
नवयुग के गीता के गायक
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नवयुग के गीता के गायक
नवयुग के गीता के गायक, शत् शत् तुम्हें प्रणाम है।
आत्मचेतना के उन्नायक, शत् शत् तुम्हें प्रणाम है॥
देवभूमि में देव संस्कृति को हम अपनाना भूले।
थे दैवी अनुदान असीमित किन्तु उन्हें पाना भूले॥
जगन्नियन्ता को स्वयं अपने अहंकार में भूले हम।
ईश्वर ने जो दिया उसी का ढेर लगाकर फूले हम॥
तुमने सिद्ध किया गुरुसत्ता को हमें जगाया तन्द्रा से।
स्रष्टा के स्वर के परिचायक, शत्- शत् तुम्हें प्रणाम है॥
दृश्य रूप में ईश चेतना गुरु बनकर जो आती है।
गायत्री में सद्विचार सद्भाव वही कहलाती है॥
यज्ञरूप हो तुमने प्रभु, सत्कर्म सभी को सिखलाया।
कर्मयोग का मुक्ति मार्ग जन- जन को तुमने दिखलाया॥
तुमने काया नहीं चेतना रूप रहे परमेश्वर के।
कर्मों के तुम ही फलदायक, शत्- शत् तुम्हें प्रणाम है॥
जितने साधन बढ़े स्वार्थ उतना ज्यादा हमको दीखा।
शक्ति साधनों का हमने कुछ सद्उपयोग नहीं सिखा॥
करुणा संवेदना भुला दी वर्ग भेद उपजाया था।
तभी स्नेह समता सुबुद्धि तुमने सद्भाव जगाया था॥
गायत्री को किया मुक्त माँ सुलभ हुई संतानों को।
जन- जन के प्रेरक जननायक, शत्- शत् तुम्हें प्रणाम है॥
नवयुग के गीता के गायक, शत् शत् तुम्हें प्रणाम है।
आत्मचेतना के उन्नायक, शत् शत् तुम्हें प्रणाम है॥
देवभूमि में देव संस्कृति को हम अपनाना भूले।
थे दैवी अनुदान असीमित किन्तु उन्हें पाना भूले॥
जगन्नियन्ता को स्वयं अपने अहंकार में भूले हम।
ईश्वर ने जो दिया उसी का ढेर लगाकर फूले हम॥
तुमने सिद्ध किया गुरुसत्ता को हमें जगाया तन्द्रा से।
स्रष्टा के स्वर के परिचायक, शत्- शत् तुम्हें प्रणाम है॥
दृश्य रूप में ईश चेतना गुरु बनकर जो आती है।
गायत्री में सद्विचार सद्भाव वही कहलाती है॥
यज्ञरूप हो तुमने प्रभु, सत्कर्म सभी को सिखलाया।
कर्मयोग का मुक्ति मार्ग जन- जन को तुमने दिखलाया॥
तुमने काया नहीं चेतना रूप रहे परमेश्वर के।
कर्मों के तुम ही फलदायक, शत्- शत् तुम्हें प्रणाम है॥
जितने साधन बढ़े स्वार्थ उतना ज्यादा हमको दीखा।
शक्ति साधनों का हमने कुछ सद्उपयोग नहीं सिखा॥
करुणा संवेदना भुला दी वर्ग भेद उपजाया था।
तभी स्नेह समता सुबुद्धि तुमने सद्भाव जगाया था॥
गायत्री को किया मुक्त माँ सुलभ हुई संतानों को।
जन- जन के प्रेरक जननायक, शत्- शत् तुम्हें प्रणाम है॥