
जागो युग के राष्ट्र पुरोहित
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जागो युग के राष्ट्र पुरोहित
जागो युग के राष्ट्र पुरोहित, करो लोक कल्याण।
जगे राष्ट्र की नई जवानी, लेकर नया उफान।।
संस्कृति सीता सिसक रही है, ढाढस उसे बँधाओ।
दुराचार लंका को मिलकर, जल्दी उसे ढहाओ।।
जागो राष्ट्र के सृजन सैनिकों, प्रबल पराक्रम लेकर।
गाँव- गाँव में, शहर- शहर में ज्ञान मशाल जलाओ।।
ज्ञानयज्ञ की ज्योति जलाकर, करना है निर्माण।।
फूलों सी मुस्कान भरें हम, जन- जन हर्षित होवें।
ऋषियों की वाणी से जग की, शाखाएँ पुष्पित होवें।।
प्रज्ञा का प्रकाश फैलाकर, हरो तमिस्रा युग की।
समयदान के साथ लगायें, जो भी साधन होवें।।
कथनी- करनी भिन्न रहें न, करें नित्य उत्थान।।
अनुशासन अनुबन्ध निभाकर, जीवन श्रेष्ठ बनायें।
नवयुग का सपना पूरा हो, वह पुरूषार्थ दिखायें।।
जगो राष्ट्र के प्रतिभावानों, क लाकार, कवि, गायक।
अपनी क्षमता से हम सब, धरती स्वर्ग बनायें।।
सविता की शाश्वत शक्ति से, होकर उर्जावान।।
अन्तरिक्ष से प्रबल प्रेरणा, अन्तर में छलक रही है।
ईश्वर की पावन अनुकम्पा, कण- कण में छलक रही है।।
जागो युग के कर्णधार अब, संवेदन छलकाओ।
नवयुग की झाँकी अब, सबके मन में छलक रही है।
श्रद्धा सजल- प्रखर प्रज्ञा के, बरस रहे वरदान।।
जागो युग के राष्ट्र पुरोहित, करो लोक कल्याण।
जगे राष्ट्र की नई जवानी, लेकर नया उफान।।
संस्कृति सीता सिसक रही है, ढाढस उसे बँधाओ।
दुराचार लंका को मिलकर, जल्दी उसे ढहाओ।।
जागो राष्ट्र के सृजन सैनिकों, प्रबल पराक्रम लेकर।
गाँव- गाँव में, शहर- शहर में ज्ञान मशाल जलाओ।।
ज्ञानयज्ञ की ज्योति जलाकर, करना है निर्माण।।
फूलों सी मुस्कान भरें हम, जन- जन हर्षित होवें।
ऋषियों की वाणी से जग की, शाखाएँ पुष्पित होवें।।
प्रज्ञा का प्रकाश फैलाकर, हरो तमिस्रा युग की।
समयदान के साथ लगायें, जो भी साधन होवें।।
कथनी- करनी भिन्न रहें न, करें नित्य उत्थान।।
अनुशासन अनुबन्ध निभाकर, जीवन श्रेष्ठ बनायें।
नवयुग का सपना पूरा हो, वह पुरूषार्थ दिखायें।।
जगो राष्ट्र के प्रतिभावानों, क लाकार, कवि, गायक।
अपनी क्षमता से हम सब, धरती स्वर्ग बनायें।।
सविता की शाश्वत शक्ति से, होकर उर्जावान।।
अन्तरिक्ष से प्रबल प्रेरणा, अन्तर में छलक रही है।
ईश्वर की पावन अनुकम्पा, कण- कण में छलक रही है।।
जागो युग के कर्णधार अब, संवेदन छलकाओ।
नवयुग की झाँकी अब, सबके मन में छलक रही है।
श्रद्धा सजल- प्रखर प्रज्ञा के, बरस रहे वरदान।।