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Books - अध्यात्म एक नगद धर्म

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अध्यात्म एक नगद धर्म

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अध्यात्म एक नगद धर्म

गायत्री मंत्र हमारे साथ- साथ-
ॐ भूर्भुवः स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

इस शिविर में में उस अध्यात्म को आपको सिखाने वाला हूँ जो मुझे मेरे गुरु ने सिखाया है और उसका परिणाम नगद धर्म है। इससे आपको क्या मिलेगा, इससे आपको भीतर से एक ऐसी चीज मिलेगी, जिसे संतोष कहते हैं। संतोष किसे कहते हैं ?? बेटे, संतोष उसे कहते हैं, जिसके कारण आदमी मस्ती में झूमता रहता है, खुशी से झूमता रहता है। आदमी की परेशानियाँ दूर हो जाती हैं। न आदमी को ट्रैक्युलाइजर की गोलियाँ खानी पड़ती हैं, न ड्रिंक करना पड़ता है और न सिनेमा जाना पड़ता है। आदमी अपनी जिंदगी शांति से, चैन से जी लेता है। ऐसी जाते की जिंदगी ,, जिसमें बहुत गहरी नींद आती है।

अध्यात्म एक नगद धर्म १

आज इसके बिना आदमी हैरान रहते हैं और कहते है कि नींद ही नहीं आती। नींद किसको आएगी? हरेक आदमी को आएगी, जिसका अंतर्द्वद्व बंद हो जाएगा। जिनके अंदर के साँड़ लड़ना बंद कर देंगे। जो एक रास्ते पर चलेंगे।

क्रांतिकारी अध्यात्म की ऋद्धियाँ- सिद्धियाँ

मित्रो ! अगर आपको यह पसंद हो कि आपको संतोष हो और संतोष की वजह से शांति मिले, तो आपको इस अध्यात्म को अपनाना होगा। इसमें फसल भीतर से उगना शुरू कर देती है, जिसको आप अतींद्रिय क्षमता कहते हैं। अतींद्रिय क्षमता क्या होती हैं ?? दूरदर्शन की क्षमता- दूर देखने की क्षमता, दूर श्वण की क्षमता। हमारे अंदर टेलीविजन लगे हुए हैं, वायरलैस लगे हुए हैं। इतने सारे वैज्ञानिक उपकरण लगे हुए हैं, जो साधारण आदमी को नहीं मिल सकते लेकिन आपको मिल सकते हैं: शर्त केवल यह है कि आपके भीतर जो कोहराम मचा रहता हैं उसे आप बंद कर दें।

साथियों ! जो अध्यात्म हम आपको सिखाएँगे, उसमें यह कोहराम बंद हो जाएगा। जब आपके अंदर का कोहराम खत्म हो जाएगा, तब हर जगह आपको जिन्दगी का जायका, जिन्दगी का मजा मिलेगा। जिन्दगी का मजा संतोष के ऊपर टिका हुआ है, खुशी के ऊपर टिका हुआ है। आप सारे कार्य खुशी के लिए ही तो करते हैं। खुशी के लिए सिनेमा देखते हैं। खुशी के लिए बच्चों के ब्याह में सम्मिलित होते हैं, लेकिन खुशी का बेहतरीन स्वरूप बो है, जिसको हम संतोष कहते हैं। संतोष अगर आपको मिल सकता है, तब आपके चेहरे पर हर समय खुशी दिखाई पड़ेगी। चेहरे पर आपको क्या मालूम पड़ेगा ?? दो बातें मालूम पड़ेगी- एक तो आपको गहरी नींद आया करेगी और दूसरा आपके चेहरे पर गुलाब के फूल की तरह खुशी दिखाई पड़ेगी। फिर आपकी खीझ, आपकी झल्लाहट, आपकी नाराजगी सब दूर हो जाएगी।

मित्रो ! वो अध्यात्म जो हम आपको सिखाने वाले हैं और जिसको हमारे गुरु ने सिखाया है, आपकी जिंदगी में से खीझ खत्म कर सकते हैं। अगर ये सिद्धि आपको मंजूर हो तो आइए हमारे साथ, हम आपको सिखाएँगे। आप उसे सीखिए और कीमत चुकाइए। आदमी का संतोष जो भीतर से निकलती है, प्रतिमा जो भीतर से निकलती है, प्रखरता जो भीतर से निकलती है- सब भीतर से निकलती है। 'भीतर' से आप क्या समझते हैं? जमीन के भीतर क्या छिपा हुआ है? बेटे, बाहर तो मिट्टी है, पर भीतर संपत्ति है, बहुमूल्य संपदा है। मित्रो ! आदमी के व्यक्तित्व के भीतर जाने क्या- क्या भरा पड़ा है।

