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Books - आज के प्रज्ञावतार की, युग- देवता की अपील

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आज के प्रज्ञावतार की, युग- देवता की अपील

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गायत्री मंत्र हमारे साथ- साथ,

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचादयात्।

देवियो! भाईयो!!
 
         मनुष्य के जीवन में अनेक प्रकार के सौभाग्य आते हैं और उन सौभाग्यों के लिए आदमी सदा अपने आपको सराहता रहता है। ऐसे सौभाग्य कभी- कभी ही आते हैं, हमेशा नहीं। शादी- ब्याह कभी- कभी ही होते हैं, रोज नहीं। ‘कन्वोकेशन’ में डिग्री रोज नहीं मिलती, वह जीवन में एकाध बार ही मिलती है, जब हाथ में डिग्री लिए और सिर पर टोप पहने हुए फोटो खिंचवाते हैं। सौभाग्य के ऐसे दिन कभी- कभी आते हैं, उनमें लाटरी खुलना और कोई ऊँचा पद पाना भी शामिल है। लेकिन आदमी का सबसे बड़ा सौभाग्य एक ही है कि वह समय को पहचान पाए। आदमी समय को पहचान ले तो मैं समझता हूँ कि इससे बड़ा सौभाग्य दुनियाँ में कोई हो ही नहीं सकता। खेती- बाड़ी सब करते हैं, लेकिन जो किसान वर्षा के दिनों सही समय पर बीज बो देते हैं, वे बिना मेहनत किये अपने कोठे भर लेते हैं। गेहूँ की फसल लेने के लिए जो समय को पहचानकर बीज बोते हैं, वे अच्छी फसल कमा लेते हैं, अगर बीज बोने का समय निकल जाए तब फसल की पैदावार की आप उम्मीद नहीं कर सकते। शादी- ब्याह की एक उम्र होती है और जब समय निकल जाता है, तो आदमी को कई बार बहुत हैरानियाँ बर्दाश्त करनी पड़ती है, लगभग असफलता के नजदीक पहुँच जाता है वह। जो आदमी समय को पहचान लेते हैं, वे बहुत नफे में रहते हैं। गाड़ियों में रिजर्वेशन होता है। जो समय पर पहुँच जाते हैं, लाइन में लग जाते हैं, उन्हें गाड़ी में सीट मिल जाती है। जो टाइम को पास कर देते हैं, निकल जाने देते हैं, वे बहुत हैरान होते हैं।

        अभी मैं समय की महत्ता बता रहा था आपको। किसलिए बता रहा था? इसलिए कि जिस समय में हम और आप रह रहे हैं, वह ऐसा शानदार समय है कि आपकी जिन्दगी में और इतिहास में फिर नहीं आएगा। आप लोगों की जिन्दगी में तो दूर आने वाले कई पीढ़ियाँ भी इसके लिए तरसती रहेंगी और कहेंगी कि हमारे बाप- दादे ऐसे समय में पैदा हुए थे। जो इसका फायदा उठा लेंगे उनकी, घर- परिवार की सराहना होती रहेगी, समाज में, इतिहास में उनका नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित रहेगा और जो सनक में बैठे रहेंगे, भूल में बैठे रहेंगे वे स्वयं पछताते रहेंगे और बाद में उनकी पीढ़ियाँ पछताती रहेंगी और कहेंगी कि ऐसे शानदार समय में हमारे बाप- दादों ने क्यों मुनासिब कदम नहीं उठाए? यह कैसा शानदार समय है। चलिए मैं इसके कुछ आपको उदाहरण देना चाहता हूँ, जिससे कि आप समझ सकें कि यह कैसा समय है और इस शानदार समय में आप थोड़े- से मुनासिब कदम बढ़ा सकते हों तो मजा आ जाएगा।

         आपको मैं अवतार के किस्से सुनाता हूँ। जब कभी भी अवतार हुए हैं, जब कभी भी महापुरुष हुए हैं, तब उनके साथ कदम से कदम मिलाकर चलने वाले लोगों को मैं बहुत भाग्यवान कहता हूँ और बहुत समझदार मानता हूँ। उनमें से एक का नाम था हनुमान। हनुमान कौन थे? सुग्रीव के वफादार नौकर का नाम था हनुमान। सुग्रीव को जब उसके भाई ने मार- पीट कर भगा दिया, बीवी- बच्चे छीन लिए, तब सुग्रीव अपने वफादार नौकर के साथ ऋष्यमूक पर्वत पर रहने लगे। एक समय आया जब रामचन्द्र जी आए तो सुग्रीव ने हनुमान को भेजा था। हनुमान जी वामन- ब्राह्मण का रूप बनाकर उनके सामने गए थे कि कहीं ऐसा न हो कि हमारे साथ मारपीट होने लगे। तो क्या हनुमान जी कमजोर थे? न होते तब बालि के साथ लड़ाई की होती और अपने बॉस की बीवी को नहीं छिनने दिया होता और अपनी जायदाद नहीं छिनने दी होती। लेकिन जब हनुमान जी ने समय को पहचान लिया और रामचन्द्र जी के कन्धों से कन्धा मिलाया। कदम से कदम मिलाया तो क्या आप समझ सकते हैं कि किसी महत्त्वपूर्ण शक्ति के साथ कन्धा मिलाने की क्या कीमत हो सकती है? क्या फायदा हो सकता है? आप तो अन्दाज नहीं लगा पा रहे हैं, लेकिन हनुमान ने लगा लिया था वह हिम्मत दिखाई थी, जो आदर्शों को जीवन में उतारने के लिए आवश्यक है। आदर्शों को पालन करने के लिए शक्ति की जरूरत नहीं है, साधनों की भी जरूरत नहीं है। साधन तो आप सबके पास हैं, पर अध्यात्म को हनुमान जी ने पकड़ लिया और पकड़ने के बाद में रामचन्द्र जी से कहा कि हम आपके काम आएँगे और आपकी मदद करेंगे। बस, यह शानदार हिम्मत हनुमान जी ने दिखाई और उस समय को पहचानने के बाद में आपको नहीं मालूम वे शक्ति के स्रोत बन गए और गजब के काम करने लगे। पहाड़ उखाड़ने लगे, समुद्र छलाँगने लगे और लंका में रावण और उसके सवा दो लाख राक्षसों को चैलेंज करने लगे। कुम्भकरण जैसों के साथ हनुमान जी अकेले लड़ने लगे।

