
मन में कुछ उमड़ा
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मन में कुछ उमड़ा
मन में कुछ उमड़ा और तत्क्षण, याद गया भाई।
रक्षा बन्धन की यह बेला, बड़ी मनोरम आई॥
बस फिर क्या था हृदय चला जो पहुँच आज ही जायें।
या रास्ता था एक कल्पना के सुपंख फैलायें॥
बन्द नेत्रों में भइया की, छवि देती दिखलाई॥
साथ लिया रंग श्रद्धा का, ममता के अक्षत रोली।
स्नेहित सद्भावों की मन में, खिली हुई रंगोली॥
न्यौछावर हो जाऊँ भाई पर, आँखें भर आई॥
मंथन हुआ प्राण सागर में माखन प्रिय भावों का।
उभरा प्रेम तुम्हारा जो मरहम अपने घावों का॥
हृदय गगन में प्रीति तुम्हारी, बदली बन कर छाई॥
भाई का संरक्षण और महसूस दर्द का करना।
पल भर का परोक्ष में भी यह सद्भावों का झरना॥
रोम- रोम उल्लसित हुआ, जब याद तुम्हारी आई॥
है प्रभु से प्रार्थना हमेशा, सुखी रखें वो तुमको।
बगिया हरी भरी पितु गृह की, लख सुख होता हमको॥
भइया रहें समुन्नत खुशियों, की बाजे शहनाई॥
हो उज्ज्वल भविष्य सबको, मांगते जगत माता से।
याद करूँ तब आ जाना, क्या कहूँ और भ्राता से॥
सदा निभाना भइया जैसे, अब तक रीति निभाई॥
मन में कुछ उमड़ा और तत्क्षण, याद गया भाई।
रक्षा बन्धन की यह बेला, बड़ी मनोरम आई॥
बस फिर क्या था हृदय चला जो पहुँच आज ही जायें।
या रास्ता था एक कल्पना के सुपंख फैलायें॥
बन्द नेत्रों में भइया की, छवि देती दिखलाई॥
साथ लिया रंग श्रद्धा का, ममता के अक्षत रोली।
स्नेहित सद्भावों की मन में, खिली हुई रंगोली॥
न्यौछावर हो जाऊँ भाई पर, आँखें भर आई॥
मंथन हुआ प्राण सागर में माखन प्रिय भावों का।
उभरा प्रेम तुम्हारा जो मरहम अपने घावों का॥
हृदय गगन में प्रीति तुम्हारी, बदली बन कर छाई॥
भाई का संरक्षण और महसूस दर्द का करना।
पल भर का परोक्ष में भी यह सद्भावों का झरना॥
रोम- रोम उल्लसित हुआ, जब याद तुम्हारी आई॥
है प्रभु से प्रार्थना हमेशा, सुखी रखें वो तुमको।
बगिया हरी भरी पितु गृह की, लख सुख होता हमको॥
भइया रहें समुन्नत खुशियों, की बाजे शहनाई॥
हो उज्ज्वल भविष्य सबको, मांगते जगत माता से।
याद करूँ तब आ जाना, क्या कहूँ और भ्राता से॥
सदा निभाना भइया जैसे, अब तक रीति निभाई॥