अंतरंग जीवन क्या है? अंतरंग जीवन को तो आपने कभी देखा भी नहीं। उसे कभी छुआ भी नहीं। अंतरंग जीवन को कभी हवा भी नहीं लगी आपको। अंतरंग जीवन की आपको कभी गंध भी नहीं आईं। आपने अंतरंग जीवन का स्वरूप ही नहीं देखा। आदमी के अंतरंग का जो स्वरूप है, अगर उसे आप देख पाते, तो आपकी जिंदगी में मजा आ जाता। अगर आप अपने भीतर वाले को शानदार बना लेते, को मैं यह कहता हूँ कि आपको दो शक्तियों मिलती। एक तो आपको गहरी नींद आती। गुरुजी ! आपको गहरी नींद आती है? हाँ बेटे, हमको ऐसी गहरी नींद आती है कि हम आठ बजे यहाँ से जाते हैं और बिस्तर पर लेटते ही साढ़े आठ बजे तक गहरी नींद में चले जाते हैं, फिर साढ़े बारह बजे हमारी आँख खुल जाती है और एक बजे तक आधे घंटे में हम नहा- धोकर अपना काम चालू कर देते हैं, भजन- पूजन करते हैं। हम कितने घंटे सोते हैं? चार घंटे सोते हैं। चार घंटे में हमको इतनी गहरी नींद आती है कि चाहे जमीन फट जाए या आसमान टूट जाए, हमें सामान्य घटनाएँ प्रभावित नहीं करतीं।

संतोष धन- सबसे बड़ी पूँजी

हमें इतनी गहरी नींद क्यों आती है ?? क्योंकि हमें कोई चिता नहीं है। आपके शांतिकुंज की हमें बिलकुल चिंता नहीं, गायत्री तपोभूमि को हमको बिलकुल चिंता नहीं' आपके युग निर्माण की हमको बिलकुल चिंता नहीं। क्यों? क्योंकि हम भगवान पर विश्वास करते हैं। आपको चिंता को है ?? क्योंकि आप भगवान पर विश्वास नहीं करते। भगवान का नाम लेते हैं पर भगवान पर विश्वास नहीं करते। हम भगवान पर विश्वास करते हैं और ये समझते हैं कि सारी दुनिया उसी के चक्र पर घूम रही है और हम भी उसी के इशारे पर कठपुतली की तरह काम करते है और उसको जो काम करना होगा, वह ठीक हो जाएगा। इसीलिए हमें पूरी नींद आती है और रात को जरा भी असंतोष नहीं होता और चिंता बिलकुल नहीं आती। और क्या रहता है? बेटे, हमारे चेहरे पर मुस्कराहट छाई रहती है।

मित्रो ! गाँधी जी के चेहरे पर सदैव मुस्कराहट रहती थी, वे जल्दी -जल्दी हँसते रहते थे। वे मजाक भी करते थे। गाँधी जी से एक बार पूछा कि आप तो बार- बार हँसते हैं। उन्होंने कहाँ हँसेंगे नहीं तो जिएँगे कैसे। हँसने के ऊपर ही तो हमारी जिंदगी कायम है। जो आदमी हँसते नहीं, वे मनहूस होते हैं। मनहूस माने राक्षस, शैतान- जिसको देखकर बच्चे भाग जाते है। यह कौन आ गया? मनहूस आ गया। मनहूस कैसा होता है? जैसे- पापा। पापा किसे कहते हैं? मनहूस को। पापा जब घर में घुसेगा तो सब पर हावी होता चला जाएगा। बीबी पर हावी, बच्चों पर हावी, साइकिल पर हावी, खाने पर हावी, थाली पर हावी- सब चीजों पर हावी होता चला जाएगा। यह कौन है? मनहूस है, राक्षस है जो हँसना- हँसाना नहीं जानता।

मित्रो ! अगर आपके भीतर कदाचित अध्यात्म आ गया तो आपके चेहरे से मिठास बरसेगी। आपकी वाणी से रस बरसेगा। आपके व्यवहार में जाने क्या- क्या शानदार चीजें आएँगी? अध्यात्म उस चीज का नाम है जो आपके भीतर संतोष लाकर के देगा। यह हुई सिद्धि नंबर एक। अगर आपको यह सिद्धि स्वीकार हो तो चलिए फिर हम आपको साधना बताएँगे। गुरुजी ! साधना बताने में तो बहुत टाइम लग जाएगा? नहीं बेटे, ये तो मिनटों की बात है। आपरेशन में क्या देर लगती है। दवा खिलाने में क्या देर लगती है। इंजेक्शन तो एक मिनट में लगा देंगे। और क्या करेंगे? खान- पान का परहेज रखते हुए मरीज ठीक हो जाएगा। असली इलाज तो बेटे परहेज है। नहीं साहब ! सुई है। सुई में कितनी ताकत है? सुई में तो बेटे जरा भी ताकत नहीं है, पर परहेज में बहुत है।