        क्यों साहब, क्या बात थी कि हनुमान जी में इतनी ताकत कहाँ से आ गई? यह वहाँ से आ गई जहाँ से उन्होंने अध्यात्म को अपने जीवन में उतार लिया था। अध्यात्म जीभ की नोक तक, पूजा की चौकी तक सीमित नहीं रहता। अध्यात्म उस चीज का नाम है याद रखना —‘ऊँचे सिद्धान्तों को अपने जीवन में धारण करने की हिम्मत को अध्यात्म कहते हैं।’ इससे कम भी कोई अध्यात्म नहीं है और इससे ज्यादा भी कोई अध्यात्म नहीं है। हनुमान जी ने वही अध्यात्म ग्रहण कर लिया। पूजा की थी, अनुष्ठान किया था, जप- तप किया था? नहीं, तो फिर कैसे हो गया? ऊँचे उद्देश्यों के लिए भगवान के कन्धे से कन्धा मिलाकर वे चल पड़े थे और निहाल हो गए। इससे बड़ी कोई तपस्या नहीं होती है। नल- नील ने पत्थरों का पुल बनाया था, जो पानी पर तैरता था। इतने बड़े समुद्र पर पत्थरों से ऐसा पुल बना दिया था कि जिसमें न पाये लगे हुए थे, न झूला लगा हुआ था, न गर्डर फँसे थे और न सीमेण्ट की जरूरत हुई। ऐसे ही खाली पत्थर फेंकते गए और उनका बन गया पुल। क्यों साहब, यह हो सकता है? हाँ यह हो सकता है। कैसे हो सकता है? ऊँचे उद्देश्यों के लिए, खासतौर से उस समय जबकि भगवान अवतार लिया करते हैं, तब जो आदमी उनके कन्धे से अपना कन्धा मिला लेते हैं, वे शानदार हो जाते हैं और अपनी भूमिका निभाते हैं। रीछ- वानरों ने भी भगवान की सहायता के लिए वही काम किए थे। लकड़ी, ईंट- पत्थर ढोकर लाते और नल- नील के पास जमा करते जाते थे। क्यों, साहब, यह कोई बड़ा काम था क्या, बताइए? कोई काम नहीं था, लेकिन भगवान के अवतार के साथ, उनकी क्रिया- पद्धति के साथ जुड़ जाने की वजह से वे रीछ- बन्दर भी न जाने क्या से क्या हो गए? हम उनकी जय- जयकार करते हैं रीछ- बन्दरों की। उनकी क्या विशेषता थी? एक तो यह कि उन्होंने समय को पहचान लिया कि यह सही समय है। सीताजी वापस आ जाती तब कोई हनुमान कहता कि हम तो रामचन्द्र की सेना में भर्ती होंगे और सीता को तलाश करके लाएँगे। यह मौका हमको भी दीजिए। तब रामचन्द्र जी यह कहते कि नहीं, हनुमान भाईसाहब, अब समय निकल गया। आप समय भी नहीं देखते क्या? ऐसे समय कभी- कभी ही आते हैं।

        इसी तरह गिलहरी ने क्या किया था? अपने बालों में बालू भरकर लाती और समुद्र में पटक देती थी। बालों में बालू भर लेना कोई मुश्किल और बड़ा काम नहीं है। गिलहरियाँ ऐसे ही घूमती रहती हैं, बालू में बैठी रहती हैं और बालू भर जाती है फिर क्या खास बात थी उसमें? यह थी कि उसने समय को पहचान लिया था कि अब भगवान की जरूरत में, आवश्यकता में मदद करनी चाहिए। यह गिलहरी के लिए सौभाग्य का दिन था। भाई साहब वह कितनी शानदार हो गई भगवान का काम करने से आप नहीं जानते। रामचन्द्र जी ने उठा लिया और छाती से लगाया, उसकी पीठ पर हाथ फेरने लगे। उससे बहुत मुहब्बत की। किसके लिए? बालू के लिए। नहीं राई भर बालू से क्या होता है? उन्होंने सिद्धान्तों के प्रति उसकी हिम्मत के लिए, निष्ठा के लिए, उसकी जुर्रत के लिए उसको प्यार किया। मैंने सुना है कि जो गिलहरी रामचन्द्र जी की सहायता करने आई थी, उसकी पीठ पर उन्होंने प्यार से अपनी अँगुलियाँ फिराई थीं और वे धारीदार निशान आज भी गिलहरियों की पीठ पर पाए जाते हैं। धन्य हो गई थी वह गिलहरी जो रामचन्द्र जी के लिए बालू लेकर आई थी। उसने समय को पहचान लिया था। समय को आप नहीं जानते क्या? समय को आप नहीं पहचान सकते क्या?

