• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • एक से ही हों एकाकार
    • करुणा कर सकती है—चंचल मन पर काबू
    • बड़ा गहरा है प्राण व मन का नाता
    • ध्यान से उपजती है—अतीन्द्रिय संवेदना
    • ध्यान की गहराई में छिपा है—परम सत्य
    • राग शमन करता है—वीतराग का ध्यान
    • अन्तर्चक्षु खोल देगा निद्रा का मर्म
    • अभिरुचि के ही अनुरूप हो ध्यान
    • अतिचेतन तक को वश में कर लेता है ध्यान
    • स्फटिक मणि सा बनाइये मन
    • मंजिल नहीं, पड़ाव है—सवितर्क समाधि
    • सत्य का साक्षात्कार है निर्वितर्क समाधि
    • ध्यान की अनुभूतियों द्वारा ऊर्जा स्नान
    • ध्यान का अगला चरण है—समर्पण
    • परम शुद्घ को मिलता है, अध्यात्म का प्रसाद
    • निर्मल मन को प्राप्त होती है, ऋतम्भरा प्रज्ञा
    • बिन इन्द्रिय जब अनुभूत होता है सत्य
    • जब मिलते हैं व्यक्ति और विराट्
    • सारे नियंत्रणों पर नियंत्रण है—निर्बीज समाधि
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • एक से ही हों एकाकार
    • करुणा कर सकती है—चंचल मन पर काबू
    • बड़ा गहरा है प्राण व मन का नाता
    • ध्यान से उपजती है—अतीन्द्रिय संवेदना
    • ध्यान की गहराई में छिपा है—परम सत्य
    • राग शमन करता है—वीतराग का ध्यान
    • अन्तर्चक्षु खोल देगा निद्रा का मर्म
    • अभिरुचि के ही अनुरूप हो ध्यान
    • अतिचेतन तक को वश में कर लेता है ध्यान
    • स्फटिक मणि सा बनाइये मन
    • मंजिल नहीं, पड़ाव है—सवितर्क समाधि
    • सत्य का साक्षात्कार है निर्वितर्क समाधि
    • ध्यान की अनुभूतियों द्वारा ऊर्जा स्नान
    • ध्यान का अगला चरण है—समर्पण
    • परम शुद्घ को मिलता है, अध्यात्म का प्रसाद
    • निर्मल मन को प्राप्त होती है, ऋतम्भरा प्रज्ञा
    • बिन इन्द्रिय जब अनुभूत होता है सत्य
    • जब मिलते हैं व्यक्ति और विराट्
    • सारे नियंत्रणों पर नियंत्रण है—निर्बीज समाधि
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Books - अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान -1

