
मन करता है इस धरती
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मन करता है इस धरती
मन करता है इस धरती पर, होवे सौ- सौ बार जनम।
फाँसी का फंदा मैं चुमूँ, कहकर वन्दे मातरम्- मातरम्॥
जब- जब आते पुण्य पर्व 15 अगस्त स्वतन्त्रता दिवस।
26 जनवरी गणतन्त्र दिवस॥
अगर शहीदों के यादों में, मेरा नयन जाये बरस॥
मातृभूमि पर हुए न्यौछावर, भूल गये दुनियाँ का नाम॥
वीर शिवा राणा प्रताप था, बन जाऊँ बंदा बैरागी।
बनूँ भगत, शेखर, सुभाष, जिससे सारी जनता जागी॥
बढ़ते रहो मातृ के बेटे, तब तक है साँसों में दम॥
इस धरती पर राम, कृष्ण, गौतम, गाँधी ने जन्म लिया।
तपोभूमि है कर्मभूमि है, जिसने दुनियाँ को मंत्र दिया॥
इसे ही सारी दुनियाँ में, फैलाया ओ धरम- करम॥
‘‘जब कभी संगीत की स्वर लहरियाँ मेरे कानों में गूँजती मुझे ऐसा लगता है कि- मेरी आत्म- चेतना अदृश्य जीवनदायिनी सत्ता से सम्बन्ध हो गई है। मैं शरीर की पीड़ा भूल जाता, भूख प्यास और निद्रा टूट जाती, मन को विश्राम और शरीर को हलकापन मिलता। मैं तभी सोचा करता था कि सृष्टि में संगीत से बढ़कर मानव जाति के लिए और कोई दूसरा वरदान नहीं है।’’
- विश्व के यशस्वी गायन -एनरिको कारूसो
मन करता है इस धरती पर, होवे सौ- सौ बार जनम।
फाँसी का फंदा मैं चुमूँ, कहकर वन्दे मातरम्- मातरम्॥
जब- जब आते पुण्य पर्व 15 अगस्त स्वतन्त्रता दिवस।
26 जनवरी गणतन्त्र दिवस॥
अगर शहीदों के यादों में, मेरा नयन जाये बरस॥
मातृभूमि पर हुए न्यौछावर, भूल गये दुनियाँ का नाम॥
वीर शिवा राणा प्रताप था, बन जाऊँ बंदा बैरागी।
बनूँ भगत, शेखर, सुभाष, जिससे सारी जनता जागी॥
बढ़ते रहो मातृ के बेटे, तब तक है साँसों में दम॥
इस धरती पर राम, कृष्ण, गौतम, गाँधी ने जन्म लिया।
तपोभूमि है कर्मभूमि है, जिसने दुनियाँ को मंत्र दिया॥
इसे ही सारी दुनियाँ में, फैलाया ओ धरम- करम॥
‘‘जब कभी संगीत की स्वर लहरियाँ मेरे कानों में गूँजती मुझे ऐसा लगता है कि- मेरी आत्म- चेतना अदृश्य जीवनदायिनी सत्ता से सम्बन्ध हो गई है। मैं शरीर की पीड़ा भूल जाता, भूख प्यास और निद्रा टूट जाती, मन को विश्राम और शरीर को हलकापन मिलता। मैं तभी सोचा करता था कि सृष्टि में संगीत से बढ़कर मानव जाति के लिए और कोई दूसरा वरदान नहीं है।’’
- विश्व के यशस्वी गायन -एनरिको कारूसो