         मित्रो! भगवान जब भी आते हैं तो उसके कई मकसद होते हैं। एक तो आपने पहले ही सुन रखा है कि वह धर्म की स्थापना करने के लिए और अधर्म का नाश करने के लिए आते हैं। यह दो मकसद तो आपको मालूम ही हैं, रामायण में भी आपने पढ़ा है, सब जगह पढ़ा है। यह दो ही बातें पढ़ी हैं न आपने; अच्छा तो एक और बात हमारी ओर से आप जोड़ लीजिए। रामचन्द्र जी ने या कृष्ण भगवान ने अपनी ओर से तो नहीं कही है, लेकिन हम अपनी ओर से कहते हैं— एक तीसरी बात। क्या कहते हैं? जो सौभाग्यशाली हैं, उनके सौभाग्य को चमका देने के लिए, निष्ठावानों को, अपने भक्तों के सिर और माथे पर रखने के लिए भगवान आते हैं। उनको उछाल देने के लिए भी भगवान आते हैं। उनको इतिहास में अजर- अमर बना देने के लिए भी भगवान आते हैं। जो इस मौके का पहचान लेते हैं वे धन्य हो जाते हैं। केवट को उन्होंने धन्य बना दिया। केवट न क्या काम किया था? नाव में बिठाकर के रामचन्द्र जी को पार लगा दिया था बिना कुछ कीमत लिए। तो गुरुजी चलिए, हम भी आपको कार में बिठाकर घुमा लाएँ और आप हमें केवट बना दीजिए। नहीं भाईसाहब अब मुश्किल है। अब हम नहीं बना सकते। तब वे खास मौके थे, तब आपने पहचाने नहीं और अब शिकायत करते हैं, अपने कर्म को दोष देते हैं कि ऐसा वक्त आया था और हम कुछ कर नहीं सके ।। मित्रो! शबरी ने भगवान् को बेर खिलाए थे, जिसकी प्रशंसा करते- करते हम थकते नहीं। भगवान ने शबरी से कहा- शबरी हम भूखे हैं। भगवान् को जरूरत पड़ी थी, वे भूखे थे। आपकी अपनी जरूरत है, पर कभी- कभी भगवान को भी जरूरत होती है और मनुष्य के लिए वही सौभाग्य के वक्त हैं। शबरी ने मौके को पहचान लिया था और बेर खिलाए थे। केवट ने भी भगवान की जरूरत को पहचान लिया था कि उनके पास नाव नहीं है। वे इन्तजार में खड़े हुए हैं कि कोई आए और हमको नाव में बिठाकर पार लगा दे।

        मित्रो! आदमियों की अपनी जरूरत होती है, यह तो मैं नहीं कहता कि जरूरत नहीं होती, पर कभी- कभी भगवान को भी आदमियों की जरूरत होती है। हमेशा नहीं कभी- कभी जरूरत पड़ती है और उस कभी- कभी को, मौके का जो पहचान लेते हैं, वे गिलहरी के तरीके से, केवट के तरीके से, शबरी के तरीके से और रीछ- वानरों के तरीके से उनकी सहायता के लिए चल पड़ते हैं और धन्य बन जाते हैं। गिद्धों को आप जानते हैं, जब वे बूढ़े हो जाते हैं तो आपस में लड़ाई- झगड़ा करने लग जाते हैं। गिद्धों का मरना कोई बड़ी बात नहीं है, लेकिन एक गिद्ध ने समय को पहचान लिया था कि हमारी जरूरत है। किसको? सीताजी को जरूरत है कि कोई हमारी सहायता करे और चल पड़ा और धन्य हो गया। क्यों साहब, हम भी बूढ़े हो जाएँ और ऐसा कुछ करें? नहीं भाई साहब, अब वह वक्त चला गया, आप समय को तो पहचानते नहीं। भगवान कभी- कभी हाथ पसारता है। आदमी तो भगवान के सामने हमेशा हाथ पसारता रहता है, पर भगवान आदमी के सामने कभी- कभी हाथ पसारता है। और जब कभी वह हाथ पसारता है, तो उसकी हथेली पर कोई भी कुछ रख देता है तो रविन्द्रनाथ की कविता के मुताबिक़ उसकी झोलियाँ सोने से भर जाती हैं। टैगोर की एक कविता है—‘‘मैं गया द्वार- द्वार इकट्ठी कर झोली गेहूँ के दानों से, एक आया भिखारी, उसने पसारा हाथ। मैंने एक दाना उसकी हथेली पर रखा, चला गया भिखारी। घर आया तो मैंने अनाज की झोली को पलटा। उसमें एक सोने का दाना रखा हुआ था।’’ टैगोर ने बंगला गीत में गाया—‘मैं सिर धुन- धुन के पछताया कि मैंने क्यों नहीं अपनी झोली के सारे दाने उस भिखारी को दे दिए।’ उस भिखारी से मतलब भगवान से है, समय से है। समय- समय पर जब कभी भगवान हाथ पसारते हैं और जो कोई उस समय को, मौके को पहचान लेते हैं और भगवान के पसारे हुए उस हाथ पर कुछ रख देते हैं, वे न जाने क्या से क्या हो जाते हैं?