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN TEXT SCAN SCAN SCAN


एक से ही हों एकाकार

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


1 Last
 योग पथ पर आगे बढ़ते जाना आसान नहीं है। इसमें आने वाले अँधेरे, अड़चनें, मुश्किलें भी जटिल है।  हर नया कदम योग साधक के सामने नयी चुनौती खड़ी करता है। इसका सामना करने के लिए नए सूत्र, नयी तकनीकें और नए ढंग की प्रकाश ज्योति चाहिए। अन्तर्यात्रा विज्ञान की हर नयी कड़ी योग साधक की इसी समस्या का सार्थक समाधान है। योग पथ की गहनता के अनुरूप इसके समाधान की क्षमता भी बढ़ती जाती है। योग साधक इसकी अनुभूति अपनी अन्तर्यात्रा में करते हैं। उन्हें पग-पग पर महॢष पतंजलि की प्रेरणा एवं ब्रह्मॢष परम पूज्य गुरुदेव के आशीषों की अनुभूति होती है।
    जीवन ऊर्जा के चक्र के अव्यवस्थित हो जाने से जन्मे विघ्रों को समाप्त करने का समाधान महॢष अपने अगले सूत्र में बताते हैं। और यह सूत्र है-
    तत्प्रतिषेधार्थमेकतत्त्वाभ्यासः॥ १/३२॥
    शब्दार्थ-तत्प्रतिषेधार्थम्= उनको दूर करने के लिए; एकतत्त्वाभ्यासः= एक तत्त्व का अभ्यास (करना चाहिए)।
    अर्थात् उनको (साधना में आने वाले सभी विघ्रों को) दूर करने के लिए एक तत्त्व का अभ्यास करना चाहिए।
    महॢष पतंजलि का यह सूत्र अपने अर्थों में अतिव्यापक है। वह इस सूत्र में एक तत्त्व के अभ्यास को सभी विघ्रों के निराकरण के रूप में तो प्रस्तुत करते हैं, परन्तु वह एक तत्त्व क्या हो? इसका चुनाव योग साधक पर ही छोड़ देते हैं। अब यह योग साधक की साधना के स्वरूप, स्तर पर निर्भर करता है कि वह एक तत्त्व के रूप में किसे चुनता है। परन्तु इतना जरूर है कि वह जिसे भी चुने उसी में उसके मन-प्राण घुलने चाहिए। वहीं पर उनके विचार व भाव केन्द्रित होना चाहिए। यानि कि इस एक तत्त्व को उसके साधना जीवन में चरम आदर्श के रूप में प्रतिष्ठित होना चाहिए। इसकी स्मृति में उसकी जीवन धारा बहनी चाहिए।
    भक्त के जीवन में यह एक तत्त्व उसके भगवान् होते हैं। उसका हृदय सदा अपने आराध्य की स्मृति से स्पन्दित होता है। अपने आराध्य के प्रति उसकी भावनाएँ इतनी सघन होती हैं कि उसे यह अभ्यास करना नहीं पड़ता, बल्कि अपने आप बरबस होता चलता है। ध्रुव हो या प्रह्लाद, मीरा हो या रैदास इनके मन-प्राण, विचार- भावनाएँ सदा अपने भगवान् में रमे रहते हैं। श्री रामकृष्ण परमहंस को माँ कहते ही भाव समाधि घेर लेती थी। सच तो यह है कि भक्तों के लिए बड़ा सहज होता है—अपने भगवान् में रमना। वह अपने भगवान् में इतनी प्रगाढ़ता से रमता है कि सभी अवरोध अपने आप ही विलीन होते जाते हैं।
बात मीरा की करें, तो उनके कृष्ण प्रेम की डगर सहज नहीं थी। इस डगर पर चलने वाली मीरा को राणा जी कभी साँप का पिटारा भेजते थे, तो कभी विष का प्याला, लेकिन इन विघ्रों से मीरा को कभी घबराहट नहीं होती। वह तो सदा यही कहती रहती- ‘मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई’। सच तो यह है कि भक्त के जीवन का दर्शन ही ‘दूसरो न कोई’ है। किसी और का चिन्तन उसे सुहाता नहीं है। तभी तो गोपियाँ ज्ञान सिखाने आए उद्धव को समझाने लगती हैं- ‘ऊधौ मन नाहीं दस-बीस, एक हुतो सो गयो स्याम संग को आराधै ईस’।
    भक्त के लिए बड़ा सजह होता है एक तत्त्व का अभ्यास। क्योंकि वही जानता है ‘एक’ में छिपा सत्य। बात है तो खरी, पर कहे बिना रहा भी नहीं जाता। प्रेम की रीति तो भक्त ही जानता है। जिसे दुनिया प्रेम, प्यार का नाम देती है, वह तो वासनाओं की गंदेला कीचड़ में लिपटने, लिपटाने के सिवा और क्या है? देखा यही जाता है कि सारी उम्र प्यार-प्रेम का राग अलापने वाले अपने हठ, जिद एवं अहं को थामे रहते हैं। अब हठ, जिद एवं अहं के विषधरों को पालने वाले भला क्या जानेंगे कि प्रेम तो ‘सीस उतारै भुइँ धरै’ का सौदा है। कबीर ने जाना था इस सच को, तभी तो उन्होंने कहा कि ‘प्रेम गली अति साँकरी, जामे दुइ न समाहिं’। यानि कि प्रेम की  गली अति सँकरी है, इसमें दो आ ही नहीं सकते।
    बड़ा गहरा अर्थ है इस बात में। जो प्रेम में जीता है, वही इस रहस्य को जानता है। जब प्रेम शुरू होता है, तब दो होते हैं, एक भक्त, दूसरा भगवान्। लेकिन भक्त की दीवानगी अपने भगवान् के लिए इतनी गहरी होती है कि अपने आप को मिटाने के लिए ठान लेता है। उसकी कोशिश होती है कि मेरा अस्तित्व भगवान् में विलीन हो जाए। भक्त रहे ही नहीं भगवान् ही बचे। और होता भी यही है कि भगवान् ही बचता है।
    भगवान् से प्रेम संसार में बड़ी विरल घटना के रूप में सामने आता है। बड़ी बड़भागी होती है वे आत्माएँ, जो मीरा बनकर प्रकट होती हैं। पर एक प्रेम- एक भक्ति की शुरूआत थोड़ी आसान है। और वह है गुरुभक्ति, अपने गुरु से प्रेम। पतंजलि प्रणीत एक तत्त्व के अभ्यास का यह बड़ा सरल एवं अनुभूत उपाय है। परम पूज्य गुरुदेव ने स्वयं अपने जीवन में यही सच साधा था। आज उनके शिष्यों के सामने भी यही सुपथ है। अपने गुरु का ध्यान, उन्हीं का चिन्तन, उनकी ही कथा, वार्ता और उन्हीं का ही काम। जो ऐसा करते हैं, उनके जीवन में एक तत्त्व का अभ्यास स्वयं ही होने लगता है। और इसके परिणाम स्वरूप योग साधना के विघ्रों का निराकरण भी होता जाता है। यह कथन न तो कोरी कल्पना है, और न ही किसी ताॢककता का निष्कर्ष। यह तो अनुभूति में सनी, पगी बात है, पढ़ने वाले चाहे तो वे भी कर लें। जिस गति से वे इस गुरुभक्ति की डगर पर चलेंगे, उसी तीव्रता से उनकी साधना में आने वाले विघ्रों का शमन होगा। पर यह सच निर्मल चित्त वालों को ही समझ में आएगा।
1 Last