अच्छा, अब आप क्या पढ़ रहे हैं? अब बेटे हम परहेज पढ़ रहे हैं और फिलॉसफी पढ़ रहे हैं। और आगे क्या बताएँगे- मंत्र? मंत्र तो कभी भी बता देंगे। मंत्रों में क्या देर लगती है, यह तो सेकेंड का काम है। जब आप कहेंगे, चलते- फिरते तभी बता देंगे। अभी असली बात तो उसकी 'फिलॉसफी' सीखिए। बेटे, हम आपको जो अध्यात्म सिखाने के इच्छुक थे, जिसको अगर आप सीखना चाहें तो आपको एक और चीज मिल सकती है। इसको सीखने पर आपको एक और सिद्धि मिलेगी। वो सिद्धि बाहर की होगी। पहली सिद्धि भीतर से मिलेगी और उसका नाम है- संतोष। संतोष की वजह से आपका स्वास्थ्य, संतोष की वजह से आपकी, खुशी, संतोष की वजह से आपकी जवानी, संतोष की वजह से आपकी दबी हुई अतींद्रिय क्षमताओं का विकास, ये सब के सब भीतर से मिलेंगे।और बाहर से- दुनिया से क्या मिलेगा? दुनिया से भी बेटे आपको एक चीज मिलेगी। दुनिया आपकी कैसे देगी? भीतर वाली कशिश और भीतर वाली मैग्नेट जब विकसित होती है तो दुनिया बेटे, आपको एक उपहार देती है और उस उपहार का नाम है- सम्मान'। बाहर की इस सिद्धि को पाकर आप सम्मानित व इज्जतदार आदमी बन जाएँगे।

सम्मान बरसेगा

मित्रो ! जो अध्यात्म में आपको सिखाने वाला हूँ मालूम नहीं कि आप सीखेंगे कि नहीं और हम सफल होंगे कि नहीं, लेकिन यदि आपने सीख लिया तो एक चीज और आपको मिलेगी। दुनिया की दृष्टि से आपको सम्मान मिलेगा। गुरुजी! वैसे तो सम्मान किसी को मिलता नहीं, हाँ चापलूसी जरूर मिलती है। हाँ बेटे, चापलूसी तो खरीदी भी जा सकती है पैसे दीजिए चापलूसी खरीद लीजिए। चापलूसी आप कहीं से भी खरीद लीजिए।

बेटे, जिसे आप इज्जत कहते हैं, वह पैसे से नहीं खरीदी जा सकती है। मैं जिस सम्मान की बात कहता हूँ वह बो चीज है जो उन लोगों पर बरसती है, जिन्हें हम अध्यात्मवादी कहते हैं। उनके ऊपर सम्मान बरसता है, श्रद्धा बरसती है और उससे जो फायदा होता है, उसे आप नहीं समझ सकते।

मित्रो ! श्रद्धा के साथ, सम्मान के साथ एक और चीज जुड़ी होती है और उसका नाम है- सहायता। श्रद्धा के साथ सहायता जुड़ी होती है। श्रद्धा आपके साथ में आएगा, अगर जनसमाज वह सम्मान आपके प्रति होगा, तो आपके प्रति बेटे, सहयोग जरूर आएगा। नानक के प्रति श्रद्धा थी, अतः लोगों का सहयोग आया। उनका स्वर्ण मदिर बना हुआ है, जो इसका साक्षी है। बुद्ध के प्रति श्रद्धा पैदा हुई और उनके प्रति लोगों का सम्मान पैदा हुआ। अशोक ने तो कमाल ही कर दिया था। आम्रपाली से लेकर अंगुलिमाल तक कौन−कौन जाने कितने आदमियों का सहयोग इस कदर बरसता था कि मैं आपसे क्या कहूँ? जहाँ सम्मान होगा, वहीं सहयोग अवश्य बरसेगा।

मित्रो ! जहाँ सम्मान होता है, वहाँ सहयोग आता है। महापुरुषों पर सहयोग बरसा, गाँधी जी पर सहयोग बरसा। अरे मैं तो ये कहता हूँ कि अनेक आदमियों पर सहयोग बरसा है।

सामाजिक जीवन का अध्यात्म

मित्रो ! ईमानदारी, वफादारी और जिम्मेदारी तीनों को मिलाकर सामाजिक जीवन में अध्यात्म हो जाता है। अध्यात्म कैसा होता है? अध्यात्म को जीवन में अप्लाइ कैसे करते हैं? अपने विकृत जीवन में संयम के रूप में हम अप्लाइ करते है। समाज में हम जिम्मेदारी, वफादारी और ईमानदारी के रूप में प्रयुक्त करते है। जीवन में इन तीनों के समाविष्ट कर लेते हैं, तो वह अध्यात्म हो जाता है। नहीं साहब, भजन और माला को अध्यात्म कहते हैं। चल….सब बात में भजन लगा देता है, भजन भी दिमाग का एक खेल है। वह अपने अंतर्मन को एक कसरत है। कसरत कई तरह की होती है। अंतश्चेतना के व्यायाम का एक नाम वह भी है, जिसको आप मंत्र कहते हैं। वह भी अध्यात्म का एक हिस्सा है, लेकिन केवल वही सारा अध्यात्म नहीं हो सकता। वह एक हिस्सा है। मंत्र भी एक हिस्सा है। समस्त अध्यात्म मंत्र नहीं हो सकता।