         भगवान् के और किस्से सुनाऊँ आपको? वक्त बहुत चला गया, इसलिए और भगवान की तो मैं नहीं कहता, पर एक भगवान को जो कल- परसों हो चुका है, उसकी बात मैं कहता हूँ। उसने भी हाथ पसारा था। उसका नाम था—गाँधी। गाँधी जी ने भी हाथ पसारा था और उनकी हथेली पर जिन लोगों ने रखा था, उनका क्या- क्या हो गया आपको मालूम नहीं है। वे स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी हो गए, ताम्रपत्रधारी हो गए और तीन- तीन सौ रुपये पेंशन पाने लगे। यह खानदान त्यागियों का खानदान है। मित्रो! मिनिस्टर उसी में से हुए हैं। अब तो बात दूसरी है, लेकिन शुरू के दिनों में जब आजादी आई थी तो सिर्फ वे ही मिनिस्टर बने थे, जो स्वाधीनता सेनानी थे। आप वक्त को नहीं पहचानते, आप भगवान को नहीं जानते कि वह कभी- कभी हाथ पसारता है। जिस समय हमने आपको बुलाया है, आप यकीन रखें यह वह समय है, जिसमें दुनिया बेतरीके से बदल रही है। आप तो यह भी नहीं देख पाते कि पृथ्वी घूम रही है, पर आँखें कहती हैं कि घूम रही होती तो हमारा मकान पूर्व से पश्चिम की ओर हो जाता। किसी को अपनी मौत कहाँ दिखाई देती है? इसी तरह आपको जमाना बदलता हुआ दिखता है क्या? नहीं दिखाई पड़ता। आपको भगवान का चौबीसवाँ अवतार होता हुआ दिखाई पड़ता है क्या? दुनिया का कायाकल्प होता हुआ दिखाई पड़ता है क्या कि किस बुरी तरीके से गलाई- ढलाई हो रही है। आपको दिखाई न पड़ता हो तो देखिए कि हिन्दुस्तान का ही पिछले बीस- तीस साल में क्या हो गया? कभी यहाँ राजा छाए हुए थे। तीन- चौथाई हुकूमत राजाओं की थी। अब है कोई राजा? पच्चीस साल में सब तबाह हो गए। जागीरदार और जमींदार देखे हैं आपने, न देखे हों तो राजस्थान चले जाइए। वहाँ जगह- जगह किले, गाँव- गाँव किले, जो अब खण्डहर के रूप में पड़े हैं, उन्हीं के अवशेष हैं। सब कुछ समय बहा ले गया। राजा भी चले गए, जमींदार भी चले गए और कौन चले गये। साहूकार भी चले गये जो कभी गिरवी रखने और अच्छा- खासा ब्याज कमाने का धन्धा किया करते थे। बीस साल में बहुत कुछ बदल गया।

        मित्रो! इन दिनों दुनिया दो तरीके से बदल रही है। इसे कौन बदल रहा है? बीसवीं सदी का अवतार, जिसे हम प्रज्ञावतार कहते हैं। आदमी की अक्ल बहुत ही वाहियात है। इस अक्ल ने सारी दुनिया को गुत्थियों में धकेल दिया है। जितनी ज्यादा अक्ल बढ़ी है, संसार में उतनी ही ज्यादा हैरानी बढ़ी है। आप कॉलेजों में, विश्वविद्यालयों में चले जाइए। पहले वहाँ अराजक तत्त्व, अवांछनीय तत्त्व कहाँ रहते थे, पर देखिए सारी खुराफातें कहाँ से जन्म ले रही हैं? आपको बदलता हुआ जमाना दिखाई नहीं पड़ता, आजकल बहुत हेर- फेर हो रहा है। इस अक्ल ने दुनिया को हैरान कर दिया है। इस अक्ल की धुलाई करने के लिए एक नई अक्ल पैदा हो रही है, जिसका नाम है—‘महाप्रज्ञा’। चौबीसवाँ अवतार प्रज्ञा के रूप में जन्म ले रहा है। आपको तो नहीं दिखाई पड़ता होगा शायद, पर आप हमारी आँखों में आँखें डालकर देखें। हमारी आँखें बहुत पैनी हैं और बहुत दूर की देखने वाली हैं। हमारी आँखों में टैलिस्कोप लगे हुए हैं। आप आइए जरा हमारी आँखों में आँखें डालिए, फिर देखिए क्या हो रहा है? जमाना बेहद तरीके से बदल रहा है। यह कौन बदल रहा है? भगवान् बदल रहा है। भगवान के अवतार जब कभी भी दुनियाँ में हुए हैं, तब भक्तजनों को अपना सौभाग्य चमकाने का मौका मिल गया है। ऊपर हमने भगवान राम का उदाहरण दिया है, अभी और दूँ उदाहरण। अच्छा तो बुद्ध का और श्री कृष्ण भगवान का उदाहरण देता हूँ आपको। कुब्जा जो चन्दन लगा देती थी, उसके उदाहरण दूँ। कितने उदाहरण दूँ आपको? भगवान के अवतारों के साथ में जिन्होंने थोड़े- से भी अहसान कर दिए, वे धन्य हो गए। भगवान तो क्या महापुरुषों के साथ भी जिन्होंने कन्धा लगा दिया वे राजगोपालाचार्य हो गए, विनोबा हो गए। उनका नाम पटेल हो गया, नेहरू हो गया, जाकिर हुसैन हो गया, राधाकृष्णन् हो गया, राजेन्द्र बाबू हो गया। जिनका मैं नाम गिना रहा हूँ, वे सभी हिन्दुस्तान के बादशाह हो गए। वे इसलिए बादशाह हुए कि कोई खास अवतार युग को बदलने आया है और उसी की बिरादरी में शामिल हो गए, उसके कन्धे से कन्धा मिलाकर साथ- साथ चलने की अपनी जुर्रत- हिम्मत दिखा दी।

