
आसन
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पद्मासन, सिद्धासन, सिद्धयोनि आसन, वज्रासन, स्वस्तिकासन, सुखासन, भद्र्रासन, वीरासन, ध्यान वीरासन
उच्चस्तरीय साधना विधान के अन्तर्गत कुछ अतिरिक्त ध्यानात्मक आसन- प्राणायाम, मुद्रा, बन्ध का उल्लेख किया जा रहा है, जिन्हें साधक आवश्यकतानुसार प्रयोग कर सकते हैं।
आसन समग्र शरीर का होता है। कमर सीधी, आँखें अधखुली अथवा अधबन्द- सी, शान्त चित्त, स्थिर काया, यह स्थिति ध्यान के लिए अधिक उपयुक्त मानी जाती है। दोनों हाथ गोदी में हों, शरीर सुखासन की स्थिति में होते हुए भी सुस्थिर, सुव्यवस्थित हो। आसन निम्रलिखित हैं।
१. पद्मासन- दोनों पैर विपरीत दिशा में दोनों जाँघों पर रखें। तलवा ऊपर की ओर रहे और एड़ी कूल्हे की हड्डी का स्पर्श करे। सिर, मेरुदण्ड सीधे रहें और कन्धे तनाव मुक्त ।।
लाभ- शारीरिक स्थिरता,मन शान्त। प्राण शक्ति का सुषुम्ना में प्रवाह, जठराग्नि तेज।
२. सिद्धासन- बाएँ पैर की एड़ी पर बैठते हुए तलवे को दायीं जाँघ के भीतर लें। बाँये पैर की एड़ी का दबाव गुदा एवं जननेन्द्रिय के बीच रहे। दाएँ पैर को मोड़कर टखने को बाएँ टखने के ठीक ऊपर या पास में रखें। एड़ियाँ एक दूसरे के ऊपर रखें। दाएँ पैर के तलवे को बायीं जाँघ एवं पिण्डली के बीच फँसायें। हाँथों को घुटनों पर रखें। इसका अभ्यास किसी भी पैर को ऊपर करके किया जा सकता है।
लाभ- प्राण ऊर्जा का ऊर्ध्वगमन,ब्रह्मचर्य पालन में सहयोग। रक्त चाप सन्तुलित करता है।
३. सिद्धयोनि आसन- यह केवल महिलाओं के लिये है। बायीं एड़ी को योनि के भगोष्ठ के भीतर जमा कर रखें। तलवे को दायीं जाँघ व पिण्डली के बीच फँसा लें। बायीं एड़ी के दबाव को महसूस करें। दायें पैर की एड़ी को बायीं एड़ी पर इस प्रकार रखें कि वह भग- शिश्न को दबाए। तलवे को बायीं जाँघ एवं पिण्डली के बीच फँसा दें। इसका अभ्यास किसी भी पैर को ऊपर करके किया जा सकता है।
लाभ- सिद्धासन के समान। चित्र -- सिद्धासन के समान।
४. वज्रासन- घुटनों के बल जमीन पर बैठें। पैरों के अँगूठे को एक साथ और एड़ियों को अलग- अलग रखें। पज्जों के भीतरी भाग के ऊपर बैठें। एड़ियाँ कूल्हों का स्पर्श करें। हाथों को घुटनों पर रखें। हथेलियाँ नीचे की ओर रहें। अन्दर- बाहर, आती- जाती श्वास पर ध्यान केन्द्रित करें।
लाभ- पाचन क्रिया तीव्र हो जाती है, फलस्वरूप अम्लता एवं पेप्टिक अल्सर में लाभ होता है। हर्निया, बवासीर, हाइड्रोसिल, मासिकस्राव की गड़बड़ी दूर करता है। साइटिका व मेरुदण्ड के निचले भाग की गड़बड़ी से ग्रस्त व्यक्तियों के लिये ध्यान के लिये सर्वोत्तम आसन है। सुषुम्रा में प्राण का सञ्चार करता है तथा काम ऊर्जा को मस्तिष्क में सम्प्रेषित करता है।
५. स्वस्तिकासन- यह सिद्धासन का सरलीकृत रूप है। अन्तर केवल इतना है कि एड़ी का दबाव गुदा एवं जननेन्द्रिय के बीच न होकर बगल में रहता है। चित्र -- सिद्धासन के समान
लाभ- पेशीय पीड़ा से परेशान लोगों के लिये बैठने हेतु एक स्वस्थ आसन है।
६. सुखासन- जिस प्रकार बैठने से शरीर को सुविधा हो, शान्ति में अड़चन न पड़े, वही सुखासन कहलाता है। बाएँ पैर को मोड़कर पञ्जे को दाएँ जाँघ के नीचे रखें। दाएँ पैर को मोड़कर पज्जे को बाईं जाँघ के नीचे रखें। हाथों को घुटनों पर रखें।