गुरुजी ! आप अध्यात्म से अनुदान के विषय में कह रहे थे? बेटा, मैं कह रहा था कि जब सम्मान आता है तो सहयोग भी आता है। श्रद्धा आती है। आप क्यों नहीं सुनते ?? हमें तो कोई जरूरत नहीं है। हमारे सब विरोधी हैं। विरोधी भी बेटे इज्जत करते है। क्रांतिकारियों को बेटे अँग्रेजों ने फाँसी दे दी थी। उनको फाँसी देने वाले मजिस्ट्रेट ने, उनके जो रिमार्क लिखे हैं, उसे पढ़कर देखिए आप। उन्होंने क्या रिमार्क लिखे हैं? उन्होंने ये रिमार्क लिखे हैं कि हम इनकी इज्जत करते हैं, क्योंकि उन्होंने जिस काम के लिए ये गुनाह किए, बो मकसद बहुत ऊँचे थे। इन्होंने गुनाह किए, इसलिए हमारा संविधान, हमारा कानून कहता है कि इन्हें जेल में फाँसी लगनी चाहिए इसलिए हमने फाँसी लगवा दी, पर फाँसी लगाते हुए हम इनकी इज्जत करते हैं।

सिद्धियों के कई प्रकार- सहयोग एवं अनुदान

मित्रो ! आपको इज्जत मिल सकती है। किससे? उस अध्यात्म से, जो हम आपको सिखाने वाले हैं। उससे आपको इज्जत मिलेगी, तो आप देखना आपको सहयोग भी मिलेगा। सहयोग कहाँ से मिलेगा? बेटे, हमको पहले मिली है इज्जत, फिर हमको मिली सहायता। सहायता नहीं मिलती, तो हम कहाँ से यह सब काम चला रहे हैं बताइए? हमारे कितने जीवनदानी मुट्ठी में हैं। ब्रह्मवर्चस एक, ब्रह्मवर्चस में कितने आदमी काम करते हैं? वे क्या हैं? आठ- दस तो वे हैं, जो पोस्ट ग्रेजुएट हैं, पी- एच० डी० हैं, मेडिकल के एम०बी०बी०एस० हैं, एम०एस० हैं, एम०डी० हैं। कितने लड़के काम करते हैं? इनको नौकरी देकर तो देखिए। एक- एक व्यक्ति कम से कम पंद्रह- पंद्रह सौ रुपए की नौकरी छोड़कर आया है। कितने आदमी हैं? बीस हैं। कितने रुपए लगेंगे? तीस हजार रुपए महीने लगेंगे। पहले नौकरी दीजिए, पीछे काम लेना। यह सब कहाँ से आता है? श्रम के रूप में सहयोग, अक्ल के रूप में सहयोग, भावनाओं के रूप में सहयोग। आप सहयोग का अर्थ केवल पैसा समझते हैं।

मित्रों ! अगर आपका यहीं ख्याल है कि सहयोग का अर्थ पैसा होता है, तो चलिए मैं अभी देता हूँ। गाँधी जी पर भी पैसा आया था, दूसरों पर भी पैसा आया था, तीसरा पर भी पैसा आया था। विनोबा पर कितनी जमीन आ गई थी? करोड़ों एकड़ जमीन भूदान में आ गई थी। मैं क्या कहूँ बेटे, कोई इतनी जमीन खरीदता, तो दिवाला निकल जाता। हमने जरा भी जमीन खरीदी है, डेढ़ लाख लग गया और उन्होंने कितनी जमीन खरीदी? करोड़ों रुपए की जमीन खरीदी विनोबा ने, भूदान यज्ञ में सहयोग दिया था। आपको सहयोग मिलता है? किसी का नहीं मिलता। धर्मपत्नी का मिलता है? नहीं साहब, उसका भी नहीं मिलता। माता जी का मिलता है? नहीं, माता जी का भी नहीं मिलता। पिता जी का? पिता जी का भी नहीं मिलता। किसी का मिला सहयोग? नहीं साहब, सब बड़े चालाक हैं और सब दुनिया बेईमान है। हाँ, आपका कहना बिलकुल यहीं है। दुनिया तो है ही चालाक, लेकिन हर आदमी के भीतर एक और माद्दा है। कौन सा वाला? जो दूसरों की सहायता करता है। आप पहले अपना सम्मान प्राप्त कीजिए।

मित्रों ! लोग सम्मान नहीं देते, सम्मान लिया जाता है। कैसे? उस अध्यात्म से जो हम आपको सिखाने वाले हैं और समझाने वाले हैं। उससे आप क्या करेंगे? उससे उस अध्यात्म की कीमत पर आप जनता का सम्मान खरीदेंगे। फिर क्या होगा? फिर आप पर सहयोग बरसेगा। ये क्या हो गया? ये सिद्धि नंबर दो है '' ये किसकी सिद्धि हो गई? ये बाहर की सिद्धि हुईं। ईश्वर, जीव और प्रकृति तीन होते है। मैं पहले जीव की बात कह रहा था। जीवात्मा के भीतर से हमारे अंतर्मन से जो सिद्धियाँ निकलती हैं, अभी मैं उसका हवाला दे रहा था। अब मैं प्रकृति का हवाला दे रहा हूँ। प्रकृति के साथ समाज जुड़ा हुआ है। बहिरंग से आपको तरह- तरह के सहयोग मिलेंगे, सहायता मिलेगी, तरह तरह की प्रसन्नताएँ मिलेगी, तरह- तरह के भाव मिलेंगे।

साथियों ! जो सिद्धांत, जो अध्यात्म मैं सिखाने वाला हूँ और जिसके लिए मैंने आपको बुलाया है, उस अध्यात्म की सफलता पर मेरी उम्मीदें टिकी हुई हैं और जिस सफलता के आधार पर आपका भविष्य टिका हुआ है। आप अगर जंजाल में फँसेंगे, तो मरेंगे। नहीं साहब, मंत्र जपेंगे और पैसा कमाएँगे। यह सब झूठ है। अभी भी यही जालसाजी लिए बैठा है। जादूगरी लिए बैठा है। जादू क्या होता है? मिट्टी में फूँका, हो गया जादू। यही है तेरा अध्यात्म? बाजीगर कहीं का, बाजीगरी सीखने आया है। क्या सिखाएँ? बाजीगरी सिखाइए मिट्टी में फूँक मारिए और पैसा मँगाइए। गायत्री मंत्र पहिए और बेटा पैदा कर दीजिए। हट मूर्ख कहीं का, ये क्या करता रहता है, बेअक्ली की बात। अध्यात्म बेअक्ली का नाम नहीं है। बेअक्ली अलग बात है और अध्यात्म अलग बात है। जिससे आप फायदा उठा सकते हैं, जिसको पाकर हिंदुस्तान शानदार हुआ था और आप भी शानदार हो सकते हैं। वह अध्यात्म अलग है और ये बेअक्ली अलग है। कौन सी? जो मैं शुरू में ही कह रहा था मनुहार और उपहार को। मनुहार कीजिए और उपहार पाइए। बेटे, ये बच्चों का धंधा है। अगर आप बच्चे है, तो मैं नहीं कह सकता और छोटी चीजों तक भी मैं नहीं कह सकता, पर अगर बड़ी चीजों की बात है, तो बड़े लोगों की तरह से आप इजहार करना शुरू कीजिए।

दैवी अनुग्रह- भगवान की सिद्धि

यहाँ तक दो बातें हो गईं। एक जीव की शक्ति हो गई और एक प्रकृति की सिद्धि हो गई। एक सिद्धि और बाकी है। वह सिद्धि कौन सी है? वह सिद्धि भगवान की सिद्धि है, तीसरी सिद्धि है। भगवान की सिद्धि किसे कहते हैं? जिसे हम दैवी अनुग्रह कहते हैं। हाँ, दैवी अनुग्रह भी आते हैं। दैवी अनुग्रह हो सकते हैं? हाँ बेटे, दैवी अनुग्रह भी होते है। दैवी अनुग्रह भी आदमी को मिलते हैं, परंतु हरेक को नहीं मिलते। गुरु जी जो माँगेगा, उसे भी नहीं? नहीं बेटा, सबको नहीं मिलते। दैवी अनुग्रह प्राप्त करने की भी शर्त है। कौन सी शर्त है? अब हम आपको यही समझाने वाले हैं। जिसके लिए हम आपको अब मजबूर करने वाले हैं, जिसके लिए हम दबाव डालने वाले है, जिसके लिए हम जोर लगाते हैं, वह है पात्रता का विकास। जिस दिन आपकी पात्रता विकसित हो जाएगी, उस दिन क्या होगा? दैवी अनुग्रह बरसेंगे।

मित्रो ! दैवी अनुग्रह बरसते हैं, माँगे नहीं जाते। ये हवा जो है, आक्सीजन लेकर आती है। इतने काम की आक्सीजन आपको दी जाती है कि मैं क्या कहूँ आपसे। कितने दाम की आक्सीजन है? डाक्टर साहब से पूछिए कि ऑक्सीजन का सिलेंडर कितने का मँगाया था? छह सौ पचास रुपए का। एक आदमी के लिए कब तक एक सिलेंडर चल सकता है? अगर एक आदमी सारे दिन लगाए रखे तो दो- तीन दिन में खत्म हो जाएगा। हवा आपकी नाक में आक्सीजन की नली लेकर आती है और हर दिन लगभग तीन सौ रुपए की आक्सीजन आपको फोकट में दे जाती है। बेटे, आप देवता का अर्थ समझते नहीं हैं। देवता कहाँ से आते हैं? सूरज की धूप कहाँ से आती है? सूरज की धूप का दाम निकालिए। हमारे यहाँ लाइट जलती है। सौ वाट का बल्ब जलता है, यह कितनी बिजली कंज्यूम करता है? अपने मीटर को देख लें। हमारे यहाँ जो बिल आता है, हजार रुपए से ज्यादा का आता है। हमारे यहाँ हजार डेढ़ हजार रुपए को बिजली जलती है। हम देखते हैं कि रात में कितनी देर बिजली जलती है, तो कहते हैं कि भाई बंद करो बत्ती। आपने सौ वाट का बल्ब लगा रखा है, चालीस वाट का लगाइए पंद्रह का लगाइए। हम किफायत करते हैं। सूरज जितने हार्स पावर का है? कितने कैंडिल का आप समझते हैं सूरज को? वह आपके मकान पर जलता है। आप हीटर जलाते हैं, कितनी बिजली जल जाती है? दाई रुपए की और ये हीटर कितने रुपए में आता है?