         आज का वक्त भी ऐसा ही है आप देखिए न। उस अवतार के साथ अगर आप कन्धे मिला सकते हों, चरण मिला सकते हों, आप उसके पीछे चल सकते हों, उसका भार बँटा सकते हों तो मैं आप में से हर आदमी से कहूँगा कि अगले दिनों आप इतने शानदार, इतने भाग्यवान व्यक्ति कहलाएँगे कि आपका सौभाग्य आपके लिए सहायता ही देगा। हमने क्या किया है? आप क्या समझते हैं कि हमने किताबें लिखी हैं, लेख लिखे हैं, लेक्चर देते हैं, पूजा करते हैं। अरे भाईसाहब, पूजा तो हम चार ही घण्टे करते हैं, पहले छह घण्टे करते थे, पर अब चार ही घण्टे करते हैं। आपको हम ऐसे आदमी बता सकते हैं, जो हमसे चौगुनी पूजा करते हैं। दुनिया में और दिल्ली में चले जाइए वहाँ ढेरों के ढेरों आदमी रहते हैं और अपने बाल- बच्चों का पेट पालते रहते हैं। स्कूलों में, कॉलेजों में लेक्चर होते हैं, लेक्चर देना उनका धन्धा ही है, रोटी ही इस बात की मिलती है उनको। फिर आपको इस तरह के मौके क्यों मिलते चले जा रहे हैं? क्या वजह है इसकी? इसकी एक ही वजह है कि हमने यह पहचान लिया है कि भगवान का अवतार होता हुआ चला आ रहा है। अवतार के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर, उसके कदम से कदम बढ़ाकर चलने का हमने निश्चय कर लिया कि साथ- साथ रहेंगे। उसके साथ अपनी जान की बाजी लगाएँगे। तब परिणाम क्या होता है? वही जो आग- लकड़ी का होता है। दो कौड़ी की नाचीज लकड़ी जब आग के साथ मिल जाती है तो उसकी कीमत आग के बराबर हो जाती है। जिस लकड़ी को कल बच्चे उछाले फिर रहे थे, आग के साथ रिश्ता हो जाने की वजह से आज वही कहती है कि हमें छूना मत, आप हमारा इस्तेमाल मत करना। आज आपने यदि हमको फेंक दिया तो हम आपके छप्पर को जला देंगे, गाँव को जला देंगे। एक घण्टे पहले मैं लकड़ी थी, पर अब मैं आग हूँ। तो आग कैसे हो गईं आप? हमने एक ही हिम्मत की है कि अपने आपको आग के साथ घुला दिया है, मिला दिया है। अगर आप भी ऐसा कर सकते हों तो मैं आपको सौभाग्यवान कहूँगा।

         साथियो! भगवान तो अपना काम करेंगे ही, आप करें तो, न करें तो भी। तो क्या रामचन्द्र जी रावण को मार सकते थे? बिल्कुल मार सकते थे। रामचन्द्र जी में इतनी शक्ति थी कि रावण सहित एक- एक राक्षस को मार डालते और अकेले अपने बलबूते पर सीता जी को छुड़ा लाते। लेकिन उनको श्रेय देना था। भक्तों को श्रेय ऐसे ही मौके पर दिया जाता है। भक्त की परीक्षा ऐसे ही मौके पर होती है और वे समय शानदार होते हैं। इम्तहान रोज- रोज कहाँ होते हैं? भक्तों के भी इम्तहान हमेशा नहीं होते, बहुत दिनों बाद होते हैं। जिसमें आपको बुलाया गया है, उसमें नवरात्र का अनुष्ठान करने के लिए ही आपको नहीं बुलाया है। आप अनुष्ठान करते हैं बहुत अच्छी बात है। यहाँ गंगा का किनारा, हिमालय की गोद, गायत्रीतीर्थ के पवित्र वातावरण में आप गायत्री का जप कर रहे, यह बहुत ही प्रसन्नता और सफलता की बात है। पर आप याद रखिए हमने केवल अनुष्ठान करने के लिए ही आपको नहीं बुलाया है। हमारे मकसद बड़े हैं और वे यह हैं कि आप ऐसे सौभाग्य वाले समय में क्या कुछ लाभ उठा सकते हैं? क्या आप समय को पहचानते हैं? क्या आप भगवान की सहायता कर सकते हैं? हम इसीलिए बुलाते हैं और हर एक आदमी से बार- बार यही सवाल पूछते रहते हैं कि क्या आप इन शानदार समय को पहचान सकते हैं? क्या आपकी अक्ल इतनी मदद करेगी कि आप इन शानदार समय को पहचान लें? अगर आपकी अक्ल इतनी सहायता कर दे और यह बता दे कि यह बहुत ही शानदार समय है, तो फिर हम आपको एक और सलाह देते हैं कि ऐसे वक्त आप एक और हिम्मत कर डालना। कौन- सी हिम्मत? आप भगवान की माँग को तलाश करें और उसको पूरा करने की कोशिश करें। भगवान की भी कुछ माँगे होती हैं। उन्होंने आप से भी कुछ माँगा है। उन माँगों को पूरा करने के लिए जरा आप कोशिश करें तो मजा आ जाए।

