
शूरवीर तुम उठो! जागकर
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शूरवीर तुम उठो! जागकर
शूरवीर तुम उठो! जागकर युग बसन्त की तान सुनाओ।
तपो निरन्तर तपसी होकर, भारत देश महान् बनाओ॥
प्राणों में तप की ज्वालायें हर साधक में धधक रही है।
जीवन लक्ष्य बनायें गुरु सा, भक्ति भाव अब हुलस रही है॥
राग रंग में डूबे मन को, वासन्ती टंकार सुनाओ॥
युग बसन्त संदेश यही है, हृदय गुहा में ईश निहारें॥
छोड़ लालसा अभिलाषा को आर्त भाव से उन्हें पुकारें॥
जीव चेतना आरोहण कर, जीवब्रह्ममय आज बनाओ॥
मन्द नहीं हो सकी साधना, युग बसन्त से हुई शुरू जो।
बुझा नहीं वह दीपक क्षणभर, जन्म दिवस से शुरू हुई जो॥
हर पल बिखरायी वह ज्योति गुरुवर ने यह बात बताओ॥
हर बसन्त ने गुरुवर को अनुदान रत्न से लाद दिये थे।
पवित्रता, आध्यात्मिक जीवन, भक्तिभाव अनुराग दिये थे॥
बने प्रामाणिक इस बसन्त में हर साधक को यही बताओ॥
संगीत प्रेमी कार्लाइल ने तो यहाँ तक कहा है कि संगीत के पीछे- पीछे खुदा चलता है और जहाँ पर स्वयं भगवान होगा वहाँ भला कैसे कोई रोग- शोक टिक सकते हैं। वहाँ तो आनन्द का निर्झर ही बहेगा।
-अखण्ड ज्योति मार्च २००३ पृष्ठ १९
शूरवीर तुम उठो! जागकर युग बसन्त की तान सुनाओ।
तपो निरन्तर तपसी होकर, भारत देश महान् बनाओ॥
प्राणों में तप की ज्वालायें हर साधक में धधक रही है।
जीवन लक्ष्य बनायें गुरु सा, भक्ति भाव अब हुलस रही है॥
राग रंग में डूबे मन को, वासन्ती टंकार सुनाओ॥
युग बसन्त संदेश यही है, हृदय गुहा में ईश निहारें॥
छोड़ लालसा अभिलाषा को आर्त भाव से उन्हें पुकारें॥
जीव चेतना आरोहण कर, जीवब्रह्ममय आज बनाओ॥
मन्द नहीं हो सकी साधना, युग बसन्त से हुई शुरू जो।
बुझा नहीं वह दीपक क्षणभर, जन्म दिवस से शुरू हुई जो॥
हर पल बिखरायी वह ज्योति गुरुवर ने यह बात बताओ॥
हर बसन्त ने गुरुवर को अनुदान रत्न से लाद दिये थे।
पवित्रता, आध्यात्मिक जीवन, भक्तिभाव अनुराग दिये थे॥
बने प्रामाणिक इस बसन्त में हर साधक को यही बताओ॥
संगीत प्रेमी कार्लाइल ने तो यहाँ तक कहा है कि संगीत के पीछे- पीछे खुदा चलता है और जहाँ पर स्वयं भगवान होगा वहाँ भला कैसे कोई रोग- शोक टिक सकते हैं। वहाँ तो आनन्द का निर्झर ही बहेगा।
-अखण्ड ज्योति मार्च २००३ पृष्ठ १९