लाभ- बिना तनाव, कष्ट और पीड़ा के शारीरिक व मानसिक सन्तुलन प्रदान करता है। जो लोग ध्यान के कठिन आसनों में नहीं बैठ सकते, उनके लिए सरलतम एवं सर्वाधिक आरामदायक आसन है।
७. भद्र्रासन- वज्रासन में बैठें। घुटनों को जितना सम्भव हो दूर- दूर कर लें, किन्तु जोर न लगायें। पैरों की उँगलियों का सम्पर्क जमीन से बना रहे। अब पज्जों को एक दूसरे से इतना अलग कर लें कि नितम्ब और मूलाधार इनके बीच जमीन पर टिक सके। हाथों को घुटनों पर रखें। हथेलियाँ नीचे की ओर रहें। नासिका के अग्र भाग पर दृष्टि को एकाग्र करें।
लाभ- यह ध्यान के लिये एक उत्कृष्ट आसन है। इससे मूलाधार चक्र उत्तेजित होता है। वज्रासन से प्राप्त होने वाले सभी लाभ इससे भी प्राप्त होते हैं।
८. वीरासन- वज्रासन में बैठें। दाहिने घुटने को ऊपर उठायें और दाहिने पज्जे को बाएँ घुटने के भीतरी भाग के पास जमीन पर रखें। दाहिनी कोहिनी को दाहिने घुटने पर और ठुड्डी को दाहिने हाथ की हथेली पर रखें। आँखों को बन्द कर विश्राम करें। बाएँ पज्जे को दाहिने घुटने के बगल में रखकर इसकी पुनरावृत्ति करें। सजगता श्वास पर रखें।
लाभ- एकाग्रता में वृद्धि,शारीरिक एवं मानसिक विश्रान्ति प्रदान करता है। गुर्दे, यकृत,प्रजनन एवं आमाशय अंगों के लिये यह उत्तम आसन है।
९. ध्यान वीरासन- दाएँ पैर को बाएँ पैर के ऊपर इस प्रकार रखें कि दाएँ पैर की एड़ी बाएँ नितम्ब को और बाएँ पैर की एड़ी दाएँ नितम्ब को स्पर्श करे। दाएँ घुटने को बाएँ घुटने पर तथा हाथों को घुटने या पैर के दोनों पंजों पर जो भी सुविधाजनक हो, रख लें। इस क्रम को विपरीत अर्थात् दाएँ पैर के ऊपर बायाँ पैर रखकर भी कर सकते हैं।
लाभ- श्रोणीय और प्रजनन अङ्गों की मालिश कर उन्हें पुष्ट बनाता है।
उच्चस्तरीय साधना विधान के अन्तर्गत कुछ अतिरिक्त ध्यानात्मक आसन- प्राणायाम, मुद्रा, बन्ध का उल्लेख किया जा रहा है, जिन्हें साधक आवश्यकतानुसार प्रयोग कर सकते हैं।
आसन समग्र शरीर का होता है। कमर सीधी, आँखें अधखुली अथवा अधबन्द- सी, शान्त चित्त, स्थिर काया, यह स्थिति ध्यान के लिए अधिक उपयुक्त मानी जाती है। दोनों हाथ गोदी में हों, शरीर सुखासन की स्थिति में होते हुए भी सुस्थिर, सुव्यवस्थित हो। आसन निम्रलिखित हैं।
१. पद्मासन- दोनों पैर विपरीत दिशा में दोनों जाँघों पर रखें। तलवा ऊपर की ओर रहे और एड़ी कूल्हे की हड्डी का स्पर्श करे। सिर, मेरुदण्ड सीधे रहें और कन्धे तनाव मुक्त ।।
लाभ- शारीरिक स्थिरता,मन शान्त। प्राण शक्ति का सुषुम्ना में प्रवाह, जठराग्नि तेज।
२. सिद्धासन- बाएँ पैर की एड़ी पर बैठते हुए तलवे को दायीं जाँघ के भीतर लें। बाँये पैर की एड़ी का दबाव गुदा एवं जननेन्द्रिय के बीच रहे। दाएँ पैर को मोड़कर टखने को बाएँ टखने के ठीक ऊपर या पास में रखें। एड़ियाँ एक दूसरे के ऊपर रखें। दाएँ पैर के तलवे को बायीं जाँघ एवं पिण्डली के बीच फँसायें। हाँथों को घुटनों पर रखें। इसका अभ्यास किसी भी पैर को ऊपर करके किया जा सकता है।
लाभ- प्राण ऊर्जा का ऊर्ध्वगमन,ब्रह्मचर्य पालन में सहयोग। रक्त चाप सन्तुलित करता है।
३. सिद्धयोनि आसन- यह केवल महिलाओं के लिये है। बायीं एड़ी को योनि के भगोष्ठ के भीतर जमा कर रखें। तलवे को दायीं जाँघ व पिण्डली के बीच फँसा लें। बायीं एड़ी के दबाव को महसूस करें। दायें पैर की एड़ी को बायीं एड़ी पर इस प्रकार रखें कि वह भग- शिश्न को दबाए। तलवे को बायीं जाँघ एवं पिण्डली के बीच फँसा दें। इसका अभ्यास किसी भी पैर को ऊपर करके किया जा सकता है।