Other Version of this book



अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान -1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान -2
Type: SCAN
Language: HINDI
...

अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान-1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान -3
Type: SCAN
Language: HINDI
...

अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान -4
Type: SCAN
Language: HINDI
...

अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान - 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books



गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Pragya Puran Stories -2
Type: TEXT
Language: ENGLISH
...

Pragya Puran Stories -2
Type: TEXT
Language: ENGLISH
...

Pragya Puran Stories -2
Type: TEXT
Language: ENGLISH
...

Pragya Puran Stories -2
Type: TEXT
Language: ENGLISH
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Articles of Books

  • एक से ही हों एकाकार
  • करुणा कर सकती है—चंचल मन पर काबू
  • बड़ा गहरा है प्राण व मन का नाता
  • ध्यान से उपजती है—अतीन्द्रिय संवेदना
  • ध्यान की गहराई में छिपा है—परम सत्य
  • राग शमन करता है—वीतराग का ध्यान
  • अन्तर्चक्षु खोल देगा निद्रा का मर्म
  • अभिरुचि के ही अनुरूप हो ध्यान
  • अतिचेतन तक को वश में कर लेता है ध्यान
  • स्फटिक मणि सा बनाइये मन
  • मंजिल नहीं, पड़ाव है—सवितर्क समाधि
  • सत्य का साक्षात्कार है निर्वितर्क समाधि
  • ध्यान की अनुभूतियों द्वारा ऊर्जा स्नान
  • ध्यान का अगला चरण है—समर्पण
  • परम शुद्घ को मिलता है, अध्यात्म का प्रसाद
  • निर्मल मन को प्राप्त होती है, ऋतम्भरा प्रज्ञा
  • बिन इन्द्रिय जब अनुभूत होता है सत्य
  • जब मिलते हैं व्यक्ति और विराट्
  • सारे नियंत्रणों पर नियंत्रण है—निर्बीज समाधि
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj