
जय- जय राष्ट्र महान
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जय- जय राष्ट्र महान
जय- जय राष्ट्र महान, जय- जय राष्ट्र महान॥
देवभूमि धरती का गौरव, अपना हिन्दुस्तान॥
उज्ज्वल मुकुट हिमालय जैसा, पाँव पखारे सागर।
गंगा, यमुना जैसी नदियाँ, वरद हस्त सा अम्बर॥
मुक्त हृदय से दिये प्रकृति ने, इसे अमित वरदान॥
चन्दन जैसी मिट्टी इसकी, जैसे पानी अमृत।
मलया निल के झोंके चलते, ज्यों गुलाब हो सुरभित॥
शाम सबेरे कुमकुम छिड़के, फसलों की मुस्कान॥
इसके आँगन भरी पड़ी है, संस्कृतियों की गाथा।
इसके इतिहासों के सम्मुख, खुद ही झुकता माथा॥
गौतम, गाँधी की जननी यह, बलिवीरों की खान॥
हम इसकी ममता के पोषित, इसके पहरेदार।
दुश्मन आँख उठाये यदि तो, उसको दें ललकार॥
सिर देकर भी ऊँचा रखें, अपना राष्ट्र निशान॥
संगीत मनुष्यों की तरह पेड़- पौधों को भी पसन्द है।
-वाङमय- १९ पृ. ६.१७
जय- जय राष्ट्र महान, जय- जय राष्ट्र महान॥
देवभूमि धरती का गौरव, अपना हिन्दुस्तान॥
उज्ज्वल मुकुट हिमालय जैसा, पाँव पखारे सागर।
गंगा, यमुना जैसी नदियाँ, वरद हस्त सा अम्बर॥
मुक्त हृदय से दिये प्रकृति ने, इसे अमित वरदान॥
चन्दन जैसी मिट्टी इसकी, जैसे पानी अमृत।
मलया निल के झोंके चलते, ज्यों गुलाब हो सुरभित॥
शाम सबेरे कुमकुम छिड़के, फसलों की मुस्कान॥
इसके आँगन भरी पड़ी है, संस्कृतियों की गाथा।
इसके इतिहासों के सम्मुख, खुद ही झुकता माथा॥
गौतम, गाँधी की जननी यह, बलिवीरों की खान॥
हम इसकी ममता के पोषित, इसके पहरेदार।
दुश्मन आँख उठाये यदि तो, उसको दें ललकार॥
सिर देकर भी ऊँचा रखें, अपना राष्ट्र निशान॥
संगीत मनुष्यों की तरह पेड़- पौधों को भी पसन्द है।
-वाङमय- १९ पृ. ६.१७