लाभ- सिद्धासन के समान। चित्र -- सिद्धासन के समान।
४. वज्रासन- घुटनों के बल जमीन पर बैठें। पैरों के अँगूठे को एक साथ और एड़ियों को अलग- अलग रखें। पज्जों के भीतरी भाग के ऊपर बैठें। एड़ियाँ कूल्हों का स्पर्श करें। हाथों को घुटनों पर रखें। हथेलियाँ नीचे की ओर रहें। अन्दर- बाहर, आती- जाती श्वास पर ध्यान केन्द्रित करें।
लाभ- पाचन क्रिया तीव्र हो जाती है, फलस्वरूप अम्लता एवं पेप्टिक अल्सर में लाभ होता है। हर्निया, बवासीर, हाइड्रोसिल, मासिकस्राव की गड़बड़ी दूर करता है। साइटिका व मेरुदण्ड के निचले भाग की गड़बड़ी से ग्रस्त व्यक्तियों के लिये ध्यान के लिये सर्वोत्तम आसन है। सुषुम्रा में प्राण का सञ्चार करता है तथा काम ऊर्जा को मस्तिष्क में सम्प्रेषित करता है।
५. स्वस्तिकासन- यह सिद्धासन का सरलीकृत रूप है। अन्तर केवल इतना है कि एड़ी का दबाव गुदा एवं जननेन्द्रिय के बीच न होकर बगल में रहता है। चित्र -- सिद्धासन के समान
लाभ- पेशीय पीड़ा से परेशान लोगों के लिये बैठने हेतु एक स्वस्थ आसन है।
६. सुखासन- जिस प्रकार बैठने से शरीर को सुविधा हो, शान्ति में अड़चन न पड़े, वही सुखासन कहलाता है। बाएँ पैर को मोड़कर पञ्जे को दाएँ जाँघ के नीचे रखें। दाएँ पैर को मोड़कर पज्जे को बाईं जाँघ के नीचे रखें। हाथों को घुटनों पर रखें।
लाभ- बिना तनाव, कष्ट और पीड़ा के शारीरिक व मानसिक सन्तुलन प्रदान करता है। जो लोग ध्यान के कठिन आसनों में नहीं बैठ सकते, उनके लिए सरलतम एवं सर्वाधिक आरामदायक आसन है।
७. भद्र्रासन- वज्रासन में बैठें। घुटनों को जितना सम्भव हो दूर- दूर कर लें, किन्तु जोर न लगायें। पैरों की उँगलियों का सम्पर्क जमीन से बना रहे। अब पज्जों को एक दूसरे से इतना अलग कर लें कि नितम्ब और मूलाधार इनके बीच जमीन पर टिक सके। हाथों को घुटनों पर रखें। हथेलियाँ नीचे की ओर रहें। नासिका के अग्र भाग पर दृष्टि को एकाग्र करें।
लाभ- यह ध्यान के लिये एक उत्कृष्ट आसन है। इससे मूलाधार चक्र उत्तेजित होता है। वज्रासन से प्राप्त होने वाले सभी लाभ इससे भी प्राप्त होते हैं।
८. वीरासन- वज्रासन में बैठें। दाहिने घुटने को ऊपर उठायें और दाहिने पज्जे को बाएँ घुटने के भीतरी भाग के पास जमीन पर रखें। दाहिनी कोहिनी को दाहिने घुटने पर और ठुड्डी को दाहिने हाथ की हथेली पर रखें। आँखों को बन्द कर विश्राम करें। बाएँ पज्जे को दाहिने घुटने के बगल में रखकर इसकी पुनरावृत्ति करें। सजगता श्वास पर रखें।
लाभ- एकाग्रता में वृद्धि,शारीरिक एवं मानसिक विश्रान्ति प्रदान करता है। गुर्दे, यकृत,प्रजनन एवं आमाशय अंगों के लिये यह उत्तम आसन है।
९. ध्यान वीरासन- दाएँ पैर को बाएँ पैर के ऊपर इस प्रकार रखें कि दाएँ पैर की एड़ी बाएँ नितम्ब को और बाएँ पैर की एड़ी दाएँ नितम्ब को स्पर्श करे। दाएँ घुटने को बाएँ घुटने पर तथा हाथों को घुटने या पैर के दोनों पंजों पर जो भी सुविधाजनक हो, रख लें। इस क्रम को विपरीत अर्थात् दाएँ पैर के ऊपर बायाँ पैर रखकर भी कर सकते हैं।
लाभ- श्रोणीय और प्रजनन अङ्गों की मालिश कर उन्हें पुष्ट बनाता है।