• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • अध्यात्म तत्त्वज्ञान का मर्म जीवन साधना
    • त्रिविध प्रयोगों का संगम-समागम
    • त्रिविध भवबंधन एवं उनसे मुक्ति
    • सार्थक, सुलभ एवं समग्र साधना
    • व्यावहारिक साधना के चार पक्ष
    • जीवन साधना के सुनिश्चित सूत्र
    • साप्ताहिक और अर्द्ध वार्षिक साधनाएँ
    • आराधना और ज्ञानयज्ञ
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • अध्यात्म तत्त्वज्ञान का मर्म जीवन साधना
    • त्रिविध प्रयोगों का संगम-समागम
    • त्रिविध भवबंधन एवं उनसे मुक्ति
    • सार्थक, सुलभ एवं समग्र साधना
    • व्यावहारिक साधना के चार पक्ष
    • जीवन साधना के सुनिश्चित सूत्र
    • साप्ताहिक और अर्द्ध वार्षिक साधनाएँ
    • आराधना और ज्ञानयज्ञ
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Books - जीवन देवता की साधना-आराधना

Media: TEXT
Language: EN
SCAN SCAN TEXT SCAN


आराधना और ज्ञानयज्ञ

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 7 9 Last
शारीरिक स्वस्थता के तीन चिन्ह हैं -    (१) खुलकर भूख,     (२) गहरी नींद, (३) काम करने के लिये स्फूर्ति। आत्मिक समर्थता के भी तीन चिह्न हैं -(१) चिन्तन में उत्कृष्टता का समावेश, (२) चरित्र में निष्ठा और, (३) व्यवहार में पुण्य परमार्थ के पुरुषार्थ की प्रचुरता। इन्हीं को उपासना, साधना और आराधना कहते हैं। आत्मिक प्रगति का लक्षण है, मनुष्य में देवत्व का अभिवर्द्धन। देवता देने वाले को कहते हैं। दूसरे शब्दों में इसे धर्मधारणा या सेवा साधना भी कह सकते हैं। व्यक्तित्व में शालीनता उभरेगी तो निश्चित रूप से सेवा की ललक उठेगी। सेवा साधना से गुण, कर्म, स्वभाव में सदाशयता भरती है। इसे यों भी कह सकते हैं कि जब शालीनता उभरेगी तो परमार्थरत हुए बिना रहा नहीं जा सकेगा। पृथ्वी पर मनुष्य शरीर में निवास करने वाले देवताओं को ‘भूसुर’ कहते हैं। यह साधु और ब्राह्मण वर्ग के लिये प्रयुक्त होता है। ब्राह्मण एक सीमित क्षेत्र में परमार्थरत रहते हैं और साधु परिव्राजक के रूप में सत्प्रवृत्ति संवर्द्धन का उद्देश्य लेकर जहाँ आवश्यकता है, वहाँ पहुँचते रहते हैं। उनकी गतिविधियाँ पवन की तरह प्राण प्रवाह बिखेरती हैं। बादलों की तरह बरसकर हरीतिमा उत्पन्न करती हैं। आत्मिक प्रगति से कोई लाभान्वित हुआ या नहीं, इसकी पहचान इन्हीं दो कसौटियों पर होती है कि चिन्तन और चरित्र में मानवी गरिमा के अनुरूप उत्कृष्टता दृष्टिगोचर होती है या नहीं। साथ ही परमार्थपरायणता की ललक कार्यान्वित होती है या नहीं।

    मोटे तौर पर दान पुण्य को परमार्थ कहते हैं। पर इनमें विचारशीलता का गहरा पुट आवश्यक है। दुर्घटनाग्रस्त, आकस्मिक संकटों में फँसे हुओं को तात्कालिक सहायता आवश्यक होती है। इसी प्रकार अपंग, असमर्थों को भी निर्वाह मिलना चाहिए। इसके अतिरिक्त अभावग्रस्तों, पिछड़े हुओं को ऐसी परोक्ष सहायता की जानी चाहिये जिसके सहारे वे स्वावलम्बी बन सकें। उन्हें श्रम दिया जाये, साथ ही श्रम का इतना मूल्य भी, जिससे मानवोचित निर्वाह सम्भव हो सके। गाँधीजी ने खादी को इसी दृष्टि से महत्त्व दिया था कि उसे अपनाने पर बेकारों को काम मिलता है। अन्य कुटीर उद्योग भी इसी श्रेणी में आते हैं। बेरोजगारी दूर करने के साधन खड़े करें प्रकारान्तर से अभावग्रस्तों की सहायता की है। मुफ्तखोरी का बढ़ावा देना दान नहीं है। इससे निठल्लेपन की आदत पड़ती है। प्रमाद और व्यसन पनपते हैं। लेने वाले को हीनता की अनुभूति होती है और देने वाले का अहंकार बढ़ता है। यह दोनों ही प्रवृत्तियाँ दोनों ही पक्षों के लिये अहितकर हैं इसलिये औचित्य और सही परिणाम को दृष्टि में रखते हुए दान किया जाना चाहिये। अन्यथा दान के नाम पर धन का दुरुपयोग ही होता है और उससे स्वावलम्बन का उत्साह घटता है।