         क्या माँगें हैं भगवान की? आप अखण्ड- ज्योति के सब पाठक हैं और जानते हैं कि प्रज्ञावतार ने क्या माँगा है? प्रज्ञावतार ने यह माँगा है कि हम लोगों के दिमागों की सफाई करें, विचारों की सफाई करें। प्रज्ञा इसी का नाम है। आदमियों के दिमाग पैने तो हो गए हैं, अक्ल तो बहुत पैनी हो गई है। अक्लमन्द तो इतने हो गए है कि आप देखेंगे तो हैरान रह जायेंगे। अक्लमन्द आदमियों ने जहाँ एक ओर बड़े- बड़े इमारतें बनाई हैं, बड़े- बड़े पुल बनाए हैं, बाँध बनाए हैं, वही दूसरी ओर इन्हीं अक्लमन्दों ने लोहा, सीमेन्ट सबके सब हजम कर लिए हैं। जहाँ भी, जिस भी डिपार्टमेण्ट में चले जाइए सब जगह अक्लमन्द लोग मिलेंगे। बेअकल लोग तो बेचारे चप्पल चुरा सकते हैं। अक्लमन्द लोगों ने सारी दुनियाँ को धोखा दिया है। दुनियाँ का सफाया करने की पूरी जिम्मेदारी अक्लमन्दों की है। हिन्दुस्तान और पाकिस्तान का बँटवारा कराकर लाखों आदमियों का खून करा देने की जिम्मेदारी अक्लमन्दों की ही है। आम बेचने वालों की नहीं। यह सब बड़े दिमाग वालों की है। इसलिए बड़े दिमाग वालों के मस्तिष्क की सफाई करने के लिए ही तो ऐसी लहर आ रही है, जो दुनिया में सोचने के तरीके को बदल देगी। प्रज्ञावतार इसी का नाम है। प्रज्ञावतार की क्या माँगें हैं, इसको हम बराबर छापते रहे हैं। इसको फिर से कहने की जरूरत नहीं है, पर प्रज्ञा अभियान के रूप में आप इस लहर को समझ सकते हैं। या प्रज्ञा अभियान इनसान का नहीं है, अगर इनसान का होता तो हमारे जैसे आदमी इसके लिए कमजोर पड़ते। लेकिन उस महाशक्ति का काम करने के लिए जब हम आमादा हैं तो फिर आप हमारी सफलताओं को नहीं देखते। आपको हमारी सफलताएँ दिखाई नहीं पड़तीं। आप देखिए। हमारी सामर्थ्य, प्रतिभा, क्षमता और अक्ल को भी देखिए, सिद्धियों को भी देखिए। सब कुछ देखिए। पर मैं एक और बात कहता हूँ आपसे कि आप तो इसको देखने की परिस्थिति में भी नहीं हैं, क्योंकि जिस आँख आप देखना चाहते हैं वह आँखें ऐसी नहीं हैं कि हमारी आध्यात्मिक सफलताओं को और हमारे प्रयासों द्वारा संसार में जो हेर- फेर हो रहे हैं और होने जा रहे हैं, उनको आप देखने में समर्थ हो सकें।

         मित्रो! आप देखें या न देखें, पर सारी सफलताएँ शानदार हैं। आप जरा फिर देखना, अभी तो हम हैं, कब तक जिएँगे कह नहीं सकते, लेकिन आप लोगों में से अधिकांश आदमी जिएँगे। जिएँगे तो देखना और नोट करना कि हमारी सफलताएँ कितनी शानदार होती हैं? क्यों होती हैं? क्योंकि हमने अवतार के साथ में कन्धे से कन्धा मिलाकर हनुमान के तरीके से काम करने का निश्चय कर लिया है। राधा एक साधारण से ग्वाले की लड़की का नाम था, किन्तु नाचने के लिए वह थोड़े दिन तक कृष्ण का साथ देती रहीं और राधा हो गयीं। किस- किस को कहें, शानदार शक्तियों का साथ देने वाले न जाने कहाँ से कहाँ पहुँच गए और क्या से क्या हो गए? इसलिए इस शिविर में हमने आपको खासतौर से यह दावत देने के लिए बुलाया है कि अगर आपका मन बड़े फायदे उठाने का है और बड़े फायदे लायक अगर आपका व्यक्तित्व है, हिम्मत है तो आप आइए, इस मौके को गँवाइए नहीं। इस मौके से पूरा- पूरा फायदा उठाइए। आप लोगों में से हर एक को हम झकझोरते हैं ओर कहते हैं कि जो घर से निवृत्त हो चुके हैं, जिनके पास कोई महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ नहीं हैं, उन सबसे हम प्रार्थना करते हैं, अनुरोध- आग्रह करते हैं कि अगर आप किसी तरीके से अपना गुजारा कर सकते हों तो आप आइए और हमारी मिलिट्री में भर्ती हो जाइए। आप में से हर आदमी को प्रज्ञावतार के कन्धे से कन्धा मिलाने के लिए हम दावत देते है, विशेषकर उन लोगों को जिन्होंने अपनी आदतें ठीक कर रखी है, परिश्रमी हैं, चरित्रवान हैं और जिनका वजन भारी नहीं है अर्थात् जिम्मेदारियों का बोझ हल्का है। ऐसे लोगों के लिए सबसे बेहतरीन काम यह है कि अपना गुजारा करने के बाद में वे समाज के काम आएँ, देश के काम आएँ।

