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Books - उतावली न करें उद्विग्न न हों

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Language: HINDI
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आत्म-ग्लानि में मत डूबे रहिये—

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आत्म-ग्लानि मनुष्य के मन की एक भावना ग्रन्थि है जो जाने अनजाने भूलवश या असावधानी में किये गये पापों पर अत्यधिक पश्चात्ताप करने से पैदा हो जाती है। वैसे किसी भी दुष्कृत्य, पाप-कर्म पर मनुष्य को पश्चाताप अवश्य होता है और उस सीमा तक यह आवश्यक भी है जब मनुष्य भविष्य में वैसा न करने का संकल्प करता है, पाप कर्मों से बचने के लिए भूल सुधार का दृढ़ प्रयत्न होता है। ऐसी स्थिति में पश्चात्ताप मनुष्य का पाप से उद्धार भी कर देता है। लेकिन जब यह सीमा से अधिक बढ़ जाता है तब—आत्म-ग्लानि का रूप धारण कर लेता है। आत्म-ग्लानि की स्थिति में मनुष्य सुधार की ओर अग्रसर नहीं होता वरन् अपने आपको पापी, दुराचारी मान बैठता है। इस हीन भावना से उसकी कार्यक्षमता, सृजन-शक्ति व्यर्थ ही नष्ट होने लगती है। हीन विचारों में डूबे रहने से। कई शारीरिक और मानसिक व्याधियां उत्पन्न हो जाती हैं।
आत्म-ग्लानि पैदा हो जाने पर मनुष्य अपने आपको पापी, दुष्ट समझ कर सदा कांपता रहता है। वह सामाजिक जीवन में उतर कर कोई काम करने में एक प्रकार का भय और घबराहट सी महसूस करता है। जो आत्म-ग्लानि के आधिक्य से दबा हुआ है चाहे वह कितना ही योग्य, अनुभवी, जानकार क्यों न हो, वह प्रगति के पथ पर आगे न बढ़ सकेगा क्योंकि जो आगे कदम रखने के पूर्व ही अपने आपको पापी मान बैठा है, दूसरों के आगे चार आंखें करने की जिसमें हिम्मत नहीं है, संकोच, शंकायें, भय जिसे कुछ करने नहीं देते ऐसा व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में सफल हो सके यह सम्भव नहीं। अत्यधिक पश्चात्ताप अथवा आत्म-ग्लानि के कारण हम कई बार बिना अपराध के भी अपने आपको अपराधी मान बैठते हैं। कभी बचपन में या किशोरावस्था में कोई भूल हो बैठी हो, कोई बुरी आदत पड़ गई हो बुरा काम बन पड़ा हो उसे जीवन भर रटते रहना अपने को कोसते रहना, स्वयं को बुरा समझ बैठना सचमुच ऐसी ही भूल है। ऐसी स्थिति में रास्ते में, बाजार में चलते हुए भी मनुष्य यह अनुभव करने लगता है कि दूसरे लोग उसकी बुराइयों को देख रहे हैं और उसे बुरा समझ रहे हैं। इस भय के कारण वह दूसरों से नीची निगाह रखता है। कुछ बोलने से पूर्व हड़बड़ा जाता है।
कई बार हम घटनाओं, परिस्थितियों को अपने ही मापदण्ड से नापने का व्यर्थ प्रयत्न करते हैं। जब इनका परिणाम अपने मनोकूल नहीं निकलता तो इस पर पश्चात्ताप करते हैं और धीरे-धीरे आत्म ग्लानि के शिकार बन जाते हैं। किन्तु यह तो असम्भव बात है कि जीवन की घटनाओं को हमारी रुचि के अनुसार ही परिणाम निकले। क्योंकि इनका सम्बन्ध केवल हमारी रुचि से ही तो नहीं होता वरन् बहुत-सी बातों से होता है और जब तक सब का तालमेल नहीं बैठता, सफलता नहीं मिलती। अपना एक लक्ष्य एवं निश्चित कार्यक्रम बनाकर उसमें रहें। अनुकूलता पर गर्व भी न करें तो प्रतिकूल परिस्थितियों में पश्चात्ताप भी न करे। यही आगे का मध्यम मार्ग है।
लज्जा, भय, संकोच को दूर करें पुराने पापों को भूल जायें। मन आत्म-विश्वास साहस की भावनाओं को जगायें, आत्म–ग्लानि से बचने के लिए। स्मरण रहे कि इससे मनुष्य की मौलिक-शक्तियों और क्षमताओं का बहुत ज्यादा ह्रास होता है अतः सफल जीवन के लिए आत्म ग्लानि से बचें।
***
*समाप्त*

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