    दोनों में सर्वोपरि ज्ञान दान को माना जाता है। इसे ब्रह्मयज्ञ भी कहते हैं। सद्भावनायें और सत्प्रवृत्तियाँ जिन प्रयत्नों से बढ़ सकें उसी को सच्चा परमार्थ कहना चाहिये। सत् चिन्तन के अभाव में ही लोग अनेकों दुर्गुण अपनाते और पतन- पराभव के गर्त में गिरते हैं। यदि सही चिन्तन कर सकने का पथ प्रशस्त हो सके तो समझना चाहिये कि सर्व- समर्थ मनुष्य को अपनी समस्यायें आप हल करने का मार्ग मिल गया। अपंगों, असमर्थों या दुर्घटनाग्रस्तों को छोड़कर कोई ऐसा नहीं है जो सही चिन्तन करने का मार्ग मिल जाने पर ऊँचा उठ न सकें, आगे न बढ़ सकें, अपनी समस्याओं को आप हल न कर सकें। इसलिये आत्मिक प्रगति के लिये प्रधानता यही नीति अपनानी चाहिये कि लोकमानस के परिष्कार के लिये, सत्प्रवृत्ति संवर्द्धन के लिये अपनी योग्यता और परिस्थिति के अनुसार भरसक प्रयत्न किया जाये।

    समय की अपनी समस्यायें हुआ करती हैं और परिस्थितियों के अनुरूप उनके समाधान भी खोजने पड़ते हैं। प्राचीन कथा, पुराणों और धर्मशास्त्रों से युगधर्म का निरूपण नहीं हो सकता उसके लिये आज के प्रवाह प्रचलन और वातावरण को ध्यान में रखना होगा। इस हेतु युग मनीषियों को ही सदा से मान्यता मिलती रही है। इन दिनों भी इसी प्रक्रिया को अपनाना होगा। इसके लिये युग चेतना का आश्रय लेना होगा। युग मनीषियों के प्रतिपादनों पर ध्यान देना होगा। सद्ज्ञान संवर्द्धन का सही तरीका यही हो सकता है। साक्षरता की तरह ऐसे सद्ज्ञान संवर्द्धन की भी आवश्यकता है जो व्यक्ति और समाज के सम्मुख उपस्थित समस्याओं के सन्दर्भ में समाधान- कारक सिद्ध हो सकें। आत्मोत्कर्ष के लिये आराधना का सेवा साधना का उपाय इसी आधार पर खोजना होगा। लोकमानस का परिष्कार और सत्प्रवृत्ति संवर्द्धन को सर्वोच्च स्तर का आधार मानते हुए बौद्धिक, नैतिक और सामाजिक क्षेत्रों में युगधर्म की प्रतिष्ठापना की जानी चाहिये।

कहा जाता है कि विचारक्रान्ति की, ज्ञान की साधना में सभी दूरदर्शी विवेकवानों को लगना चाहिये। इसी निमित्त, लेखनी, वाणी तथा दृश्य, श्रव्य आधारों का ऐसा प्रयोग करना चाहिये जिससे सर्वसाधारण को युगधर्म पहचानने और कार्यान्वित करने की प्रेरणा मिल सके। सर्वजनीन और सार्वभौम ज्ञानयज्ञ ही आज का सर्वश्रेष्ठ परमार्थ है। इसकी उपेक्षा करके, सस्ती वाहवाही पाने के लिये कुछ भी देते, बखेरते और कहते, लिखते रहने से कुछ वास्तविक प्रयोजन सिद्ध होने वाला नहीं है।