         मित्रो! आपमें से हर उन आदमियों को भी हम दावत देते हैं जो भावनाशील हैं, जिनके ऊपर बहुत भारी वजन नहीं है, तब तो हम ठहरने के लिए कहेंगे। लेकिन थोड़ा वजन है तो उनकी भी सहायता करेंगे। हमें २४ हजार शक्तिपीठों के लिए उतने ही कार्यकर्ता चाहिए। इन इमारतों में प्राण भरने के लिए हमें। कार्यकर्ताओं की जरूरत है। चौबीस हजार की भर्ती करनी है हमें आप स्वयं अपना इन्तजाम कर सकने की स्थिति में हों तो ठीक है, अन्यथा हम आपके खाने का, कपड़े का, जेबखर्च का इन्तजाम बिठा देंगे। आपके बीबी- बच्चों के लिए भी जो मुनासिब खर्च होगा, वह भी हम देंगे। कौन है हमारी पीठ पीछे, आपको तो दिखाई नहीं पड़ता। आप आँख खोलिए और देखिए कि हमारे पीछे बहुत शानदार शक्ति है। हम खाली हाथ हैं तो क्या हुआ हमारा गुरु तो खाली हाथ नहीं है। हम अपने ‘बॉस’ के बारे में विश्वास करते हैं। हमें यह भी विश्वास है कि अगर हमें दो हजार कार्यकर्ता रखने पड़े तो भी पैसों को इन्तजाम हम कर देंगे। उनमें से अधिकांश नौकर रखने पड़े तो भी पैसों को इन्तजाम कर देंगे। इसलिए एक विज्ञापन निकाल देंगे कि जिसे नौकरी करनी हो सीधे शान्तिकुञ्ज चले आवें। एक लाख आदमी अगले ही महीने में एप्वाइंट करके दिखा दूँ आपको। युग- परिवर्तन के लिए बहुत बड़े काम करने पड़ेंगे, परन्तु यह काम नौकरों से नहीं हो सकेगा। यह काम भावनाशीलों का है, त्यागियों को है। इसलिए हम आपकी खुशामदें करते हैं कि हमको भावनाशील आदमियों की जरूरत है, जिनको हम प्रामाणिक कह सकें, जिसको हम परिश्रमी कहें। जो परिश्रमी हैं वे प्रामाणिक हैं और वे जो प्रामाणिक एवं परिश्रमी हैं, उनको मिशन की जानकारी है। हम इनको कब तक सिखायेंगे, कितना सिखाएँगे, इनको सिखाने में कितना समय लगेगा? हमारे पास समय बहुत कम है। हमको आदमियों की जरूरत है, अगर आप स्वयं उन आदमियों में शामिल होना चाहते हों तो आइए हम स्वागत करते हैं और आपको यह विश्वास दिलाते हैं कि आप जो भी काम करते है, उन सब कामों की बजाय यह बेहतरीन धन्धा है। इससे बढ़िया कोई धन्धा नहीं हो सकता। हमने किया है, इसलिए आपको भी यकीन दिला सकते हैं कि यह बहुत फायदे का धन्धा है।

         इन दिनों हमारे पास केवल दस लाख आदमी हैं जो बहुत कम हैं। सारी दुनियाँ में चार सौ पचास करोड़ आदमी रहते है। अकेले हिन्दुस्तान में इन दिनों सत्तर करोड़ से ज्यादा आदमी हो गए हैं। इन सब तक पहुँचने के लिए दस लाख आदमी बहुत थोड़े हैं। अब हमें अपने कार्यक्षेत्र का विस्तार करने के लिए आपकी सहायता की जरूरत है। इसके लिए अब हमको वह वर्ग ढूँढ़ना पड़ेगा, जिसको विचारशील वर्ग कहते हैं, भावनाशील वर्ग कहते हैं, त्याग और बलिदान के लिए आगे बढ़ने वाला वर्ग कहते हैं। अब हमें इंजीनियरों की जरूरत है, डॉक्टरों की जरूरत है, सिपाहियों की जरूरत है, ओवरसियरों की जरूरत है। हमको उनकी जरूरत है, जो राष्ट्र के निर्माण के काम आ सकें।