मित्रों ! आसमान से लाइट बरसती है, रोशनी बरसती है, आक्सीजन बरसती है, जीवन बरसता है, प्राण बरसता है, सौंदर्य बरसता है। पानी की तरह से जाने क्या क्या बरसता है। सब कुछ बरसता है। यह सब भगवान बरसाता है, आदमी नहीं बरसाता। ये सब अनुग्रह भी बिना कीमत के मिलते हैं। सुकरात के पास एक शक्ति थी। उसका नाम उन्होंने डेमन रखा था। सुकरात उसके ऊपर पूरी तरह से निर्भर रहते थे। डेमॅन ऊपर से आता था और सहायता करता था। विक्रमादित्य के बारे में भी मैंने सुना है कि उनके पास भी शक्तियाँ आती थी और उनकी मदद करती थी। बेटे, कितने देवता होते हैं, जो आदमी की सहायता करते हैं? वे इतनी सहायता करते हैं कि मैं क्या कहूँ आपसे। उनकी सहायता के मारे आदमी धन्य हो जाता है।

देवता कौन होते हैं? देवता अडोसी- पड़ोसी नहीं होते। वे संबंधी भी नहीं होते। देवता उन शक्तियों का नाम है, जो आदमी के ऊपर बरसती हैं और आदमी को धन्य करती हैं। किस- किसके ऊपर देवता बरसे? बेटे, ज्यादा तो नहीं कहता मैं, औरों का हवाला तो नहीं देता, बस अपना हवाला देता हूँ कि हमारे ऊपर कौन बरसता है? सुकरात के तरीके से एक डेमॅन हमारे भीतर भी बरसता है और सारा का सारा अनुग्रह उसी से काम करता है। कैसा अनुग्रह है? आपको मालूम है उसमें अक्ल का अनुग्रह भी है। अक्ल कहाँ से बरसती है? अक्ल कहाँ से आती है? आप कौन से स्कूल में पढ़े हैं? बेटे, कहीं भी नहीं पढ़े हम। ये जो सारी अक्ल बरसती है, वो आसमान से बरसकर हमारे दिमाग में घुस जाती है और पैसा कहाँ से बरसता है? पैसा बेटे, आसमान से बरसता है और हमारी तिजोरी में घुस जाता है।

डेमन- गुरु -देवता

ये कौन घुसाता है ?? डेमन। डेमन कौन सा होता है? डेमन कहते हैं भगवान को। आपके डेमन का क्या नाम है? अपने गुरु को हम डेमन कहते हैं। गुरु क्या होता है? अरे बेटे, वह भगवान है। भगवान हमको देता है। हरेक को वह नहीं दे सकता। आपका गुरु हमको दे देगा? नहीं बेटे, आपको नहीं देगा। गुरु जी आप हमको अपने गुरु जी का साक्षात्कार करा दे। हाँ बेटे, हम दर्शन तो आपको करा देंगे लेकिन उससे क्या फायदा होगा तो जैसे ही दर्शन करेंगे, वैसे ही वे पैसा दे देंगे। चल बेहूदा कहीं का, इसीलिए तू दर्शन करेगा। देख मैं कुछ नहीं देता। उदाहरण के लिए बैंक में जाइए और कहिए कि मैनेजर साहब ! हाँ हम आपका दर्शन करेंगे, तो आप दर्शन कीजिए न। हाँ साहब, दर्शन हो गए आपके। अब जाइए आप नहीं साहब, हम जिस काम से आए थे, जिस मनोकामना को पूरी करने के लिए आए थे, उस मनोकामना का क्या हुआ? हमको पंद्रह हजार रुपए दे दीजिए। आपका बैंक में एकाउंट है? नहीं साहब! बैंक में तो कोई एकाउंट नहीं है, तो फिर किस बात के माँगते हैं। दर्शन की फिलॉसफी नहीं समझते और आ गए दर्शन करने।

आप स्वर्ग देखेंगे या नरक, चलिए हम दिखा लाते हैं। अच्छा चलिए पहले लक्ष्मी जी के दर्शन करते हैं। स्टेट की में जब नोटों के बंडल आते हैं, तो खुलते हैं और रख जाते हैं। देखिए, लक्ष्मी जी के दर्शन कीजिए। दर्शन कर लिए, अब आप जाइए। फलाने जो का दर्शन करेंगे, दिवाने जी का दर्शन करेंगे, बस दर्शन ही दिमाग में सवार हो गया है। एक तो वो वहम सवार हो गया था कि मनुहार करेंगे और उपहार पाएँगे। अब एक और वहम आ गया कि दर्शन करेंगे और निहाल हो जाएँगे। बहुत करेंगे दर्शन? दर्शन की फिलॉसफी समझते नहीं और दर्शन के लिए कहते है। दर्शन करने का मतलब क्या है जानते हैं आप? गाँधी जी का दर्शन जिन्होंने किया था, उनका नाम था नेहरू। गाँधी जी का दर्शन जिन्होंने किया था, उनका नाम था पटेल। गाँधी जी का दर्शन जिन्होंने किया, उनका नाम था मालवीय। गाँधी जी का दर्शन जिन्होंने किया, उनका नाम था अमुक और अमुक।