    इस चेतना को प्रखर प्रज्वलित करने के लिये युग साहित्य की प्राथमिक आवश्यकता है। उसी के आधार पर पढ़ने- पढ़ाने सुनने- सुनाने की बात बनती है। शिक्षितों को पढ़ाया और अशिक्षितों को सुनाया जाये, तो लोक प्रवाह को सही दिशा दी जा सकती है। इसके लिये प्रज्ञायुग के साधकों को झोला पुस्तकालय चलाने के लिये अपना समय और पैसा लगाना चाहिये। सत्साहित्य खरीदना सभी के लिये कठिन है, विशेषतया ऐसे समय में जबकि लोगों को भौतिक स्वार्थ साधनों के अतिरिक्त और कुछ सूझता नहीं। आदर्शों की बात सुनने- पढ़ने की अभिरुचि है ही नहीं। ऐसे समय में युग साहित्य पढ़ाने, वापस लेने के लिये शिक्षितों के घर जाया जाये, उन्हें पढ़ने योग्य सामग्री दी जाती और वापसी ली जाती रहे, तो इतने से सामान्य कार्य से ज्ञानयज्ञ का महत्त्वपूर्ण प्रयोजन हर क्षेत्र में पूरा होने लगेगा। अशिक्षितों को सुनाने की बात भी इसी के साथ जोड़कर रखनी चाहिये।

    विचारगोष्ठियों, सभा सम्मेलनों, कथा प्रवचनों का अपना महत्त्व है। इसे सत्संग कहा जा सकता है। लेखनी और वाणी के माध्यम से यह दोनों कार्य किसी न किसी रूप में हर कहीं चलते रह सकते हैं। अपना उदाहरण प्रस्तुत करना सबसे अधिक प्रभावोत्पादक होता है। लोग समझने लगे हैं कि आदर्शों की बात सिर्फ कहने- सुनने के लिये होती है। उन्हें व्यावहारिक जीवन में नहीं उतारा जा सकता। इस भ्रान्ति का निराकरण इसी प्रकार हो सकता है कि ज्ञानयज्ञ के अध्वर्यु विचारक्रान्ति के प्रस्तोता जो कहते हैं- दूसरों से जो कराने की अपेक्षा है, उसे स्वयं अपने व्यवहार में उतारकर दिखायें। अपने को समझाना, ढालना दूसरों को सुधारने की अपेक्षा अधिक सरल है। उपदेष्टाओं को आत्मिक प्रगति के आराधनारत होने वालों की, अपनी कथनी और करनी एक करके दिखानी चाहिये।

    आदर्शवादी लोकशिक्षण के लिये इस प्रकार की आवश्यकता अनिवार्य रूप से रहती है। फिर भी यह आवश्यक नहीं कि पूर्णता प्राप्त करने तक हाथ पर हाथ रखकर बैठे रहा जाये। छठी कक्षा का विद्यार्थी पाँचवी कक्षा वाले की तो कुछ न कुछ सहायता कर ही सकता है। अपने से कम योग्यता एवं स्थिति वालों को मार्गदर्शन करने में कोई भी समर्थ एवं सफल हो सकता है।

    इन दिनों उपरोक्त प्रयोजन यंत्रों की सहायता से भी बहुत कुछ हो सकता है। प्राचीन काल में पुस्तकें हाथ से लिखी जाती थीं पर अब तो वे प्रेस से मशीनों से छपती हैं। इसी प्रकार दृश्य और श्रव्य के माध्यम भी अनेकों सुलभ हैं। उसका प्रयोग ज्ञान का विस्तार करने के लिये किया जा सकता है। टेप रिकार्डर में लाउडस्पीकर लगाकर संगीत और प्रवचन के रूप में होने वाली गोष्ठियों की आवश्यकता पूरी की जा सकती है। स्लाइड प्रोजेक्टर (प्रकाश चित्र यंत्र) कम लागत का और लोकरंजन के साथ लोकमंगल का प्रयोजन पूरा करने वाला उपकरण है। वीडियो कैसेट इस निमित्त बनायें और जहाँ टी०वी० है, वहाँ दिखाये जा सकते हैं। टेप प्लेयर पर टेप सुनाये जा सकते हैं।

    संगीत टोलियाँ जहाँ भी थोड़े व्यक्ति एकत्रित हों, वहीं अपना प्रचार कार्य आरम्भ कर सकती हैं। लाउडस्पीकरों  पर रिकार्ड या टेप बजाये जा सकते हैं। इस सन्दर्भ में दीपयज्ञों की आयोजन प्रक्रिया अतीव सस्ती, सुगम और सफल सिद्ध होती है। इस माध्यम से कर्मकाण्ड के माध्यम से आत्मनिर्माण, मध्याह्नकाल के महिला सम्मेलन में परिवार निर्माण और रात्रि के कार्यक्रम में समाज निर्माण की सुधार प्रक्रिया और संस्थापन विद्या का समावेश किया जा सकता है।