         नए वर्ग में, नए क्षेत्र में जाने के लिए आप सब हमारी मदद कर दीजिए। क्या काम करेंगे? हमने एक बहुत ही शानदार भवानी तलवार निकाली है। ऐसी शानदार योजना दुनिया में आज तक नहीं बनीं। क्या बनी है? हमने हर दिन हर पढ़े- लिखे को नियमित रूप से बिना मूल्य युगसाहित्य पढ़ाने की योजना बनाई है। आप पढ़े- लिखे लोगों तक हमारी आवाज पहुँचा दीजिए, हमारी जलन को, हमारी चिनगारियों को पहुँचा दीजिए। लोगों से आप यह मत कहना कि गुरुजी बड़े सिद्धपुरुष हैं, बड़े महात्मा हैं और सबको वरदान देते हैं, वरन् यह कहना कि गुरुजी एक ऐसे व्यक्ति का नाम है, जिसके पेट में से आग निकलती है, जिसकी आँखों से शोले निकलते हैं। आप ऐसे गुरुजी का परिचय कराना, सिद्धपुरुष का नहीं। विचार क्रान्ति अभियान को हमने युगसाहित्य के रूप में लिखना शुरू कर दिया है और हर आदमी को स्वाध्याय करने के लिए मजबूर किया है। हमारे विचारों को आप पढ़िए और हमारी आग की चिनगारी को जो प्रज्ञा अभियान के अन्तर्गत युगसाहित्य के रूप में लिखना शुरू किया है, उसे लोगों में फैला दीजिए। जीवन की वास्तविकता के सिद्धान्त को समझिए, ख्वाबी दुनिया में से निकलिए और आदान- प्रदान की दुनियाँ में आइए। आपके नजदीक जितने भी आदमी हैं, उनमें आप हमारे विचार फैला दीजिए। यह काम आप अपने काम करते हुए भी कर सकते हैं। आप युग साहित्य लेकर अपने सर्किल में पढ़ाना शुरू कर दीजिए, अपने पड़ोसियों को पढ़ाना शुरू कर दीजिए। उनको हमारे विचार दीजिए, हमको आगे बढ़ने दीजिए, सम्पर्क बढ़ने दीजिए और आप हमारी सहायता कर दीजिए ताकि हम उन विचारशीलों के पास, शिक्षितों के पास जाने में समर्थ हो सकें, इससे कम में हमारा काम चलने वाला नहीं है और न ही हमें संतोष होगा। मित्रो! हमारे विचारों को लोगों को पढ़ने दीजिए। जो हमारे विचार पढ़ लेगा, वही हमारा शिष्य है। हमारे विचार बड़े पैने हैं, तीखे हैं। हमारी सारी शक्ति हमारे विचारों में सीमाबद्ध है। दुनिया को हम पलट देने का जो दावा करते हैं वह सिद्धियों से नहीं, अपने सशक्त विचारों से करते हैं। आप इन विचारों को फैलाने में हमारी सहायता कीजिए। अब हमको नई पीढ़ी चाहिए इसके लिए आपे पढ़े- लिखे विचारशीलों में जाइए, उनके घरों में जाइए, खुशामदें करिए, उनका जन्मदिन मनाइए, दरवाजा खटखटाइए और हमारी विचारधारा उन तक पहुँचाइए। यह हमारा नया कार्यक्रम है।

        मित्रो! युग साहित्य पढ़ाना, प्रज्ञा अभियान पढ़ाना, जन्मदिन मनाना— यह तीन कार्यक्रम प्रज्ञा अभियान के अन्तर्गत आते हैं। आप में से जो आदमी प्रज्ञापुत्रों के रूप में हमारे साथ शामिल हो सकते हैं, वे अंगद के तरीके से आएँ, नल- नील के तरीके से आएँ, हनुमान के तरीके से आएँ, गिलहरी के तरीके से आएँ। शबरी के तरीके से आएँ। केवट के तरीके से आएँ। आएँ तो सही, कुछ करें तो सही हमारे लिए। हम आपके लिए करेंगे आप हमारे लिए करिए। हमने गायत्री गायत्री माता के लिए किया है और गायत्री माता ने हमारे लिए किया है। हमने अपने गुरु के लिए किया है और गुरु ने हमारे लिए किया है। क्या आप हमारे काम नहीं आएँगे? आप हमारे काम आइए और हम आपके काम आएँगे। अब हमारा हर एक कार्यक्रम में जाना नहीं हो सकेगा, लेकिन आपमें से हर एक सक्रिय कार्यकर्ता को साल भर में एक बार अपने गुरुद्वारे में अवश्य आना चाहिए। अभी तक आप हमारे पास वरदान माँगने के लिए आते रहे हैं, पर अब हम आपसे माँगते हैं। आपके पसीने का वरदान, आपकी मेहनत का वरदान। अब आप देने के लिए आना, कुछ पसीना बहाने के लिए आना, कुछ समय देने के लिए आना, कुछ अक्ल देने के लिए आना। मित्रो! अब हमें उन लोगों को बुलाना है, जो आशीर्वाद देने में समर्थ हो सकें, हमारे कन्धे से कन्धा मिला सकें। जो हमारा गोवर्धन उठाने में लाठी का टेका लगा सकें। जो हमारे समुद्र पर पुल बाँधने में ईंट और पत्थर ढो सकें और गाँधी जी के कन्धे से कन्धा मिलाकर जेल जा सकें। हमने सारे विश्व को अपना कार्यक्षेत्र बना लिया है। अब हम हर एक आदमी का बुलाएँगे और उसी स्तर के लिए उसमें प्राण फूँकेंगे। आप लोग इन योजनाओं में हमारी सहायता करना। भगवान ने हाथ पसारा है। हमारे गुरुदेव ने हमारे सामने हाथ पसारा था। विवेकानन्द के सामने रामकृष्ण ने हाथ पसारा था, चाणक्य ने चन्द्रगुप्त के सामने और समर्थ गुरु रामदास ने शिवाजी के सामने हाथ पसारा था। भगवान की हथेली पर रखने वाला आदमी कभी घाटे में नहीं रहा। आप भी घाटे में नहीं रहेंगे।
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