अध्यात्म है साइंस आँफ सोल

मित्रो ! क्या करना पड़ेगा? आपको आध्यात्मिक जीवन में पात्रता का विकास करना होगा। तभी आवाज की प्रतिध्वनि की भाँति भगवान के अनुग्रह बरसते हैं और आदमी अपनी सामर्थ्य से अधिक काम करने में समर्थ हो जाता है। बड़े से बड़े काम करने के लिए, अपने लिए और पराये के लिए कुछ करने में वह समर्थ हो जाता है। मेंहदी हम पीसते हैं दूसरों के फायदे के लिए, पर हम स्वयं निहाल हो जाते हैं। ऐसा है अध्यात्म, जो मैं आपको सिखाने वाला था। इस अध्यात्म का बेस बेटे एक ही है। क्या बेस है कि आप अपने व्यक्तित्व को ठीक करें। अपने भीतर वह कशिश पैदा कीजिए। कौन सी? जिससे जो चीज आप पाना चाहते हैं, पा सके। इसे क्या कहते हैं? अध्यात्म इसी का नाम है। जो अध्यात्म आपने पढ़। है, वह अध्यात्म नहीं है। अध्यात्म माँगने की विधा का नाम नहीं है। बाहर से पाने की विधा का नाम नहीं है। अध्यात्म किसे कहते हैं? अध्यात्म कहते हैं, साइंस आँफ सोल को, सोल की साइंस को। सोल का हम डेवलपमेंट कैसे कर सकते हैं? सोल को परिष्कृत कैसे कर सकते हैं? सोल को हम शानदार कैसे बना सकते हैं, जिससे बाहर की चीजें खिंचती हुई चली जाएँ।

मित्रों ! हमारा अपना मैग्नेट सुरक्षित करने की कला का नाम अध्यात्म है। अपना मैग्नेट जब खींचता है, तो ये बाहरी चीजें खिंचती हैं। प्लाण्ट जब खींचते हैं, तो बादल बरसते हैं। बादलों का मैग्नेट नहीं है। पेड़ जब खत्म हो जाते है तो पानी बरसना बंद हो जाता है। पेड़ों का मैग्नेट ही उन्हें खींचता है। खदानें जब पैदा होती हैं तो इसके अंदर जो लोहा होता है जो दूर- दूर तक बचता रहता है और खजाने में अपने पास जमा कर लेता है। मैग्नेट खींचता रहता है। चोर चोरों को खींचते रहते हैं। आपको मालूम है कि एक जुआरी के पास देरी जुआरी जमा हो जाते हैं और वेश्याओं के यहाँ भँवरे जमा हो जाते हैं। कहाँ से भँवरे आ जाते हैं? क्यों साहब, आप कहाँ से आए? हम तो साहब बहुत दूर के रहने वाले हैं। आपका ये कौन लगता है ?? कोई नहीं लगता। क्यों साहब, फिर ये आपके कमरे में क्यों रहते हैं? कशिश ने इन्हें खींच लिया। जुआरी के पास जुआरी, चोरों के पास चोर लफंगो के पास लफंगे, विद्वानों के सास विद्वान, ज्ञानियों के पास ज्ञानी खिंचे चले आते हैं। ऐसी आदतें या आदमी के भीतर का मैग्नेट जब उछाल मारता है, कशिश उठती है, तो वह समानधर्मी को अपने पास अनायास ही खींच लेता है।

मित्रो ! जब आपका मैग्नेट भीतर से बढ़ेगा, तब आप खींचने में समर्थ हो जाएँगे। वे चीजें जिनका अनुभव मुझे व्यक्तिगत रूप है, वही आपको बता रहा हूँ। हवा में गायब हो जाने का? बेटे, हवा में गायब हो जाने का अनुभव हमको नहीं है और क्या पेशाब से दिया जलाने का अनुभव आपको नहीं है? बेटा, वो भी नहीं है। हमको जब दिया जलाना पड़ता है, तो मोमबत्ती जलाते हैं और तेल जलाते हैं। पेशाब से जला दीजिए। बेटे, हमको नहीं आता और कोई करामातें भी नहीं आती। करामातों से कोई अध्यात्मवादी नहीं हो जाता। अध्यात्म अपने आप में सबसे बड़ी करामात है। उससे आदमी महान आत्मा हो जाता है, देवात्मा हो जाता है, ऋषि हो जाता है और नर से नारायण हो जाता है। ये अपने आप में एक विधा है।

व्यक्तित्व का चुंबक

मित्रों ! आध्यात्मिक शक्तियों को आदमी की कशिश खींचती है। किसको खींचती है? जो सिद्धियाँ आप चाहते हैं, उनको कशिश खींचती है। गुलाब का फूल जब खिलता है, तो भँवरों को खींचता है, तितलियों को खींचता है और शहद की मक्खियों को खींचता है। आदमी जब खिलता है, तब देवताओं को खींचता है, भगवान को खींचता है, पड़ोसियों की खींचता है, समाज को खींचता है और अपने अंतरंग में दबी हुई क्षमताओं को खींचता है। सारी की सारी चीजें खिंचती हुई आ जाती हैं और आदमी संपन्न हो जाता है, समर्थ हो जाता है। ये किसके ऊपर टिका हुआ है अपना व्यक्तित्व, अपने आप को सुधार लेने के ऊपर। यही हैं अध्यात्म के सिद्धांत, जो मैं आपको सिखाने वाला था, पढाने वाला था।

