोर की आवाज सुनकर पड़ोस के घर में से एक बुढ़िया निकली, उसने कहा—मारिया तो कभी की मर चुकी। अब वहां कहां है? पर तुम कौन हो? बुढ़िया ने शेल्डन को घूर-घूर कर देखा और पहचानने के बारे में आश्वस्त होकर बोली—पर लुइगी ब्रोन्दोनो! तुम तो इतने अर्से बाद लौटे—अब तक कहां रह रहे थे?

बुढ़िया हवा में गायब हो गई तो शेल्डन और भी अधिक अकचकाया। उसे ऐसा लगा—मानो किसी जादू की नगरी में घूम रहा है। अपरिचित जगह में ऐसे परिचय—मानो सब कुछ उसका जाना-पहचाना ही हो। बुढ़िया भी उसकी जानी-पहचानी हो—घर भी—गली भी ऐसी है—मानो वह वहां मुद्दतों रहा हो। मारिया मानो उसकी कोई अत्यन्त घनिष्ठ परिचित हो।

हतप्रभ शैल्डन को एक बात सूझी वह सीधा पुलिस आफिस गया और आग्रह पूर्वक यह पता लगाने लगा कि क्या कभी कोई मारिया नामक लड़की वहां रहती थी—क्या वह कत्ल में मरी? तलाश कौतूहल की पूर्ति के लिए की गई थी, पर आश्चर्य यह कि 122 वर्ष पुरानी एक फाइल ने उस घटना की पुष्टि कर दी।

पुलिस-रिकार्ड के कागजों ने बताया कि उसी मकान में मारिया बुइसाकारानेबो नामक एक 19 वर्षीय लड़की रहती थी। उसकी घनिष्ठता एक 25 वर्षीय युवक लुइगी व्रोन्दोनो नामक युवक से थी। दोनों में अनबन हो गई तो युवक ने छुरे से उस लड़की पर हमला कर दिया और कत्ल करने के बाद इटली छोड़कर किसी अन्य देश को भाग गया। तब से अब तक उसका कोई पता नहीं चला।

शेल्डन को यह विश्वास पूरी तरह जम गया कि वही पिछले जन्म में मोरिया का प्रेमी और हत्यारा रहा है। यह तथ्य—उसे न तो स्वप्न प्रतीत होता था, न भ्रम वरन् जब भी चर्चा होती, उसके कहने का ढंग ऐसा ही होता—मानो किसी यथार्थ तथ्य का वर्णन कर रहा है।

इस घटना को परा मनोवैज्ञानिक-वेत्ताओं ने अपनी शोध का विषय बनाया। शैल्डन से लम्बी पूछ-ताछ की—पुलिस-कागजात देखे और इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि जो बताया गया है—उसमें कोई बहकावा या अतिशयोक्ति नहीं है। इस प्रकार की अन्य घटनाओं के विवरणों पर गम्भीर विचार करने के बाद शोध-कर्ता इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि अतीन्द्रिय चेतना की प्रस्फुरणा से ऐसी घटनाओं की स्मृति भी सामने आ सकती है, जिनका न तो वर्तमानकाल से कोई सीधा सम्बन्ध है और न अनुभव करने वाले व्यक्ति को इस तरह की कोई जानकारी या जिज्ञासा। ये स्मृतियां पूर्वजन्म की ही हो सकती हैं।

कोपेन हेगेन (डेनमार्क) में एक छह सात वर्षीय बालिका थी उसका नाम था लूनी मार्कोनी। जब वह तीन वर्ष की थी, तभी से वह अपने माता-पिता से कहती रहती कि वह फिलीपाइन्स की है और वहां जाना चाहती है। मेरे पिता एक रेस्टोरेन्ट के स्वामी हैं, वह अपना नाम मारिया एस्पना बताती। यह बच्ची अपने पूर्वजन्म के संस्मरण इतनी ताजगी से सुनाती, जैसे वह अभी कल-परसों की ही बात हो। उसने यह भी बताया कि उसकी मृत्यु 12 वर्ष की आयु में बुखार आने के कारण हुई थी। लड़की के दावों की जांच करने के लिये परामनोविज्ञान के शोधकर्त्ता श्री प्रो. हेमेन्द्रनाथ बनर्जी फिलीपाइन्स गये। वहां उन्होंने सारी बातें सत्य पाईं। यह 68-69 के लगभग की बात है।

ब्रिटेन के सुप्रसिद्ध साहित्यकार डिक्सन स्मिथ बहुत समय तक मरणोत्तर जीवन के सम्बन्ध में अविश्वासी रहे। पीछे उन्होंने प्रामाणिक विवरणों के आधार पर अपनी राय बदली और वे परलोक एवं पुनर्जन्म के समर्थक बन गये। उन्होंने अपनी पुस्तक ‘न्यू लाइट आन सरवाइवल’ में उन तर्कों और प्रमाणों को प्रस्तुत किया है जिनके कारण उन्हें अपनी सम्मति बदलने के लिए विवश होना पड़ा।

पेरिस के अन्तर्राष्ट्रीय आध्यात्मिक सम्मेलन में सर आर्थर कानन डायल ने परलोक विज्ञान को प्रामाणिक तथ्यों से परिपूर्ण बताते हुए कहा था उस मान्यता के आधार पर मनुष्य जाति को अधिक नैतिक एवं सामाजिक बनाया जा सकना सम्भव होगा और मरण वियोग से उत्पन्न शोक-सन्ताप का एक आशा भरे आश्वासन के आधार पर शमन किया जा सकेगा।

निस्सन्देह मरणोत्तर जीवन की मान्यता के दूरगामी सत्परिणाम हैं। उस मान्यता के आधार पर हमें मृत्यु की विभीषिका को सहज सरल बनाने में भारी सहायता मिलती है। नैतिक मर्यादा की स्थिरता के लिए तो उसे दर्शन शास्त्र का बहुमूल्य सिद्धान्त कह सकते हैं।
First 3 5 Last


Other Version of this book



पुनर्जन्म : एक ध्रुव सत्य
Type: TEXT
Language: HINDI
...

पुनर्जन्म : एक ध्रुव सत्य
Type: SCAN
Language: EN
...


Releted Books



गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Articles of Books

  • मरणोत्तर जीवन और उसकी सच्चाई
  • जन्म मृत्यु-मात्र स्थूल जगत की घटनाएं
  • जीवन सत्ता का चैतन्य स्वरूप
  • विदेशों में पुनर्जन्म की घटनाएं एवं मान्यताएं
  • जन्म मृत्यु का अविराम क्रम
  • जन्मान्तर प्रगति या पतन के आधार—आत्म-सत्ता के संकल्प एवं कर्म
  • पुनर्जन्म—पुनरावर्तन नहीं यात्रा का अगला चरण
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj