
पूज्य गुरुदेव थे त्याग- जप
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पूज्य गुरुदेव थे त्याग- जप
पूज्य गुरुदेव थे त्याग- तप के धनी,
प्यार बाँटे बिना चैन आया नहीं।
प्यार की धार को वह बहाते रहे,
वह अभागा है जो प्यार पाया नहीं।।
स्नेह सलिल सजल श्रद्धा माँ ने हमें,
स्नेह- संवेदना रस पिलाया सरस।
युग की पीड़ा से पीड़ित रहे युग्म
ऋषि वेदना से विकल आँसू जाते बरस।
प्यार की साधना में निरन्तर जपे,
प्यार बिना उनने जीवन बिताया नहीं।।
त्याग- बलिदान आदर्श मन में बसा,
साधना के शिखर पर वे चढ़ते रहे।
जिस तरह से मिटे जग से पीड़ा- पतन,
पुण्य- पुरुषार्थ वे नित्य करते रहे।।
रोते जो भी गया हँसता वापस हुआ,
कौन सी सम्पदा जो लुटाया नहीं।।
माँ की ममता सहजता से मिलती रही,
प्रेरणा मार्गदर्शन भी मिलता रहा।
साधना की कली झूम कर खिल उठी,
श्रेष्ठ सत्संग का लाभ मिलता रहा।
माता की ममता की मूर्ति थी गुणकारी,
जो मिला उसने उर से भुलाया नहीं।
फर्ज अपना है गुरु ऋण चुकायें चलो,
उर का देवत्व विकसित करें स्नेह से।
स्वर्ग मिलकर धरा को बनायें चलो,
सूक्ष्म कारण से गुरु देखते नेह से।।
भूल जायें उन्हें हम भले ही मगर,
अपना कर्तव्य उनने भुलाया नहीं।
पूज्य गुरुदेव थे त्याग- तप के धनी,
प्यार बाँटे बिना चैन आया नहीं।
प्यार की धार को वह बहाते रहे,
वह अभागा है जो प्यार पाया नहीं।।
स्नेह सलिल सजल श्रद्धा माँ ने हमें,
स्नेह- संवेदना रस पिलाया सरस।
युग की पीड़ा से पीड़ित रहे युग्म
ऋषि वेदना से विकल आँसू जाते बरस।
प्यार की साधना में निरन्तर जपे,
प्यार बिना उनने जीवन बिताया नहीं।।
त्याग- बलिदान आदर्श मन में बसा,
साधना के शिखर पर वे चढ़ते रहे।
जिस तरह से मिटे जग से पीड़ा- पतन,
पुण्य- पुरुषार्थ वे नित्य करते रहे।।
रोते जो भी गया हँसता वापस हुआ,
कौन सी सम्पदा जो लुटाया नहीं।।
माँ की ममता सहजता से मिलती रही,
प्रेरणा मार्गदर्शन भी मिलता रहा।
साधना की कली झूम कर खिल उठी,
श्रेष्ठ सत्संग का लाभ मिलता रहा।
माता की ममता की मूर्ति थी गुणकारी,
जो मिला उसने उर से भुलाया नहीं।
फर्ज अपना है गुरु ऋण चुकायें चलो,
उर का देवत्व विकसित करें स्नेह से।
स्वर्ग मिलकर धरा को बनायें चलो,
सूक्ष्म कारण से गुरु देखते नेह से।।
भूल जायें उन्हें हम भले ही मगर,
अपना कर्तव्य उनने भुलाया नहीं।