मित्रो ! में क्या कहने वाला था? ऋषियों की उसी वाणी को दोबारा दोहराने वाला था, जिसमें यह कहा गया था कि आत्मा वा रे ज्ञातव्य ध्यातव्य निदिध्यासतव्यं। अरे मूर्खो, अपने आप को देखो, अपने आप को समझो और अपने आप को ठीक को। यह क्या है? यह ऋषियों की वाणी है और यह बो अध्यात्म है, जिसमें भगवान ने कहा है कि यदि इनसानों से आप ऊँचा उठना चाहते हैं, आगे बढ़ना चाहते हैं, खुशी होना चाहते हैं, समृद्ध होना चाहते हैं, संपन्न होना चाहते हैं, तो उसके लिए क्या तरीका हो सकता है? फार्मूला क्या हो सकता है? भगवान ने कहा, उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्। अर्थात अपने आप को उठाइए, अपने आप को गिराइए मत।

मित्रो ! गिराता कौन है? इनसान। उठाता कौन है? भगवान इनसान के भीतर उठाने वाला जो माद्दा है, उसको कहते हैं भगवान। भगवान किसे कहते हैं? आदमी के भीतर एक ऐसी प्रेरणा है, जो आदमी को उठा देती है, वहीं भगवान है। जो व्यापक भगवान हैं, उसको तो बेटा कौन कहेगा? वह तो बहुत फैला हुआ है, उसकी तो बात ही मत कीजिए। ब्रह्म तो इतना विस्तृत है, इतना विस्तृत है कि हमारी अक्ल भी काम नहीं करती। हमारे भीतर वह भगवान है, जो हमें उठाता है और वह भगवान नहीं है जो गिराता है ?? उसको बेटे, शैतान कहते हैं। शैतान को रोकिए, भगवान का समर्थन कीजिए और आप स्वयं ऊँचे उठिए।मित्रो ! ये किसने कहा है? गीताकार ने कहा है, उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्। अपने आप को उठाओ, अपने आप को गिराओ मत। अपने आप को कौन गिराता है? अरे कोई नहीं गिराता, आप स्वयं अपने आप को गिराते हो। नहीं साहब, हमको पड़ोसी तंग करता है और बीवी तंग करती है और मुहल्ले वाले तंग करते हैं, बुखार तंग करता है। कोई नहीं तंग करता। आपका अपने आप को स्वयं तंग करते हैं। आपका अपने आप को तंग करने का माद्दा ही है, जो आपके सामने आ जाता है। आप अपने आप को ठीक करिए। आप एक मित्र से मित्रता बना लीजिए और एक दुश्मन से आप पीछा छुड़ा लीजिए। अध्यात्म में कौन सा मित्र है और कौन सा दुश्मन है? आत्मैव ह्यात्मनो बंधुरात्मैव रिपुरात्मनः अर्थात आप ही अपने बैरी हैं और आपने ही अपने पैरों पर कुल्हाड़ा मारा है और आप ही हैरान होते है। आप ही उद्धरेत् अर्थात अपने आप को सही कीजिए, अपने आप को ठीक कीजिए।

अपने आप को बदलें

मित्रो ! आप अपने आप को बदल लीजिए, फिर देखिए किस तरह से दुनिया बदल जाती है। सारा का सारा वातावरण बदल जाता है। आप अपनी आँखों का चश्मा बदलिए, हरा चश्मा छोड़िए और लाल चश्मा पहनिए, फिर देखिए, सारी दुनिया लाल हो जाएगी। आपके पास जो निगेटिव चिंतन है, अंतर्मुखी जीवन है। स्वार्थ से घिरा हुआ चिंतन आपके ऊपर हावी है, इसको आप ठीक करना शुरू कर लें, फिर मैं आपको यकीन दिलाता हूँ विश्वास दिलाता हूँ कि आपको तीनों तरह की सहायता मिलेगी। देने के लिए तीनों खड़े हुए हैं.पहला- - आपका अंतःकरण सिद्धियाँ देने के लिए खड़ा है। हमारे भीतर दिव्य शक्तियाँ हैं, दिव्य क्षमताएँ भरी पड़ी हैं और हम आपको उछाल सकते हैं, आपके भीतर का वर्चस्व, आपके भीतर का वैभव उठे, तो वह आपकी निहाल कर देगा। दूसरा-समाज के लोग आपकी आरती उतारने के लिए खड़े है। आप जरा प्रकाशवान तो होइए फिर देखिए हम आपकी कितने तरीके से सहायता करते हैं। सामाजिक जीवन में लोग कितना सहयोग करते हैं और तीसरे- भगवान के, जीवन देवता के अनुदान वरदान किस तरीके से आपके ऊपर बरसते हैं। आपके लिए देवता फूलों का विमान लिए बैठे हैं। आप अपने को बदलिए तो सही, ऊँचा तो उठाइए। दैवी अनुदान सतत आप पर बरसते ही रहेंगे।

आज की बात समाप्त।
।। ॐ शांति: ।।


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