    परिवार में रात्रि के समय कथा- कहानियाँ कहने के अपने लाभ हैं। इस प्रयोजन के लिये प्रज्ञा पुराण जैसे ग्रन्थ अभीष्ट आवश्यकता- पूर्ति कर सकते हैं। परस्पर विचार- विनिमय वाद- विवाद प्रतियोगिता, कविता सम्मेलन भी कम उपयोगी नहीं हैं। हर व्यक्ति स्वयं कविता तो नहीं कर या कह सकता है, पर दूसरों की बनाई हुई प्रेरणाप्रद कविताएँ सुनाने की व्यवस्था तो कहीं भी हो सकती है। चित्र प्रदर्शनियाँ भी जहाँ सम्भव हो, इस प्रयोजन की पूर्ति में सहायक हो सकती हैं।

खोजने पर ऐसे अनेकों सूत्र हाथ लग सकते हैं जो ज्ञानयज्ञ की, विचारक्रान्ति की, सत्प्रवृत्ति संवर्द्धन की, दुष्प्रवृत्ति उन्मूलन के लिये कौन, क्या किस प्रकार कुछ कर सकता है? इसकी खोज- बीन करते रहने पर हर जगह हर किसी को कोई न कोई मार्ग मिल सकता है। ढूँढ़ने वाले अदृश्य परमात्मा तक को प्राप्त कर लेते हैं, फिर ज्ञानयज्ञ की प्रक्रिया को अग्रगामी बनाने के लिये मार्ग न मिले, ऐसी कोई बात नहीं है। आवश्यकता है- उसका महत्त्व समझने की, उस पर ध्यान देने की।

    उपासना से भावना का, जीवन साधना से व्यक्तित्व का और आराधना से क्रियाशीलता का परिष्कार और विकास होता है। आराधना उदार सेवा साधना से ही सधती है। सेवा कार्यों में सामान्यतः वे सेवायें हैं जिनसे लोगों को सुविधाएँ मिलती हैं। श्रेष्ठतर सेवा वह है जिससे किसी की पीड़ा का, अभावों का निवारण होता है। श्रेष्ठतम सेवा वह है जिससे व्यक्ति पतन से हटकर उन्नति की ओर मोड़ा जा सके। सुविधा बढ़ाने और पीड़ा दूर करने की सेवा तो कोई आत्मचेतना सम्पन्न ही कर सकता है। यह सेवा भौतिक सम्पदा से नहीं, दैवी सम्पदा से की जाती है। दैवी सम्पदा देने से घटती नहीं बढ़ती है। इसलिये भी वह सर्वसुलभ और श्रेष्ठ मानी जाती है।

    सन्त और ऋषि स्तर के व्यक्ति पतन निवारण की सेवा को प्रधानता देते रहे हैं। इसीलिये वे संसार में पूज्य बने। जिनकी सेवा की गई वे भी महान बने। सेवा की यह सर्वश्रेष्ठ धारा ज्ञानयज्ञ के माध्यम से कोई भी अपना सकता है। स्वयं लाभ पा सकता है और अगणित व्यक्तियों को लाभ पहुँचाकर पुण्य का भागीदार बन सकता है।
First 7 9 Last


Other Version of this book



जीवन देवता की साधना आराधना
Type: SCAN
Language: EN
...

જીવન દેવતાની સધના-આરાધના
Type: SCAN
Language: EN
...

जीवन देवता की साधना-आराधना
Type: TEXT
Language: EN
...

The Spiritual Training and Adoration of Life Deity
Type: SCAN
Language: EN
...

ಜೀವನ ದೇವತೆಯ ಸಾಧನೆ ಆರಾಧನೆ
Type: SCAN
Language: KANNADA
...

జీవన దేవత సాధన, ఆరాధన
Type: SCAN
Language: TELUGU
...


Releted Books



गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Articles of Books

  • अध्यात्म तत्त्वज्ञान का मर्म जीवन साधना
  • त्रिविध प्रयोगों का संगम-समागम
  • त्रिविध भवबंधन एवं उनसे मुक्ति
  • सार्थक, सुलभ एवं समग्र साधना
  • व्यावहारिक साधना के चार पक्ष
  • जीवन साधना के सुनिश्चित सूत्र
  • साप्ताहिक और अर्द्ध वार्षिक साधनाएँ
  • आराधना और ज्ञानयज्ञ
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj